जब भी हम श्रीराम के बारे में सोचते हैं तो हमारे मन में उनकी एक सौम्य और शांतचित्त छवि उभर कर आती है। श्रीराम हिन्दू धर्म के सर्वाधिक संयमी और शांत चरित्रों में से एक हैं, इसी कारण हममे से कई ये समझते हैं कि श्रीराम को कभी क्रोध ही नहीं आया। किन्तु ये सत्य नहीं है। रामायण में ऐसे कई अवसर हैं जब श्रीराम को भी अत्यंत क्रोध आया था।
निःसन्देश श्रीराम स्वाभाव से ही शांत और क्षमाशील थे किन्तु वे एक क्षत्रिय भी थे। सही समय और अवसर पर क्रोध करना भी क्षत्रिय का ही एक लक्षण है। रामायण और विशेषकर महाभारत में हमें ऐसे कई क्षत्रिय मिलते हैं जिन्होंने सही अवसर पर क्रोध कर धर्म की रक्षा की। श्रीराम भी कोई अपवाद नहीं हैं। तो आइये ऐसे कुछ दुर्लभ अवसरों के बारे में जानते हैं जब श्रीराम को क्रोध आया।
- रामचरितमानस के बालकांड में काकभुशुण्डि का वर्णन आता है जब वे बालरूपी श्रीराम की रोटी लेकर उड़ जाते हैं। तब श्रीराम क्रोध में अपनी लीला दिखाते हैं और अपने हाथ को तीनों लोकों में व्याप्त कर लेते हैं, जिसपर काकभुशुण्डि को उनकी वास्तविकता का ज्ञान होता है और वे उनकी शरण में आ जाते हैं।
- जब स्वयंवर में श्रीराम के धनुष भंग करने पर परशुराम क्रोध में वहाँ आते हैं तो श्रीराम अत्यंत विनम्रता से उन्हें शान्त करते हैं। किंतु जब परशुराम उन्हें वैष्णव धनुष पर बाण चढ़ाने को कहते हैं तब श्रीराम तनिक क्रोध में संधान कर कहते हैं कि अब परशुराम बताएं कि वे उस बाण से क्या नष्ट करें - उनकी मन की गति से भ्रमण की शक्ति अथवा उनके पुण्य से अर्जित लोकों को। तब परशुरामजी उनसे पुण्यलोक को नष्ट करने को कहते हैं।
- जब श्रीराम तड़का का वध करने से हिचकिचाते हैं तब विश्वामित्र उन्हें कहते हैं कि वे तड़का को स्त्री समझ कर दया का पात्र ना समझें क्योंकि वो एक राक्षसी है। तब श्रीराम क्रोध में आकर एक ही बाण से तड़का का वध कर देते हैं।
- ऐसा ही क्रोध वे तड़का के पुत्र मारीच के दलन एवं सुबाहु के वध के समय करते हैं।
- अहिल्या के उद्धार के समय भी श्रीराम का इंद्र पर क्रोध करने का वर्णन है।
- जब शूर्पणखा माता सीता के साथ दुर्व्यवहार करती है वो श्रीराम के ही क्रोधित हो आज्ञा देने पर लक्ष्मण उसे दंड देते हैं।
- जब खर-दूषण उनपर आक्रमण करते हैं तब श्रीराम अत्यंत क्रोध में आकर अकेले ही केवल एक प्रहर (३ घंटे) में खर दूषण सहित उनके २४००० योद्धाओं का वध कर देते हैं।
- जब इंद्रपुत्र जयंत माता सीता का निरादर कर भागता है तब श्रीराम अत्यंत क्रोधित हो उसपर ब्रह्मास्त्र चलाते हैं। बाद में जयंत और इंद्र के क्षमा मांगने पर वे केवल जयंत का बायां नेत्र भंग कर उसे जाने देते हैं।
- जब सुग्रीव उन्हें स्वयं पर हुए अपमान के विषय मे बताते हैं तब श्रीराम अत्यंत क्रोधित हो कहते हैं कि पुत्री समान अपने छोटे भाई की पत्नी को बलात हस्तगत करने के कारण बाली निश्चय ही मरण योग्य है।
- बाली पर प्रहार के पश्चात जब वो श्रीराम पर कटाक्ष करता है कि उन्होंने उसे छल से मारा, तब भी श्रीराम क्रोध में उससे यही बात कहते हैं।
- जब सुग्रीव अपना वचन भूल भोग विलास में लिप्त हो जाता है तब श्रीराम क्रोधित हो लक्ष्मण को उसे चेताने किष्किंधा भेजते हैं और कहते हैं कि वो सुग्रीव को सूचित कर दे कि बाली के प्राण लेने वाला बाण अभी भी उनके तरकश में है और साथ ही वो मार्ग भी बंद नहीं हुआ जिससे बाली स्वर्ग को गया है।
- समुद्र को लांघने के प्रयास में श्रीराम दो दिनों तक समुद्र देव से प्रार्थना करते हैं किंतु जब वो मार्ग नही देता तो वे अत्यंत क्रोधित हो समुद्र को सुखा देने हेतु बाण का संधान करते हैं। तब लक्ष्मण उन्हें समझा बुझा कर शांत करते हैं और फिर समुद्र देवता क्षमा मांग कर उन्हें सेतु बनाने का सुझाव देते हैं।
- वाल्मीकि रामायण में ऐसा वर्णन है कि जब रावण अपने प्रचंड पराक्रम से वानरों का नाश करता है तब श्रीराम क्रोधित हो कहते हैं कि "यही उचित होता कि इसका वध मैंने प्रथम दिन ही कर दिया होता।" इससे पहले श्रीराम ने एक बार रावण को युद्ध मे परास्त कर जीवित छोड़ दिया था।
- जब महर्षि दुर्वासा श्रीराम के पास भोजन करने आते हैं तब वे इंद्र से कल्पवृक्ष की मांग करते हैं। किंतु जब इंद्र को विलंब होता है तो वे क्रोधित हो अपने बाण द्वारा एक संदेश इंद्र को भेजते हैं। तब भयभीत होकर इंद्र तत्काल कल्पवृक्ष को श्रीराम के पास भेज देते हैं।
ये सब कुछ उदाहरण हैं जहाँ श्रीराम को क्रोध आया किन्तु इनमें से भी दो अवसर ऐसे थे जहाँ श्रीराम को अत्यधिक क्रोध आया। एक तो समुद्र द्वारा मार्ग ना देने पर एवं दूसरा जयंत द्वारा माता सीता के अपमान पर। हालांकि श्रीराम को क्रोध बहुत कम आता था और वे बहुत जल्दी शांत भी हो जाते थे। इसीलिए उन्हें क्रोध को जीतने वाला भी बताया गया है।
जय श्रीराम।
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