पिछले लेख में हमने ईश्वर के अवतार और रूप में अंतर के विषय में जाना था। हमनें माता लक्ष्मी के ८ रूप जिन्हे अष्टलक्ष्मी कहा जाता है, उनके बारे में भी देखा। इस लेख में हम माता सरस्वती के रूपों एवं अवतारों के विषय में बात करेंगे। माता पार्वती एवं माता लक्ष्मी की भांति माता सरस्वती के भी अनेक रूप हैं, हालांकि उनके अवतारों की संख्या उतनी नही है।
माता सरस्वती के प्रमुख रूप हैं:
- महा सरस्वती: ये माता सरस्वती का सर्वोच्च रूप माना जाता है। इनका वर्णन देवी माहात्म्य में विशेष रूप से दिया गया है। महाकाली एवं महालक्ष्मी के साथ महासरस्वती त्रिदेवों के सर्वोच्च रूपों, क्रमशः महादेव, महाविष्णु एवं महाब्रह्मा को परिपूर्ण करती हैं। इस रूप में इनके ८ हाथ हैं, ये वीणा को धारण करती हैं और उजले कमल पर विराजती हैं।
- विद्या सरस्वती: अपने इस रूप में माता सरस्वती संसार के समस्त ज्ञान का प्रतिनिधित्व करती हैं। कहा जाता है कि संसार में जो भी प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष ज्ञान फैला है, वो सभी माता के इसी रूप के कारण है।
- शारदम्बा: माता सरस्वती का ये रूप श्रृंगेरी शारदापीठ का मूल है। इनका मंदिर कर्णाटक के श्रृंगेरी नामक स्थान पर है जिसकी स्थापना आदि शंकराचार्य ने की थी। ऐसी मान्यता है कि इनकी पूजा करने पर त्रिदेवों के साथ माता पार्वती और माता लक्ष्मी का आशीर्वाद स्वतः ही प्राप्त हो जाता है।
- माता सावित्री: अपने इस रूप में माता सरस्वती परमपिता ब्रह्मा की पत्नी के रूप में प्रतिष्ठित होती हैं। ये संसार की पवित्रता का प्रतीक है। संसार में जो कुछ भी शुद्ध एवं पवित्र है, वो इन्ही की कृपा से है।
- माता गायत्री: माता सरस्वती का ये रूप संसार के सभी यज्ञों एवं कर्मकांडों की अधिष्ठात्री देवी के रूप में पूजित है। हालाँकि इनका मूल भी माता सावित्री को ही माना जाता है किन्तु कई स्थानों पर इन्हे भी ब्रह्मदेव की पत्नी का स्थान प्राप्त है। गायत्री मन्त्र को संसार का सबसे शक्तिशाली मन्त्र माना गया है जिसके विषय में स्वयं श्रीकृष्ण की विभूतियों में कहा गया है कि "मन्त्रों में मैं गायत्री हूँ।"
- नील सरस्वती: माता का ये रूप भारत के पूर्वात्तर राज्यों में सबसे प्रसिद्ध है। इनके इस रूप को महाविद्याओं में से एक माता तारा का रूप भी माना जाता है। आम तौर पर माता सरस्वती के सभी रूप सौम्य और शांत होते हैं किन्तु नील सरस्वती इनका उग्र स्वरुप है। तंत्र ग्रंथों में इनका विशेष महत्त्व बताया गया है और इनके १०० नामों का उल्लेख है।
- ब्राह्मणी: अष्ट-मातृकाओं में वर्णित माता ब्राह्मणी माता सरस्वती का ही एक रूप है। ये परमपिता ब्रह्मा की शक्ति को प्रदर्शित करती हैं। ये पीत वर्ण की है तथा इनकी चार भुजाएँ हैं। ब्रह्मदेव की तरह इनका आसन कमल एवं वाहन हंस है।
- महाविद्या: माता सती के दस रूप, जो दस महाविद्या के नाम से जाने जाते हैं, उनमें से तीन माता सरस्वती का ही रूप मानी जाती हैं:
- काली (श्यामा): माता का उग्र रूप।
- मातंगी: माता का सौम्य रूप।
- तारा: माता का वैभवशाली रूप।
अब बात करते हैं माता सरस्वती के अवतारों के विषय में। उनके अवतारों अवतार के बारे में हमें बहुत अधिक वर्णन नही मिलता, किन्तु उनके दो अवतार बहुत प्रसिद्ध हैं:
- सरस्वती नदी: ऋग्वेद में माता के इस रूप के विषय में प्रमुखता से लिखा गया है। गंगा की भांति ये भी संसार के कल्याण के लिए ही अवतरित हुई थी। ऐसी भी मान्यता है कि ये संसार की पहली नदी थी। ये सतयुग में अवतरित होकर द्वापर के अंत में लुप्त हो गयी थी। कलियुग में ये माँ गंगा एवं यमुना के साथ अदृश्य रूप में उपस्थित हैं। कलियुग के अंत में ये गंगा, यमुना, कावेरी एवं नर्मदा के साथ पृथ्वी को सदा के लिए छोड़ देंगी। कई लोग ये मानते हैं कि आज भी सरस्वती नदी पृथ्वी के गर्भ में प्रवाहित होती हैं।
- माँ शारदा: ये माता सरस्वती का मानव अवतार माना जाता है। कश्मीर के कश्मीरी पंडित एवं हरियाणा के मूल निवासियों में इनके प्रति बहुत श्रद्धा है। इनका भव्य मंदिर शारदा पीठ के नाम से स्थापित है जो लगभग ५००० वर्ष पुराना है। हालाँकि ये दुर्भाग्य है कि अब वो स्थान पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में है। इसे ५१ शक्तिपीठों में से एक माना जाता है।
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