हमारे पिछले लेख में आपने साधारण अस्त्र-शस्त्रों के विषय में पढ़ा था। इस लेख में हम प्रमुख दिव्यास्त्रों के विषय में चर्चा करेंगे। दिव्यास्त्र अर्थात दिव्य अस्त्र। ऐसे अस्त्र जो देवताओं द्वारा उपयोग में लाये जाते हों एवं उनसे ही प्राप्त किये जाते हों।
रामायण एवं महाभारत में असंख्य दिव्यास्त्रों का वर्णन मिलता है। कुछ अति-श्रेष्ठ योद्धा ही ऐसे होते थे जो देवताओं को प्रसन्न कर उनसे वरदान स्वरूप दिव्यास्त्र प्राप्त कर पाते थे। रामायण में अनेक योद्धा थे जिनके पास अनेक दिव्यास्त्र थे किन्तु मेघनाद ऐसा योद्धा था जिसके पास लगभग सारे दिव्यास्त्र थे। उसी प्रकार महाभारत में भी सभी योद्धाओं में से अर्जुन के पास लगभग सारे दिव्यास्त्र थे जो उसने देवराज इंद्र से प्राप्त किये थे।
इस लेख में हम महास्त्रों अर्थात ब्रह्मास्त्र, वैष्णवास्त्र, रुद्रास्त्र, नारायणास्त्र, ब्रह्मशिर एवं पाशुपतास्त्र आदि को सम्मलित नहीं करेंगे क्यूंकि उनके विषय में एक लेख अलग से प्रकाशित किया जाएगा। आइये कुछ प्रमुख एवं प्रसिद्ध दिव्यास्त्रों के विषय में जानते हैं।
- त्रिशूल: ये महादेव का अत्यंत प्रलयंकारी अस्त्र है। एक बार चलने के बाद इसे रोका नहीं जा सकता। केवल महादेव अथवा आदिशक्ति ही इसे रोक सकते हैं। हालाँकि रामायण में ऐसा वर्णन है कि रावण के पुत्र अतिकाय ने एक बार महादेव के त्रिशूल को पकड़ लिया था जिससे प्रसन्न होकर उन्होंने सभी प्रकार के दिव्यास्त्र अतिकाय को दिए।
- एकशा गदा: ये महादेव की गदा है जिसका प्रहार असहनीय होता है। शिवपुराण में वर्णित है कि इसका प्रहार करोड़ों गजों के प्रहार के बराबर होता है।
- गिरीश तलवार: ये भी महादेव की दिव्य तलवार है जिससे देवता भी अपनी रक्षा नहीं कर सकते।
- जयंत वेल: भगवान शिव का अद्भुत शूल जो संसार की हर वस्तु को भेद सकती है।
- माहेश्वर चक्र: भगवान शंकर का चक्र जो सुदर्शन चक्र की भांति ही शक्तिशाली है। कई जगह वर्णन है कि उन्होंने यही चक्र भगवान विष्णु को प्रदान किया जो बाद में सुदर्शन के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
- शिव कवच: भगवान शंकर का कवच जिसे पाशुपतास्त्र के अतिरिक्त संसार की और कोई शक्ति भेद नहीं सकती। महादेव के रुद्रास्त्र से भी ये कवच ही रक्षा कर सकता है।
- शिव वज्र: भगवान शंकर का वज्र जो देवराज इंद्र के वज्र से १०० गुणा अधिक शक्तिशाली है।
- जयवर्धन कवच: ये भी एक दिव्य कवच है जो भगवान शंकर एवं भगवान विष्णु दोनों के पास रहता है। संसार का कोई भी दिव्यास्त्र इसे भेद नहीं सकता।
- शिव प्रहम: भगवान शंकर का पास जिससे स्वयं यम भी नहीं बच सकते।
- सुदर्शन चक्र: ये श्रीहरि का अस्त्र है जो उन्हें महादेव से प्राप्त हुआ था। इसकी उत्पत्ति स्वयं भगवान शंकर के तीसरे नेत्र से हुई थी। कई जगह ये वर्णन है कि इसे विश्वकर्मा ने निर्मित किया था। इस चक्र को नारायण के अतिरिक्त केवल उनके अवतार ही धारण कर सकते थे। श्रीहरि के ९वें अवतार श्रीकृष्ण का भी ये प्रिय अस्त्र था जो उन्हें परशुराम से मिला था। इसे भी रोकना लगभग असंभव था किन्तु भगवान शिव के अवतार वीरभद्र एवं हनुमान ने इसे पकड़ कर अपने मुख में रख लिया था।
- कौमोदीकी गदा: ये भी नारायण की मारक गदा थी जो सबसे शक्तिशाली गदा मानी जाती है। इसका कोई प्रतिकार नहीं था। महाभारत में ये श्रीकृष्ण के पास थी जिससे उन्होंने दन्तवक्र का वध किया था।
- नन्दक तलवार: ये भी श्रीहरि की तलवार थी जिसकी धार इतनी तीक्ष्ण थी कि पर्वत को भी दो भागों में काट देती थी। महाभारत में ये तलवार श्रीकृष्ण के पास थी।
- वज्र: ये देवराज इंद्र का सर्वाधिक शक्तिशाली अस्त्र है। वृत्रासुर के वध के लिए महर्षि दधीचि ने अपने शरीर का त्याग कर दिया जिससे उनके तप का सारा बल उनकी अस्थियों में आ गया। तब विश्वकर्मा ने महर्षि दधीचि की हड्डियों से इस महान दिव्यास्त्र की रचना की जिससे वृत्र का वध हुआ।
- इन्द्रास्त्र: ये भी देवराज इंद्र का अस्त्र है। इसे चलाने पर इससे असंख्य बाण निकल कर शत्रु दल पर वर्षा की तरह बरसते थे जिससे उनका नाश हो जाता था। महाभारत में अर्जुन ने इसका प्रयोग युद्ध के १४वें एवं १७वें दिन क्रमशः सुदक्षिण एवं संसप्तकों का अंत करने के लिए किया था।
- वासवी शक्ति: ये वज्र के बाद देवराज इंद्र का दूसरा सबसे शक्तिशाली अस्त्र है। इसका उपयोग केवल एक बार ही किया जा सकता है किन्तु एक बार छूटने के बाद ये शत्रु का वध कर के ही वापस इंद्र के पास लौटता है। रामायण में मेघनाद ने इसी शक्ति का प्रयोग लक्ष्मण पर किया था जिससे वो अचेत हो गए थे। बाद में संजीवनी बूटी द्वारा उन्हें जीवनदान दिया गया था। महाभारत में ये शक्ति केवल कर्ण के पास थी जिसका प्रयोग वो अर्जुन पर करना चाहते थे किन्तु श्रीकृष्ण ने उसका प्रयोग घटोत्कच पर करवा दिया जिससे अर्जुन के प्राण बच गए।
- प्रस्वपास्त्र: ये विशेष अस्त्र था जिसके जनक वसु माने जाते हैं। ये भी अचूक अस्त्र था जिसके चलाने पर शत्रु की पराजय निश्चित होती है। आज तक इतिहास में केवल गंगापुत्र भीष्म ही ऐसे थे जिनके पास ये दिव्यास्त्र था। उन्होंने परशुराम के विरुद्ध युद्ध में इसे चलाना चाहा किन्तु देवताओं ने ऐसा करने से मना कर दिया। इसके बाद परशुराम जी ने अपनी पराजय स्वीकार कर युद्ध बंद कर दिया।
- आग्नेयास्त्र: ये अग्निदेव का महान अस्त्र था जो युद्ध में भीषण ज्वाला उत्पन्न करता था जिससे शत्रुओं का नाश हो जाता था। रामायण एवं महाभारत में ये अस्त्र कई योद्धाओं के पास था। अर्जुन ने अंग्रपर्ण गन्धर्व के विरुद्ध युद्ध में इस अस्त्र का उपयोग किया था।
- वरुणास्त्र: ये वरुणदेव का अस्त्र था जो युद्धक्षेत्र में भीषण बाढ़ ले आता था। आग्नेयास्त्र का निवारण वरुणास्त्र से ही किया जाता था। रामायण एवं महाभारत में ये अस्त्र कई योद्धाओं के पास था।
- विषोसनास्त्र: ये देवराज इंद्र का अस्त्र था जो किसी भी चीज को सुखा सकता था। ये वरुणास्त्र की काट था।
- मानवास्त्र: ये ब्रह्मपुत्र मनु का अस्त्र था जो योद्धा को युद्धक्षेत्र से कई योजन दूर फेंक देता था। श्रीराम ने इसका उपयोग मारीच पर किया था जिससे वो १०० योजन दूर समुद्र के पार जा गिरा था।
- वरुण पाश: ये भी वरुण देवता का अस्त्र था जिससे स्वयं देवता भी नहीं बच सकते थे। एक बार इसमें बंधने के बाद शत्रु मुक्त नहीं हो सकता था। रामायण में ये अस्त्र श्रीराम और मेघनाद के पास था और महाभारत में अर्जुन ने इसे वरुणदेव से प्राप्त किया था।
- यम पाश: ये मृत्यु के देवता यमराज का अस्त्र था जो एक बार जकड लेने के बाद प्राण लेकर ही छोड़ता था। रामायण में ये अस्त्र रावण और मेघनाद के पास था। यमराज ने इसका प्रयोग रावण पर भी किया था किन्तु ब्रह्मदेव के वरदान के वो रावण को कोई क्षति ना पहुंचा सका।
- ब्रह्मपाश: परमपिता ब्रह्मा का पाश जिससे छूटना असंभव है।
- भौमास्त्र: ये माता पृथ्वी का अस्त्र था जो शत्रु को भूमि के गर्भ में भेज देता था। महाभारत में ये केवल अर्जुन के पास था।
- भार्गवास्त्र: ये महासंहारक अस्त्र था जिसकी रचना भगवान परशुराम ने की थी। महाभारत में ये अस्त्र केवल कर्ण के पास था जो उसे परशुराम से प्राप्त हुआ था।
- नागास्त्र: ये नागों का अस्त्र था जिसके प्रहार से भारी मात्रा में नाग उत्पन्न होते थे और शत्रुओं के अपने दंश से मार डालते थे। रामायण और महाभारत में ये कई योद्धाओं के पास था। अर्जुन ने इसका उपयोग सुशर्मा पर किया था।
- गरुड़ास्त्र: ये नागास्त्र का निवारण अस्त्र था जिससे अनेक गरुड़ उत्पन होते थे और नागों को खा जाते थे। रामायण में ये श्रीराम के पास और महाभारत में अर्जुन के पास था। श्रीराम ने इसका उपयोग लंका युद्ध में किया था।
- नाग पाश: ये भी नागों का अस्त्र था जिसमें जकड़ने के बाद शत्रु मृत्यु को प्राप्त हो जाते थे। इसका निदान केवल गरुड़ ही कर सकते थे। रामायण में ये अस्त्र मेघनाद के पास था जिसका प्रयोग उसने श्रीराम और लक्ष्मण पर किया था। बाद में गरुड़ ने दोनों को इससे मुक्त कराया। महाभारत में अर्जुन ने ये अस्त्र अपनी पत्नी उलूपी से प्राप्त किया था।
- अंजलिका अस्त्र: ये देवराज इंद्र का अस्त्र था जो कवच होते हुए भी शत्रु का सर काट लेता था। कुछ स्थानों पर ऐसा वर्णन है कि लक्ष्मण ने इसी अस्त्र के प्रयोग से मेघनाद का वध किया। हालाँकि अधिकतर स्थानों पर मेघनाद का वध ब्रह्मास्त्र से हुआ माना जाता है। महाभारत में अर्जुन ने कर्ण का वध इसी दिव्यास्त्र से किया था।
- वायव्यास्त्र: ये पवनदेव का अस्त्र था जो युद्धक्षेत्र में भयानक बवंडर उत्पन्न करता था जिससे सेना आकाश में उड़ जाती थी। महाभारत के १४वें दिन अश्वत्थामा ने घटोत्कच के पुत्र अंजनपर्व की माया को तोड़ने के लिए इस अस्त्र का प्रयोग किया था। श्रीराम ने इस अस्त्र से राक्षसों की सेना का ध्वंस कर दिया था।
- शैलास्त्र: ये वायव्यास्त्र का निराकरण अस्त्र था जिससे बवंडर का नाश हो जाता था। रामायण में ये श्रीराम और मेघनाद एवं महाभारत में ये श्रीकृष्ण और अर्जुन के पास था।
- सूर्यास्त्र: ये भगवान सूर्यनारायण का अस्त्र था जिससे अंधकार समाप्त हो जाता था और ये जल स्रोतों को सूखा देता था। रामायण और महाभारत में कई योद्धाओं के पास ये अस्त्र था। अर्जुन ने युद्ध के १२वें दिन इसी अस्त्र का प्रयोग कर शकुनि को परास्त किया था।
- मेघवान अस्त्र: ये देवराज इंद्र का अस्त्र था जिससे सुरक्षा कवच बना कर अस्त्रों की वर्षा से योद्धा को बचाता था। साथ ही ये अस्त्र किसी भी माया को काटने के लिए प्रयुक्त होता था। रामायण में लक्ष्मण ने इसी अस्त्र का प्रयोग कर मेघनाद की माया को समाप्त किया था। महाभारत में अर्जुन के पास भी ये अस्त्र था।
- मोहिनी अस्त्र: ये श्रीहरि का अस्त्र था जिससे माया का भ्रम उत्पन्न होता था। अर्जुन ने ये अस्त्र निवातकवच के विरुद्ध युद्ध में उसकी माया को काटने हेतु प्रयोग किया था।
- त्वष्टास्त्र: ये आदित्यों में से एक त्वष्टा का अस्त्र है जिससे शत्रु पर चलाने से वो एक दूसरे से ही युद्ध करने लगते हैं। रामचरितमानस के अनुसार इसी अस्त्र का प्रयोग कर श्रीराम ने खर-दूषण के १४००० योद्धाओं का नाश कर दिया था।
- सम्मोहनास्त्र: ये अस्त्र युद्ध में शत्रुओं को अचेत कर देता है। रामायण और महाभारत में ये अस्त्र कई योद्धाओं के पास था। अर्जुन ने विराट युद्ध में इस अस्त्र का प्रयोग कर कौरव सेना को सुला दिया था। केवल भीष्म पर इसका कोई असर नहीं हुआ। युद्ध के ६वें दिन धृष्टधुम्न ने इसका प्रयोग कौरव सेना पर कर उन्हें अचेत कर दिया था किन्तु द्रोण ने पर्जन्यास्त्र के प्रयोग से उसका निदान कर दिया।
- पर्जन्यास्त्र: ये सम्मोहनास्त्र की काट थी जिससे चेतना वापस आ जाती थी। रामायण और महाभारत में ये अस्त्र कई योद्धाओं के पास था। द्रोण ने इसका प्रयोग युद्ध में किया था।
- विद्युतभि: ये महादेव का अस्त्र था जिसे उन्होंने परशुराम को दे दिया था। इसी अस्त्र के कारण वे राम से परशुराम कहलाये। ये भी अतिसंहारक अस्त्र था जिससे परशुराम ने २१ बार क्षत्रियों का नाश किया था। बाद में परशुराम ने इस अस्त्र को श्रीगणेश को दे दिया था।
- चन्द्रहास: ये भी भगवान शंकर का भयानक खड्ग था। जब रावण ने कैलाश को उठाने का प्रयास किया तो महादेव ने अपने अंगूठे से उसे नीचे दबाया जिससे रावण का हाथ दब गया। तब उसी स्थिति में उसने शिवस्त्रोत्रताण्डव की रचना की जिससे प्रसन्न होकर महादेव ने उसे ये खड्ग प्रदान किया। इसके साथ उन्होंने उसे चेतावनी दी थी कि यदि रावण ने इसका गलत उपयोग किया तो वो वापस महादेव के तीसरे नेत्र में लौट आएगा और उसके बाद ही रावण की मृत्यु भी समीप आ जाएगी।
- अंतर्धान अस्त्र: ये यक्षराज कुबेर का अस्त्र था जिसके प्रयोग से योद्धा अदृश्य हो जाता था। रामायण में ये अस्त्र मेघनाद के पास था जिससे वो अदृश्य होकर युद्ध करता था। महाभारत में ये अस्त्र अर्जुन के पास था।
- शब्दवेध अस्त्र: ये अंतर्धान अस्त्र की काट थी जो योद्धा को अदृश्य नहीं होने देती थी। महाभारत में केवल अर्जुन एवं श्रीकृष्ण के पास ये अस्त्र था। अर्जुन ने चित्रसेन गन्धर्व के विरुद्ध इस अस्त्र का प्रयोग किया था।
- तेजप्रभा अस्त्र: ये सूर्यदेव का अस्त्र था जिससे शत्रु का तेज समाप्त हो जाता था। महाभारत में ये अस्त्र अर्जुन के पास था।
- पर्वतास्त्र: ये एक अद्भुत अस्त्र था जिसके प्रयोग से पर्वत के सामान पाषाणों की वर्षा होती थी। रामायण और महाभारत में ये अस्त्र कई योद्धाओं के पास था।
- ज्योतिक्षा अस्त्र: ये सूर्यदेव का अस्त्र था जो अंधकार को दूर कर प्रकाश उत्पन्न करता था। इसकी सहायता से योद्धा अंधकार में भी युद्ध कर सकता था।
- सुपर्णा अस्त्र: इस अस्त्र के प्रयोग से असंख्य पक्षियों की उत्पत्ति होती थी। ये नागास्त्र की काट था और महाभारत में जब अर्जुन ने संसप्तकों पर नागास्त्र का प्रयोग किया था तो सुशर्मा ने इस अस्त्र का प्रयोग कर उसे काट दिया था।
- बलचित्त: ये बलराम के प्रसिद्ध हल का नाम था जो सर्वाधिक शक्तिशाली दिव्यास्त्रों में से एक है। इस हल द्वारा ही बलराम ने अपनी पत्नी रेवती की ऊंचाई कम कर दी थी। जब दुर्योधन ने श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब का अपहरण कर लिया तब बलराम ने अपने हल से पूरे हस्तिनापुर को एक ओर झुका दिया था। उनके अतिरिक्त उनके हल को और कोई धारण नहीं कर सकता था।
- तीन दिव्य बाण: ये महादेव के अमोघ बाण हैं। इनमें से पहला शत्रुओं को चिन्हित करता है, दूसरा चिन्हित शत्रुओं का वध करता है और तीसरे बाण से कितनी भी बड़ी सेना को एक ही प्रहार में समाप्त किया जा सकता है। भगवान शंकर ने ये तीन बाण भीम के पौत्र और घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक को वरदान स्वरुप प्रदान किये थे।
अगले और अंतिम लेख में हम महास्त्रों के विषय में चर्चा करेंगे।
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