रामायण के रचनाकार प्रचेता पुत्र महर्षि वाल्मीकि को आदि कवि भी कहा जाता है। वो इस कारण कि काव्य का जैसा प्रस्फुटन रामायण में देखने को मिला, वैसा उससे पहले कभी देखने को नहीं मिला था। इसी कारण रामायण को पहला महाकाव्य कहा जाता है। रामायण के बाद महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित महाभारत ही उस स्तर का महाकाव्य बना किन्तु फिर भी रामायण जितना भावनात्मक है, कदाचित महभारत में भी वैसा भाव देखने को नहीं मिलता।
जाति एवं वर्ण में अंतर
"समाज से जाति भेद को मिटाना आवश्यक है" या "हिन्दू समाज कई जातियों में बटा है" - इस प्रकार की बातें हमें प्रतिदिन सुनने को मिल ही जाती है। आपमें से यदि कोई सोच रहा हो कि आज अचानक धर्म संसार पर राजनितिक बातें कैसे होने लगी, तो आप गलत समझ रहे हैं। आज हम कुछ ऐसा समझने का प्रयास करने वाले हैं जो शुद्ध रूप से सनातन हिन्दू धर्म का आधार है, किन्तु दुर्भाग्यवश उसे तोड़-मरोड़ कर ऐसा रूप दे दिया गया है जिससे समाज में मतभेद उत्पन्न हो गए हैं।
वाल्मीकि रामायण एवं रामचरितमानस में अंतर
महर्षि वाल्मीकि ने युगों पहले मूल रामायण की रचना की थी जिसमें भगवान विष्णु के ७वें अवतार श्रीराम की लीलाओं का वर्णन है। कालांतर में वाल्मीकि रामायण के अनेक भाषाओं में कई संस्करणों (३०० से भी अधिक) की रचना की गयी किन्तु जो प्रसिद्धि एवं सम्मान १६ सदी में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्री रामचरितमानस को प्राप्त है, उसकी कोई अन्य तुलना नहीं है। आज भी ९०% घरों में वास्तव में रामचरितमानस ही होता है। मानस की तुलना में मूल वाल्मीकि रामायण का प्रसार उतना नहीं है।
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