पिछले लेख में आपने अस्त्र एवं शस्त्र के बीच के मूल अंतर के बारे में पढ़ा। इस लेख में हम साधारण अस्त्रों एवं शस्त्रों के विषय में पढ़ेंगे। इस लेख में हम किसी दिव्यास्त्र को सम्मलित नहीं करेंगे। हालाँकि हमारे पौराणिक ग्रंथों में अधिकतर अस्त्रों का वर्णन किसी दिव्यास्त्र के सन्दर्भ में ही आता है इसीलिए इस सूची में अधिक अस्त्रों का समावेश नहीं किया गया है और मूलतः शस्त्रों के विषय में ही जानकारी दी गयी है।
कुछ आयुध ऐसे हैं जो सामान्य एवं दिव्यास्त्र दोनों की श्रेणी में आते हैं, किन्तु इस लेख में उसे केवल सामान्य आयुधों के रूप में ही देखें। हमारे पुराणों में अनेकानेक अस्त्र-शस्त्रों का वर्णन दिया गया है। उनकी संख्या इतनी अधिक है कि उन सब के विषय में तो बताना संभव नहीं है। यही कारण है कि इस लेख में जितना हो सका, उतने आयुधों का वर्णन किया गया है।
- दंड: इसे आम तौर पर डंडा भी कहा जाता है जो सबसे सुलभ शस्त्र माना जाता है। हालाँकि इसके प्रहार से प्राण हानि नहीं होती किन्तु आत्मरक्षा के लिए ये एक आसान विकल्प माना जाता है।
- भल्ल: इसे सामान्य भाषा में भाला कहते हैं। ये सबसे सुलभ और प्रायः उपयोग में लाया जाने वाला शस्त्र है। एक लम्बे डंडे के शीर्ष पर लोहे का नुकीला फल रख कर इसे प्रहार करने योग्य बनाया जाता है। किसी भी युद्ध में साधारण/पदाति योद्धा के पास भाला ही हुआ करता था। हालाँकि कई रथी और उत्कृष्ट योद्धा भी इसका उपयोग करते थे। जैसे महाभारत में युधिष्ठिर इसके प्रयोग में सबसे अच्छे थे।
- असि: हिंदी में इसे तलवार कहते हैं। ये भी सबसे सामान्य और सर्वसुलभ शस्त्र माना जाता है। साधारण सैनिक से लेकर महारथी तक, ये शस्त्र सबके पास रहता था। इसका हीलघु रूप क्रमशः दीर्घक, नारसिंहक (कटार), कात्यायन, ऊना, भुजाली, करौली और लालक हैं।
- खड्ग: ये अतिप्राचीन अस्त्र है जिसकी उत्पत्ति सर्वप्रथम परमपिता ब्रह्मा ने की थी। तलवार के विपरीत इसमें दोनों ओर धार होती है और इसका आकर भी भी तलवार से बहुत बड़ा होता है। हर योद्धा इसे धारण नहीं कर सकता। माता आदिशक्ति के विभिन्न रूपों को आपने खड्ग के साथ ही देखा होगा।
- शक्ति: ये अस्त्र एवं शस्त्र दोनों की श्रेणी में आती है। इसका आकर गज भर होता है और इसका मुख सिंह के सामान बताया गया है। इसे पकड़ने का हत्था आम तौर पर बड़ा होता है। इसे एक तलवार की भांति भी उपयोग में लाया जा सकता है किन्तु सामान्यतः इसे दूर तक फेंक कर शत्रु पर प्रहार किया जाता है।
- धनुष एवं बाण: धनुष शस्त्र एवं बाण अस्त्र की श्रेणी में आते किन्तु ये किन्तु ये एक दूसरे के पूरक होते हैं। ये भी प्राचीन अस्त्र है और धनुर्विद्या को उप-वेद की श्रेणी में रखा जाता है। बाण को धनुष पर रख कर छोड़ा जाता है। हालाँकि अगर दिव्यास्त्र का संधान करना हो तो उस स्थिति में साधारण धनुष काम में नहीं आते। इतिहास में एक से एक धनुर्धारी हुए हैं जिनमें से अर्जुन और कर्ण का नाम श्रेष्ठ धनुर्धारियों में गिना जाता है।
- परशु: इसे खड्ग का ही एक आधुनिक रूप माना जा सकता है। ये भी प्राचीन अस्त्र है किन्तु इसका फल खड्ग की भांति बड़ा नहीं होता और उसकी धार भी दोनों ओर नहीं होती। इसी आयुध के नाम पर परशुराम जी का नाम पड़ा क्यूंकि वे इसे सदैव धारण करते हैं।
- गदा: ये भी बहुत प्रसिद्ध शस्त्र है जिसका दंड पतला होता है तथा सिरा भारी एवं गोल होता है। इसकी लम्बाई भूमि से वक्ष तक बताई गई है। ये प्राणघातक शस्त्र है और इसके प्रहार से शत्रु पीड़ादायक मृत्यु को प्राप्त होता है। हनुमान, बलराम, भीम और दुर्योधन प्रसिद्ध गदाधारी थे।
- शूल: ये भाले के सामान ही होता है किन्तु पूर्णतः लोहे का बना होता है। इसका सिरा बहुत नुकीला होता है और इसके प्रहार से शत्रु का शरीर विदीर्ण हो जाता है।
- त्रिशूल: ये भी शूल का ही विकसित रूप है बस अंतर इतना है कि जहाँ शूल में एक फल होता है वही त्रिशूल में तीन फल होते हैं। इसकी मार शूल से भयानक होती है। इसी कारण इसका ये नाम पड़ा। भगवान शंकर सबसे प्रसिद्ध त्रिशूलधारी हैं।
- तोमर: ये बाण का ही बड़ा रूप है जिसका मुख सर्प के सामान होता है। भाले की भांति ही इसका धड़ लकड़ी का और फल लोहे का बना होता है। ये सामान्यतः लाल रंग का होता है। इसके हत्थे पर पंख के सामान आकृति बनाई जाती है ताकि ये हवा का चीर कर अधिक दूरी तक मार कर सके।
- पाश: ये शत्रु को बांधने का शस्त्र होता है जिसमें बंध कर शत्रु विवश हो जाता है। पाश कई प्रकार के होते हैं जो रस्सी या धातु से बनाये जाते हैं। धातु से बने कुछ पाश भयानक होते हैं जिसमें जकड़ने के बाद शत्रु पीड़ादायक मृत्यु को प्राप्त होता है।
- ऋष्टि: ये तलवार का ही एक रूप है किन्तु उससे प्राचीन माना जाता है।
- वज्र: इसका धड़ बहुत वजनदार होता है और सिरे पर कई नुकीले फल निकले होते हैं। इसके प्रहार से भी भयानक मृत्यु होती है। देवराज इंद्र वज्रधारी कहलाते हैं।
- मुशल: ये गदा का ही एक रूप है जो उससे हल्का होता है। हल्का होने के कारण इसे दूर तक फेंक कर मारा जा सकता है।
- परिध: ये एक वजनदार छड़ी के सदृश होती है जिससे शत्रु को विवश किया जाता है। इससे प्राणहानि तो नहीं होती किन्तु भयानक कष्ट होता है।
- मुग्दर: ये गदा का एक आधुनिक रूप है। इसकी बनावट गदा के समान ही होती है किन्तु सिरा गोल नहीं होता। गदा की भांति ही बहुत वजनदार होती है और इसके प्रहार से भी पीड़ादायक मृत्यु होती है। आज कल अखाड़ों में मुग्दर व्यायाम के लिए उपयोग में लाई जाती है।
- चक्र: ये गोल आकृति का होता है जिसके किनारों पर आरी के समान तेज धार के कई फल होते हैं। इसे हाथ में रखकर अथवा दूर फेंक कर उपयोग में लाया जाता है। भगवान विष्णु एवं श्रीकृष्ण प्रसिद्ध चक्रधारी हैं।
- भिन्दिपाल: ये धनुष का एक आधुनिक रूप है जो लोहे का बना होता है। इसके अंदर यंत्र द्वारा लोहे के बाण छोड़े जाते हैं। एक तरह से ये धनुष एवं बाण का सम्मलित रूप है। इससे छोड़े जाने वाले नुकीले बाणों को नाराच कहते हैं।
- कुंटा: ये हल के सामान एक अस्त्र होता है और बहुत बड़ा होता है। इसकी लम्बाई पांच गज तक बताई गयी है। इसे उठाना सबके बस की बात नहीं होती। असुरों और दानवों का ये प्रिय अस्त्र हुआ करता था।
- शंकु: इसे हिंदी में बरछी कहते हैं। ये भी भाले का ही एक आधुनिक रूप है।
- पट्टिश: ये भी तलवार का एक आधुनिक रूप है किन्तु इसमें एक फल नहीं होता बल्कि पतली पतली धातुओं की कई पट्टियाँ होती है। इससे एक साथ कई शत्रुओं को मारा जा सकता है।
- हल: ये कुंटा का एक बड़ा रूप होता था। ये साधारण अस्त्र नहीं था और मुख्यतः केवल बलराम ही इसका उपयोग करते थे।
- वशि: ये परशु का एक रूप होता है जिसे आज कुल्हाड़ा कहते हैं।
अगले लेख में हम प्रसिद्ध दिव्यास्त्रों के विषय में चर्चा करेंगे।
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