हम सभी भगवान विष्णु के दशावतार के विषय में जानते हैं। उस विषय में एक प्रश्न हमेशा आता है कि ऐसा क्या कारण है कि भगवान विष्णु के सभी अवतार भारत में ही क्यों होते हैं? श्रीहरि तो समस्त विश्व के स्वामी हैं फिर किसी अन्य भूभाग में वे वतरित क्यों नहीं होते? इस प्रश्न का उत्तर श्री विष्णु पुराण में दिया गया है। किन्तु इसे समझने के लिए हमें थोड़ा पीछे के वंश वर्णन को देखना होगा। आइये इसे समझते हैं।
हम सभी जानते हैं कि समस्त जगत और सभी कुल परमपिता ब्रह्मा से ही उत्पन्न हुए हैं। ब्रह्मा के १६ मानस पुत्रों में से एक थे महर्षि अत्रि जो सप्तर्षियों में से एक थे। उनकी पत्नी माता अनुसूया ने त्रिदेवों को प्रसन्न कर उनके अंश से ३ पुत्र प्राप्त किये। ब्रह्मा के अंश से चंद्र, विष्णु के अंश से दत्तात्रेय एवं शंकर के अंश से दुर्वासा जन्में। चंद्र ने प्रजापति दक्ष की २७ पुत्रियों से विवाह किया। किन्तु उनके अतिरिक्त वे स्वयं अपने गुरु बृहस्पति की पत्नी तारा पर आसक्त हुए। गुरुपत्नीगामी होने के कारण चंद्र को महापातक लगा किन्तु तारा से उनके एक अवैध पुत्र हुए "बुध"।
दूसरी ओर महर्षि कश्यप और अदिति के पुत्र विवस्वान (सूर्य) और सरन्यू के पुत्र वैवस्वत मनु ने यज्ञ द्वारा एक पुत्र की कामना की, किन्तु उनकी पत्नी श्रद्धा पुत्री चाहती थी। इसी कारण उन्हें एक पुत्री की प्राप्ति हुई जिसका नाम था "ईला"। जब मनु ने ये देखा तो वे दुखी हुए क्यूंकि वे पुत्र चाहते थे। तब महर्षि वशिष्ठ की कृपा से वो स्त्री "सदयुग्म" नामक बालक में बदल गयी। एक बार वो भूलवश भगवान शिव के वर्जित स्थान पर चली गयी जिसे महादेव का श्राप था कि यहाँ जो कोई भी आएगा वो स्त्री बन जाएगा। इस प्रकार सादयुग्म पुनः स्त्री ईला में परिवर्तित हो गया। तब भगवान शिव ने उसकी प्रार्थना पर उसे वरदान दिया कि वो एक मास के लिए स्त्री रहेगा और फिर एक मास के लिए पुरुष बन जाएगा।
अपने स्त्री रूप में ईला का विवाह चंद्र के पुत्र बुध के साथ हुआ जिससे उन्हें "पुरुरवा" नामक एक महान पुत्र की प्राप्ति हुई। पुरुरवा ने आगे चलकर उर्वशी से विवाह किया। इन्ही पुरुरवा के पड़पोते नहुष पुत्र ययाति हुए जिनके पुत्रों से ही सभी राजवंश चले। पुरुरवा पहले चक्रवर्ती सम्राट बनें और उन्होंने अपने साम्राज्य का नाम अपनी माता ईला के नाम पर "इलावर्त" रखा। ये इलावर्त प्राचीन जम्बूद्वीप के ९ वर्षों में से एक था और इस भूभाग के मध्य में प्रसिद्ध मेरु पर्वत स्थित था। प्राचीन अखंड भारत, जिसे आर्यावर्त के नाम से जाना जाता है, जम्बूद्वीप के इसी इलावर्त का एक भाग था।
अब आते हैं मूल प्रश्न पर। विष्णुपुराण के २/३/२४ सर्ग में लिखा है कि "इलावर्त की भूमि अत्यंत भाग्यशाली है क्यूंकि भगवान विष्णु के सभी अवतार इसी भूभाग में होंगे।" यही कारण है कि भारत वर्ष को "देवभूमि" भी कहा जाता है क्यूंकि इस पावन भूमि पर देवता भी अवतरित होने के लिए लालायित रहते हैं। विष्णु पुराण में एक श्लोक आता है -
गायन्ति देवा: किल गीतिकानि, धन्यास्तु ते भारतभूमिभागे।
स्वर्गापवर्गास्पद - मार्गभूते, भवन्ति भूय: पुरुषा: सुरत्वात्।।
अर्थात: देवता भी स्वर्ग में यह गान करते हैं कि धन्य हैं वे लोग जो भारत-भूमि के किसी भाग में उत्पन्न हुए। वह भूमि स्वर्ग से बढ़कर है क्योंकि वहां स्वर्ग के अतिरिक्त मोक्ष की साधना की जा सकती हैं। स्वर्ग में देवत्व भोग लेने के बाद देव मोक्ष की साधना के लिए कर्मभूमि भारत में फिर जन्म लेते हैं।
यही कारण है कि भगवान विष्णु के सभी अवतार इस महान भारत भूमि पर ही होते हैं। अतः स्वयं पर गर्व करें और स्वयं को भाग्यशाली मानें कि आपने जम्बूद्वीप के इलावर्त के भारत वर्ष में जन्म लिया है जहाँ जन्म लेने हेतु स्वयं देवता भी कठिन तपस्या करते हैं। ये अपने पिछले जन्मों के पुण्यों का ही प्रभाव मानें कि आपने भारत की पवित्र भूमि पर जन्म लिया है।
जय श्रीहरि।
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