अगर अस्त्र एवं शस्त्र के बीच के अंतर को एक वाक्य में बताया जाये तो वो ये है कि "अस्त्र ऐसे आयुध होते थे जो दूर से छोड़े जा सकते थे और शस्त्र ऐसे आयुध होते थे जिसे हाथ में लेकर ही प्रहार किया जा सकता था और उससे बहुत दूर तक नहीं छोड़ा जा सकता था।" अस्त्रों में बाण, चक्र इत्यादि का वर्णन आता है वहीँ शस्त्रों में अधिक आयुध आते हैं जैसे तलवार, खड्ग, गदा, भाला इत्यादि। शस्त्र सभी योद्धा के पास हुआ करते थे किन्तु ये आवश्यक नहीं था कि अस्त्र सभी योद्धा के पास हों। यही कारण है कि आम भाषा में हम योद्धा को "शस्त्रधारी" कहते हैं, "अस्त्रधारी" नहीं।
कुछ अस्त्र ऐसे होते थे जो बहुत शक्तिशाली होते थे और देवताओं से प्राप्त किये जाते थे। उसे दिव्यास्त्र कहते थे और उसे मन्त्रों द्वारा सिद्ध और प्रक्षेपित किया जा सकता था। दिव्यास्त्र की सहायता से कोई भी योद्धा बड़ी मात्रा में शत्रुओं की प्राणहानि कर सकता था। दिव्यास्त्र कई हैं जैसे आग्नेयास्त्र, वरुणास्त्र, पर्जन्यास्त्र, पर्वतास्त्र इत्यादि। शस्त्रों में स्वयं के कौशल और बाहुबल का परिचय देना होता था। तो हम ये कह सकते हैं शस्त्र के सञ्चालन में शक्ति और युक्ति दोनों लगते थे। आम तौर पर दिव्य या मन्त्रसिद्ध शस्त्रों का बहुत वर्णन नहीं आता है किन्तु कुछ शस्त्र ऐसे हैं जो दिव्य थे और मन्त्रों से सिद्ध किये जा सकते थे। जैसे भगवान विष्णु की कौमोदीकी गदा, नन्दक तलवार, भगवान शंकर का त्रिशूल और इंद्र का वज्र इत्यादि।
अस्त्र और शस्त्रों को मुख्यतः ४ भागों में बांटा गया है:
- अमुक्ता: ऐसे आयुध जिन्हे फेंका नहीं जाता था। जैसे गदा, खड्ग, परशु, तलवार इत्यादि। इस श्रेणी में मुख्यतः शस्त्र ही आते हैं।
- मुक्ता: ऐसे आयुध जिन्हे फेंका जा सकता था। उसमें अस्त्र एवं शस्त्र दोनों आते हैं किन्तु अधिकतर अस्त्र ही होते हैं। इसके भी दो प्रकार माने गए हैं:
- पाणिमुक्ता: ऐसे आयुध जिसे हाथ से छोड़ा जा सके। जैसे भाला, त्रिशूल इत्यादि। इसके अतिरिक्त कई ऐसे दिव्यास्त्र होते थे जिसे मंत्रसिद्ध कर हाथ से छोड़ा जा सकता था।
- यंत्रमुक्ता: ऐसे आयुध जिसे छोड़ने हेतु किसी यंत्र की आवश्यकता होती हो। जैसे बाण को छोड़ने के लिए धनुष की आवश्यकता होती है।
- मुक्तामुक्त: ऐसे आयुध जो पकड़कर या फेंककर दोनों तरीके से उपयोग में लाये जा सकते हों। जैसे त्रिशूल एवं भाला।
- मुक्तसंनिवृति: ऐसे आयुध जिसे छोड़ कर पुनः लौटाया जा सकता हो। इसमें मुख्यतः दिव्यास्त्र ही होते थे। जैसे भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र।
बहुत बढ़िया जानकारी है
जवाब देंहटाएंबहुत आभार
हटाएंउतम जानकारी
जवाब देंहटाएंबहुत आभार गौतम जी
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