पुराणों की कुछ कथाएं ऐसी होती हैं जिसके बारे में बहुत लोगों को जानकारी नहीं होती। साथ ही कुछ कथाओं में बहुत विरोधाभास होता है। आज जो कथा हम आपको बताने वाले हैं वो भी कुछ ऐसी ही है। ये कथा है उस घटना की जब दो महाशक्तियां - श्रीगणेश और महावीर हनुमान आपस में टकराये।
इससे पहले मैं कथा आरम्भ करूँ, ये बताना आवश्यक है कि इस कथा के कुछ संस्करणों में विरोधाभास देखने को मिलता है। इसका कारण इस कथा के पात्र "गजासुर" के कारण है। पुराणों में कई गजासुर का वर्णन किया गया है। उनमें से पहला तो वो है जिसके चर्म को महादेव ने धारण किया, एक वो जिसके विषय में हम इस कथा में बात करने वाले हैं। एक गजासुर वो है जिसका मस्तक श्रीगणेश के धड़ पर लगा है और एक गजासुर वो भी है जिसे श्रीगणेश ने मूषक के रूप में अपना वाहन बनाया।
पौराणिक कथाओं के अनुसार गजासुर नामक एक असुर था जो महिषासुर का पुत्र था। जब माता दुर्गा ने महिषासुर का वध किया तब वो अपनी माता के गर्भ में था। जब उसका जन्म हुआ तो उसने अपनी माता से अपने पिता की मृत्यु का कारण पूछा। तब उसकी माता ने बताया कि किस प्रकार माता पार्वती ने देवी दुर्गा के रूप में प्रकट लेकर उसके पिता का वध किया।
ये सुनकर गजासुर अत्यंत क्रोधित हुआ और उसने ये प्रतिज्ञा की कि जिस प्रकार से माता ने उसे अनाथ किया, वो भी उनके पुत्र गणेश का वध कर उन्हें दुःख देगा। किन्तु श्रीगणेश का वध किस प्रकार किया जा सकता था? ये सोच कर उसने परमपिता ब्रह्मा की कई युगों तक तपस्या की। ब्रह्मदेव के प्रसन्न होने पर उसने उनसे अमरता का वरदान माँगा जिसे देने से ब्रह्मा जी ने मना कर दिया।
तब उसने सोचा कि सृष्टि में केवल काम ही है जो सर्वत्र व्याप्त है। यही सोच कर उसने ब्रह्मदेव से ये वरदान माँगा कि उसका वध केवल उसी के हाथ से हो जिसने काम को जीत लिया हो। ब्रह्माजी ने उसे ये वरदान दे दिया और अंतर्धान हो गए। वरदान प्राप्त कर वो निरंकुश हो गया और सृष्टि में उत्पात मचाना प्रारम्भ किया।
इतने बल के बाद भी श्रीगणेश को परास्त करना उसके लिए संभव नहीं था। इसी कारण उसने रामभक्त का स्वांग रचा और महाबली हनुमान की तपस्या आरम्भ कर दी। जब महाबली ने देखा कि उन्ही के समान एक रामभक्त उनकी तपस्या कर रहा है तो उन्होंने गजासुर को दर्शन दिए। गयासुर ने उनसे वरदान का वचन लेकर कहा कि शिवपुत्र गणेश श्रीराम की सदैव अवहेलना करता है। मैं चाहता हूँ कि आप उससे युद्ध कर उसे मृत्युदंड दें।
हनुमान जी वचनबद्ध थे इसीलिए वे श्रीगणेश से युद्ध को चले। मार्ग में उनकी भेंट देवर्षि नारद से हुई। उन्होंने देवर्षि से पूछा कि क्या वास्तव में गणेश राम द्रोही हैं? देवर्षि स्वयं चाहते थे कि गजासुर का विनाश शीघ्र ही हो, यही सोच कर उन्होंने झूठ तो नहीं बोला पर बात बदल कर कहा कि गणेश तो सदैव शिव भक्ति में लीन रहते हैं, श्रीराम का समरण करते तो मैंने उन्हें कभी नहीं सुना। देवर्षि से ऐसा सुन कर हनुमान उसे सत्य मान कर कैलाश पहुंचे और श्रीगणेश को ललकारा।
उधर देवर्षि तत्काल माता पार्वती के पास गए और उन्हें सूचित किया कि महाबली हनुमान विघ्नवहर्ता से युद्ध करने कैलाश पहुंच गए हैं। ये सुनकर माता तत्काल महादेव के साथ उस युद्ध को रोकने चल दी। उसी समय गजासुर ने उनका मार्ग रोका और हँसते हुए कहा कि "हे देवी! जिस प्रकार तुम्हारे कारण मैं अपने पिता के लिए तड़पा हूँ, तुम भी आज अपने पुत्र के लिए तड़पोगी।" ये देख कर उसका अंत समय जान कर महादेव उसके वध को प्रस्तुत हुए।
उधर हनुमान जी अपने पंचमुखी स्वरुप के साथ श्रीगणेश से युद्ध करने लगे। दोनों रूद्र के ही अंश थे और दोनों की शक्ति की कोई सीमा नहीं थी। दोनों अनेक प्रकार के दिव्यास्त्रों से एक दूसरे पर प्रहार करने लगे किन्तु उसका कोई परिणाम नहीं निकला। वे दोनों ऐसे देवता थे जिन्हे बचपन में ही अनेकों देवताओं से कई वरदान मिले थे। दोनों के बीच युद्ध बहुत देर तक चलता रहा किन्तु कोई पीछे हटने को तैयार नहीं था।
युद्ध को अधिक खिंचता देख कर श्रीगणेश ने अपना अमोघ अंकुश हनुमानजी पर चलाया। पवनपुत्र ने अपनी अमोघ गदा को उसके प्रतिकार के लिए चलाया। जब दोनों दिव्यास्त्र टकराये तो पूरी सृष्टि हिल गयी। उसी समय श्रीगणेश ने अपनी सूंड से हनुमान जी को और पवनपुत्र ने अपनी पूंछ से विघ्नहर्ता को इस प्रकार जकड लिया कि दोनों युद्ध लड़ने में असमर्थ हो गए।
उधर गजासुर काल के वश में आकर महादेव से टकराया। सृष्टि में महादेव ही ऐसे हैं जिन्होंने काम को जीता हुआ है। यही ब्रह्माजी का वरदान भी था। उस असुर का अंत समय निकट आया देख कर महादेव ने तक्षण अपने त्रिशूल से गजासुर का मस्तक काट लिया। इस प्रकार उस अन्यायी असुर का अंत हुआ।
तब शिव शक्ति तत्काल उस स्थान पर पहुंचे जहाँ श्रीगणेश और हनुमान जी एक दूसरे को जकड़े विवश खड़े थे। महादेव ने उन दोनों को मुक्त किया और समझा-बुझा कर उस युद्ध को रुकवाया। तब माता पार्वती ने हनुमान जी को गजासुर के छल के विषय में बताया और ये भी बताया कि वो असुर महादेव के हाथों मारा जा चुका है। माता ने कहा कि राम और शंकर में कोई भेद नहीं हैं, दोनों एक ही हैं। जो दोनों को अलग समझता है उन्हें किसी की भी भक्ति प्राप्त नहीं होती।
तत्पश्चात माता के आग्रह पर महादेव ने हनुमान जी को अपना वही स्वरुप दिखाया जिस स्वरुप में श्रीराम ने उन्हें रामेश्वरम में स्थापित किया था। उस स्वरुप में हनुमान ने उस ज्योतिर्लिंग में महादेव और श्रीराम दोनों के दर्शन हुए। तब श्रीगणेश और बजरंग बली ने हरिहर स्वरुप उस ज्योतिर्लिंग को प्रणाम किया।
गजासुर की कथा हमें शिव पुराण और लिंग पुराण में मिलती है। हालाँकि कई लोग हनुमान जी और श्रीगणेश के इस युद्ध को क्षेपक मानते हैं। इसका सबसे बड़ा कारण गजासुर और हनुमान जी के बीच का कालखंड था। दोनों के कालखंड में बहुत बड़ा अंतर है। जहाँ गजासुर सतयुग में जन्मा वहीँ हनुमान त्रेतायुग में अवतरित हुए। इसी कारण गजासुर द्वारा हनुमान जी की तपस्या करने को अधिकतर लोग क्षेपक ही मानते हैं। इसके अतिरिक्त इन दोनों के युद्ध का स्पष्ट वर्णन हमें शिव पुराण में नहीं मिलता।
इन सबके बाद भी ये कथा लोक कथा के रूप में जनमानस में बड़ी प्रसिद्ध है। वास्तव में इस कथा के द्वारा श्रीगणेश और हनुमान जी परस्पर एक दूसरे के सम्मान और महत्ता में वृद्धि की है। शिव पुराण में वर्णित गजासुर की कथा के बारे में हम किसी और लेख में जानेगे। जय श्रीगणेश। जय हनुमान।
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