महाराज सुबल गांधार के राजा थे और शकुनि एवं गांधारी के पिता थे। उन्हें गांधार के सबसे प्रसिद्ध एवं न्याय प्रिय राजाओं में से एक माना जाता है। सुबल का विवाह सुधर्मा नामक राजकुमारी से हुआ जिनसे उन्हें पाँच पुत्र एवं एक पुत्री की प्राप्ति हुई। हालाँकि इन पुत्र-पुत्रियों का वर्णन महाभारत और अन्य ग्रंथों में अलग-अलग है। महाभारत में सुबल का बहुत अधिक वर्णन नहीं दिया गया है किन्तु महाभारत पर आधारित कुछ अन्य ग्रंथों में सुबल के जीवन का कुछ विस्तार देखने को मिलता है।
आज को अफगानिस्तान है वही उस काल में गांधार कहलाता था। आज का कंधार वास्तव में गांधार का ही अपभ्रंश है। महाभारत के अनुसार सुबल के सात पुत्र एवं १ पुत्री थी। सुबल और सुधर्मा के पुत्र थे - गय, गवाक्ष, वृषव, चामवर्त, अजर्व, शुक एवं शकुनि। सुबल की सबसे छोटी और एकमात्र पुत्री का नाम गांधारी था। शकुनि सभी पुत्रों में सबसे छोटा एवं गांधारी से बड़ा था। महाभारत में ऐसा वर्णन है कि शकुनि के सभी भाई एवं उसके सभी पुत्र महाभारत के युद्ध में लड़े थे किन्तु उसके सबसे छोटे पुत्र को छोड़ कर उसके सभी पुत्र और भाई युद्ध में अर्जुन और उसके पुत्र इरावन के हाथों मारे गए।
जब अम्बिका पुत्र धृतराष्ट्र युवा हुए तो भीष्म उनके लिए सुयोग्य कन्या की खोज करने लगे। उस समय आर्यावर्त में गांधारी रूप एवं गुण में सर्वश्रेष्ठ थी। तब भीष्म उसका हाथ मांगने गांधार पहुँचे। यहाँ पर हमें कुछ ग्रंथों में भिन्नता मिलती है। महाभारत के अनुसार सुबल अथवा गांधारी को भीष्म ने विवाह से पूर्व ही बता दिया था कि धृतराष्ट्र जन्मांध हैं और तब गांधारी ने भी आजीवन आँखों पर पट्टी बांधने का कठिन व्रत ले लिया। किन्तु कुछ ग्रन्थ ये कहते हैं कि कि विवाह तय हो जाने के पश्चात सुबल को इसका ज्ञान हुआ कि धृतराष्ट्र नेत्रहीन हैं। किन्तु भीष्म के भय से वो उस विवाह का प्रतिकार नहीं कर सके। यही कारण था कि शकुनि ने भीष्म से प्रतिशोध लेने की प्रतिज्ञा कर ली।
महाभारत के अनुसार महाराज सुबल की स्वाभाविक मृत्यु हुई थी। शकुनि द्वारा अपने पिता की हड्डियों से पांसे बनवाने का कोई सन्दर्भ हमें महाभारत में नहीं मिलता। हालाँकि ये सत्य है कि अपने अंतिम समय भी सुबल शकुनि को गांधार वापस लाने में सफल नहीं हुए और शकुनि हस्तिनापुर में रहते हुए ही अपने पुत्र उलूक के माध्यम से गांधार राज्य का शासन चलाता रहा। हालाँकि कुछ अन्य ग्रंथों में हमें सुबल के विषय में अलग कथा ही जानने को मिलती है।
सुबल के बारे में जो कोई भी ग्रन्थ हैं, उनमे से सबसे प्रमुख है कन्नड़ भाषा में लिखा हुआ ग्रन्थ "यक्षगान"। इसमें हस्तिनापुर को "हस्तिनपुरी" के नाम से वर्णित किया गया है। इसके अनुसार सुबल अपनी पुत्री का विवाह धृतराष्ट्र से नहीं करना चाहते थे क्यूंकि वे नेत्रहीन थे, किन्तु भीष्म ने उन्हें उस विवाह के लिए विवश किया और भीष्म के भय से उन्होंने इस विवाह की स्वीकृति दे दी। इस ग्रन्थ के अनुसार गांधारी ने भी क्रोध के वश में आकर अपने आँखों पर पट्टी बांध ली जिसे देख कर शकुनि ने हस्तिनपुर के नाश की प्रतिज्ञा कर ली। इस ग्रन्थ के अनुसार महाराज सुबल के पांच पुत्र - सुबल, अचल, विशाखा, वृहदवल एवं शकुनि थे। उनकी एक पुत्री गांधारी थी।
इस ग्रन्थ में एक और अद्भुत कथा मिलती है कि गांधारी का एक विवाह पहले हो चुका था और विवाह के प्रथम दिन ही उसके पति की अकाल मृत्यु हो गयी। गांधारी विधवा है ये बात महाराज सुबल ने धृतराष्ट्र को नहीं बताई, किन्तु विवाह के पश्चात किसी प्रकार धृतराष्ट्र को इस सत्य के विषय में पता चला। तब उसने क्रोध में सुबल, उसकी पत्नी एवं सभी पुत्रों को कारागार में बंद कर दिया। वहाँ भोजन में उन सभी को केवल एक मुट्ठी चावल दिया जाता था। तब सुबल और उसके पुत्रों ने स्वयं भूखा रह कर सारा भोजन शकुनि को देना आरम्भ किया ताकि उनका कम से कम एक पुत्र जीवित रहे।
सुबल ने कुछ सिद्धियां अर्जित की थी। जब सुबल की पत्नी और उनके सभी पुत्र मारे गए तब सुबल ने शकुनि को कहा कि उनकी मृत्यु के बाद वो उनकी अस्थियों के पांसे बनवा ले जो सदैव उनका कहा मानेंगे। मृत्यु के पूर्व सुबल ने धृतराष्ट्र से शकुनि को जीवित छोड़ने की प्रार्थना की जो उसने मान ली। सुबल की मृत्यु के पश्चात धृतराष्ट्र ने कहा कि वो हस्तिनापुर में रह सकता है या फिर गांधार वापस लौट सकता है। किन्तु अपने परिवार पर हुए अत्याचारों का प्रतिशोध लेने के लिए वो हस्तिनापुर में ही रह गया।
इसी कथा से मिलती जुलती कहानी हमें एक और दक्षिण भारतीय ग्रन्थ में मिलती है। उसके अनुसार जब गांधारी का जन्म हुआ तो ज्योतिषों ने महाराज सुबल को बताया कि गांधारी के विवाह के बाद उसके पति की अकाल मृत्यु हो जाएगी क्यूंकि वो मांगलिक थी। इस कारण सुबल ने गांधारी का विवाह एक भेड़े के साथ करवा दिया। धृतराष्ट्र से विवाह के समय सुबल ने इस बात को उनसे छिपा लिया, हालाँकि बहुत बाद में भीम ने दुर्योधन को "विधवा का गोलक" कह कर उसका मजाक उड़ाया। इस पर क्रोधित हो दुर्योधन ने सुबल, उनकी पत्नी और शकुनि सहित उनके सभी पुत्रों को कारागार में डलवा दिया।
उस कारागार में सुबल की पत्नी और शकुनि के अतिरिक्त उनके सभी पुत्र मृत्यु को प्राप्त हुए। सुबल ने कुछ सिद्धियां अर्जित की थी और उन्होंने शकुनि से कहा कि उनके मरने के बाद वो उनकी अस्थियों से एक पांसा बनवा ले। वो पांसा उसकी इच्छा अनुसार ही चलेगा। उनकी इस बातों को दुर्योधन ने सुन लिया और इसका लाभ लेने हेतु शकुनि को स्वतंत्र कर दिया और अपना मंत्री बनवा लिया। किन्तु शकुनि अपने परिवार की दुर्दशा का प्रतिशोध लेना चाहता था इसी लिए वो सदा के लिए वही रहा और अंततः कुरुवंश के नाश का कारण बना।
अति उत्तम
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर।
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