आज समाज जात-पात में बंटा हुआ है जिसमें कोई दो राय नहीं है। हालाँकि यदि हिन्दू धर्म को आधार माना जाये तो इसमें जाति नाम की कोई चीज ही नहीं होती थी। हिन्दू धर्म में सदैव वर्ण व्यवस्था का विधान है, जाति व्यवस्था का नहीं। समय के साथ-साथ ये वर्ण व्यवस्था कब जाति व्यवस्था में बदल गयी, किसी को पता नहीं। अन्यथा प्राचीन वर्ण व्यवस्था में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्रों को समान अधिकार प्राप्त हैं। वर्ण और जाति के भेद को बताने के लिए हमने एक लेख पहले ही धर्म संसार पर प्रकाशित किया है जिसे आप यहाँ पढ़ सकते हैं।
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जटायु
पिछले लेख में आपने गृद्धराज सम्पाती के विषय में पढ़ा था। जटायु इन्ही सम्पाती के छोटे भाई थे। महर्षि कश्यप और विनता के ज्येष्ठ पुत्र अरुण इनके पिता थे। इनकी माता का नाम श्येनी था। पिछले लेख में आपने पढ़ा कि किस प्रकार विनता अपने बड़े पुत्र अरुण को समय से पहले ही अंडे से निकाल देती है जिससे वो बड़े रुष्ट होते हैं और सूर्यदेव के सारथि बन जाते हैं। इनके छोटे भाई समय पूरा होने पर अंडे से निकलते हैं जिनका नाम गरुड़ रखा जाता है। ये भगवान श्रीहरि के वाहन बन जाते हैं। अरुण के ही श्येनी से दो पुत्र होते हैं - सम्पाती और जटायु।
सम्पाती
रामायण में हमें सम्पाती एवं जटायु नाम दो पक्षियों का वर्णन मिलता है, जो गिद्ध जाति से सम्बंधित थे। रामायण में इन दोनों का बहुत अधिक वर्णन तो नहीं है किन्तु फिर भी जटायु का वर्णन हमें बहुत प्रमुखता से मिलता है। सम्पाती का वर्णन हमें केवल सीता संधान के समय ही मिलता है, किन्तु फिर भी उनकी कथा बहुत प्रेरणादायक है। आज हम इन दोनों भाइयों में से ज्येष्ठ, सम्पाती के विषय में जानेंगे। अगले लेख में हम उनके छोटे भाई जटायु के विषय में चर्चा करेंगे।
क्या महाराज दशरथ की केवल तीन पत्नियां थी?
भारतीय संस्कृति में महर्षि वाल्मीकि कृत रामायण के जिस रचना ने सर्वाधिक असर छोड़ा है वो गोस्वामी तुलसीदास रचित श्री रामचरितमानस है। हालाँकि तुलसीदास ने अपने ग्रन्थ मानस में कुछ ऐसी घटनाओं को भी जोड़ा है जो मूल वाल्मीकि रामायण में नहीं है। साथ ही कई अन्य घटनाओं को मानस में स्थान नहीं दिया गया है। ऐसी ही एक जानकारी महाराज दशरथ की पत्नियों के विषय में है।