श्रीकृष्ण की लीलाओं की भांति उनके नाम भी अनंत हैं। उनमें से ही एक नाम "दामोदर" है जो उन्हें बचपन में दिखाई गयी एक लीला के कारण मिला था। ये नाम इसीलिए भी विशिष्ट है क्यूंकि इस बार उन्होंने अपनी माया का प्रयोग असुर पर नहीं अपितु अपनी माता पर ही किया था।
एक बार गोकुल में माता यशोदा दूध को मथ कर माखन निकाल रही थी। उसी समय श्रीकृष्ण वहां आये और दूध पीने की जिद करने लगे। उनका मनोहर मुख देखकर वैसे ही माता यशोदा सब कुछ भूल जाती थी। उन्होंने सारा काम छोड़ा और श्रीकृष्ण को स्तनपान करने लगी। वो ये भूल गयी कि उन्होंने अंगीठी पर दूध गर्म करने रखा है।
दूध पिलाते हुए अचानक उन्हें याद आया कि अंगीठी पर रखा दूध तो उबल गया होगा। ये सोच कर उन्होंने श्रीकृष्ण को वही छोड़ा और दौड़ कर रसोई में गयी। उधर श्रीकृष्ण बड़े क्रोधित हुए। माता और पुत्र के मध्य किसी का भी आना उनसे सहन नहीं हुआ। उसी क्रोध में उन्होंने वहां पड़े माखन के सारे घड़ों को फोड़ दिया और प्रेमपूर्वक माखन खाने लगे।
उधर जब यशोदा मैया वापस आयी तो देखा कि सारा घर माखन से भरा हुआ है। जहाँ देखो वही माखन गिरा हुआ दिखाई देता था। अब क्रोधित होने की बारी यशोदा मैया की थी। उन्होंने सारा दिन श्रम कर उस माखन को निकला था और श्रीकृष्ण ने उनकी सारी मेहनत पर पानी फेर दिया, ये सोच कर उन्हें भी बड़ा क्रोध आया।
फिर क्या था। उन्होंने एक छड़ी उठाई और श्रीकृष्ण को मारने दौड़ी। तीनों लोकों के स्वामी श्रीकृष्ण उनसे बचने के लिए भागे। सभी देवता स्वर्ग में उनकी इस लीला के दर्शन कर रहे थे। माता बड़ी थी और श्रीकृष्ण छोटे, फिर भी वे उन्हें पकड़ नहीं पायी। भला प्रभु की इच्छा के बिना उन्हें कौन पकड़ सका है? अंत में वे थक कर वही भूमि पर बैठ गयी।
जब श्रीकृष्ण ने देखा कि लीला कुछ अधिक ही हो गयी है और माता थक चुकी है तो वे स्वयं उनके पास पहुंचे। उन्होंने प्रेम पूर्वक मैया का पसीना पोंछा। किन्तु इतना श्रम करने के कारण यशोदा का क्रोध और बढ़ गया था। उन्होंने झट से कन्हैया को पकड़ लिया। इसे प्रभु की ही लीला कहेंगे कि उन्होंने समझा कि मैंने कान्हा को पकड़ लिया। वे क्या जानती थी कि उनकी इच्छा के बिना उन्हें कोई पकड़ नहीं सका है।
अब उन्हें दंड क्या दें? उन्होंने सोचा कि कृष्ण को इस ओखली से बांध कर घर का सारा काम निपटा लें। पर श्रीकृष्ण को भला कोई बांध सका है? उनकी एक और लीला आरम्भ हुई। यशोदा ने एक रस्सी उठाई और जब उससे श्रीकृष्ण को बांधना चाहा तो वो रस्सी उनके पेट से दो अंगुल छोटी पड़ गयी।
उन्होंने दूसरी रस्सी पहली रस्सी के साथ जोड़ी लेकिन रस्सी फिर दो अंगुल छोटी पड़ गयी। अब तो यशोदा ने एक के बाद एक रस्सी जोड़ना आरम्भ किया किन्तु हर बार रस्सी दो अंगुल कम ही पड़ती रही। मैया खीजती रही और श्रीकृष्ण हँसते रहे। उनकी ये लीला इसी प्रकार बहुत देर तक चलती रही।
श्रीकृष्ण को ना बंधना था, ना वे बंधे। अंत में यशोदा पुनः थक कर चूर हो गयी किन्तु श्रीकृष्ण के लिए रस्सी दो अंगुल छोटी ही रही। अब तो कान्हा ने देखा कि मैया थक गयी हैं। उनका वात्सल्य जागा और उन्होंने अंततः स्वयं ही स्वयं को बांध लिया। यशोदा ने चैन की साँस ली और घर के काम में लग गयी।
श्रीकृष्ण ने सोचा कि माता अपने कर्तव्यपालन में व्यस्त है तो मैं स्वयं के कर्तव्य का वहन कर लूँ। वे ओखली को घसीटते हुए आंगन में पहुंचे। वहां अर्जुन के दो विशाल पेड़ लगे हुए थे जो वास्तव में नलकुबेर एवं मणिग्रीव नामक दो गन्धर्व थे जो नारद जी के श्राप के कारण वृक्ष बन गए थे। नारद जी ने कहा था कि जब श्रीकृष्ण अवतार होगा तो वे ही उनका उद्धार करेंगे।
आज अंततः उनके उद्धार की बारी आयी। श्रीकृष्ण घुटने के बल चलते हुए दोनों वृक्ष के बीच से निकल गए पर ओखली फंस गयी। कन्हैया ने आगे बढ़ने के लिए थोड़ा जोर लगाया और दोनों वृक्ष जड़ सहित उखड कर नीचे आ गिरे। इससे नलकुबेर और मणिग्रीव श्रापमुक्त हो उनके समक्ष करवद्ध खड़े हो गए। श्रीकृष्ण ने उन्हें आशीर्वाद दिया और वे अपने धाम पधारे।
उधर वृक्षों के गिरने से धरती डोल उठी थी। माता यशोदा किसी अनिष्ट की आशंका से दौड़ती हुई आंगन में तो देखती है कि दोनो वृक्ष गिरे पड़े हैं और कन्हैया उनके बीच खेल रहे हैं। उनकी जान में जान आई। वे दौड़ती हुई गयी और तत्काल कन्हैया की रस्सी को खोल कर उन्हें मुक्त किया। श्रीकृष्ण की एक और लीला का अंत हुआ।
संस्कृत में रस्सी को "दाम" और पेट को "उदर" कहते हैं। इसी कारण रस्सी से पेट द्वारा बंधे होने के कारण श्रीकृष्ण का एक नाम "दामोदर" पड़ गया।
इसी विषय में एक और कथा हमें भविष्य पुराण में मिलती है। एक बार राधा जी उद्यान में बैठी श्रीकृष्ण की प्रतीक्षा कर रही थी। श्रीकृष्ण को आने में बड़ा विलम्ब हो गया जिससे राधा की व्यग्रता बहुत बढ़ गयी। खैर बहुत देर के बाद श्रीकृष्ण आये। राधा क्रोध में बैठी ही थी। कही श्रीकृष्ण शीघ्र ना चले जाएँ, ये सोच कर उन्होंने उन्हें लताओं की रस्सी से बांध दिया।
उन बांधने के बाद उन्होंने उनसे विलम्ब का कारण पूछा। तब श्रीकृष्ण ने बताया कि आज कार्तिक पर्व के कारण यशोदा मैया ने उन्हें बिना पूजा के आने नहीं दिया, इसी कारण उन्हें विलम्ब हो गया। ये सुनकर राधा जी को बड़ा पश्चाताप हुआ। उन्होंने तत्काल उनकी रस्सी खोली और उनसे क्षमा याचना की।
तब श्रीकृष्ण ने हँसते हुए कहा कि "क्षमा याचना कैसी? मैं तो पहले ही तुम्हारे प्रेम से बंधा हुआ हूँ।" उनकी ये बात सुनकर राधा जी बड़ी प्रसन्न हुई और रस्सी (दाम) द्वारा पेट (उदर) से बांधने के कारण उन्होंने श्रीकृष्ण को "दामोदर" नाम से सम्बोधित किया। तभी से श्रीकृष्ण का एक नाम दामोदर पड़ा।
जय श्री दामोदर।
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