वैसे तो माता दुर्गा की शक्ति की कोई सीमा नहीं है किन्तु देवी भागवत में उनकी मुख्य ८ शक्तियों के बारे में बताया गया है जो स्वयं परमपिता ब्रह्मा द्वारा वर्णित है। माता की आठ भुजाएं उनकी इन्ही आठ शक्तियों का प्रतीक हैं। भगवान विष्णु की भांति माँ दुर्गा भी सभी सोलह कलाओं से परिपूर्ण हैं।
- शरीर बल: शरीर बल अर्थात शारीरिक अथवा बाहुबल। इसके विषय में बताने की कोई आवश्यकता नहीं है कि माता का बाहुबल कितना था। जिनका प्राकट्य स्वयं त्रिदेवों की सम्मलित शक्ति से हुआ हो उनकी शक्ति की भला क्या सीमा? अपने बाहुबल से माता ने महिषासुर, चण्ड-मुण्ड, रक्तबीज एवं शुम्भ-निशुम्भ महाशक्तिशाली दैत्यों का वध किया। धूम्रलोचन के ६०००० दुर्धुष योद्धाओं की सेना को तो माता ने केवल अपने एक हुंकार से भस्म कर दिया था।
- विद्या बल: माता सरस्वती की भांति माँ दुर्गा भी समस्त विद्याओं की अधिष्ठात्री है। विद्या, अर्थ संसार में जो भी ज्ञान है वो माता में ही समाहित है और उन्ही से उनका संचार समस्त जगत में होता है। जितने प्रकार की भी दैवीय शक्तियां और सिद्धियां हैं वो सभी माता दुर्गा के आधीन हैं।
- चातुर्य बल: जहाँ शक्ति की सीमा समाप्त होती है वहां से बुद्धि की सीमा आरम्भ होती है। बुद्धि के बल पर बड़े से बड़े योद्धाओं को परास्त किया जा सकता है। विद्या की भांति ही माँ दुर्गा बुद्धि का मूल भी है। शुम्भ-निशुम्भ की सेना का नाश करने हेतु माता ने चण्ड-मुण्ड को अपनी बुद्धि बल से ही वापस भेजा जिसके बाद वे बड़ी सेना लेकर आये और उन सब का माता के हाथों ह्रास हुआ।
- धन बल: माँ दुर्गा धन की देवी लक्ष्मी का ही एक रूप है। धनकुबेर तो स्वयं माता के परम भक्त हैं। संसार का समस्त ऐश्वर्य माता को ही सुशोभित है। जब माँ की कृपा अपने भक्तों पर होती है तो वे उन्हें धन-धान्य से परिपूर्ण कर देती हैं।
- शस्त्र बल: संसार का भला ऐसे कौन से अस्त्र-शस्त्र हैं जिनका ज्ञान माँ दुर्गा को नहीं है? जब त्रिदेवों से माता का प्राकट्य हुआ तो त्रिदेवों के आयुधों के साथ-साथ सभी देवी-देवताओं ने अपने-अपने आयुध भी माता को दिए जिससे माँ दुर्गा संसार से दुष्टों का नाश कर सके। संसार के जितनी भी शक्तियां और दिव्यास्त्र हैं उनका ज्ञान माता को है।
- शौर्य बल: शक्ति जब अपनी अधिकतम सीमा पर पहुँच जाती है तो शौर्य में परिणत हो जाती है। माँ दुर्गा भी शक्ति की पराकाष्ठा हैं। युद्धक्षेत्र में माता के तेज और शौर्य की समता किसी और से नहीं की जा सकती। महाभारत में युद्ध से एक दिन पहले श्रीकृष्ण ने अर्जुन को माता का आशीर्वाद प्राप्त करने को कहा था ताकि उनकी विजय में कोई शंका ना रह जाये। स्वयं महादेव के पुत्र और देवों के सेनापति स्कन्द भी युद्ध से पूर्व माँ दुर्गा की ही आराधना करते हैं।
- मनोबल: शक्ति, शौर्य और शस्त्रों को मन ही नियंत्रित कर सकता है। मनोबल का अर्थ है कि अपनी सभी इन्द्रियों पर पूर्ण नियंत्रण रखते हुए बाह्य माया के प्रभाव से अछूता रहना। माँ स्वयं माया की जननी है फिर संसार की माया का उनपर किस प्रकार प्रभाव पड़ सकता है? माँ दुर्गा का मनोबल समस्त जगत की चेतना का मूल स्रोत है।
- धर्म बल: धर्म ही जगत का आधार है। जगत में जो कुछ भी हो रहा है धर्म की रक्षा हेतु ही हो रहा है। जितने भी अवतार हैं उनका मुख्य उद्देश्य धर्म की रक्षा ही है। माता का प्राकट्य भी संसार से असुरों का नाश कर धर्म की रक्षा करने हेतु ही हुआ था। उन्होंने धरा को दुष्टों से शून्य कर क्षीण होते हुए धर्म में पुनः प्राणों का संचार किया।
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