पिछले लेख में आपने प्रमुख दिव्यास्त्रों के विषय में पढ़ा था। इस लेख में हम उन कुछ विशेष दिव्यास्त्रों के विषय में बात करेंगे जो त्रिदेवों से सम्बंधित हैं और सबसे अधिक शक्तिशाली माने जाते हैं, जिन्हे हम महास्त्र कहते हैं। आम तौर पर हम त्रिदेवों के दिव्यास्त्रों में ब्रह्मास्त्र, नारायणास्त्र एवं पाशुपतास्त्र के बारे में जानते हैं किन्तु वास्तव में त्रिदेवों के महान अस्त्र भी तीन स्तरों/श्रेणियों में बंटे हैं और इनसे भी शक्तिशाली हैं। आइये त्रिदेवों के उन महान अस्त्रों के विषय में जानते हैं।
स्तर १:
- ब्रह्मास्त्र: ये संभवतः सर्वाधिक प्रसिद्ध दिव्यास्त्र था। किसी भी योद्धा के पास ब्रह्मास्त्र होना सम्मान की बात मानी जाती थी। इसकी रचना स्वयं परमपिता ब्रह्मा ने की थी और ये अमोघ अस्त्र था। इसे जिसपर भी छोड़ा जाये उसका नाश अवश्यम्भावी था। ब्रह्मास्त्र का प्रतिकार केवल किसी अन्य ब्रह्मास्त्र से ही किया जा सकता था। आज के परमाणु बम को आप ब्रह्मास्त्र का ही एक रूप मान सकते हैं। इसे छोड़ने पर भयानक प्रलयाग्नि निकलती थी जो जीव-जंतु, वनस्पति एवं समस्त चर-अचर वस्तुओं का नाश कर देती थी। यहाँ पर भी ब्रह्मास्त्र द्वारा विनाश होता था वहाँ १२ वर्षों तक भयानक दुर्भिक्ष पड़ जाता था। ये ब्रह्मा के १ मुख का प्रतिनिधित्व करता था। रामायण में श्रीराम, लक्ष्मण, रावण, मेघनाद, अतिकाय, परशुराम, वशिष्ठ एवं विश्वामित्र के पास ब्रह्मास्त्र था। श्रीराम ने रावण तथा लक्ष्मण ने अतिकाय और मेघनाद का वध ब्रह्मास्त्र द्वारा ही किया था। महाभारत में भीष्म, द्रोण, कर्ण, अश्वत्थामा एवं अर्जुन के पास ब्रह्मास्त्र था। इनमें अश्वथामा केवल इसे चलाना जनता था किन्तु इसे वापस लेने की कला उसे नहीं पता थी। जब अश्वथामा ने उप-पांडवों का वध दिया तब अर्जुन के विरुद्ध उसने ब्रह्मास्त्र चला दिया जिसका प्रतिकार करने के लिए अर्जुन ने भी ब्रह्मस्त्र चलाया किन्तु उस विनाश को रोकने हेतु देवर्षि नारद और महर्षि वेव्यास ने उस युद्ध को रुकवा दिया। तब अर्जुन ने तो ब्रह्मास्त्र वापस ले लिया किन्तु अश्वथामा ना ले सका। तब उसने उस ब्रह्मास्त्र का प्रहार उत्तरा के गर्भ पर किया जिससे उसे एक मृत पुत्र प्राप्त हुआ। बाद में श्रीकृष्ण ने उसे जीवनदान दिया और वही परीक्षित के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
- वैष्णव अस्त्र: ये भगवान विष्णु का अचूक अस्त्र था जिसे उनके अतिरिक्त कोई अन्य रोक नहीं सकता था। इसे केवल श्रीहरि को प्रसन्न कर ही प्राप्त किया जा सकता था। इससे ना केवल मनुष्य अपितु देवताओं का भी नाश हो सकता था। रामायण में महर्षि विश्वामित्र के पास ये अस्त्र था जो उन्होंने श्रीराम को प्रदान किया। इसी महान अस्त्र से ही श्रीराम ने भगवान परशुराम के प्रभाव का अंत कर दिया था और तब परशुराम को ये विश्वास हो गया कि श्रीराम विष्णु अवतार ही हैं। महाभारत में ये अस्त्र श्रीकृष्ण और भगदत्त के पास था। भगदत्त ने इसका प्रयोग अर्जुन पर कर दिया था किन्तु श्रीकृष्ण ने मार्ग में ही उसे अपने ऊपर ले लिया और अर्जुन के प्राण बचाये।
- रुद्रास्त्र: ये महादेव का महाविध्वंसक अस्त्र था। जब इसे चलाया जाता था तो ११ रुद्रों की सम्मलित शक्ति एक साथ प्रहार करती थी और लक्ष्य का विध्वंस कर देती थी। वैसे तो प्रामाणिक रुप से इस अस्त्र का किसी के पास होने का वर्णन नहीं है किन्तु एक कथा के अनुसार अर्जुन ने इसे महादेव से प्राप्त किया था। जब अर्जुन स्वर्गलोक में थे तब उन्होंने असुरों के विरुद्ध युद्ध में देवराज इंद्र की सहायता की थी। उस युद्ध में देवता परास्त होने ही वाले थे तब कोई और उपाय ना देख कर अर्जुन ने रुद्रास्त्र का संधान किया और केवल एक ही प्रहार में ३००००००० (तीन करोड़) असुरों का वध कर दिया।
स्तर २:
- ब्रह्मशिर: ये ब्रह्मास्त्र का ही विकसित रूप था जो भगवान ब्रह्मा के ४ मुखों का प्रतिनिधित्व करता था। इस प्रकार ये अस्त्र ब्रह्मास्त्र से ४ गुणा अधिक शक्तिशाली था। ये अस्त्र इतना सटीक था कि इसके उपयोग से वन के बीच केवल एक घांस को भी नष्ट किया जा सकता था। इसके किसी योद्धा के पास होने का कोई सटीक वर्णन नहीं है। केवल महर्षि अग्निवेश के पास ये निर्विवाद रूप से था। इसके अतिरिक्त कुछ लोग द्रोण, अर्जुन और अश्वथामा के पास भी ब्रह्मशिर के होने की बात कहते हैं। कुछ स्थान पर ये भी वर्णित है कि अश्वथामा और अर्जुन ने अपने अंतिम युद्ध में ब्रह्मशिर अस्त्र का ही प्रयोग किया था। हालाँकि अधिकतर स्थान पर ब्रह्मास्त्र का ही वर्णन है। ब्रह्मशिर अस्त्र का निवारण केवल किसी दूसरे ब्रह्मशिर द्वारा ही किया जा सकता था। किन्तु ऐसा वर्णित है कि जहाँ दो ब्रह्मशिर अस्त्र टकराते हैं वहाँ १२ दिव्य वर्षों (४३२० मानव वर्ष) तक एक पत्ता भी नहीं उगता। १ दिव्य वर्ष ३६० मानव वर्षों के बराबर होता है। काल गणना के बारे में विस्तार से यहाँ पढ़ें।
- नारायणास्त्र: ये भगवान नारायण का अत्यंत विनाशकारी अस्त्र है। इसका कोई प्रतिकार नहीं है और इसे केवल भगवान विष्णु ही रोक सकते हैं। इस अस्त्र का प्रयोग करने से इन्द्रास्त्र, वरुणास्त्र, आग्नेयास्त्र इत्यादि अनेकानेक दिव्यास्त्र इससे निकलकर शत्रुओं का नाश कर देते हैं। इसके सामने पूर्ण समर्पण करने पर ये अपना प्रभाव नहीं डालता था। रामायण में ये अस्त्र श्रीराम एवं मेघनाद के पास था। महाभारत में ये अस्त्र श्रीकृष्ण एवं अश्वथामा के पास था। युद्ध के पन्द्रहवें दिन द्रोण की मृत्यु के बाद बाद अश्वथामा ने कौरव सेना पर नारायणास्त्र से प्रहार किया जिससे १ अक्षौहिणी सेना तो तत्काल समाप्त हो गयी। तब श्रीकृष्ण के परामर्श अनुसार सभी ने उस अस्त्र के समक्ष समर्पण कर दिया। किन्तु भीम ने समर्पण करने से मना कर दिया। तब श्रीकृष्ण ने बल पूर्वक उनसे समर्पण करवाया और तब जाकर सबके प्राण बचे।
- पाशुपतास्त्र: ये भगवान शंकर का महाभयंकर अस्त्र है जिसका कोई प्रतिकार नहीं है। एक बार छूटने पर ये लक्ष्य को नष्ट कर के ही लौटता है। कोई भी शक्ति पाशुपतास्त्र का सामना नहीं कर सकती। इस अस्त्र द्वारा ही भगवान शंकर ने केवल एक ही प्रहार में त्रिपुर का संहार कर दिया था। रामायण में केवल मेघनाद के पास ये अस्त्र था जो उसे भगवान शंकर से प्राप्त किया था। उसने लक्ष्मण पर इसका प्रयोग भी किया था किन्तु महादेव की कृपा से इस अस्त्र ने उनका अहित नहीं किया। महाभारत में ये अस्त्र केवल अर्जुन के पास था जो उसने निर्वासन के समय महादेव से प्राप्त किया था। महाभारत में इस अस्त्र के प्रयोग का कोई वर्णन नहीं है।
- ब्रह्माण्ड अस्त्र: ये परमपिता ब्रह्मा का सबसे शक्तिशाली अस्त्र है जो उनके ५ सिरों का प्रतिनिधित्व करता है। ये ब्रह्मास्त्र से कई गुणा अधिक शक्तिशाली होता है और इसके प्रहार से पूरे विश्व का नाश किया जा सकता है। कई लोकों को एक साथ समाप्त करने की शक्ति इस अस्त्र में होती है। केवल ब्रह्मापुत्र महर्षि वशिष्ठ के पास इस अस्त्र के होने का वर्णन है। विश्वामित्र के विरुद्ध युद्ध में वशिष्ठ के ब्रह्माण्ड अस्त्र ने विश्वामित्र के ब्रह्मास्त्र को पी लिया था। उस युद्ध के विषय में यहाँ पढ़ें। महाभारत में ये अस्त्र किसी के पास नहीं था।
- विष्णुज्वर: ये भगवान विष्णु का सर्वाधिक शक्तिशाली अस्त्र है। इस अस्त्र के प्रहार से भयानक ठंड उत्पन होती है जो समस्त चर सृष्टि की चेतना लुप्त कर देती है। इस अस्त्र का कोई प्रतिकार नहीं है। ये अस्त्र नारायण के अतिरिक्त केवल श्रीकृष्ण के पास था। शिव पुराण एवं विष्णु पुराण दोनों में इस अस्त्र का वर्णन है जब बाणासुर के विरुद्ध युद्ध में श्रीकृष्ण ने इस अस्त्र का प्रयोग भगवान शंकर पर कर दिया था। इस युद्ध के बारे में विस्तार से यहाँ पढ़ें।
- शिवज्वर: ये भगवान शंकर का अस्त्र है जिसे माहेश्वरज्वर भी कहते हैं। ये महादेव का सर्वाधिक विध्वंसक अस्त्र है। इसकी शक्ति महादेव के तीसरे नेत्र की ज्वाला के समान है जिससे क्षण में समस्त सृष्टि को भस्मीभूत किया जा सकता है। इसका भी कोई प्रतिकार नहीं है। श्रीकृष्ण द्वारा विष्णुज्वर के विरुद्ध इस अस्त्र का उपयोग किया गया था। विष्णु पुराण में विष्णुज्वर को एवं शिव पुराण में शिवज्वर को विजेता बताया गया है। ब्रह्मपुराण में वर्णित है कि संसार की रक्षा हेतु उस युद्ध को परमपिता ब्रह्मा ने मध्यस्थता कर रुकवा दिया था।
इस लेख के साथ ही अस्त्र-शस्त्रों की श्रृंखला समाप्त होती है। आशा है आपको ये जानकारी ज्ञानवर्धक लगी होगी। जय ब्रह्मदेव। जय श्रीहरि। हर हर महादेव।
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