ये तो हम सभी जानते हैं कि किसी भी मनुष्य अथवा देवता की कुल १६ कलाएं होती हैं। १६ कलाओं पर एक लेख हमने पहले ही प्रकाशित कर दिया है जिसे आप यहाँ पढ़ सकते हैं। भगवान विष्णु भी इन सभी १६ कलाओं के धारक हैं। इसके अतिरिक्त चन्द्रमा को भी महादेव की कृपा से १६ कलाएं प्राप्त हैं और माता दुर्गा के पास भी कुल १६ कलाएं हैं। हालाँकि चंद्र एवं माँ दुर्गा की कलाएं श्रीहरि की कलाओं से भिन्न हैं।
कलाओं का अर्थ एक प्रकार से गुण समझिये। वैसे तो भगवान विष्णु के गुण तो अनंत हैं, किन्तु ये १६ गुण (कला) उनके प्रधान गुण माने जाते हैं। ये हैं:
- श्री (लक्ष्मी)
- भू (भूमि)
- कीर्ति (प्रसिद्धि)
- वाणी (वाक् क्षमता)
- लीला (चमत्कार)
- कांति (तेज)
- विद्या (ज्ञान)
- विमला (निर्मल स्वाभाव)
- उत्कर्षिणि (किसी को प्रेरित करने की क्षमता)
- विवेक (अपने ज्ञान एवं परिस्थिति के अनुसार निर्णय लेना)
- कर्मण्यता (कर्मठ)
- योगशक्ति (ईश्वर से जुड़ जाना)
- विनय (शिष्टता)
- सत्य (सदैव सच बोलने वाला)
- आधिपत्य (प्रभाव)
- अनुग्रह (दूसरों का कल्याण और क्षमा करना)
अब यहाँ एक प्रश्न आता है कि श्रीराम और श्रीकृष्ण की कलाओं में अंतर क्यों था? वास्तव में जब भगवान विष्णु कोई अवतार लेते हैं तो उनकी कलाएं भी उनमें होती है। किन्तु सबसे आवश्यक बात ये है कि उस अवतार के युग, परिस्थिति और उद्देश्य के अनुसार जितनी कला की उन्हें आवश्यकता होती है, श्रीहरि उतनी ही कलाओं के साथ अवतरित होते हैं। ना ज्यादा, ना कम।
कम या अधिक कलाओं के कारण किसी अवतार का महत्त्व कम या अधिक नहीं होता। बस उस अवतार में उन्हें केवल उतनी ही कलाओं की आवश्यकता होती है। श्रीराम त्रेतायुग के अंतिम चरण में जन्में। उनके अवतार का उद्देश्य संसार को राक्षस और रावण से मुक्त कर एक मर्यादित समाज की स्थापना करना था। उस उद्देश्य के लिए केवल १२ कलाएं ही पर्याप्त थी, इसी कारण वो केवल १२ कलाओं के साथ जन्में। इसी कारण उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा गया।
श्रीकृष्ण त्रेता में नहीं बल्कि द्वापर के बिलकुल अंतिम चरण में जन्में। उनका उद्देश्य संसार में धर्म की पुनर्स्थापना करना था। उस समय की परिस्थितियां श्रीराम के काल से बिलकुल भिन्न थी और उन परिस्थियों में अपने उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए भगवान विष्णु को अपनी सभी कलाओं की आवश्यकता थी। इसी कारण वे अपनी सभी कलाओं के साथ अवतरित हुए। उसी कारण उन्हें पूर्णावतार अथवा परमावतार कहा गया।
भगवान कल्कि कलियुग के बिलकुल अंतिम चरण में अवतरित होंगे और उनका उद्देश्य संसार से सभी पापियों का नाश करना होगा। कलियुग के अंतिम चरण में, उन परिस्थियों में अपने उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए श्रीहरि को केवल अपनी४ कलाओं की आवश्यता होगी। यही कारण है कि भगवान कल्कि श्रीहरि की केवल४ कलाओं के साथ जन्म लेंगे। इसका अर्थ ये नहीं कि उनका महत्त्व श्रीकृष्ण या श्रीराम से कम है। सभी अवतारों का महत्त्व अपने-अपने युग में समान ही है।
जय श्रीराम। जय श्रीकृष्ण।
नमस्कार बंधु
जवाब देंहटाएंजहां तक मैने सुना है, द्वापर युग पहले आना था, लेकिन कहीं कारण वश त्रेता पहले आया और द्वापर बाद में। क्या इस पर प्रकाश डाल सकते हैं।।
भास्कर जी, मैंने ऐसा पहली बार सुना है। देखता हूं यदि इस पर कोई जानकारी मिलती हो तो।
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