भगवान विष्णु के पार्षद जय-विजय किस प्रकार श्राप के कारण रावण और कुम्भकर्ण के रूप में जन्मे ये हम सभी जानते हैं। इस विषय में हमने एक विस्तृत लेख पहले ही प्रकाशित किया है जिसे आप यहाँ पढ़ सकते हैं। आज हम रावण के उस पूर्वजन्म की कथा जानेंगे जिसे बहुत ही कम लोग जानते हैं। ये कथा श्री रामचरितमानस में दी गयी है। ये कथा मानस के बालकाण्ड में १५२वें दोहे से आरम्भ होकर १७५वें दोहे पर समाप्त होती है।
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अक्रूर
महाराज ययाति के ज्येष्ठ पुत्र यदु से यदुकुल चला। इसी से आगे चलकर हैहय वंश पृथक हुआ जिसमें महान सम्राट कर्त्यवीर्य अर्जुन ने जन्म लिया। दूसरी शाखा में दो प्रमुख वंश चले - वृष्णि एवं अंधक। इन्ही में से वृष्णि वंश में श्रीकृष्ण ने जन्म लिया और इसी वंश में उनसे एक पीढ़ी पहले यादव वीर अक्रूर का जन्म हुआ। वे श्रीकृष्ण के पिता वासुदेव के चचेरे भाई थे। यदुवंश के विषय में आप विस्तार से यहाँ पढ़ सकते हैं।
देवगुरु बृहस्पति
परमपिता ब्रह्मा के १६ मानस पुत्रों और सप्तर्षियों में से एक थे महर्षि अंगिरस। इन्होने महर्षि मरीचि की पुत्री सुरूपा से विवाह किया किन्तु बहुत काल तक उन्हें कोई संतान नहीं हुई। तब महर्षि अंगिरस ने अपने पिता ब्रह्मा से प्रार्थना की जिससे प्रसन्न होकर ब्रह्मदेव ने उन्हें पुंसवन नामक व्रत को करने का निर्देश दिया। सुरूपा ने सनत्कुमारों से इस व्रत की जानकारी ली जिससे उन्हें तीन पुत्र प्राप्त हुए - संवर्त, उतथ्य एवं जीव।
वट वृक्ष - वो पेड़ जिसे अमर माना जाता है
वट वृक्ष हिन्दू धर्म के सर्वाधिक महत्वपूर्ण और पवित्र वनस्पतियों में से एक है। अश्वत्थ (पीपल) एवं तुलसी के साथ वट वृक्ष, अर्थात बरगद के पेड़ की हिन्दू धर्म में अत्यधिक महत्ता है। हिन्दू धर्म के लगभग हर ग्रन्थ में वट वृक्ष के महत्त्व के विषय में लिखा गया है। केवल हिन्दू धर्म में ही नहीं अपितु जैन और बौद्ध धर्म में भी वट वृक्ष की अद्भुत महत्ता बताई गयी है।