हिन्दू धर्म में अनेकानेक अस्त्र-शस्त्र प्रसिद्ध हैं। सभी अस्त्र-शस्त्रों में जो सबसे अधिक उपयोग किया जाता था वो था धनुष और बाण। हमारे ग्रंथों में ऐसे कई दिव्य धनुषों का वर्णन है जो समय-समय पर अलग-अलग योद्धाओं के पास था। इनमें से कुछ के बारे में तो आपने भी सुना होगा। चलिए इसके विषय में संक्षेप में जानते हैं।
पुराणों में वर्णित सबसे शक्तिशाली धनुष
हिन्दू धर्म में अनेकानेक अस्त्र-शस्त्र प्रसिद्ध हैं। सभी अस्त्र-शस्त्रों में जो सबसे अधिक उपयोग किया जाता था वो था धनुष और बाण। हमारे ग्रंथों में ऐसे कई दिव्य धनुषों का वर्णन है जो समय-समय पर अलग-अलग योद्धाओं के पास था। इनमें से कुछ के बारे में तो आपने भी सुना होगा। चलिए इसके विषय में संक्षेप में जानते हैं।
श्रीराम को कब-कब क्रोध आया?
जब भी हम श्रीराम के बारे में सोचते हैं तो हमारे मन में उनकी एक सौम्य और शांतचित्त छवि उभर कर आती है। श्रीराम हिन्दू धर्म के सर्वाधिक संयमी और शांत चरित्रों में से एक हैं, इसी कारण हममे से कई ये समझते हैं कि श्रीराम को कभी क्रोध ही नहीं आया। किन्तु ये सत्य नहीं है। रामायण में ऐसे कई अवसर हैं जब श्रीराम को भी अत्यंत क्रोध आया था।
भगवान विष्णु के १०८ नाम
वैसे तो भगवान विष्णु के नाम अनंत हैं किन्तु विष्णु पुराण में उनके १००८ मुख्य नामों का वर्णन है जिसे हम "विष्णु सहत्रनाम" कहते हैं। उन १००८ नामों में भी १०८ नाम प्रमुख बताये गए हैं। कहा जाता है कि जो कोई भी श्रीहरि के इन नामों का वाचन, श्रवण अथवा स्मरण करता है, उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। आइये उन नामों और उनके मन्त्रों को जानते हैं।
- विष्णु: ऊँ श्री विष्णवे नम:
"पूत कपूत हो सकता है लेकिन माता कभी कुमाता नहीं हो सकती" - देव्यपराध क्षमापन स्तोत्र
कलियुग में कुछ चीजें ऐसी हैं जो बहुत प्रसिद्ध और प्रामाणिक हैं। प्रामाणिक इस कारण से हैं क्यूंकि इस युग में भी वो द्वापर, त्रेता और यहाँ तक कि सतयुग के भाव का आभास कराती हैं। माता के विषय में हमारे धर्म ग्रंथों में जितना लिखा गया है उतना कदाचित किसी और पर नहीं लिखा गया है। कहा जाता है कि माता के वश में तो स्वयं नारायण रहते हैं।
विश्वामित्र और परशुराम में क्या सम्बन्ध था?
महर्षि विश्वामित्र और भगवान परशुराम के विषय में कौन नहीं जानता? किन्तु क्या आपको पता है कि ये दोनों आपस में सम्बन्धी भी थे? क्या आपको पता है कि इन दोनों में कौन बड़े थे? यदि आपने भगवान परशुराम पर लिखे गए हमारे लेख को पढ़ा होगा तो आपको पता होगा कि इन दोनों में क्या सम्बन्ध था। आइये इस विषय में कुछ जानते हैं।
रावण की आयु कितनी थी?
रामायण के सन्दर्भ में जो सबसे अधिक पूछे जाने वाले प्रश्नों में से एक है वो है कि मृत्यु के समय रावण की आयु कितनी थी? इसको समझने के लिए हमें बहुत पीछे जाना होगा क्योंकि समय की जिस गणना की बात हम कर रहे हैं उसे आज का विज्ञान नही समझ सकता। पहली बात तो ये कि जब कोई कहता है कि रामायण १४००० वर्ष पहले की कथा है तो ये याद रखिये कि ये वैज्ञानिकों ने आधुनिक गणना के अनुसार माना है। अगर वैदिक गणना की बात करें तो रामायण का काल खंड बहुत पहले का है। परमपिता ब्रह्मा की आयु और युग वर्णन के बारे में जानने के लिए यहाँ जाएँ।
श्रीमद्भवद्गीता के अनुसार श्रीकृष्ण की सभी विभूतियाँ
वैसे तो श्रीकृष्ण के रूप अनंत हैं और उनके द्वारा प्रदत्त गीता ज्ञान भी अनंत ही है, किन्तु श्रीमद्भगवद्गीता के दसवें अध्याय विभूति योग के श्लोक २० से लेकर श्लोक ४० तक श्रीकृष्ण ने अपनी विभिन्न विभूतियों का वर्णन किया है। यदि केवल विभूतियों की बात की जाये तो श्रीकृष्ण स्वयं कहते हैं "मेरी विभूतियाँ असंख्य हैं, किन्तु मैंने केवल संक्षेप में विभूतियों का वर्णन किया है।" आइये देखते हैं कि श्रीकृष्ण ने स्वयं को किस विभूति में क्या कहा है:
- सृष्टि में आदि, मध्य एवं अंत
- भूतमात्र के हृदय में आत्मा
दीपावली क्यों मनाई जाती है?
आप सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें। हर वर्ष दीपावली हमारे जीवन में हर्षोल्लास लेकर आती है, आशा है इस वर्ष भी ऐसा ही हो। वैसे तो ना केवल भारत में, बल्कि अनेक देशों में भी दिवाली का सांस्कृतिक महत्त्व बहुत अधिक है किन्तु आज हम इस पर्व के धार्मिक महत्त्व को जानेंगे। आइये उन कुछ विशेष कारणों को देखते हैं जिनके कारण दीपावली का पर्व मनाया जाता है।
संवत्सर (संवत) क्या और कितने हैं?
यदि आपने महाराज विक्रमादित्य पर प्रकाशित हमारा लेख पढ़ा होगा तो आपने विक्रम सम्वत के विषय में भी अवश्य पढ़ा होगा। किन्तु विक्रम संवत ही केवल एक संवत्सर नहीं है। हमारे धर्म में कई संवत्सरों का वर्णन है। इस लेख में हम जानेंगे कि संवत्सर वास्तव में है क्या और हिन्दू धर्म में कुल कितने संवत्सर हैं।
हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को समुद्र में कैसे छिपा दिया था?
श्री विष्णु पुराण में वर्णित भगवान विष्णु के दशावतार में तीसरे हैं भगवान वाराह। इस अवतार में इन्होने हिरण्यकशिपु के छोटे भाई हिरण्याक्ष का वध कर पृथ्वी का उद्धार किया था। इस अवतार में जो सबसे भ्रामक बात जन-मानस में फैली है वो ये है कि हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को समुद्र में छिपा दिया था। किन्तु ये कैसे संभव है? समुद्र तो पृथ्वी पर ही होता है, फिर पृथ्वी को समुद्र में छिपा देना कैसे संभव है? तो आइये इस घटना के पीछे छिपे सत्य को समझने का प्रयास करते हैं।
ईश्वर के विस्तार (रूप) एवं अवतार में क्या अंतर है?
आने वाले कुछ समय में हम त्रिदेवियों एवं अन्य देवताओं के अवतारों के विषय में कुछ लेख प्रकाशित करने वाले हैं। किन्तु उससे पहले हमने सोचा कि हमें ईश्वर के "अवतार" एवं "विस्तार" में अंतर पता होना अत्यंत आवश्यक है। विस्तार को ही "रूप" भी कहते हैं। आम तौर पर हम ईश्वर के रूप और अवतार को एक ही समझते हैं किन्तु ऐसा नहीं है। इन दोनों में अंतर है और इसे पूरी तरह समझे बिना हम इनके बीच उलझ सकते हैं। तो आइये इसे समझते हैं।
महालया
सर्वप्रथम आप सभी महालया पर्व की हार्दिक शुभकामनायें। कल से महालया आरम्भ हो गया है। महालया उत्तर भारत, विशेष कर बंगाल का एक अति महत्वपूर्ण पर्व है। ये एक संस्कृत शब्द है जो "महा+आलय" से मिलकर बना है, जिसका अर्थ होता है "महान आवास"। ये पर्व हर पितृ पक्ष समाप्त होने के अगली अमास्या को पड़ता है और इसी दिन के साथ दुर्गा पूजा एवं नवरात्रि का आरम्भ माना जाता है। महालया के अगले दिन ही नवदुर्गा के पहले रूप माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है।
सभी उपनिषदों की सूची
हिन्दू धर्म में उपनिषदों का बड़ा महत्त्व है। महर्षि वेदव्यास ने महाभारत और महापुराणों के अतिरिक्त उपनिषदों की भी रचना की। बाद में चलकर अदि शंकराचार्य ने सभी उपनिषदों पर भाष्य लिखे। सभी उपनिषद चारों वेद एवं किसी पंथ एवं संप्रदाय से सम्बंधित हैं। मूल उपनिषदों की संख्या १० मानी गयी है किन्तु इनके अतिरिक्त भी कई उपनिषद हैं जिनकी कुल संख्या १०८ है। आइये जानते हैं कि उन सभी के नाम क्या हैं और वे किस वेद एवं पंथ/समुदाय से सम्बंधित हैं।
संस्कृत भाषा का चमत्कार
कुछ समय पहले मुझे एक जानकारी प्राप्त हुई थी जिसमें संस्कृत भाषा का अद्भुत प्रयोग किया गया था। इसमें एक शब्द को विस्तारित कर विभिन्न चरित्रों के साथ जोड़ा गया था। मैंने सोचा कि इसे आप सभी के साथ साझा करना आवश्यक है ताकि हम सभी संस्कृत भाषा के अद्भुत उपयोग को देख सकें। ऐसा प्रयोग संसार की किसी भी अन्य भाषा के साथ करना असंभव है। आप स्वयं देखिये।
केवल भगवान विष्णु के साथ ही "श्री" क्यों लगाया जाता है?
आप सभी ने ये ध्यान दिया होगा कि जब भी हम भगवान विष्णु और उनके अवतारों के विषय में बात करते हैं तो हम उनके आगे "श्री" शब्द लगाते हैं, जैसे श्रीहरि, श्रीराम, श्रीकृष्ण इत्यादि। किन्तु ऐसा हम भगवान ब्रह्मा, महादेव अथवा अन्य देवताओं के साथ नहीं करते। तो क्या इसका अर्थ ये है कि श्री बोल कर भगवान विष्णु को सम्मान दिया जाता है और अन्य देवताओं को नहीं? ऐसा बिलकुल भी नहीं है। आइये इसे समझते हैं।
रावण का परिवार
रावण के विषय में तो हम सभी जानते ही हैं, किन्तु रावण के परिवार के विषय में बहुत लोगों को अधिक जानकारी नहीं है। आज इस लेख में हम संक्षेप में रावण के परिवार के विषय में जानेंगे। ध्यान दें कि यहाँ केवल रावण के व्यक्तिगत परिवार का विवरण दिया जा रहा है। सम्पूर्ण राक्षस वंश के विषय में एक लेख हमने पहले ही प्रकाशित किया है जिसे आप यहाँ पढ़ सकते हैं।
हिन्दू धर्म के कुछ महान दानवीर
हिन्दू धर्म में दान का बहुत अधिक महत्त्व बताया गया है। जब भी हम दानवीरता की बात करते हैं तो हमारे मष्तिष्क में सहसा अंगराज कर्ण की तस्वीर बनती है। वे निःसंदेह दानवीर थे किन्तु हमारा हिन्दू धर्म तो दानवीरों से भरा पड़ा है। वैसे तो इतिहास में एक से बढ़ कर एक दानवीर हुए हैं किंतु कुछ दानवीर ऐसे हैं जिन्होंने दान की हर सीमा को पार कर दिया इसीलिए इनकी श्रेणी अन्य दानवीरों की अपेक्षा अलग ही बन गयी। आइये ऐसे ही कुछ दानवीरों के विषय में जानते हैं:
महाभारत के योद्धाओं की आयु कितनी थी?
कौरवों और पांडवों की आयु के विषय मे बहुत संशय है। इसका कारण ये है कि मूल व्यास महाभारत में पांडवों या कौरवों की आयु का कोई सटीक विवरण नही दिया गया है। यदि अन्य ग्रंथों की बात की जाए तो भी उनमें दी गयी जानकारियों में बहुत असमानता दिखती है। कही कहा गया है कि युद्ध के समय युधिष्ठिर ९१ वर्ष के थे, कही ये आयु ४९ वर्ष की बताई गई है तो कहीं कुछ और। कहने का अर्थ ये है कि कोई भी सटीक रूप से इनकी आयु के बारे में नहीं बता सकता। यदि कोई ये कहता है कि उसे पांडवों अथवा कौरवों की सटीक आयु के विषय में पता है तो वो निश्चय ही असत्य कह रहा है।
ऐसे कौन से पात्र हैं जो रामायण और महाभारत दोनों में पाए जाते हैं?
रामायण और महाभारत के बीच का कालखंड कितना कितना बड़ा है ये हम सभी जानते हैं। रामायण त्रेतायुग में और महाभारत द्वापर युग में हुआ बताया जाता है। पुराणों के अनुसार त्रेतायुग ३६०० दिव्य वर्षों एवं द्वापर युग २४०० दिव्य वर्षों का होता है। पौराणिक काल गणना के अनुसार चतुर्युगी व्यवस्था बनाई गयी है। किन्तु कई पौराणिक चरित्र ऐसे हैं जिन्होंने बहुत लम्बी आयु प्राप्त की और रामायण और महाभारत, दोनों काल में उपस्थित रहे। आज हम ऐसे ही कुछ महापुरुषों के विषय में जानेंगे।
क्या पांडवों के अतिरिक्त कर्ण का कोई और भाई था?
महारथी कर्ण के विषय में तो हम सभी जानते हैं। महाभारत में कदाचित सबसे संघर्षपूर्ण जीवन उन्ही का रहा है। स्वयं भगवान सूर्य नारायण के पुत्र होते हुए भी उन्हें सदैव सूतपुत्र की भांति जीना पड़ा। जहाँ एक ओर उनकी माता कुंती के पांचों पुत्र सम्मान और सुविधा के साथ जी रहे थे, कर्ण, कुंती के ज्येष्ठ पुत्र होते हुए भी उपेक्षित ही रहे। बचपन में कुंती द्वारा त्यागे जाने के बाद धृतराष्ट्र के सारथि अधिरथ और उनकी पत्नी राधा ने उन्हें गोद ले लिया और वे "राधेय" के नाम से प्रसिद्ध हुए।
महावीर हनुमान को "बजरंग" क्यों कहते हैं?
"बजरंग बली की जय" - ये जयकारा आपको किसी भी हनुमान मंदिर में सबसे अधिक सुनने को मिल जाता है। जितना प्रसिद्ध उनका "हनुमान" नाम है, उतना ही प्रसिद्ध उनका एक नाम बजरंग बली भी है। उनके नाम "हनुमान का इतिहास तो हम जानते हैं, किन्तु क्या आप ये जानते हैं कि उन्हें "बजरंग" क्यों बुलाते हैं? मजेदार बात ये है कि आज शब्द "बजरंग", जो हमारी संस्कृति में घुल मिल गया है, वास्तव में मूल संस्कृत शब्द का अपभ्रंश है।
क्या श्रीराम का पिनाक को भंग करना उचित था?
माता सीता के स्वयंवर के विषय में हम सभी जानते हैं। इसी स्वयंवर में श्रीराम ने उस पिनाक को सहज ही उठा कर तोड़ डाला जिसे वहाँ उपस्थित समस्त योद्धा मिल कर हिला भी ना सके। हालाँकि कई लोग ये पूछते हैं कि श्रीराम ने धनुष उठा कर स्वयंवर की शर्त तो पूरी कर ही दी थी, फिर उस धनुष को भंग करने की क्या आवश्यकता थी?
क्या महर्षि वाल्मीकि शूद्र वर्ण से थे?
आज समाज जात-पात में बंटा हुआ है जिसमें कोई दो राय नहीं है। हालाँकि यदि हिन्दू धर्म को आधार माना जाये तो इसमें जाति नाम की कोई चीज ही नहीं होती थी। हिन्दू धर्म में सदैव वर्ण व्यवस्था का विधान है, जाति व्यवस्था का नहीं। समय के साथ-साथ ये वर्ण व्यवस्था कब जाति व्यवस्था में बदल गयी, किसी को पता नहीं। अन्यथा प्राचीन वर्ण व्यवस्था में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्रों को समान अधिकार प्राप्त हैं। वर्ण और जाति के भेद को बताने के लिए हमने एक लेख पहले ही धर्म संसार पर प्रकाशित किया है जिसे आप यहाँ पढ़ सकते हैं।
जटायु
पिछले लेख में आपने गृद्धराज सम्पाती के विषय में पढ़ा था। जटायु इन्ही सम्पाती के छोटे भाई थे। महर्षि कश्यप और विनता के ज्येष्ठ पुत्र अरुण इनके पिता थे। इनकी माता का नाम श्येनी था। पिछले लेख में आपने पढ़ा कि किस प्रकार विनता अपने बड़े पुत्र अरुण को समय से पहले ही अंडे से निकाल देती है जिससे वो बड़े रुष्ट होते हैं और सूर्यदेव के सारथि बन जाते हैं। इनके छोटे भाई समय पूरा होने पर अंडे से निकलते हैं जिनका नाम गरुड़ रखा जाता है। ये भगवान श्रीहरि के वाहन बन जाते हैं। अरुण के ही श्येनी से दो पुत्र होते हैं - सम्पाती और जटायु।
सम्पाती
रामायण में हमें सम्पाती एवं जटायु नाम दो पक्षियों का वर्णन मिलता है, जो गिद्ध जाति से सम्बंधित थे। रामायण में इन दोनों का बहुत अधिक वर्णन तो नहीं है किन्तु फिर भी जटायु का वर्णन हमें बहुत प्रमुखता से मिलता है। सम्पाती का वर्णन हमें केवल सीता संधान के समय ही मिलता है, किन्तु फिर भी उनकी कथा बहुत प्रेरणादायक है। आज हम इन दोनों भाइयों में से ज्येष्ठ, सम्पाती के विषय में जानेंगे। अगले लेख में हम उनके छोटे भाई जटायु के विषय में चर्चा करेंगे।
क्या महाराज दशरथ की केवल तीन पत्नियां थी?
भारतीय संस्कृति में महर्षि वाल्मीकि कृत रामायण के जिस रचना ने सर्वाधिक असर छोड़ा है वो गोस्वामी तुलसीदास रचित श्री रामचरितमानस है। हालाँकि तुलसीदास ने अपने ग्रन्थ मानस में कुछ ऐसी घटनाओं को भी जोड़ा है जो मूल वाल्मीकि रामायण में नहीं है। साथ ही कई अन्य घटनाओं को मानस में स्थान नहीं दिया गया है। ऐसी ही एक जानकारी महाराज दशरथ की पत्नियों के विषय में है।
द्रौपदी
पूर्व काल में एक ऋषि थे मुद्गल। उनका विवाह इन्द्रसेना नामक कन्या से हुआ जो बाद में अपने पति के नाम से मुद्गलनी भी कहलायी। दुर्भाग्य से मुद्गल की मृत्यु विवाह के तुरंत बाद हो गयी। तब इंद्रसेना को अपने पति के जाने का अपार दुःख हुआ किन्तु उसे इस बात का भी दुःख हुआ कि वो अपने वैवाहिक जीवन का भोग नहीं कर सकी। इसी कारण उसने भगवान शंकर की घोर आराधना की। जब महादेव प्रसन्न हुए तो इन्द्रसेना ने उनसे ये वर माँगा कि अगले जन्म में उसे एक ऐसा पति चाहिए जो धर्म का ज्ञाता हो, अपार बलशाली हो, सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर हो, संसार में सर्वाधिक सुन्दर हो एवं जिसके सहनशीलता की कोई सीमा ना हो।
कुंती
ये पंचकन्या श्रृंखला का चौथा लेख है। इससे पहले मंदोदरी, अहिल्या एवं तारा पर लेख प्रकाशित हो चुके हैं। इस लेख में हम चौथी पंचकन्या कुंती के बारे में जानेंगे। यदुकुल में एक प्रतापी राजा हुए शूरसेन। उनकी पत्नी का नाम था मरिषा जो नाग कुल की थी। शूरसेन के एक फुफेरे भाई थे कुन्तिभोज जो कुंती प्रदेश के स्वामी थे। वे निःसंतान थे इसी कारण शूरसेन ने ये प्रतिज्ञा की कि अपनी पहली संतान को वो कुन्तिभोज को प्रदान करेंगे। शूरसेन की पहली संतान एक पुत्री हुए जिनका नाम था "पृथा"। प्रण के अनुसार शूरसेन ने पृथा को कुन्तिभोज को दे दिया। इस प्रकार पृथा कुन्तिभोज की दत्तक पुत्री कहलाई और आगे चल कर उन्ही के नाम पर उनका नाम "कुंती" पड़ा।
मंदोदरी
मंदोदरी मय दानव और हेमा नामक अप्सरा की पुत्री और रावण की पट्टमहिषी थी। इन्हे पञ्चसतियों में से एक माना जाता है। मय और हेमा के दो पुत्र भी थे - दुदुम्भी और मायावी। मंदोदरी के ये दोनों पुत्र वानरराज बाली के हाथों मारे गए। कई ग्रंथों का कहना है कि मय दानव केवल इनके दत्तक पिता थे और मय और हेमा ने केवल मंदोदरी का पालन पोषण किया। इस विषय में मंदोदरी के पूर्वजन्म की एक बड़ी अनोखी कथा है।
तारा
ये पञ्चसती श्रृंखला का तीसरा लेख है। इससे पहले हमने मंदोदरी एवं अहिल्या पर लेख प्रकाशित किया था, आशा है आपको पसंद आया होगा। आज इस लेख में हम वानरराज बाली की पत्नी तारा के विषय में जानेंगे। तारा के जन्म के विषय में हमें दो अलग जानकारियां प्राप्त होती है। एक कथा के अनुसार तारा देवगुरु बृहस्पति की पुत्री थी। ये बहुत बड़ा संयोग है कि बृहस्पति की पत्नी का नाम भी तारा ही था। हालाँकि ये मान्यता अधिक प्रसिद्ध नहीं है।
अहिल्या
देवी अहिल्या हिन्दू धर्म की सर्वाधिक सम्मानित महिलाओं में से एक है जिन्हे पञ्चसतियों में स्थान दिया गया है। अन्य चार हैं - मंदोदरी, तारा, कुंती एवं द्रौपदी। अहिल्या महर्षि गौतम की पत्नी थी और देवराज इंद्र के छल के कारण उन्होंने सदियों तक पाषाण बने रहने का दुःख भोगा। बहुत काल के बाद जब श्रीराम महर्षि विश्वामित्र के साथ गौतम ऋषि के आश्रम मे पधारे तब उन्होंने पाषाण रूपी अहिल्या का उद्धार किया।
महाराज विक्रमादित्य
भारतीय इतिहास में कुछ ऐसे महान सम्राट हुए हैं जिन्होंने अपनी वीरता और न्यायप्रियता से इतिहास पर अपनी एक अमिट छाप छोड़ी है। महाराज विक्रमादित्य उन्ही महान राजाओं में से एक हैं। हिन्दू धर्म में नव वर्ष का आरम्भ विक्रम सम्वत के आधार पर ही किया जाता है और ये विक्रम सम्वत महाराज विक्रमादित्य के नाम से ही आरम्भ हुआ। बच्चों में जो बेताल पच्चीसी एवं सिंहासन बत्तीसी कथाएं प्रसिद्ध हैं उसका सम्बन्ध भी महाराज विक्रमादित्य से ही है। यही नहीं उन्हें आधुनिक काल का अंतिम चक्रवर्ती सम्राट भी माना जाता है। आइये इनके विषय में कुछ जानते हैं।
गांधार राज सुबल
महाराज सुबल गांधार के राजा थे और शकुनि एवं गांधारी के पिता थे। उन्हें गांधार के सबसे प्रसिद्ध एवं न्याय प्रिय राजाओं में से एक माना जाता है। सुबल का विवाह सुधर्मा नामक राजकुमारी से हुआ जिनसे उन्हें पाँच पुत्र एवं एक पुत्री की प्राप्ति हुई। हालाँकि इन पुत्र-पुत्रियों का वर्णन महाभारत और अन्य ग्रंथों में अलग-अलग है। महाभारत में सुबल का बहुत अधिक वर्णन नहीं दिया गया है किन्तु महाभारत पर आधारित कुछ अन्य ग्रंथों में सुबल के जीवन का कुछ विस्तार देखने को मिलता है।
श्री कष्टभंजन हनुमान
गुजरात के बोटाद जिले में भावनगर के पास एक गाँव सारंगपुर की सबसे बड़ी विशेषता यहाँ पर स्थति श्री कष्टभंजन हनुमान का मंदिर है। इन्हे सारंगपुर का सम्राट माना जाता है और लोग इन्हे "बड़े हनुमानजी" एवं "महाराजाधिराज" के नाम से भी जानते हैं। इस सुन्दर मंदिर में हनुमान जी एक स्वर्ण सिंहासन पर विद्यमान रहते हैं। हालाँकि उनका ये रूप उनके आम साधारण रूप से थोड़ा अलग है। स्वर्ण मंदिर में, स्वर्ण गदा धारण किये हुए कष्टभंजन हनुमान प्रत्येक दिन श्रृंगार के बाद बहुत मनोहारी लगते हैं।
युवनाश्व - श्रीराम के वो पूर्वज जिन्होंने पुरुष होते हुए भी गर्भ धारण किया
आज के आधुनिक युग में हम नए नए अविष्कार कर रहे हैं। विगत कुछ वर्षों से ये बात सिद्ध हो चुकी है कि ऐसी कई/अधिकतर चीजें जो आज हम बना रहे हैं, उसका वर्णन हमारे धर्म ग्रंथों में पहले ही दे दिया गया था। ये इस बात को सिद्ध करता है कि सनातन हिन्दू धर्म ना केवल अति-प्राचीन है अपितु बहुत वैज्ञानिक भी। आज हम जो सेरोगेसी की बात करते हैं वो सदियों पहले महाभारत में वर्णित था। उसी प्रकर आज के वैज्ञानिक इस बात पर भी शोध कर रहे हैं कि क्या पुरुष कृत्रिम रूप से गर्भ धारण कर सकते हैं? आज की ये कथा इसी बात का उत्तर है।
महाकुंभ
हम सभी जानते हैं कि वर्तमान में हरिद्वार में कुंभ पर्व मनाया जा रहा है।सत्य सनातन धर्म में कुंभ पर्व बहुत ही महत्वपूर्ण पर्व है। पुराणों के अनुसार हिमालय के उत्तर में क्षीरसागर है, जहां देवासुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया था। मंथन दंड था- मंदर पर्वत, रज्जु था वासुकि तथा स्वयं विष्णु ने कूर्म रूप में मंदर को पीठ पर धारण किया था। समुद्र मंथन के समय क्रमश: पुष्पक रथ, ऐरावत, परिजात पुष्प, कौस्तुभ, सुरभि, अंत में अमृत कुंभ को लेकर स्वयं धन्वंतरि प्रकट हुए थे।
श्री कुक्के सुब्रमण्य
जब आप कर्णाटक के मैंगलोर जिले के सुल्लिया तालुका में पहुँचते हैं तो जो सबसे प्रसिद्ध नाम आपको सुनाई देता है वो है सुब्रमण्यम नामक गाँव का। वो इस कारण कि इस गाँव में श्री कुक्के सुब्रमण्य का दर्शनीय मंदिर स्थित है। ना केवल आस पास के इलाकों में अपितु पूरे कर्णाटक में ये स्थान सर्प दोषों के निवारण हेतु सबसे उत्तम स्थान माना जाता है। नाग वैसे ही हिन्दू धर्म में अपना अलग स्थान रखते हैं और उनके प्रति समर्पित होने के कारण ही इस मंदिर की अपनी एक अलग विशेषता है।
भगवान शिव की बारात
आप सभी को महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकमाएँ। आज इस अवसर पर हम भगवान शिव की अनूठी बारात के विषय में चर्चा करेंगे जिसका विस्तृत वर्णन श्री रामचरितमानस में दिया गया है। हमारे पौराणिक ग्रंथों में अनेकानेक देवी-देवताओं के विवाह का वर्णन है किन्तु जैसी भव्य बारात का वर्णन वर्णन भगवान शंकर और माता पार्वती के विवाह के सन्दर्भ में दिया गया है उसकी कोई तुलना नहीं है।
परमपिता ब्रह्मा के मानस पुत्र
ये तो हम सभी जानते हैं कि परमपिता ब्रह्मा से ही इस सारी सृष्टि का आरम्भ हुआ। सर्वप्रथम ब्रह्मा ने पृथ्वी सहित सारी सृष्टि की रचना की। तत्पश्चात उन्होंने जीव रचना के विषय में सोचा और तब उन्होंने अपने शरीर से कुल ५९ पुत्र उत्पन्न किये। इन ५९ पुत्रों में उन्होंने सर्वप्रथम जो १६ पुत्र अपनी इच्छा से उत्पन्न किये वे सभी "मानस पुत्र" कहलाये। इन १६ मानस पुत्रों में १० "प्रजापति" एवं उनमें से ७ "सप्तर्षि" के पद पर आसीन हुए। ये सभी मानस पुत्र ब्रह्मा के अन्य पुत्रों से अधिक प्रसिद्ध हैं। पुराणों में इन्हे "साम ब्रह्मा", अर्थात ब्रह्मा के सामान कहा गया है।
रामायण का प्रथम श्लोक
रामायण के रचनाकार प्रचेता पुत्र महर्षि वाल्मीकि को आदि कवि भी कहा जाता है। वो इस कारण कि काव्य का जैसा प्रस्फुटन रामायण में देखने को मिला, वैसा उससे पहले कभी देखने को नहीं मिला था। इसी कारण रामायण को पहला महाकाव्य कहा जाता है। रामायण के बाद महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित महाभारत ही उस स्तर का महाकाव्य बना किन्तु फिर भी रामायण जितना भावनात्मक है, कदाचित महभारत में भी वैसा भाव देखने को नहीं मिलता।
जाति एवं वर्ण में अंतर
"समाज से जाति भेद को मिटाना आवश्यक है" या "हिन्दू समाज कई जातियों में बटा है" - इस प्रकार की बातें हमें प्रतिदिन सुनने को मिल ही जाती है। आपमें से यदि कोई सोच रहा हो कि आज अचानक धर्म संसार पर राजनितिक बातें कैसे होने लगी, तो आप गलत समझ रहे हैं। आज हम कुछ ऐसा समझने का प्रयास करने वाले हैं जो शुद्ध रूप से सनातन हिन्दू धर्म का आधार है, किन्तु दुर्भाग्यवश उसे तोड़-मरोड़ कर ऐसा रूप दे दिया गया है जिससे समाज में मतभेद उत्पन्न हो गए हैं।
वाल्मीकि रामायण एवं रामचरितमानस में अंतर
महर्षि वाल्मीकि ने युगों पहले मूल रामायण की रचना की थी जिसमें भगवान विष्णु के ७वें अवतार श्रीराम की लीलाओं का वर्णन है। कालांतर में वाल्मीकि रामायण के अनेक भाषाओं में कई संस्करणों (३०० से भी अधिक) की रचना की गयी किन्तु जो प्रसिद्धि एवं सम्मान १६ सदी में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्री रामचरितमानस को प्राप्त है, उसकी कोई अन्य तुलना नहीं है। आज भी ९०% घरों में वास्तव में रामचरितमानस ही होता है। मानस की तुलना में मूल वाल्मीकि रामायण का प्रसार उतना नहीं है।
मंदार पर्वत - वो स्थान जहाँ समुद्र मंथन हुआ था
विगत मकर संक्रांति को मुझे मंदार पर्वत जाने का अवसर मिला। मैं स्वयं भागलपुर (बिहार) का रहने वाला हूँ और बचपन से कई बार यहाँ जा चुका हूँ। ये वही पर्वत है जिससे प्राचीन काल में समुद्र मंथन किया गया था। ये वही मंदराचल पर्वत है जिसे समुद्र मंथन में मथनी के रूप में उपयोग में लाया गया था। इस स्थान का नाम "बौंसी" है जो "वासुकि" का अपभ्रंश है। नागराज वासुकि को ही मंदराचल पर्वत की रस्सी के रूप में उपयोग किया गया था। उन्ही के नाम पर इस स्थान का नाम पड़ा जो अब अपभ्रंश होकर बौंसी हो गया है।
नटराज के पैरों के नीचे कौन दबा रहता है?
हम सभी ने भगवान शिव के नटराज रूप को कई बार देखा है। किन्तु क्या आपने ध्यान दिया है कि नटराज की प्रतिमा के पैरों के नीचे एक दानव भी दबा रहता है? आम तौर पर देखने से हमारा ध्यान उस राक्षस की ओर नहीं जाता किन्तु नटराज की मूर्ति के दाहिने पैर के नीचे आपको वो दिख जाएगा। क्या आपको पता है कि वास्तव में वो है कौन? आइये आज इस लेख में हम उस रहस्य्मयी दानव के विषय में जानते हैं।
श्रुति एवं स्मृति क्या है?
हिन्दू धर्म में सबसे अधिक पूछे जाने वाले प्रश्नों में से एक है कि अति प्राचीन होने के बाद भी हिन्दू धर्म के धर्मग्रंथों में लिखे ज्ञान को सुरक्षित कैसे रखा गया। यदि हम आधुनिक काल गणना की भी बात करें तो महाभारत का कालखंड ७००० वर्ष एवं रामायण का कालखंड १४००० वर्ष पूर्व का बताया गया है। हिन्दू धर्म के सबसे प्राचीन ग्रंथ वेदों को लगभग २८००० वर्ष प्राचीन बताया जाता है। अब प्रश्न ये है कि ये सारे धर्मग्रन्थ तो आज भी हमारे पास हैं। फिर इस अथाह ज्ञान को इतने लम्बे समय तक किस प्रकार संचित किया गया? आइये इसे समझते हैं।
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