वैसे तो श्रीकृष्ण के रूप अनंत हैं और उनके द्वारा प्रदत्त गीता ज्ञान भी अनंत ही है, किन्तु श्रीमद्भगवद्गीता के दसवें अध्याय विभूति योग के श्लोक २० से लेकर श्लोक ४० तक श्रीकृष्ण ने अपनी विभिन्न विभूतियों का वर्णन किया है। यदि केवल विभूतियों की बात की जाये तो श्रीकृष्ण स्वयं कहते हैं "मेरी विभूतियाँ असंख्य हैं, किन्तु मैंने केवल संक्षेप में विभूतियों का वर्णन किया है।" आइये देखते हैं कि श्रीकृष्ण ने स्वयं को किस विभूति में क्या कहा है:
- सृष्टि में आदि, मध्य एवं अंत
- भूतमात्र के हृदय में आत्मा
- आदित्यों में विष्णु (वामन)
- ज्योतियों में अंशुमान (सूर्य)
- मरुतों में तेज (मरीचि)
- नक्षत्रों में चन्द्रमा
- वेदों में सामवेद
- देवों में वासव (इंद्र)
- इन्द्रियों में मन
- भूतों (प्राणियों) में चेतना
- रुद्रों में शंकर
- यक्ष-राक्षसों में कुबेर
- वसुओं में पावक (अग्नि)
- शिखर वाले पर्वतों में सुमेरु
- पुरोहितों में बृहस्पति
- सेनापतियों में स्कन्द (कार्तिकेय)
- जलाशयों में सागर
- महर्षियों में भृगु
- शब्दों में ॐकार
- यज्ञों में जपयज्ञ
- स्थावरों (स्थिर रहने वालों) में हिमालय
- वृक्षों में अश्वथ (पीपल)
- देवर्षियों (दिव्य ऋषियों) में नारद
- गंधर्वों में चित्ररथ
- सिद्धों में कपिल मुनि
- अश्वों (घोड़ों) में उच्चैःश्रवा
- गजों (हाथियों) में ऐरावत
- मनुष्यों में नृप (राजा)
- आयुधों में वज्र
- धेनुओं (गायों) में कामधेनु
- प्रजनन करने वालों में कंदर्प (कामदेव)
- सर्पों में वासुकि
- नागों में शेषनाग
- जलचर अधिपतियों में वरुण
- पितरों में अयर्मा
- शासकों में यमराज
- दैत्यों में प्रह्लाद
- गणना करने वालों में समय
- पशुओं में सिंह
- पक्षियों में गरुड़
- पवित्र करने वालों में वायु
- शस्त्रधारियों में राम
- मछलियों में मकर
- नदियों में गंगा
- सर्गों में आदि, मध्य एवं अंत
- विद्याओं में अध्यात्म विद्या
- शास्त्रार्थ में वाद (तर्क)
- अक्षरों में अकार
- समासों में द्वन्द
- कालों में महाकाल
- विश्वोत्तमुख में धाता
- भक्षकों में मृत्यु
- उत्पत्ति में उद्भव
- स्त्रियों के गुणों में कीर्ति, श्री, वाक्, स्मृति, मेधा, धृति एवं क्षमा
- सामों (स्तोत्रों) में बृहत्साम
- छंदों में गायत्री
- महीनों में मार्गशीर्ष
- ऋतुओं में वसंत
- छल करने वालों में द्यूत (जुआ)
- तेजस्वियों में तेज
- जीतने वालों में विजय
- व्यवसायों में उद्यम
- सात्विक पुरुषों में सत्व
- वृष्णिवंशों में वासुदेव (कृष्ण)
- पांडवों में धनञ्जय (अर्जुन)
- मुनियों में वेदव्यास
- कवियों में उशना (शुक्राचार्य)
- दमन करने वालों में दंड
- विजय चाहने वालों में नीति
- गुह्यों (गोपनीय भावों) में मौन
- ज्ञानवानों में ज्ञान
Krishna aur cousin marriage pr bhi kuch blog likhe apke blog se to prem sa ho gya hai
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