हम सभी जानते हैं कि सर्पों की जीभ बीच से कटी हुई होती है। विज्ञान के तर्क के अनुसार सर्पों की सुनने की शक्ति बहुत कम होती है और अपनी जीभ की इस संरचना के कारण सर्प सरलता से सुन लेते हैं। हालाँकि इस विषय में महाभारत और कुछ पुराणों में भी एक कथा मिलती है।
इस कथा के अनुसार महर्षि कश्यप ने प्रजापति दक्ष की १७ कन्याओं से विवाह किया जिनसे समस्त जातियों की उत्पत्ति हुई। उनमें से ही दो थी विनता और कुद्रू। कुद्रू ने अपने पति से १००० पुत्र की कामना की वही विनता ने केवल दो शक्तिशाली पुत्रों की। उनकी इच्छा अनुसार विनता ने अरुण और गरुड़ दो पक्षियों को जन्म दिया और कुद्रू से १००० नागों की उत्पत्ति हुई जिनमें शेषनाग ज्येष्ठ थे।
विनता ने अरुण को पूरी तरह विकसित होने से पहले ही अंडे से निकाल दिया था इसी कारण से वे अपूर्ण रहे और सूर्यदेव के सारथि बने। गरुड़ सर्वशक्तिशाली और समर्थ बने और पक्षियों के राजा कहलाये। नागों में शेष सबसे बड़े थे और उनके बाद वासुकि जन्में। १००० नाग कुलों में आठ नाग कुल सर्वाधिक प्रसिद्ध हुए।
एक बार विनता और कुद्रू भ्रमण कर रही थी कि उन्होंने उच्चैश्रवा अश्व को देखा। उसका शरीर क्षीर की भांति उज्वल था और उसमें कहीं कोई कलंक नहीं था। विनता ने ये बाद अपनी बहन की बताई तो उसने हंसी में कह दिया कि उस अश्व की पूछ तो काली है। इसी बात पर दोनों में शर्त लग गयी कि जिसकी बात असत्य होगी उसे दूसरी बहन की दासी बन कर रहना होगा।
शर्त जीतने के लिए कुद्रू ने अपने पुत्र नागों से कहा कि वे उच्चैःश्रवा की पूछ से लिपट जाएँ ताकि उसकी पूंछ काली लगने लगे। बहुत सारे नागों ने अपनी माता के इस छल में साथ देने से मना कर दिया। तब कुद्रू ने उन्हें श्राप दिया कि जो कोई भी मेरी आज्ञा नहीं मानेगा वो जन्मेजय द्वारा भविष्य में किये जाने वाले सर्पयज्ञ में भस्म हो जाएंगे। उस भय से नागों ने उनकी बात मान ली किन्तु शेषनाग, वासुकि और कुछ अन्य नागों ने श्राप की स्वीकार किया किन्तु कुद्रू के छल में साथ देने से मना कर दिया।
कुद्रू की आज्ञा अनुसार नाग उच्चैःश्रवा की पूछ से लिपट गए जिससे विनता ने अपनी पराजय स्वीकार कर ली और कुद्रू की दासी बन गयी। जब गरुड़ को अपनी माता के दासत्व के विषय में पता चला तो वे कुद्रू और नागों के पास आये और कहा कि वे उसकी माता को दासत्व से मुक्त कर दें। इस पर कुद्रू ने कहा कि यदि वो उनके पुत्रों के लिए स्वर्ग से अमृत लेकर आ पाए तो वे विनता को दासत्व से मुक्त कर देगी।
गरुड़ तत्काल अमृत लाने अमरावती पहुँचे जहाँ पर उनका देवताओं से घोर युद्ध हुआ। उस युद्ध में श्रीहरि की कृपा और अपनी शक्ति से गरुड़ ने सबको परास्त कर दिया। तब स्वयं देवराज इंद्र युद्ध करने आये। उन्होंने अपने वज्र से गरुड़ पर प्रहार किया किन्तु गरुड़ ने उस महान दिव्यास्त्र का प्रहार भी सह लिया।
ये देख कर इंद्र ने उनके बल की प्रशंसा की और कहा कि वे अमृत नागों को नहीं दे सकते हैं। इस पर गरुड़ ने कहा कि आप पहले मुझे अमृत दे कर अपनी माता को मुक्त करवाने दीजिये उसके बाद आप उसे वापस ले आइयेगा। इंद्र इससे प्रसन्न हुए और गरुड़ से वरदान मांगने को कहा। तब गरुड़ ने वरदान माँगा कि आज से नाग ही मेरे प्रिय भोजन हों।
योजना अनुसार गरुड़ अमृत लेकर नागों के पास पहुंचे और उसे कुशा पर रख दिया। अमृत देख कर नाग प्रसन्न हो गए और कुद्रू ने विनता को दासत्व से मुक्त कर दिया। जब नाग अमृत पीने आगे बढे तब गरुड़ ने उनसे कहा कि बिना आचमन और स्नान किये अमृत पीने से उन्हें पाप लगेगा। ये कह कर गरुड़ अपनी माता के साथ वहां से चले गए।
उधर नागों ने सोचा कि अमृत का पान तो स्नान के बाद ही करना चाहिए। ये सोच कर वे सब स्नान करने चले गए। देवराज इंद्र इसी की प्रतीक्षा कर रहे थे, वे अमृत को ले कर वापस स्वर्ग आ गए। उधर जब नाग वापस आये तो उस कुशा पर अमृत कलश ना देख कर बड़े पछताए। कुछ सात्विक नाग समझ गए कि उनकी माता के छल में साथ देने के कारण ही उनके साथ भी छल हुआ है।
नागों ने सोचा कि अमृत इतनी देर तक कुशा पर पड़ा हुआ था तो सम्भव है कि उसकी कुछ बूंदें वहां गिरी होगी। यही सोच कर वे सभी कुशा को चाटने लगे किन्तु कुशा की तेज धार से उन सभी की जीभ के दो टुकड़े हो गए। नागों ने इसे भी अपने माता के छल में साथ देने के अपराध के रूप में स्वीकार किया।
चूँकि कुशा से अमृत कलश का स्पर्श हुआ था इसी कारण कुशा को अत्यंत पवित्र माना जाने लगा। यही कारण है कि किसी भी पूजा में कुशा का प्रयोग अवश्य होता है।
व्वाहहहहहह
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंबहुत बढिया कथा
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