कुछ समय पहले हमने ऋषि, मुनि, साधु, संन्यासी के अंतर पर एक लेख प्रकाशित किया था। आज हम पुराणों में वर्णित ऋषि-मुनियों के विभिन्न समुदायों के विषय में बात करेंगे। इनमें से कई समुदाय आपको आज भी अपने आस पास मिल जायेंगे। वैसे तो पुराणों में अनेकों समुदायों का वर्णन है किन्तु इस लेख में हम मुख्य समुदायों के विषय में चर्चा करेंगे।
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हिरण्यकशिपु
परमपिता ब्रह्मा से सर्वप्रथम सात महान ऋषियों ने जन्म लिया जिन्होंने सप्तर्षि और प्रजापति का पद ग्रहण किया। इन्ही में से एक थे महर्षि मरीचि। उनकी पत्नी कला से उन्हें एक पुत्र प्राप्त हुए महर्षि कश्यप। महर्षि कश्यप ने प्रजापति दक्ष की १७ कन्याओं से विवाह किया और उन्ही की संतानों से समस्त जातियों की उत्पत्ति हुई। इनकी ज्येष्ठ पत्नी अदिति से आदित्य और दूसरी पत्नी दिति से दैत्यों का जन्म हुआ।
जय और विजय - जिन्होंने श्रीहरि के भक्त बनने के स्थान पर उनका शत्रु बनना पसंद किया
वैसे तो भगवान विष्णु के कई पार्षद हैं किन्तु जय-विजय उनमें से प्रमुख हैं। ये दोनों वैकुण्ठ के मुख्य द्वार के रक्षक हैं और श्रीहरि को सर्वाधिक प्रिय हैं। ये दोनों उप-देवता की श्रेणी में आते हैं और इन्हे गुण एवं रूप में श्रीहरि के समान ही बताया गया है। श्रीहरि की भांति ही ये भी अपने तीन हाथों में शंख, चक्र एवं गदा धारण करते हैं, पर इनके चौथे हाथ में तलवार होती है, वहीँ श्रीहरि अपने चौथे हाथ में कमल धारण करते हैं।