यदुवंश

यदुवंश
इस वेबसाइट का पहला लेख मैंने कुरुवंश (पुरुवंश) से किया था। श्रीकृष्ण का लेख लिखने में बहुत देर हो गयी। श्रीकृष्ण के वंश की शाखा भी उन्ही चक्रवर्ती सम्राट ययाति से चली जिनसे पुरु का वंश चला। पुरु ययाति के सबसे छोटे पुत्र थे और यदु सबसे बड़े। हालाँकि ययाति के श्राप के कारण सबसे प्रसिद्ध राजवंश पुरु का ही रहा जिसमें दुष्यंत, भरत, कुरु, हस्ती, शांतनु और युधिष्ठिर जैसे महान सम्राट हुए। ययाति के अन्य पुत्रों का वंश भी चला किन्तु चक्रवर्ती सम्राट केवल पुरु के वंश में ही हुए।

ययाति के ज्येष्ठ पुत्र यदु से ही यदुवंश चला जिसमें आगे चलकर श्रीकृष्ण ने जन्म लिया। हालाँकि ये वंश पुरुवंश के सामान सीधा नहीं रहा बल्कि इसमें कई शाखाएं बंट गयी। आइये इस गौरवशाली वंश के विषय में कुछ जानते हैं। किन्तु अनुरोध है कि जरा ध्यान से पढियेगा। अगर ध्यान भटका तो वंश श्रृंखला समझने में परेशानी हो सकती है। 
  1. परमपिता ब्रह्मा से ये सारी सृष्टि जन्मी। 
  2. ब्रह्मा के पुत्र हुए अत्रि जो सप्तर्षियों में से एक थे।
  3. अत्रि के अनुसूया से सबसे छोटे पुत्र थे चंद्र। 
  4. चंद्र बृहस्पति की पत्नी तारा पर आसक्त हुए जिनसे उन्हें बुध नामक पुत्र की प्राप्ति हुई। 
  5. बुध का विवाह इला से हुआ जिससे उन्हें पुरुरवा पुत्र रूप में प्राप्त हुए। 
  6. पुरुवा ने उर्वशी से विवाह किया जिनसे उन्हें छः पुत्र प्राप्त हुए - आयु, अमावसु, विश्वायु, श्रुतायु, शतायु एवं दृढ़ायु। आयु राजा हुए। 
  7. आयु ने स्वर्भानु (बाद में यही राहु केतु कहलाये) की पुत्री प्रभा से विवाह किया जिनसे उन्हें नहुष नामक पुत्र की प्राप्ति हुई। नहुष ने इंद्र पद भी प्राप्त किया और वे ३६९८२५६वें इंद्र बने। 
  8. नहुष ने महादेव की पुत्री अशोक सुन्दरी से विवाह किया और यति एवं ययाति दो पुत्रों और १०० पुत्रियों को प्राप्त किया। यति संन्यासी बन गए जिससे राज्य ययाति को मिला। 
  9. ययाति ने शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी और वृषपर्वा की पुत्री शर्मिष्ठा से विवाह किया। देवयानी से उन्हें यदु और तर्वसु ये दो पुत्र और माधवी नामक एक कन्या हुई। शर्मिष्ठा से उन्हें अनु, द्रुहु एवं पुरु नामक पुत्रों की प्राप्ति हुई। ययाति पहले चक्रवर्ती सम्राट बनें और उनके श्राप के कारण प्रथम चार पुत्र राजवंश से दूर हुए और पुरु का वंश सबसे प्रतापी हुआ। इस कथा में नहीं जाऊंगा अन्यथा लेख बहुत लम्बा हो जाएगा।
  10. यदु से यदुवंश की गाथा आरम्भ होती है। यदु के चार पुत्र हुए - सहस्त्रजित, क्रोष्ट, नल और रिपु। इनमे से क्रोष्ट ने अपने पिता का वंश आगे बढ़ाया और सहस्त्रजित ने स्वयं अपना वंश चलाया जो आगे चल कर यादव वंश ना कहलाकर प्रतापी हैहय वंश कहलाया। इन्हे हैहय यादव भी कहा जाता है। आइये इन दो शाखाओं को देखते हैं। 
    1. सहस्त्रजित के शतजित नामक पुत्र हुए। 
    2. शतजित के तीन पुत्र हुए - महाहय, रेणुहय और हैहय। राज्य हैहय को मिला। 
    3. हैहय के धर्म नामक पुत्र हुए। 
    4. धर्म के पुत्र हुए नेत्र। 
    5. नेत्र के कुंती नामक पुत्र हुए। 
    6. कुंती के पुत्र थे सोहान्जी। 
    7. सोहान्जी के पुत्र हुए माहिष्मत। ये बड़े प्रतापी थे और इन्ही के नाम पर इनकी राजधानी का नाम महिष्मति पड़ा।
    8. माहिष्मत के पुत्र थे भद्रसेन। 
    9. भद्रसेन के दो पुत्र हुए - दुर्मद और धनक। राज्य धनक को मिला। 
    10. धनक के चार पुत्र हुए - कर्त्यवीर्य, कृताग्नि, कृतवर्मन और कृतौजस। कर्त्यवीर्य महर्षि जमदग्नि के घनिष्ठ मित्र थे। 
    11. कर्त्यवीर्य के अर्जुन नामक महाप्रतापी पुत्र प्राप्त हुआ जो अपने पिता के नाम से कर्त्यवीर्य अर्जुन के नाम से विख्यात हुआ। उसे श्री दत्तात्रेय ने १००० भुजाओं और अपार बल का वरदान दिया जिससे वो सहस्त्रबाहु के नाम से भी विख्यात हुआ। इन्होने जमदग्नि की पत्नी रेणुका की छोटी बहन से विवाह किया। जमदग्नि की प्रसिद्ध गाय कामधेनु को बलात हस्तगत करने के कारण परशुराम ने इनका वध कर दिया।
    12. वैसे तो कर्त्यवीर्य अर्जुन के १००० पुत्र थे किन्तु उन्होंने जमदग्नि को मार डाला जिससे क्रोधित होकर परशुराम ने उनके पूरे वंश का नाश कर डाला। कर्त्यवीर्य अर्जुन के केवल पाँच पुत्र बचे - जयध्वज, सुरसेन, ऋषभ, मधु और ऊर्जित। जयध्वज के अतिरिक्त अन्य चारो भाइयों का वंश भी परशुराम ने बाद में समाप्त कर डाला।
    13. जयध्वज का पुत्र प्रतापी तालजंघ हुआ। 
    14. तालजंघ के १०० वीर पुत्र हुए जिनमे से वीतिहोत्र ज्येष्ठ था। हैहयों से अपनी पुरानी शत्रुता के कारण इक्ष्वाकु वंशी राजा सगर ने उनके सभी पुत्रों का वध कर दिया। ये वही सगर थे जिनके ६०००० पुत्रों को कपिल मुनि ने भस्म कर दिया था और बाद में उनके पड़पोते भगीरथ ने गंगा को धरती पर लाकर उनका उद्धार किया था।
    15. वीतिहोत्र का एक पुत्र बचा जिसका नाम अनंत था। 
    16. अनंत के भी एक पुत्र का वर्णन आता है जिसका नाम दुर्जय था। 
  11. अब आते हैं मूल यादव वंश पर जो क्रोष्ट से चले। क्रोष्ट को प्रथम यदुवंशी सम्राट भी माना जाता है। क्रोष्ट के पुत्र का नाम व्रजनिवण था। 
  12. व्रजनिवण के स्वाही नामक पुत्र हुए। 
  13. स्वाही के पुत्र का नाम उशंक था। 
  14. उशंक के पुत्र चित्ररथ हुए। 
  15. चित्ररथ के पुत्र का नाम शशिबिन्दु था जो बहुत प्रतापी राजा हुए। इनके नेतृत्व में यादवों ने पुरुवंशियों की बहुत सारी भूमि पर अधिकार जमा लिया। यादवों का इक्षवाकु के वंशजों से बहुत पुराना झगड़ा था किन्तु शशिबिन्दु ने इसे समाप्त करने की पहल की। इसके लिए इन्होने अपनी पुत्री बिन्दुमती का विवाह मान्धाता से किया। इन्ही मान्धाता के वंश में आगे चल कर श्रीराम ने जन्म लिया। श्रीराम के वंश के विषय में आप यहाँ पढ़ सकते हैं। इस सम्बन्ध के बाद मान्धाता ने ययाति के पुत्र अनु से जीता हुआ राज्य भी शशिबिन्दु को दे दिया। शशिबिन्दु ने अपनी ही दूसरी यादव शाखा हैहय वंशियों के अत्याचार को रोकने का भी प्रयास किया किन्तु वे अधिक सफल नहीं हुए और अंततः परशुराम को हैहयों का अंत करना पड़ा।
  16. शशिबिन्दु के पुत्र का नाम था भोज। 
  17. भोज के पुत्र पृथुश्रवा थे। 
  18. पृथुश्रवा के पुत्र का नाम था धामरा। 
  19. धामरा के पुत्र का नाम उष्ण था। 
  20. उष्ण के रुचक नमक पुत्र हुए। 
  21. रुचक के पुत्र थे ज्यामघ। 
  22. ज्यामघ के विदर्भ नामक पुत्र हुए। ये भी बहुत प्रतापी राजा थे इन्ही के नाम से इनके राज्य का नाम विदर्भ पड़ा। 
  23. विदर्भ के तीन पुत्र हुए - क्रथ, कौशिक और रोमपाद। ज्येष्ठ पुत्र क्रथ को राज्य मिला जिसके बाद रोमपाद ने अपना अलग राज्य स्थापित किया और इन्ही के वंशजों में एक सम्राट चेदि हुए जिनके नाम से इनके राज्य का नाम बदल कर चेदि देश हो गया। इन्ही चेदि के वंशजों में दमघोष के पुत्र शिशुपाल ने जन्म लिया।
  24. क्रथ के पुत्र का नाम कुंती (कीर्ति) था। 
  25. कुंती के पुत्र धृष्टि हुए। 
  26. धृष्टि के पुत्र का नाम निवृति था। 
  27. निवृति के पुत्र का नाम दर्शह था। इनके नाम से दर्शह यादवों की एक अलग श्रृंखला चली। 
  28. दर्शह के पुत्र का नाम था व्योम। 
  29. व्योम के पुत्र का नाम भीम था। 
  30. भीम के जीमूत नामक प्रतापी पुत्र हुए। 
  31. जीमूत के पुत्र का नाम विकृति था। 
  32. विकृति के पुत्र का नाम भीमरथ था। 
  33. भीमरथ के नवरथ नामक पुत्र हुए। 
  34. नवरथ के पुत्र का नाम दशरथ था। 
  35. दशरथ के पुत्र का नाम शकुनि था। 
  36. शकुनि के करीभी नामक एक पुत्र हुए। 
  37. करीभी के पुत्र का नाम देवरत था। 
  38. देवरत के एक पुत्र हुए जिनका नाम था देवशस्त्र। 
  39. देवशस्त्र के पुत्र का नाम था मधु। ये बहुत प्रतापी राजा हुए और इन्ही के नाम पर यादवों की एक शाखा चली जिसे मधु यादव कहते थे। यही आगे चलकर माधव नाम से प्रसिद्ध हुए। मधु ने अपने राज्य का नाम मधुरा रखा जो आगे चल कर मथुरा कहलाया। 
  40. मधु के पुत्र कुमारवंश हुए। 
  41. कुमारवंश के पुत्र का नाम अंशु था। 
  42. अंशु के पुत्र का नाम पुरुहोत्र था। 
  43. पुरुहोत्र के पुत्र थे सत्त्वत्त। 
  44. सत्त्वत्त के छः पुत्र थे - भजन, भजमन, दिव्य, देववर्द्ध, अंधक और वृष्णि। इन सभी में अंधक और वृष्णि के सर्वाधिक प्रतापी वंश चले। अन्य चार पुत्रों का वंश उतना प्रसिद्ध नहीं रहा। यहाँ से इनका वंश दो प्रमुख हिस्सों में बंट गया। 
    1. अंधक वंश - ये शाखा अंधक यादव कहलाये जिनके राजा सत्वत्त के पुत्र अंधक बने जिनका अधिकार मथुरा पर था। 
      1. अंधक के दो पुत्र थे - कुकुर और भजमन। राज्य कुकुर को मिला।
        1. भजमन के सात पुत्र हुए - विदुरथ, राजाधिदेव, शूर, शोदाश्व, शमी, प्रतीक्षरत एवं हृदायक। 
        2. हृदायक के पाँच पुत्र हुए - कृतवर्मा, दरवाह, देवरथ, शतधन्वा एवं देवगर्भ। शतधन्वा ने श्रीकृष्ण के श्वसुर और सत्यभामा के पिता सत्राजित का वध कर दिया। जिसके बाद श्रीकृष्ण ने शतधन्वा का वध किया। इसी कारण यादव होते हुए भी कृतवर्मा ने कौरवों की ओर से युद्ध किया।
      2. कुकुर के सात पुत्र हुए - द्रश्नु, कपोल, देवत्त, नल, अभिजित, पुनर्वसु और आहुक। इनमे से आहुक सबसे प्रतापी हुए।
      3. आहुक के दो पुत्र थे - देवक और उग्रसेन। 
      4. देवक की पुत्री थी देवकी जिनका विवाह वसुदेव से हुआ जिनसे श्रीकृष्ण का जन्म हुआ। उग्रसेन ने पद्मावती से विवाह किया और उनसे उन्हें एक पुत्र प्राप्त हुआ - कंस। कंस ने जरासंध की पुत्रियों अस्ति और प्राप्ति से विवाह किया। देवकी के पुत्र श्रीकृष्ण ने कंस का वध किया।
    2. वृष्णि वंश: ये शाखा वृष्णि यादव के नाम से प्रसिद्ध हुई जिसके सम्राट सत्त्वत्त के पुत्र वृष्णि हुए।
      1. वृष्णि के तीन पुत्र थे - सुमित्र, युधाजित एवं देवमूढ़। राज्य देवमूढ़ को प्राप्त हुआ। 
        1. युधाजित के तीन पुत्र हुए - शिनि, प्रसेन और सत्राजित
        2. शिनि के पुत्र सत्यक हुए।  
        3. सत्यक के पुत्र सात्यिकी थे जो श्रीकृष्ण के परम मित्र थे।
      2. देवमूढ़ के पुत्र का नाम सूरसेन था। 
      3. सूरसेन के दो पुत्र और दो पुत्रियां हुई। ज्येष्ठ पुत्र का नाम वसुदेव था दूसरे पुत्र का नाम देवभाग था। सूरसेन की ज्येष्ठ पुत्री का नाम पृथा था। पृथा को राजा कुन्तिभोज ने गोद लिया जिससे बाद में वो कुंती के नाम से प्रसिद्ध हुई। सूरसेन की दूसरी पुत्री श्रुत्वाता का विवाह दमघोष से हुआ जिनसे उन्हें शिशुपाल नामक पुत्र की प्राप्ति हुई।
      4. वसुदेव ने पुरुवंशी राजा प्रतीप और सुनंदा की पुत्री रोहिणी से विवाह किया जिनसे उन्हें बलराम पुत्र रूप में प्राप्त हुए। उनकी दूसरी पत्नी अंधक कुल के देवक की पुत्री देवकी थी जिनसे उन्हें श्रीकृष्ण की प्राप्ति हुई। वासुदेव के छोटे भाई देवभाग के पुत्र का नाम उद्धव था जो श्रीकृष्ण के अभिन्न मित्र थे।
      5. बलराम ने कुकुद्मी की पुत्री रेवती से विवाह किया जिनसे उन्हें दो पुत्र और एक पुत्री की प्राप्ति हुई। उनके पुत्रों का नाम था - निषत और उल्मुक। उनकी पुत्री का नाम वत्सला था जिसका विवाह अभिमन्यु से हुआ। श्रीकृष्ण की तीन प्रमुख रानियां थी - रुक्मिणी, जांबवंती और सत्यभामा, इनमे रुक्मिणी पटरानी थी। इसके अतिरिक्त उनकी पांच और मुख्य पत्नियाँ थी - सत्या, कालिंदी, लक्ष्मणा, मित्रविन्दा और भद्रा। तो उनकी मुख्य ८ रानियां थी। इसके अतिरिक्त श्रीकृष्ण ने नरकासुर से छुड़ाई गयी १६१०० स्त्रियों से भी विवाह किया। श्रीकृष्ण अपनी माया से अपनी हर पत्नी के पास रहते थे और प्रत्येक पत्नी से उन्होंने १०-१० पुत्र प्राप्त किये। प्रद्युम्न इनका ज्येष्ठ पुत्र था। श्रीकृष्ण की मुख्य पत्नियों और पुत्रों के बारे में आप यहाँ विस्तार से पढ़ सकते हैं।
इतना बड़ा यदुकुल गांधारी के श्राप के कारण नाश हो गया। इसका मुख्य कारण श्रीकृष्ण और जांबवंती के पुत्र साम्ब बना। इस विषय में आप विस्तार से यहाँ पढ़ सकते हैं। आशा है आपको ये लेख पसंद आया होगा। जय श्रीकृष्ण।

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