हम सभी ने श्रीकृष्ण की १६१०८ रानियों के विषय में पढ़ा है। वास्तव में श्रीकृष्ण की १६१०८ पत्नियों की भूमिका त्रेता युग में रामावतार के समय ही बन गयी थी। त्रेतायुग में श्रीराम ने एक पत्नीव्रती होने का निश्चय कर लिया था किन्तु उस समय अनेकानेक युवतियां श्रीराम को अपने पति के रूप में प्राप्त करना चाहती थी। इसी कारण उन्होंने उन युवतियों को द्वापरयुग में पत्नीरूप में स्वीकार करने का वचन दिया था। द्वापरयुग में वही युवतियां श्रीकृष्ण की भार्यायें हुईं। आइये देखते हैं कौन किसका अवतार थीं।
- रुक्मिणी: ये साक्षात लक्ष्मी का अवतार थीं। श्री हरि विष्णु के अवतार प्रयोजन को प्रभावशाली और सुगम बनाने के लिये माता लक्ष्मी ने स्वयं अवतार धारण किया था। उन्होंने रामावतार के समय सीता के रूप में, तो कृष्णावतार के समय रुक्मिणी के रूप में अवतार ग्रहण किया था।
- सत्यभामा: ये त्रेता की ब्राह्मणी गुणवती का अवतार थीं। दरअसल त्रेता युग में मायापुरी नामक नगरी में देव शर्मा नामक एक तपस्वी ब्राह्मण अपनी पुत्री गुणवती के साथ रहते थे। उनका चन्द्र नामक एक मेधावी शिष्य था। चंद्र की प्रतिभा देखकर देव शर्मा ने उन्हें सर्वविध लायक जानकर अपनी पुत्री का उसके साथ विवाह कर दिया। एक दिन देवशर्मा और चंद्र दोनों यज्ञ के लिये समिधा लेने के लिये जंगल में गये। वहीं एक राक्षस ने उन दोनों का भक्षण कर लिया। गुणवती तो निराश्रित हो गयी। उसके पास जो भी था, उसे बेंचकर पिता और पति का श्राद्ध कर्म किया और फिर भिक्षाटन करके जीवन यापन करने लगी। गुणवती अपने पति और पिता के निधन से अत्यंत दुखी रहती थी। कुछ समय के बाद वह तीर्थ यात्रियों के साथ अयोध्या में सरयू स्नान के लिए आई और वहां पर उसने भगवान श्रीराम से मिलकर उनके दर्शन किए। तथा उनसे याचना किया कि हमें प्रभु अपनी शरण में ले लो। मुझे आप अपनी पत्नी बना लो। किंतु श्री राम भगवान ने उससे कहा कि इस जन्म में मैं एक पत्नीव्रती हूँ। इसके लिए ऐसा संभव नहीं है लेकिन तुम्हारी मनोकामना जरूर पूरी होगी। द्वापर युग में जब मैं कृष्ण के रूप में अवतार लूंगा, उस समय तुम सत्यभामा के नाम से मेरी पत्नी बनोगी। उस जन्म में देव शर्मा सत्राजित नाम से तुम्हारे पिता रहेंगे। वहीं पर तुम्हारा पति चंद्र, अक्रूर नामक मेरा भक्त होगा तब सत्यभामा के रूप में तुम्हारा मुझसे विवाह होगा। देह त्याग के बाद वही गुणवती श्रीकृष्ण की सत्यभामा के रूप में भार्या हुई।
- कालिंदी: यमुना का मानवीरूप ही देवी कालिंदी थीं। श्रीराम एक बार शत्रुघ्न पुत्र सुबाहु के विवाह के अवसर पर मथुरा पधारे वहां पर वह यमुना के किनारे शयन कर रहे थे तभी यमुना जी स्त्री रूप में आकर उनसे प्रणय निवेदन करने लगीं। तब श्रीराम ने उनसे कहा कि इस युग में एक पत्नीव्रती होने के कारण मेरा तुमसे विवाह होना संभव नहीं है किंतु मैं तुम्हें वचन देता हूँ कि द्वापर में कृष्ण अवतार के समय तुम्हारी यह मनोकामना पूरी होगी। और फिर द्वापरयुग में श्रीकृष्ण ने यमुनाजी के मानवीरूप कालिंदी का पाणिग्रहण किया।
- जाम्बवंती: कन्या कुमारी की कुमारी देवी नें द्वापरयुग में जाम्बवंती के रूप में अवतार ग्रहण किया। एक बार श्रीराम जी तीर्थ यात्रा के दौरान कन्या कुमारी पधारे। वहां पर देवी कुमारी माला लिए श्रीराम का इंतजार कर रही थीं। तब उन्होंने याचनापूर्वक श्रीराम से कहा कि प्रभु मेरा विवाह मेरे माता पिता ने सुरेंद्र के साथ निश्चित कर दिया था और वह बारात लेकर के चल भी पड़ा था। तभी मुझे मालूम पड़ा कि आपने अवतार ग्रहण कर लिया है, इसी कारण हमने वह विवाह ना करने का निश्चय किया। मेरे पिताजी क्रुद्ध होकर शादी के लिए बनवाए हुए गहनों को समुद्र में फेंक दिया जो अभी भी यदा-कदा समुद्र की लहरों से बाहर आ जाते हैं। मैं तब से ही आपकी ही प्रतीक्षा कर रही हूँ। अब जब आप पधार चुके हैं, तो मेरी मनोकामना पूरी कर दें। इस पर श्री राम ने कहा कि यह संभव नहीं है, क्योंकि इस जन्म में मैंने एक पत्नीव्रती रहने का निश्चय किया है। अतः द्वापर युग में श्री कृष्णावतार के समय तुम्हारी यह मनोकामना पूरी होगी। तुम तब ऋक्षराज जामवन्त की पुत्री जाम्बवंती के रूप में जन्म लोगी। और फिर मैं तुम्हारा पाणिग्रहण करूंगा। द्वापरयुग में वही कुमारी देवी ने जाम्बवंती के रूप में देह धारण किया, और श्रीकृष्ण की भार्या बनीं।
- नग्नजिती (सत्या), भद्रा, लक्ष्मणा और मित्रवृन्दा: श्रीराम एक बार मृगया के लिए जंगल में गए। वहां पर एक सिंह का पीछा करते-करते अचानक वे एक गुफा में पहुँचे। श्रीराम ने जैसे ही उसका वध किया वह मानव रूप में आ गया और उसने बताया कि प्रभु मैं एक विद्याधर हूँ। मैंने एक मुनि पत्नी के साथ दुराचार किया था। इसके लिए मुझे मुनि पत्नी ने श्राप देकर के शेर बना दिया था। और बाद में मेरे याचना पर उन्होंने दया भाव दिखाते हुए यह कहा था कि राम भगवान के बाणों से मरने के बाद में तुम वापस अपनी पुरानी काया प्राप्त कर लोगे। अतः आज मैं आपके बाणों से मुक्त हो गया। उसी समय प्रभु ने सामने एक विशाल गुफा देखा। वहां पर चार कृषकाय औरतें, जो कि मानव के नाम पर हड्डियों का ढाँचा मात्र रह गई थीं, वह तपरत थीं। भगवान ने उनका ध्यान भंग किया। तब वे श्रीराम का परिचय पूछने लगीं, कि आप कौन हैं? क्या दुंदुभी मारा गया? तब प्रभु ने अपना परिचय दिया इसके बाद वे खुश हो गयीं। तब उन्होंने बताया कि प्रभु दुंदुभी ने हम लोगों का अपहरण किया था। हम चार ब्राह्मण कन्यायें हैं। और यह गुफा के द्वार पर जो विशाल पत्थर है इसके अंदर १६००० कन्याएं और भी हैं। उस दुंदुभी की ये कामना थी कि वो १००००० स्त्रियों से एक साथ विवाह करे। इसके लिये वह कहीं से भी हरण करके युवतियों को लाता था और इसी गुफा में बंद करके बाहर से चट्टान रख देता था। तो प्रभु उनका भी आप उद्धार करिए और हम सब का भी उद्धार करिए। उसके बाद में प्रभु ने उनको वरदान देना चाहा तब वरदान में उन्होंने प्रभु से अपनी भार्या बनाने का निवेदन किया। तब प्रभु श्री राम ने उन्हें वचन दिया कि त्रेता अवतार में चूँकि में एक पत्नीव्रती हूँ, इसके लिए ऐसा संभव नहीं है किंतु कृष्णावतार में जब मैं कृष्ण के रूप में अवतरित होऊँगा, उस समय तुम चारों मेरी भार्या बनोगी। द्वापरयुग में वही चार तपस्वी ब्राह्मण युवतियां नग्नजिती, भद्रा, लक्ष्मणा और मित्रवृन्दा के रूप मे जन्म लेकर श्रीकृष्ण की भार्या बनीं।
- सौ रानियाँ: एक बार श्रीराम अयोध्या में विराजमान थे। उसी समय अयोध्या पुरी की १०० भद्र महिलाओं ने आकर भगवान श्रीराम का चरण स्पर्श किया। भगवान श्रीराम उस समय सरयू तट पर एक शिविर में बालुका पर रात्रि बिहार कर रहे थे। तब वहां पर श्रीराम ने जब देखा कि यह महिलाएं यहां पर उपस्थित हैं तब उनसे उनके पास आने का कारण पूछा। उसमें से बाकी तो लज्जा से कुछ नहीं बोल सकीं किंतु एक महिला ने साहस करके प्रभु से कहा कि हे प्रभु! आपके साथ में हम लोग विवाह करके रमण करना चाहती हैं। हमारी मनोकामना पूर्ण करें। तब श्रीराम ने उन्हें बताया कि मैं इस जन्म में एक पत्नीव्रती हूँ लेकिन आपकी यह मनोकामना द्वापर युग में जरूर पूरी होगी। जब मैं कृष्णावतार के समय श्री कृष्ण के रूप में जन्म लूंगा, उस समय तुम सभी १०० महिलायें हमारी भार्या बनोगी। द्वापरयुग में वही अयोध्या की सौ भद्र महिलायें श्रीकृष्ण की भार्या हुईं।
- सोलह हजार रानियाँ: एक बार ऋषियों के कहने पर प्रभु श्रीराम ने सीता जी की १६ स्वर्ण मूर्तियों का निर्माण कराके, उनको ऋषियों को दान किया था। तब ऋषियों ने प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया था कि अगले जन्म में एक मूर्ति के बदले १००० स्त्रियाँ पत्नी के रूप में आपको प्राप्त होंगी। इस तरह वरदान तो फलीभूत होना ही था। ऊपर हम चार दिव्य तपस्विनियों का उल्लेख कर चुके हैं। उनका उद्धार करने के बाद में प्रभु श्रीराम ने उस गुफा के सामने से विशाल चट्टान को जब हटाया, तब उसके अंदर उन्होंने १६००० कन्याओं को बंदी पाया। श्रीराम ने उन्हें मुक्त कराया। कन्याओं ने प्रसन्न होकर श्रीराम से याचना किया कि प्रभु आप मुझे अपनी भार्या बना लो तब श्रीराम ने उन्हें एक पत्नी व्रती होने की बात बताया। और यह उन्हे वचन दिया कि द्वापर युग में श्री कृष्णावतार में मैं तुम सभी का पाणिग्रहण करूंगा। उस समय तुम सब नरकासुर द्वारा बंदी बनाई जाओगी और मैं तुम सब का उद्धार करूंगा। अभी तुम लोग अपने- अपने पिता के घर जाओ और तप व्रत का पालन करके जब देह त्याग करोगी, तब कालांतर में द्वापर में तुम पुनः हमें पाओगी। इस तरह द्वापरयुग में यही सोलह हजार युवतियां नरकासुर द्वारा बंदी बनायी गईं, जिनको श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वथ करके मुक्त कराया तथा उन सभी १६००० नवयुवतियों का पाणिग्रहण किया। इस तरह रामावतार में श्री राम द्वारा दिये गये वचनों को श्रीकृष्ण ने पूरा किया और कुल १६१०८ स्त्रियों के साथ विवाह किया।
ये लेख हमें श्री कामता प्रसाद मिश्र के द्वारा प्राप्त हुआ है जो मूल रूप से प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के निवासी हैं। इन्होने इलाहबाद विश्वविद्यालय से स्नातक किया है और वर्तमान में ये गुजरात के वापी नगर में निवास करते हैं। इनका अपना स्वरोजगार है और ये सतत धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन और उसके ज्ञान को प्रसारित करते हैं। धर्मसंसार में उनके सहयोग के लिए हम उनके आभारी हैं।
बहुत-बहुत आभार नीलाभ जी
जवाब देंहटाएंआभार आपका कामता जी इतने सुंदर लेख के लिए।
हटाएंसारगर्भित लेख। कई तथाकथित इतिहासकारों ने सनातन धर्म को नीचा दिखाने के लिए जानबूझकर कुतर्क किये हैं जिन्हें आप बखूबी उजागर करते है, साधुवाद।
जवाब देंहटाएंकई अज्ञानियों का मार्गदर्शन भी होता है जब वास्तविकता से उनका परिचय होता है।
आपका हार्दिक आभार
हटाएंshreshth jaankari.
जवाब देंहटाएंबहुत आभार
हटाएं🙏
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