इससे पहले संक्षेप में उस कथा को जान लेते हैं जो शम्बूक के विषय में फैली है। एक बार अयोध्या में एक ब्राह्मण के एकलौता पुत्र की मृत्यु हो गयी। तब उस ब्राह्मण ने अपने पुत्र का शव राजमहल के सामने लेकर आ गया और विलाप करने लगा। श्रीराम ने जब ये देखा तो इसका कारण देवर्षि नारद से पूछा। तब देवर्षि नारद ने कहा कि अवश्य ही कोई अपात्र आपके राज्य में तपस्या कर रहा है। इसके आगे उन्होंने कहा कि निश्चय ही वो कोई शूद्र है जिसके कुकर्म के दंड स्वरुप इस ब्राह्मण का पुत्र मर गया। देवर्षि ने कहा - "हे श्रीराम! किसी शूद्र का तप करना तो द्वापर युग में भी विनाशकारी होता है, फिर ये तो त्रेतायुग है। आप इस राज्य के सम्राट हैं अतः ये आपका कर्तव्य है कि आप उसे ढूंढे और उसके कर्म का समुचित दंड दें।"
ये सुनकर श्रीराम पुष्पक विमान में बैठ कर उस व्यक्ति की खोज में निकले। अंततः दक्षिण दिशा में शैवाल पर्वत के पास उन्हें एक तपस्वी दिखा। उन्होंने उसके समीप जाकर उससे उसका परिचय पूछा। साथ ही उन्होंने वे ये भी पूछते हैं कि "हे तपस्वी! तुम वर्णो में श्रेष्ठ ब्राह्मण हो, द्वितीय वर्ण अजेय क्षत्रिय हो, तीसरे वर्ण वैश्य हो अथवा सबसे नीचे के वर्ण में उत्पन्न शूद्र हो?" तब उसने कहा - "हे राघव! मेरा नाम शम्बूक है और मैं स्वर्ग की प्राप्ति हेतु तप कर रहा हूँ। मैंने वेदों का अध्यन किया है और मैं सत्य कहता हूँ कि मैं शूद्र हूँ।" वो अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाया था कि उसी समय श्रीराम ने अपनी तलवार से शम्बूक का मस्तक काट लिया।
अब आते हैं वास्तविक विषय पर। किन्तु इससे पहले, आपने ये जो कथा पढ़ी उसे पढ़ कर क्या आप ये सोच सकते हैं कि ये भाषा और ये विचार ऋषियों में श्रेष्ठ महर्षि वाल्मीकि के होंगे? चलिए इस बात का उत्तर मैं केवल एक वाक्य में दे देता हूँ। इस कथा के सत्य या असत्य होने का प्रश्न ही नहीं उठता क्यूंकि मूल वाल्मीकि रामायण में शम्बूक नामक कोई पात्र है ही नहीं। इसके अतिरिक्त रामचरितमानस में भी गोस्वामी तुसलीदास ने ऐसे किसी भी पात्र का वर्णन नहीं किया है। ये कथा सत्य है या असत्य, इसे तीन मुख्य बातें सिद्ध करती है:
- यदि किसी ग्रन्थ में मिलावट करनी हो, विशेषकर रामायण जैसे महाग्रंथ में तो उसे अंतिम भाग में ही किया जा सकता है। ऐसा ही कुछ इस कथा के साथ भी है जिसे उत्तर कांड के बिलकुल अंत में, सर्ग ७६ में जोड़ा गया है।
- इसमें कहा गया है कि श्रीराम शम्बूक को ढूंढने पुष्पक विमान में जाते हैं जबकि वाल्मीकि रामायण के अनुसार श्रीराम के राज्याभिषेक के बाद विभीषण ने पुष्पक विमान कुबेर को लौटा दिया था।
- इसमें वर्ण एवं जाति के बीच मतभेद दिखता है। वर्ण व्यवस्था तो हिन्दू धर्म में आरम्भ से है किन्तु जातिप्रथा जैसी कोई भी चीज हिन्दू धर्म में कभी नहीं रही।
अब प्रश्न ये आता है कि यदि वाल्मीकि रामायण में शम्बूक नामक कोई व्यक्ति है ही नहीं तो फिर ये कथा किस प्रकार जनमानस में प्रचलित हुई? इसका उत्तर ये है कि इसे एक सुनियोजित षड्यंत्र के रूप में बाद में प्रसारित किया गया। और इसे प्रसारित करने का जो साधन बना वो है रामायण का उत्तर कांड। हम सभी को ये बताया गया है कि रामायण में कुल ७ कांड हैं, किन्तु रामायण का उत्तर कांड एक बहुत विवादस्पद खंड है। आइये इसके विषय में कुछ जान लेते हैं।
एक बात आप निश्चित रूप से समझ लें कि महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित मूल रामायण में केवल ६ कांड ही थे - बाल कांड, अयोध्या कांड, अरण्य कांड, किष्किंधा कांड, सुंदर कांड एवं युद्ध कांड। लंका कांड में श्रीराम के राज्याभिषेक के साथ ही महर्षि वाल्मीकि ने रामायण का समापन कर दिया। वाल्मीकि रामायण के इन ६ कांडों की विशेषता ये है कि महर्षि वाल्मीकि ने इसे घटनाओं के घटित होने से पूर्व ही लिख दिया था क्यूंकि ब्रह्मदेव के वरदान से वे त्रिकालदर्शी थे। साथ ही साथ इन सभी ६ कांडों में स्वयं महर्षि वाल्मीकि की स्थिति गौण है। वे स्वयं उस युग और घटनाओं के साक्षी तो थे किन्तु वाल्मीकि रामायण में उनका बहुत अधिक वर्णन नहीं आता है।
तत्पश्चात युद्ध के समय जब गरुड़ को श्रीराम के विष्णु अवतार होने पर संदेह हो गया तो महादेव के कहने पर काकभुशुण्डि ने उनका संदेह दूर किया जो स्वयं ११ बार रामायण और १६ बार महाभारत होते देख चुके थे। गरुड़ और काकभुशुण्डि के बीच का जो अत्यंत सुंदर संवाद हुआ वही आगे चलकर "उत्तर रामायण" के नाम से प्रसिद्ध हुआ। उसका नामकरण किसी ने नहीं किन्तु किन्तु क्यूंकि ये कहीं ना कहीं श्रीराम से सम्बंधित था इसीलिए बाद में चलकर उसका ऐसा नाम प्रसिद्ध हुआ। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि लव-कुश द्वारा अश्व का हरण और श्रीराम से युद्ध, ऐसा कोई भी प्रसंग इस उत्तर रामायण अथवा मूल वाल्मीकि रामायण में नहीं है, हालाँकि तुलसीदास ने रामचरितमानस में इसे लिखा है।
यहाँ ध्यान दें कि मैंने "उत्तर रामायण" कहा है, "उत्तर कांड" नही। उत्तर रामायण और उत्तर कांड में बहुत अंतर है। इन दोनों में बहुत अंतर है। उत्तर रामायण में गरुड़ और काकभुशुण्डि का संवाद है इसीलिए ये महर्षि वाल्मीकि की मूल रचना नही मानी जाती। इसीलिए जब आप महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित मूल रामायण के पहले ६ कांड पढ़ेंगे तो उनमें और उत्तर रामायण की लेखन शैली और भाषा में धरती-आकाश का अंतर पाएंगे। इसके अतिरिक्त मूल वाल्मीकि रामायण महाकाव्य (पद्य) के रूप में है किंतु उत्तर कांड में, विशेषकर सभी अनर्गल कथाओं में गद्य की अधिकता है। इसी कारण ये मूल रामायण से बहुत अलग दिखाई पड़ता है।
कुछ लोगों का मानना है कि मूल वाल्मीकि रामायण के साथ छेड़ छाड़ करीब ५०० वर्ष पूर्व की गयी जब बौद्ध और जैन धर्म की श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए इसमें कुछ छेड़-छाड़ की गयी। कदाचित ये वही समय रहा होगा जब बौद्ध धर्म के लोगों ने गौतम बुद्ध को भगवान विष्णु के अवतार के रूप में प्रसारित करना आरम्भ कर दिया। इस विषय पर एक विस्तृत लेख पहले ही प्रकाशित हो चुका है जिसे आप यहाँ पढ़ सकते हैं। कई लोगों का मानना है कि गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में उत्तर कांड को लव-कुश कांड के रूप में जोड़ा है तो कई विद्वान ऐसा मानते हैं कि तुलसीदास ने भी अपने ग्रन्थ में ६ कांड ही लिखे थे किन्तु बाद में उससे भी छेड़-छाड़ की गयी।
आधुनिक शोधकर्ता ये मानते हैं, और मेरा भी ये मानना है कि उत्तर कांड में जो वास्तविक मिलावट की गयी है वो आज से १५०-२०० वर्ष पूर्व अंग्रेजों के शासनकाल में की गयी है। उसी समय उत्तर रामायण को "उत्तर कांड" का नाम देकर रामायण और रामचरितमानस में ही जोड़ दिया गया। यहाँ तक भी ठीक था क्योंकि उत्तर रामायण में ऐसा कुछ भी नही जो आपत्तिजनक हो। किन्तु उसने उस असत्य की नींव डाली जिसमें जान बूझ उसी समय उस कलियुगी रामायण की नींव पड़ी जिसमें जान बूझ कर श्रीराम का चरित्र हनन किया गया।
भारत पर मुस्लिमों ने आक्रमण किया, बार बार किया। उनका एकमात्र उद्देश्य भारत की संपदा को लूटना था। वे बर्बर तो थे किंतु दिमाग से पैदल थे। फिर अंग्रेज आये, उनकी सामरिक शक्ति इतनी अधिक नही थी कि वे इतने बड़े देश पर बलात अधिक दिनों तक शासन कर पाते। किन्तु वे घाघ और चतुर थे। उन्होंने दो ऐसे कार्य किये जिससे भारत अंदर से टूट गया और उन्हें राज करने में आसानी हुई।
- एक तो उन्होंने भारत की सदियों पुरानी गुरु-शिष्य परंपरा को समाप्त किया। मैकाले के इसी कार्य के लिए लगाया गया जिसने भारत की पूरी शिक्षा व्यवस्था का नाश कर दिया।
- दूसरे हिन्दू धर्म की अतिप्राचीन वर्ण व्यवस्था को जातिप्रथा के रूप में प्रचारित किया गया ताकि हिन्दू धर्म मे आपसी फूट पड़ जाए। यही कारण है कि आज की युवा पीढ़ी वर्ण एवं जाति के अंतर को नहीं समझ पाती। इस विषय पर एक विस्तृत लेख फिर कभी लिखूंगा।
आप स्वयं विचार करें:
- जो श्रीराम जन्म से शुद्र महर्षि वाल्मीकि के सामने सर नवाते हों, जो श्रीराम निषादराज गुह को अपने चरणों से उठा कर अपने हृदय से लगाते हों, जो श्रीराम वानरों और रीछों के समुदाय को अपने समकक्ष बिठाते हों, जो श्रीराम एक राक्षस विभीषण को भी शरण देते हों, जो श्रीराम एक भीलनी शबरी के जूठे बेर तक प्रेम पूर्वक खा लेते हों, क्या आपको लगता है कि वही श्रीराम एक शुद्र को केवल इसलिए मार देंगे क्योंकि वो वेदपाठी था? कितनी मूर्खतापूर्ण बात है। इस तर्क के आधार पर तो उन्हें महर्षि वाल्मीकि को भी मार देना चाहिए था।
- जो श्रीराम देवी सीता को प्राप्त करने के लिए महान उद्योग कर महादेव का पिनाक भंग करते हैं, अपनी पत्नी के बिछोह में "हा सीते…" कहते हुए वन वन भटकते हैं, जिन्होंने अपनी पत्नी के लिए १०० योजन समुद्र पर सेतु बांध दिया हो, जो श्रीराम अपनी पत्नी को वापस पाने के लिए वानर भालुओं की सेना इकट्ठा कर एक महाराक्षस से जा भिड़ते हैं, जो श्रीराम स्वयं अग्निदेव से अपनी प्रिय पत्नी को प्राप्त करते हैं, क्या आपको लगता है कि वही श्रीराम एक मूढ़ के कहने पर अपनी पत्नी का त्याग कर देंगे?
- जो स्वयं मर्यादा पुरुषोत्तम हैं, जिन्होंने कठिन से कठिन समय में भी अपना धैर्य और धर्म नही छोड़ा, जिनके ज्ञान का कोई पार नही है और जिनके ज्ञान और जीवन से महर्षि वशिष्ठ, विश्वामित्र, परशुराम एवं वाल्मीकि जैसे विद्वान शिक्षा लेते हैं और जिसे मनुष्य तो मनुष्य, एक पशु के भी अधिकारों की चिंता हो, क्या आपको लगता है कि ऐसे श्रीराम अपनी गर्भवती पत्नी के अधिकारों की चिंता नही करेंगे?
- जो अपने पति के साथ वन जाने के लिए सारे जग से लड़ पड़ी हो, जिन्होंने राजकुमारी होकर भी १३ वर्ष वन में हंसते हुए निकाल दिए एवं अंतिम १ वर्ष में जिन्होंने अकल्पनीय दुख भोगा हो, जो महावीर हनुमान के साथ केवल इसलिए लंका से नही गयी क्योंकि इससे उनके पति का यश कम होगा, इतने कष्टों के बाद भी जिनका मुख मलिन तक ना हुआ हो, क्या आपको लगता है कि वो माता सीता अंत समय मे अपने पति के विरुद्ध बोलेंगी?
- रामायण में एक प्रसंग है कि जब मंथरा ने सीता माँ को वल्कल वस्त्र दिए तो उन्हें उसे पहनना नही आया। तब श्रीराम स्वयं अपने हाथों से वो वल्कल वस्त्र अपनी पत्नी को पहनाते हैं। क्या आपको लगता है कि ऐसे श्रीराम को देवी सीता, जिनका स्थान सतियों में श्रेष्ठ है, के चरित्र पर कभी संदेह होगा? ऐसा सोचना ही हास्यप्रद है।
सीता को पाने के लिए राम बनना पड़ता है और राम को पाने के लिए सीता। इन दोनों में लेश मात्र भी अंतर नही है। हम और आप जैसे कलयुगी व्यक्ति श्रीराम और माता सीता की महिमा को क्या समझ पाएंगे? अगर शम्बूक वध और इस जैसे मनगढंत प्रसंग सत्य होते तो क्यों नहीं ये प्रसंग गीताप्रेस जैसे उत्कृष्ट प्रकाशन की पुस्तकों में बताया जाता है? ऐसे कई प्रकाशन आज भी इस देश में हैं जो रामायण में उत्तर कांड को छापते ही नहीं। उत्तर कांड ना महर्षि वाल्मीकि की रचना है और ना ही ये कभी मूल रामायण का भाग था। इसीलिए जान-बूझ कर फैलाये जा रहे इस असत्य, पाखंड और षडयंत्र को समझिये और इससे दूर रहिये।
जय श्रीराम।
Excellent. Well researched as it sounds.
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक आभार
हटाएंयदि यह ग्रंथ ईश्वर प्रेरित है तो इसे कोई बदल नहीं सकता और अगर इसमें कोई ज्ञान की बातें हैं तो मनुष्य का स्वभाव पापरहित हो जायेगा
हटाएंउत्तम शोधपरक जानकारी
जवाब देंहटाएंबहुत आभार सर
हटाएंबहुत अच्छा।
जवाब देंहटाएंसभी प्रसिद्ध कवियों की कविताएँ पढ़ने के लिए एक बार विजिट जरूर करें।
https://sahityalankar.blogspot.com/
धन्यवाद, आपकी कवितायेँ बहुत अच्छी हैं।
हटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार। आपका लेख अक्षरश: सही है।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार अनिल जी।
हटाएंमैं तो श्री राम से एक तरह का नफरत करने लगा था , आपका धन्यवाद
जवाब देंहटाएंThank you for your information
जवाब देंहटाएंआभार
हटाएं🙏🙏
जवाब देंहटाएंSir I am reading Sriramvijay by pandit Sridhar bhakt kavi of Maharashtra based
जवाब देंहटाएंon Sri Valmiki Ramayan approximately written in 1600s, in this also written about uttar kaand and respected Lav Kush stopping horse. So if some conspiracy is done it os atleast 500 years ago
बहुत अच्छा से मन की संका दूर की है आप ने namaskar
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी और सत्य जानकारी दी है आपने, पढ़कर खुशी हुई !!
जवाब देंहटाएंइसी विषय से संबंधित अन्य तर्कपूर्ण लेख पढ़ने के लिए कृपया यहाँ विजिट करें :- https://www.knowledgeontop.com/2023/03/shambuk-vadh-in-ramayan.html
धन्यवाद। आपका लेख भी बहुत अच्छा है।
हटाएंबहुत ही अच्छी जानकारी देने के लिए अनेकानेक साधुवाद 🙏🏻🙏🏻🙏🏻
जवाब देंहटाएंसतनाम
जवाब देंहटाएंवाहे गुरु
एक औंकार
Namaskar ji
जवाब देंहटाएंनमस्कार जी। बहुत सुंदर आपकी राय है। मैं बिल्कुल वाल्मीकि जाति से हु। यहां गुजरात में एक नेरेटिव वामपंथियों एवं राजकारणी लोगो द्वारा sc, St,obc लोगो को बहुत भड़काया जाता हैं। मुझे ये सब बात सुन कर या पढ़ कर बहुत दुख होता है जो हिंदू धर्म से बिल्कुल विपरीत है। फिरभी मैं दावे से कह सकता हु की दलित समाज आज जितना हिंदू धर्म प्रिय है उतना उच्च वर्ण के लोग नही दिखते। ये सब लोग अपने को पश्चिमी संस्कृति से जुड़ गए है।
जवाब देंहटाएंआपका यह लेख बिल्कुल सत्य हकीकत है।
बहुत आभार
हटाएंआपने जो तथ्य लिखा है वो काफी प्रेरणा जनक है,किस तरह हिंदू धर्म का नशा हुआ ये बहुत दुख लगता है आज कोई सच सुनाना नहीं चाहता ना ही कोई दिलचस्पी रखता है जानने की
जवाब देंहटाएंSir, Lakin aaj ke log Jati me mante hai na ki shree ram ke jaise insaniyat me...wo apne aap ko उच्च वर्ग or sc st ko नीच mante hai ....ye treta yug nhi h jaha pr Ram Ji jaise Vicharo ke log hone.....ye kaliyuga hai yaha अन्यायी log rhte h...Jo bss unch nich krte hai
जवाब देंहटाएंआपने बहुत ही स्पष्ट और सरल भाषा में समझा है, पर अफसोस की बात है कि फिर भी कुछ लोग हिंदू धर्म को बदनाम करने में लगे हैं|
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