पिछले लेख में हमने क्रौंच द्वीप के विषय में पढ़ा। इस लेख में हम छठे महान शाक द्वीप के विषय में जानेंगे।
- इस द्वीप के मध्य में एक अतिविशाल शाक का वृक्ष है और उसी वृक्ष के कारण इस द्वीप का नाम शाक द्वीप पड़ा है।
- महाभारत में संजय ने धृतराष्ट्र को जम्बू द्वीप का विस्तार १८६०० योजन बताया है। शाक द्वीप का विस्तार जम्बू द्वीप से दुगना अर्थात ३७२०० योजन है।
- ये महान द्वीप चारो ओर से दुग्ध सागर से घिरा हुआ है। इसी सागर को पुराणों में प्रसिद्ध "क्षीरसागर" माना गया है जहाँ नारायण शेषनाग पर शयन करते हैं।
- इस द्वीप के स्वामी वीरवर "भव्य" हैं जिन्होंने इस द्वीप को अपने ७ यशस्वी पुत्रों में बाँट दिया है।
- उन्ही के नाम पर ये ७ वर्ष (खंड) जाने जाते हैं:
- जलद
- कुमार
- सुकुमार
- मरीचक
- कुसुमोद
- मौदाकि
- महाद्रुम
- इस द्वीप पर ७ मुख्य पर्वत हैं:
- मेरु
- मलय
- जलधार
- रैवतक
- श्याम
- दुर्गशैल
- केसरी
- इस द्वीप में ७ पवित्र नदियां बहती हैं। ऐसी मान्यता है कि इन नदियों का जल अमृत के समान है जिसे पीने से लोग रोग, व्याधि एवं मृत्यु से बचे रहते हैं।
- सुमुमरी
- कुमारी
- नलिनी
- धेनुका
- इक्षु
- वेणुका
- गभस्ती
- इस द्वीप में चार वर्ण हैं:
- ब्राह्मण: भृग
- क्षत्रिय: मगध
- वैश्य: मानस
- शूद्र: मंदग
- इस द्वीप में चार जनपद हैं:
- मङ्ग: यहाँ भृग अर्थात ब्राह्मण निवास करते हैं।
- मशक: यहाँ मगध अर्थात क्षत्रिय निवास करते हैं।
- मानस: इस जनपद में मानस अर्थात वैश्य निवास करते हैं।
- मंदक: यहाँ मंदग अर्थात शूद्र निवास करते हैं।
- इस द्वीप में मृत्यु का कोई भय नहीं होता। यहाँ कभी दुर्भिक्ष नहीं पड़ता तथा यहाँ के निवासी तेजस्वी एवं क्षमाशील हैं।
- यहाँ विशेष रूप से भगवान सूर्यनारायण का पूजन किया जाता है।
- शाकद्वीपीय ब्राह्मण: पुराणों में यहाँ के ब्राह्मणों का बड़ा महत्त्व बताया गया है। इन्हे ब्राह्मणों में सर्वोत्तम माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इन ब्राह्मणों का जन्म सूर्य के अंश से हुआ है। मनुस्मृति में लिखा है कि श्राद्ध कर्म सूर्यास्त के पश्चात नहीं किया जाता किन्तु अगर शाक द्वीप के ब्राह्मण की उपस्थिति हो तो उसे सूर्य के सदृश मान कर ये कर्म किया जा सकता है। महाभारत में ऐसा वर्णित है कि जब श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब को कुष्ट रोग हो गया तब श्रीकृष्ण ने शाक द्वीप से १८ शाकद्वीपीय ब्राह्मणों को जम्बूद्वीप में आमंत्रित किया। उन ब्राह्मणों ने साम्ब का कुष्ट रोग ठीक कर दिया और बाद में वे मगध (वर्तमान का बिहार) में आकर बस गए। कहा जाता है कि वराहमिहिर, आचार्य कौंडिन्यायान, आर्यभट्ट, बाणभट्ट एवं चाणक्य भी शाकद्वीपीय ब्राह्मण ही थे। भारत के अन्य ब्राह्मण शाकद्वीपीय ब्राह्मणों को महत्त्व नहीं देते एवं इन्हे हेय दृष्टि से देखते हैं।
आशा है कि आपको ये लेख पसंद आया होगा। अगले लेख में हम अंतिम पौराणिक द्वीप पुष्कर द्वीप के विषय में विस्तार से जानेंगे।
अति उत्तम सुन्दर, प्रसन्नता प्राप्त हुई।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार
हटाएंआपकी लेख गलत है महोदय
जवाब देंहटाएंक्षमा चाहता हूँ, आप कृपया सही जानकारी बता दें।
हटाएंशाकद्वीप व शाकद्वीपीय ब्राह्मणों के बारे कोई ग्रंथ, पुस्तक या अन्य रिकार्ड हो तो मेरे नं. 9350325467 पर अवगत करवाने की कृपा करें
जवाब देंहटाएंगीता प्रेस से पुस्तकें मंगवा लें।
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