हिन्दू धर्म में गोमती नदी का बड़ा महत्त्व है। हमारी पांच सबसे पवित्र नदियों में से एक गोमती भी है। मान्यता है कि गोमती महर्षि वशिष्ठ की पुत्री थी जो बाद में नदी के रूप में परिणत हो गयी। इसी पवित्र नदी के अंदर एक विशेष पत्थर पाया जाता है जिसे हम गोमती चक्र के नाम से जानते हैं। ये पत्थर उतना कीमती तो नहीं होता किन्तु बहुत दुर्लभ होता है। ये कैल्शियम का पत्थर होता है जिसमे चक्र का निशान होता है जो इसके नाम का मुख्य कारण है। हिन्दू धर्म में गोमती चक्र का बड़ा महत्त्व है। विशेष रूप से ज्योतिष शास्त्र में इसे बहुत पवित्र माना जाता है। मुख्य रूप से गोमती चक्र श्रीहरि और श्रीकृष्ण से जुड़ा हुआ है।
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महर्षि जमदग्नि
ब्रह्मा जी के श्रेष्ठ पुत्रों में एक थे महर्षि भृगु जिन्होंने त्रिदेवों की परीक्षा ली थी। इनकी कई पत्नियां थी जिनमे से एक थी दानवराज पौलोम की पुत्री "पौलोमी"। इन दोनों के एक परम तेजस्वी पुत्र हुए महर्षि च्यवन। च्यवन ने आरुषि नामक कन्या से विवाह किया जिनसे उन्हें और्व नामक पुत्र की प्राप्ति हुई। और्व के एक पुत्र हुए ऋचीक, जो परम तपस्वी थे। इनका विवाह महाराज गाधि की पुत्री और विश्वामित्र की बहन सत्यवती से हुआ। सत्यवती को प्राप्त करने के लिए ऋचीक ने १००० श्यामकर्ण अश्व महाराज गाधि को भेंट किये थे। कालांतर में इन्ही श्यामकर्ण अश्व को प्राप्त करने के लिए ऋषि गालव ने ययाति कन्या माधवी का विनिमय किया था।
कुश का वंश
श्रीराम के वंश का विस्तृत वर्णन धर्मसंसार पर पहले ही प्रकाशित हो चुका है। श्रीराम के दो पुत्र हुए - लव और कुश। निर्वाण लेते समय श्रीराम ने अपने साम्राज्य को स्वयं और अपने अनुज पुत्रों में समान रूप से बाँट दिया। लव को जो राज्य मिला उसका नाम उन्होंने लव नगर रखा। आज पाकिस्तान का लाहौर ही वो नगर था।
यदुवंश
इस वेबसाइट का पहला लेख मैंने कुरुवंश (पुरुवंश) से किया था। श्रीकृष्ण का लेख लिखने में बहुत देर हो गयी। श्रीकृष्ण के वंश की शाखा भी उन्ही चक्रवर्ती सम्राट ययाति से चली जिनसे पुरु का वंश चला। पुरु ययाति के सबसे छोटे पुत्र थे और यदु सबसे बड़े। हालाँकि ययाति के श्राप के कारण सबसे प्रसिद्ध राजवंश पुरु का ही रहा जिसमें दुष्यंत, भरत, कुरु, हस्ती, शांतनु और युधिष्ठिर जैसे महान सम्राट हुए। ययाति के अन्य पुत्रों का वंश भी चला किन्तु चक्रवर्ती सम्राट केवल पुरु के वंश में ही हुए।