महर्षि पुलह भी अन्य सप्तर्षियों की भांति परमपिता ब्रह्मा के पुत्र एवं १० प्रजापतियों में से एक माने जाते हैं। जिस प्रकार भगवान ब्रह्मा की उत्पत्ति श्रीविष्णु की नाभि से हुई है, ठीक उसी प्रकार महर्षि पुलह का जन्म भी परमपिता ब्रह्मा की नाभि से ही हुआ था। हालाँकि कुछ ग्रंथों में इनकी उत्पत्ति ब्रह्मदेव के मस्तक से भी बताई जाती है। अन्य सप्तर्षियों से अलग महर्षि पुलह विश्व की आध्यात्मिक शक्ति के विकास के लिए सदैव तपस्यारत रहे।
कहा जाता है कि महर्षि पुलह ने भी ब्रह्माण्ड की रचना और विस्तार के लिए अपने पिता भगवान ब्रह्मा की सहायता की थी। यही कारण है कि इन्हे तेज और गुण में स्वयं अपने पिता परमपिता ब्रह्मा की ही भांति माना जाता है। ये ब्रह्मापुत्र प्रजापति ये दक्ष के जमाता भी थे। अन्य ऋषियों और देवताओं की तरह ही प्रजापति दक्ष ने महर्षि पुलह को भी अपनी एक पुत्री 'क्षमा' का दान किया। इनसे इन्हे पीवरी नामक एक पुत्री एवं ३ पुत्र प्राप्त हुए:
- कर्दम
- उर्वरीयान
- कनकपीठ
संयोग की बात है कि इनके दूसरे श्वसुर का नाम भी कर्दम ही था। कई लोग ज्ञान के आभाव में इनके पुत्र और इनके श्वसुर दोनों को एक ही समझ लेते हैं। कई प्रसिद्ध ग्रंथों में भी इसी प्रकार की गलती की गयी है। इस अधूरे ज्ञान के कारण लोग ये प्रश्न भी उठाते हैं कि महर्षि पुलह ने अपने ही पुत्र कर्दम की पुत्री, यानि अपनी पौत्री से किस प्रकार विवाह कर लिया। किन्तु ये बिलकुल ही असत्य वर्णन है। इन्होने जिस कर्दम की पुत्री से विवाह किया था वो भी ब्रह्मा के पुत्र थे और १० प्रजापतियों में उनकी गिनती होती है।
इस कर्दम ऋषि की उत्पत्ति ब्रह्माजी की छाया से हुई मानी जाती है। ब्रह्मा के ही पुत्र स्वम्भू मनु और उनकी पत्नी शतरूपा के दो पुत्र - प्रियव्रत और उत्तानपाद और तीन पुत्रियाँ - आकूति, देवहुति एवं प्रसूति थी। आकूति का विवाह रूचि प्रजापति और प्रसूति का विवाह दक्ष प्रजापति के साथ हुआ। उनकी दूसरी पुत्री देवहुति का विवाह कर्दम ऋषि के साथ हुआ। देवहूति से इन्हे नौ पुत्रियाँ हुई - कला, अनुसूया, श्रद्धा, हविर्भू, गति, क्रिया, ख्याति, अरुन्धती और शान्ति। इसके अतिरिक्त विष्णु अंशावतार कपिल मुनि भी उनके पुत्र हुए। इन्ही की ५वीं कन्या गति के साथ महर्षि पुलह का विवाह हुआ। भागवत पुराण के अनुसार महर्षि पुलह और गति के तीन तेजस्वी पुत्र हुए:
- कर्मश्रेष्ठ
- वरीयमासु
- सहिष्णु
महाभारत के अनुसार किंपुरुष भी इनके ही पुत्र माने जाते हैं। किंपुरुषों का वर्णन ऐसे उप-देवताओं के रूप में किया गया है जिनका मुख अश्व की तरह होता था तथा वे उन्ही के समान तेजस्वी, शक्तिशाली और ऊर्जावान होते थे। उन्ही को आज के समय में किन्नर कहा जाता है। तो अगर इस दृष्टि से देखा जाये तो आज के समस्त किन्नर समाज के पूर्वज भी महर्षि पुलह ही थे।
महर्षि पुलह ने अलकनंदा नदी के तट पर घोर तप किया जिससे इन्हे इंद्र के दर्शन और मित्रता प्राप्त हुई। पांडवों के पूर्वज दुष्यंत पुत्र महाराज भरत ने केवल महर्षि पुलह से ज्ञान प्राप्त करने के लिए अपने समस्त राज्य और वैभव का त्याग कर दिया था। इनके पहले गुरु स्वयं परमपिता ब्रह्मा थे और आगे चलकर इन्होने महर्षि सनन्दन को अपना गुरु बनाया। इनके शिष्यों में देवी अहिल्या के पति महर्षि गौतम प्रमुख हैं। महर्षि गौतम ने ही पुलह से प्राप्त ज्ञान को आगे अपने शिष्यों द्वारा विश्व में फैलाया।
महर्षि पुलह विश्व के कल्याण के लिए सदैव तपस्या में रत रहते हैं। ये भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त माने जाते हैं। इन्होने काशी में महादेव की घोर तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया। जब महादेव ने इनसे वर माँगने को कहा तो उन्होंने उनसे वहाँ स्थित हो जाने की प्रार्थना की। तब भगवान शिव ने प्रसन्न होकर महर्षि पुलह द्वारा बनाये गए शिवलिंग को 'पुलहेश्वर' नाम दिया। वाराणसी शहर से थोड़ी ही दूर ये पवित्र शिवलिंग आज भी स्थित है।
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