आप सभी ने सांप सीढ़ी का खेल अवश्य खेला होगा। लेकिन क्या आपको पता है कि इसके पीछे का इतिहास क्या है? क्या आपको ये ज्ञात है कि इस खेल का सम्बन्ध हमारे पौराणिक ज्ञान से भी है। आज हम आपको इस खेल के उद्भव के विषय में बताएँगे और हम ये भी देखेंगे कि ये खेल किस प्रकार हमारे पौराणिक ज्ञान से सम्बंधित है।
पहले तो हम इसका वास्तविक नाम आपको बता दें। इसे "मोक्ष पट्टम" कहा जाता था। जैसा कि नाम से प्रदर्शित होता है, ये एक ऐसा खेल था जिसमें मोक्ष प्राप्त करने के तरीके के विषय में बताया जाता था। ये तो हम सब ही जानते हैं कि हिन्दू धर्म में किसी भी प्राणी का जो सर्वोच्च लक्ष्य होता है वो है मोक्ष की प्राप्ति करना। ये भी सर्वविदित है कि केवल अच्छे कर्मों से ही प्राणी मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है। अर्थात, पुण्य जितना अधिक और पाप जितना कम होगा, मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग उतना ही सरल होगा। इसे "परमपद सोपान" और "ज्ञान चौपड़" के नाम से भी जाना जाता है।
इसी भावना से पाप और पुण्य के कार्य और उनसे प्राप्त होने वाले फल के विषय पर आधारित इस खेल का अविष्कार किया गया जिससे व्यक्ति, विशेषकर बच्चे कम आयु से ही पाप और पुण्य का अंतर समझ सकें और उसी के अनुसार आचरण करें। तो आप ये भी कह सकते हैं कि ये खेल बच्चों के मन में अच्छे कर्मों को करने और अच्छे संस्कार प्राप्त करने की भावना जगाने के उद्देश्य से बनाया गया था। बच्चे ही देश का भविष्य होते हैं और अगर उन्हें बचपन से ही अच्छे संस्कार मिल जाएँ तो देश की प्रगति निश्चित है। यही इस खेल का वास्तविक उद्देश्य था।
इस खेल की उत्पत्ति १३वीं शताब्दी की मानी जाती है। इसकी रचना महाराष्ट्र के महान संत श्री ज्ञानेश्वर ने केवल १८ वर्ष की आयु में सन १२९३ में की थी। संत ज्ञानेश्वर का जन्म सन १२७५ में महाराष्ट्र के पैठण जिले में हुआ था और उनकी मृत्यु केवल २१ वर्ष की आयु में सन १२९६ में हो गयी। इतनी कम आयु में भी उन्होंने जो उपलब्धि प्राप्त की वो अद्भुत है। यही कारण है कि उन्हें ना सिर्फ महाराष्ट्र का अपितु समस्त देश के सबसे प्रसिद्ध संतों में से एक माना जाता है। उनकी महान उपलब्धियों में से एक मोक्ष पट्टम नामक ये खेल भी था जिसने भारतीय समाज की जड़ों में अच्छे संस्कार का बीज बोया।
हालाँकि अगर इसका और भी इतिहास जानें तो ऐसी मान्यता है कि सबसे पहले इस खेल का अविष्कार ईसा से २०० वर्ष पहले दक्षिण भारत में किया गया। हालाँकि उस काल में इस खेल की रचना किसने की उसका कोई सटीक विवरण है है। आज का सांप सीढ़ी का खेल १०० खानों में बंटा रहता है किन्तु मोक्ष पट्टम के मूल स्वरुप में ये सामानांतर और लंबवत ९ x ९ = ८१ खानों में बंटा रहता था। इनमें से पहला खाना "जन्म" एवं अंतिम खाना "मोक्ष" का होता था। खिलाडी का लक्ष्य अपने जन्म के खाने से प्रारम्भ कर सभी प्रकार के पाप और पुण्यों से होते हुए मोक्ष तक पहुँचना था। मोक्ष तक पहुँचने के साथ ही ये खेल समाप्त हो जाता था। बाद में कुछ अन्य गुणों को भी जोड़ कर इसकी कुल संख्या १३२ तक पहुँच गयी।
मोक्ष पट्टम में पाप और पुण्य को क्रमशः सर्प और रस्सी (सीढ़ी) के द्वारा दर्शाया जाता था। इनमें जहाँ सर्प क्रोध, हिंसा, लालच, आलस्य इत्यादि के प्रतिनिधित्व करते थे जो आपको अधो लोक (नीचे) की ओर धकेलता था वही रस्सी परोपकार, सहायता, धर्म, विद्या, बुद्धि इत्यादि का प्रतिनिधित्व करती थी, जो आपको उर्ध्व लोक (ऊपर) मोक्ष के पास ले जाता था। यदि आप पुण्य प्राप्त-करते करते सबसे ऊपर पहुँचते थे तो आपको मोक्ष की प्राप्ति होती थी और वही अगर आप पाप प्राप्त करते-करते सबसे नीचे पहुंचते थे तो आपका पुनर्जन्म होता था और आप जन्म और मृत्यु के चक्र में फंस जाते थे।
इन विभिन्न सर्पों और रस्सियों में ४ सबसे बड़े सर्प और ४ सबसे बड़ी रस्सियां होती थी जो क्रमशः चार सबसे महान पाप और चार सबसे महान पुण्य को प्रदर्शित करता था। अगर खिलाडी इनमें से किसी भी खानों में पहुँचता था तो या तो मोक्ष के बिलकुल निकट पहुँच जाता था या फिर जन्म के बिलकुल निकट। ये महान पाप और पुण्य हमारे पुराणों में भी वर्णित हैं। ये थे:
- ४ महान सर्प (पाप)
- गुरुपत्नी गामी
- चोरी करना
- मदिरा पान
- ब्रह्महत्या
- ४ महान रस्सियाँ (पुण्य)
- सत्य
- तप
- दया
- दान
इस खेल में सर्पों की संख्या सीढ़ियों की संख्या से अधिक होती थी जो ये बताती थी कि मनुष्य के जीवन में पाप करने के बहुत सारे अवसर आते हैं और पुण्य के बहुत कम। अतः पुण्य का कोई अवसर हाथ निकलने नहीं देना चाहिए और पाप से सदैव बच कर रहना चाहिए। मोक्ष पट्टम के २०० से भी अधिक नमूनों का अध्ययन करने के बाद उनके खानों में लिखे गुणों की जानकारी मिलती है। हालाँकि हर मोक्ष पट्टम में ये गुण अलग हो सकते हैं किन्तु अधिकतर में उनका क्रम कुछ इस प्रकार था:
जन्म, माया, क्रोध, लोभ, भूलोक, मोह, मद, मत्सर, काम, तपस्या, गन्धर्वलोक, ईर्ष्या, अन्तरिक्ष, भुवर्लोक, नागलोक, द्वेष, दया, हर्ष, कर्म, दान, समान, धर्म, स्वर्ग, कुसंग, सत्संग, शोक, परम धर्म, सद्धर्म, अधर्म, उत्तम, स्पर्श, महलोक, गन्ध, रस, नरक, शब्द, ज्ञान, प्राण, अपान, व्यान, जनलोक, अन्न, सृष्टि, अविद्या, सुविद्या, विवेक, सरस्वती, यमुना, गंगा, तपोलोक, पृथिवी, हिंसा, जल, भक्ति, अहंकार, आकाश, वायु, तेज, सत्यलोक, सद्बुद्धि, दुर्बुद्धि, झखलोक, तामस, प्रकृति, दृष्कृत, आनन्दलोक, शिवलोक, वैकुण्ठलोक, ब्रह्मलोक, सवगुण, रजोगुण, तमोगुण।
१९वीं शताब्दी में ये खेल इंग्लॅण्ड पहुँचा और फिर सन १९४३ में ये अमेरिका पहुँचा जहाँ "मिल्टन ब्रेडले" नामक व्यक्ति ने इसे आसान बना कर "स्नेक एंड लैडर" का नाम दिया। जहाँ मोक्ष पट्टम में इस खेल में मनोरंजन और उससे भी अधिक शिक्षा और ज्ञानवर्धन का समावेश रहता था, अंग्रेजों ने इसे केवल मनोरंजन के लिए रखा और ज्ञान और शिक्षा की बात निकाल कर बाहर कर दिया। इससे हुआ ये कि ये खेल केवल और केवल मनोरंजन हेतु रह गया और आज भी वैसे ही चल रहा है।
अब तो ये खेल उतना प्रचलन में नहीं है किन्तु आज भी दक्षिण भारत में कुछ स्थानों पर मोक्ष पट्टम को पञ्चाङ्ग (कैलेंडर) के रूप में प्रकाशित किया जाता है। इसका स्वरुप थोड़ा आधुनिक होता है किन्तु पाप और पुण्य की सभी ज्ञानवर्धक बातें उसमें लिखी हुई होती है। अगर आपको आज मोक्ष पट्टम कहीं मिले तो उसे अवश्य खरीदें और उसका प्रयोग अपने बच्चों को उसी प्रकार संस्कार देने में करें जैसे पुराने ज़माने में बड़े-बजुर्ग करते थे।
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