यदि आपने ध्यान से महाभारत पढ़ा हो तो एक बात आपने अवश्य गौर की होगी कि महाभारत के १८ पर्वों में से ४ महत्वपूर्ण पर्व कुरु सेना के ४ प्रधान सेनापतियों पर आधारित है। ये चार पर्व हैं - भीष्म पर्व, द्रोण पर्व, कर्ण पर्व एवं शल्य पर्व।
अब यहाँ एक प्रश्न आता है कि अश्वथामा भी तो कौरव सेना के अंतिम सेनापति थे, फिर उनके ऊपर कोई क्यों नहीं लिखा गया। क्या महर्षि वेदव्यास से कोई चूक हुई या अश्वथामा को कभी सेनापति बनाया ही नहीं गया था? इस प्रश्न के उत्तर के रूप में हमारे सामने कई तर्क आते हैं।
पहली बात तो ये कि अश्वथामा को सेनापति बनाने का वर्णन, उसके द्वारा पांडव सेना का संहार, उप-पांडवों की हत्या इत्यादि का जो भी वर्णन आता है वो महाभारत के १०वें पर्व, जिसका नाम सौप्तिक पर्व है, उसमें आता है। सौप्तिक पर्व के ही उप-पर्व ऐषिक पर्व में अश्वथामा के सेनापतित्व का वर्णन आता है। अब अश्वथामा को जब सेनापति बनाया गया उस समय दुर्योधन के पतन के बाद महाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका था। उस समय कौरव सेना में केवल तीन ही महारथी बचे थे - अश्वत्थामा, कृपाचार्य एवं कृतवर्मा।
अश्वथामा के सेनापतित्व में जो सबसे भयानक कार्य हुए वो ये कि उसने पांडव सेना के सभी योद्धाओं का सोते हुए वध कर दिया। निद्रा में किये गए वध एवं रात्रि युद्ध को संस्कृत में "सौप्तिक" कहते हैं इसीलिए इस पर्व का नाम अश्वथामा पर्व नारख कर सौप्तिक पर्व ही रखा गया।
कुछ विद्वान ये भी मानते हैं कि महाभारत युद्ध में केवल ४ ही सेनापति बनें। उनके अनुसार अश्वथामा को कभी सेनापति बनाया ही नहीं गया इसी कारण महाभारत में उसके नाम का कोई पर्व नहीं है। यदि उसे सेनापति बनाया गया होता तो अन्य कौरव सेनापतियों की भांति उसके नाम से भी एक पर्व अवश्य होता। हालाँकि केवल एक रात्रि के लिए ही सही, महाभारत में अश्वथामा को सेनापति बनाये जाने का वर्णन आता है।
इस विषय में एक तर्क ये भी आता है कि महाभारत में केवल उन्ही सेनापतियों पर पर्व का नाम रखा गया जिनकी युद्ध में मृत्यु हुई। भीष्म, द्रोण, कर्ण एवं शल्य कौरव सेना के वो सेनापति थे जो महाभारत युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए। भीष्म अवश्य युद्ध समाप्त होने तक जीवित रहे किन्तु बाद में उन्होंने भी निर्वाण ले लिया। यही कारण है कि महाभारत में अश्वत्थामा के नाम का कोई पर्व नहीं है क्यूंकि उस युद्ध के बाद भी वे जीवित रहे।
हालाँकि इस तर्क के आधार पर एक पर्व धृष्टधुम्न के नाम का भी होना चाहिए क्यूंकि जिस दिन अश्वत्थामा सेनापति बने, उसी दिन धृष्टद्युम्न उनके हाथों वीरगति को प्राप्त हुए। किन्तु महाभारत में उनके नाम पर भी कोई पर्व नहीं है।
हालाँकि इन सबमें जो कारण सबसे सटीक लगता है वो ये है कि महाभारत युद्ध के अन्य चार पर्व चारों कुरु सेनापतियों की वीरता और युद्ध सञ्चालन के कारण उनके नाम पर रखे गए। किन्तु अश्वथामा के नेतृत्व में केवल एक ही विशिष्ट कार्य हुआ - निद्रा में पांडव सेना का विनाश। इसी कारण उस पर्व का नाम अश्वथामा पर्व ना रख कर सौप्तिक पर्व ही रखा गया।
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