आप सभी ने कभी ना रावण का ऐसा चित्र अवश्य देखा होगा जिसमें एक व्यक्ति उनके पैरों के नीचे दबे हुए रहते है। रावण उन्हें अपनी चरण पादुका की भांति उपयोग लाता है। क्या आपको पता है कि वो व्यक्ति कौन है? आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि वो स्वयं शनिदेव हैं।
रावण को शनिदेव से ऐसी क्या शत्रुता थी? क्यों वो उन्हें अपने पैरों के नीचे दबा कर रखता था? इसके पीछे एक प्राचीन कथा छिपी हुई है। वास्तव में रावण स्वयं अमर होना चाहता था किन्तु ब्रह्माजी ने उसे अमरता का वरदान नहीं दिया। फिर उसने उनसे वानर और मनुष्यों के अतिरिक्त किसी के भी हाथों अवध्य होने का वरदान माँगा। परमपिता ब्रह्मा ने उसे ये वरदान दे दिया। इससे वो अजेय तो हो गया किन्तु अवध्य नहीं।
उस समय उसकी पत्नी मंदोदरी गर्भवती थी। रावण स्वयं तो अवध्य नहीं हो पाया किन्तु उसने अपने होने वाले पुत्र को अमर बनाने का निश्चय किया। रावण बहुत बड़ा पंडित था। उसने चारो वेद कंठस्थ कर रखे थे। उसे ज्योतिष शास्त्र का अद्भुत ज्ञान था। इसी पर उसने रावण संहिता नामक पुस्तक भी लिखी थी। वो जनता था कि किस प्रकार ग्रहों की स्थिति अनुकूल रहने पर मनुष्य अमर हो सकता है। किन्तु नवग्रह भला उसकी बात क्यों मानते?
इसके लिए उसने स्वर्ग पर आक्रमण किया और इंद्र को पराभूत कर सभी देवताओं को भी परास्त किया। अपनी शक्ति और प्रताप से उसने सभी नवग्रहों को परास्त कर अपने अधीन कर लिया। अब वे सभी उसकी आज्ञा मानने को विवश थे। वो उन सभी नवग्रहों को लंका ले आया और वे सभी नवरत्नों की भांति उसके राजदरबार की शोभा बढ़ाने लगे।
मंदोदरी के प्रसव में केवल कुछ समय का ही विलम्ब था। जब उसके पुत्र का जन्म होने ही वाला था तो उसने तत्काल सभी ग्रहों को ये आज्ञा दी कि वो सभी उसके आने वाले पुत्र की कुंडली के ११वें घर पर स्थित हो जाएँ। व्यक्ति की कुंडली का ११वां घर शुभता का प्रतीक था और यदि सारे ग्रह उसी घर में हो तो वो व्यक्ति अमर हो जाता है। रावण ये जनता था और इसीलिए उसने सभी ग्रहों को ऐसी आज्ञा दी। उसने सभी ग्रहों से ये भी कहा कि इसके बाद वे उन सभी को मुक्त कर देगा।
विवश होकर सभी नवग्रह उसके होने वाले पुत्र की कुंडली के ११वें घर में बैठ गए। अब रावण निश्चिंत हो गया कि उसका होने वाला पुत्र अवश्य ही अवध्य होगा। शनिदेव इससे अत्यंत चिंतित थे। हालाँकि वो भी रावण की आज्ञा अनुसार उसके होने वाले पुत्र की कुंडली के ११वें घर पर ही स्थित थे किन्तु वे जानते थे कि यदि रावण का पुत्र अवध्य हो गया तो वो समस्त सृष्टि के लिए घातक सिद्ध होगा।
इसीलिए जगत कल्याण के लिए उन्होंने रावण की आज्ञा का उलंघन किया और ठीक उसके पुत्र के जन्म के समय वे उसकी कुंडली के ११वें स्थान को छोड़ कर १२वें स्थान पर बैठ गए। व्यक्ति की कुंडली का १२वां घर अशुभता का प्रतीक होता है। इसी कारण जब उसके पुत्र का जन्म हुआ तो बदल गरजने लगे और बिजली कड़कने लगी। ये देख कर रावण ने अपने पुत्र का नाम मेघनाद रखा।
मेघनाद के जन्म के बाद जब रावण ने प्रसन्नतापूर्वक उसकी कुंडली देखी तब उसे पता चला कि शनिदेव ठीक उसके जन्म के समय उसकी कुंडली के ११वें घर से हट गए थे। इससे मेघनाद महापराक्रमी तो हुआ किन्तु वध्य ही रह गया। ये जान कर रावण को अत्यंत क्रोध आया। उसने अन्य सभी ग्रहों को तो मुक्त कर दिया किन्तु शनिदेव को क्रोधवश कैद कर लिया। इससे भी जब उसका क्रोध शांत नहीं हुआ तो वो उन्हें अपमानित करने के लिए अपने राजदरबार में अपने पैरों के नीचे रखने लगा।
शनिदेव बहुत काल तक उसी प्रकार अपमानित हो रावण की कैद में रहे। जब महाबली हनुमान श्रीराम के दूत बन कर लंका आये तो लंका दहन के समय उनकी दृष्टि रावण की कैद में पड़े शनिदेव पर पड़ी। वे नवग्रहों में प्रमुख तो थे ही, साथ ही हनुमान के गुरु सूर्यदेव के पुत्र भी थे। हनुमान ने शनिदेव को प्रणाम किया और फिर उन्हें रावण की कैद से मुक्त किया। बाद में शनिदेव की कुदृष्टि से ही लंका काली पड़ी। इस बारे में विस्तार से इस लेख को पढ़ें।
इतने दिनों तक रावण की कैद में रहने के कारण शनिदेव के अंगों में भयानक पीड़ा हो रही थी। उसे दूर करने के लिए हनुमान जी ने उनके अंगों पर तेल का लेपन भी किया। इससे शनिदेव अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने हनुमान जी को आशीर्वाद देते हुए कहा कि जो कोई भी हनुमान भक्त होगा उसपर वे अपनी कुदृष्टि कभी नहीं डालेंगे। साथ ही जो भी शनिवार को उन्हें तेल अर्पित करेगा वो भी उनकी कुदृष्टि से बचा रहेगा।
रामायण के कुछ संस्करणों में इस विषय में एक और कथा मिलती है। हालाँकि वो इतनी प्रसिद्ध तो नहीं है किन्तु फिर भी उसका वर्णन मिलता है। उनके अनुसार रावण के पैरों के नीचे श्रीराम के एक पूर्वज अनरण्य का शरीर रहता है। इस कथा के अनुसार रावण के दिग्विजय के समय अधिकतर राजाओं ने बिना उससे युद्ध किये ही उसकी अधीनता स्वीकार कर ली। किन्तु अयोध्या के राजा महाराज अनरण्य ने उससे युद्ध करने का निश्चय किया। उनके इस निर्णय से रावण अत्यंत क्रोधित हुआ।
रावण और अनरण्य में घोर युद्ध हुआ किन्तु रावण अपने वरदानों के कारण उन्हें परास्त करने में सफल रहा। अपने अंतिम समय में मरणासन्न अवस्था में अनरण्य ने उसे श्राप दिया कि एक दिन उन्ही का एक वंशज उसका वध करेगा। इससे क्रोधित होकर रावण ने बहुत समय तक महाराज अनरण्य के मृत शरीर को अपने पैरों के नीचे दबा कर रखा। उनका श्राप अंततः फलीभूत हुआ और उनके के वंश में जन्में श्रीराम ने रावण का वध कर उनका उद्धार किया। श्रीराम के वंश के बारे में आप इस लेख में पढ़ सकते हैं।
जय शनिदेव।
अति सुन्दर संकलन।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर
हटाएंShani Dev aur Hanuman ji ke Ati Sundar Jankari aaj mili
जवाब देंहटाएं