मध्यप्रदेश के खण्डवा जिले में परम पावन नर्मदा नदी के बीच स्थित शिवपुरी द्वीप पर भगवान महादेव का चौथा ज्योतिर्लिगं श्री ॐकारेश्वर स्थित है। शिवद्वीप, जिसे मान्धाता द्वीप भी कहते हैं, उसकी आकृति भी आश्चर्यजनक रूप से ॐ के समान है। इस ज्योतिर्लिंग के साथ-साथ नर्मदा नदी का भी बड़ा महत्त्व है। शास्त्र कहते हैं कि जो फल यमुना में १५ स्नान और गंगा में ७ स्नान करने पर मिलता है वो ॐकारेश्वर महादेव की कृपा से नर्मदा के दर्शन मात्र से मिल जाता है।
इस ज्योतिर्लिंग की महत्ता का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि ये मान्यता है कि भले ही आप चारो धाम की यात्रा कर लें और चाहे कितने ही तीर्थ कर लें, जब तक आप ॐकारेश्वर ज्योतिर्लिंग पर जल नहीं चढ़ाते, तब तक आपको अधूरा पुण्य ही प्राप्त होता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव प्रतिदिन सभी लोकों की परिक्रमा कर यही आकर विश्राम करते हैं। इसी कारण इस मंदिर में प्रत्येक दिन महादेव की विश्राम आरती की जाती है और प्रतिदिन यहाँ तीन बार पूजा की जाती है। स्कन्द पुराण एवं शिव पुराण में ॐकारेश्वर की महिमा का विस्तार से वर्णन किया गया है।
ओम्कारेश्वर में ६८ तीर्थ, ३३ कोटि देवता, १०८ प्रभावशाली शिवलिंग तथा ८४ योजन का विस्तार करने वाली माँ नर्मदा का विराट स्वरुप विद्यमान है जिसके के दर्शन मात्र से समस्त पाप भस्म हो जाते है। अहिल्याबाई होकर ने यहाँ पर १८००० शिवलिंगों का विसर्जन किया था। आज भी यहाँ उतने ही शिवलिंगों के विसर्जन की प्रथा है। यहाँ के गर्भ गृह को बंद ही रखा जाता है और यहाँ के राजपरिवार के द्वारा इसे खोलने की मनाही है। ऐसा माना जाता है कि गर्भगृह में एक विशाल खजाना रखा है।
प्राचीन कथा के अनुसार इक्ष्वाकु कुल में श्रीराम के पूर्वज युवनाश्व के पुत्र मान्धाता हुए जिसे स्वयं देवराज इंद्र ने पाला और शिक्षित किया। जिस समय मान्धाता का जन्म हुआ उस समय समस्त ग्रह उच्च राशि में स्थित थे जिस कारण वे अत्यंत पराक्रमी हुए। आगे चल कर उन्होंने १०० अश्वमेघ यज्ञ किये और चक्रवर्ती सम्राट बने। उन्ही मान्धाता ने भगवान शिव के दर्शन हेतु नर्मदा नदी के तट पर कठोर तपस्या की जिससे महादेव ने उन्हें दर्शन दिए।
वरदान के रूप में मान्धाता ने भगवान शिव से वही रहने की प्रार्थना की जिससे उन्हें प्रतिदिन उनके दर्शन होते रहे। इस प्रकार का वरदान माँगने पर परमपिता ब्रह्मा अत्यंत हर्षित हुए और उनके कंठ से "ॐ" का उच्चारण हुआ और उसी समय भगवान शंकर वहाँ ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हो गए।
ब्रह्मदेव द्वारा ॐकार करने के कारण उनका नाम ॐकारेश्वर महादेव पड़ा। उन्होंने मान्धाता को ये आशीर्वाद भी दिया कि उन्ही के वंश में आगे चल कर भगवान विष्णु अवतार लेंगे। मान्धाता के नाम पर ही इस द्वीप को शिवद्वीप के साथ-साथ मान्धाता द्वीप भी कहा जाता है।
ब्रह्मदेव द्वारा ॐकार करने के कारण उनका नाम ॐकारेश्वर महादेव पड़ा। उन्होंने मान्धाता को ये आशीर्वाद भी दिया कि उन्ही के वंश में आगे चल कर भगवान विष्णु अवतार लेंगे। मान्धाता के नाम पर ही इस द्वीप को शिवद्वीप के साथ-साथ मान्धाता द्वीप भी कहा जाता है।
एक अन्य कथा के अनुसार इसी जगह कुबेर ने महादेव की तपस्या की थी जिससे प्रसन्न होकर उन्होंने कुबेर को यक्षों का अधिपति एवं धन का देवता बना दिया। साथ ही साथ उन्होंने कुबेर को लंका नगरी भी प्रदान की जिसे बाद में रावण ने कुबेर से छीन लिया और तब भगवान रूद्र ने कुबेर को अलकापुरी का स्वामी बना दिया। यही पर महादेव ने अपनी जाता से कावेरी नदी को उत्पन्न किया जो उनकी परिक्रमा करके नर्मदा नदी में मिल गयी। आज भी कावेरी की धारा नर्मदा में मिलती हुई देखी जा सकती है।
ॐकारेश्वर मंदिर के बहरी परिसर में अमलेश्वर (ममलेश्वर) महादेव का मंदिर है और इसे भी ज्योतिर्लिंग ही माना जाता है। ये मंदिर अहिल्याबाई होल्कर के द्वारा बनवाया गया था जिसकी वास्तुकला बेजोड़ है। ॐकारेश्वर महादेव के दर्शनों के बाद अमलेश्वर महादेव के दर्शनों का प्रावधान है। कहते हैं अमलेश्वर महादेव के दर्शनों के बिना ॐकारेश्वर महादेव के दर्शन का फल नहीं मिलता है। ॐकारेश्वर शिवलिंग स्वयंभू है और पूर्ण रूप से प्रकृतिक है। यहाँ की परिक्रमा दो प्रकार की मानी जाती है - बड़ी एवं छोटी जो तीन दिन में पूरी होती है जिसमे अनेक छोटे-बड़े मंदिरों के दर्शन होते हैं।
- पहले दिन: कोटेश्वर, हाटकेश्वर, त्र्यम्बकेश्वर, गायत्रीश्वर, गोविन्देश्वर, सावित्रीश्वर, भूरीश्वर, श्रीकालिका, पंचमुख गणपति, नन्दी, शुकदेव, मान्धांतेश्वर, मनागणेश्वर, श्रीद्वारिकाधीश, नर्मदेश्वर, नर्मदादेवी, महाकालेश्वर, वैद्यनाथेश्वरः, सिद्धेश्वर, रामेश्वर, जालेश्वर, विशल्येश्वर, अन्धकेश्वर, झुमकेश्वर, नवग्रहेश्वर, मारुति, साक्षीगणेश, अन्नपूर्णा, तुलसीजी, अविमुक्तेश्वर, दरियाईनाथ, बटुकभैरव, मंगलेश्वर, नागचन्द्रेश्वर, दत्तात्रेय एवं काले-गोरे भैरव के दर्शन होते हैं।
- दूसरे दिन: गोदन्तेश्वर, खेड़ापति हनुमान, मल्लिकार्जुनः, चन्द्रेश्वर, त्रिलोचनेश्वर, गोपेश्वर, पिशाचमुक्तेश्वर, केदारेश्वर, सावित्री-कुण्ड, यमलार्जुनेश्वर, श्रीरणछोड़जी, ऋणमुक्तेश्वर, हिडिम्बा-संगम तीर्थ, गौरी-सोमनाथ, अन्नपूर्णा, अष्टभुजा, महिषासुरमर्दिनी, सीता-रसोई, आनन्द भैरव, पंचमुख हनुमान, षोडशभुजा दुर्गा, अष्टभुजादेवी, आशापुरी माता, सिद्धनाथ, दशभुजादेवी, अर्जुन तथा भीम की मूर्तियों, भीमाशंकर, कालभैरव, जूने कोटितीर्थ, सूर्यकुण्ड, चौबीस अवतार, पशुपतिनाथ, गयाशिला, एरंडी-संगमतीर्थ, पित्रीश्वर एवं गदाधर-भगवान , कालेश्वर, छप्पनभैरव तथा कल्पान्तभैरव के दर्शन होते हैं।
- तीसरे दिन: इस मान्धाता द्वीप से नर्मदा पार करके इस ओर विष्णुपुरी और ब्रह्मपुरी की यात्रा की जाती है। विष्णुपुरी के पास गोमुख से बराबर जल गिरता रहता है। यह जल जहाँ नर्मदा में गिरता है, उसे कपिला-संगम तीर्थ कहते हैं। गोमुख की धारा गोकर्ण और महाबलेश्वर लिंगों पर गिरती है। यह जल त्रिशूलभेद कुण्ड से आता है जिसे कपिलधारा कहते हैं। वहाँ से इन्द्रेश्वर और व्यासेश्वरका दर्शन करके अमलेश्वर के दर्शन होते हैं।
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