हम सभी ने सुना है और महाभारत में ये पढ़ा है कि भीम में १०००० हाथियों का बल था। बहुत कम लोगों को ये पता होगा कि आरम्भ में दुर्योधन और भीम समान रूप से शक्तिशाली थे। कहा जाता है कि दुर्योधन में १००० हाथियों का बल था और भीम भी उतने ही शक्तिशाली थे। फिर ऐसा क्या हुआ कि भीम की शक्ति दुर्योधन से कहीं अधिक हो गयी? वास्तव में भीम की शक्ति में जो अद्भुत विस्तार हुआ उसका श्रेय भी दुर्योधन को ही जाता है।
भीम और दुर्योधन की प्रतिस्पर्धा बचपन से ही आरम्भ हो गयी। हालाँकि दोनों समान रूप से शक्तिशाली थे किन्तु भीम के मन में दुष्टता नहीं थी और उनकी संकल्प शक्ति भी अधिक थी। यही कारण था कि भीम बचपन में दुर्योधन सहित सभी कौरवों को परास्त कर दिया करते थे। वैसे तो भीम के लिए ये केवल एक खेल था किन्तु दुर्योधन और अन्य कौरवों के मन में भीम के प्रति वैमनस्य आ गया।
वैसे ही दुर्योधन भीम से घृणा करता था और उसके ऊपर से उसके मामा शकुनि सदैव उसे पांडवों के विरुद्ध भड़काते रहते थे। शकुनि और दुर्योधन दोनों जानते थे कि पांडवों का वास्तविक बल भीम ही हैं और यदि भीम ना रहें तो बांकी भाइयों से निपटना उनके लिए बड़ा सहज होगा। इसी विचार से दुर्योधन के मन में भीम की हत्या का विचार आया।
भूख सदा से भीम की दुर्बलता थी। इसी का लाभ उठाते हुए शकुनि के सुझाव पर दुर्योधन ने भीम के लिए खीर बनवाई और उसमें विष मिला कर उसे खिला दिया। उस घोर विष से भीम अचेत हो गए और तब दुर्योधन और शकुनि ने भीम को लताओं से बांध कर गंगा में फेंक दिया और उसे मरा हुआ समझ कर यूँ वापस हस्तिनापुर लौट आये जैसे कुछ हुआ ही ना हो।
उधर लताओं से बंधे अचेत भीम गंगा के तल तक पहुँच गए जहाँ नागों का निवास था। जब उन्होंने एक बालक को यूँ पड़ा पाया तो उसे काट लिया। इस प्रकार नागों के विष ने भीम के शरीर के विष का शमन कर दिया और वे होश में आ गए। फिर क्या था, क्रोधित भीम ने लताओं को तोड़ दिया और वहाँ नागों को मारना आरम्भ किया। इससे घबरा कर नाग वहाँ से भाग कर नागराज वासुकि के पास पहुंचे।
जब नागराज वासुकि ने इस घटना के बारे में सुना तो उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ कि ऐसा कौन है जो इतनी कम आयु में ही इतने नागों को परास्त कर रहा है? वे अपने मंत्री आर्यक के साथ द्वार पर आये और भीम से उसका परिचय पूछा। तब भीम ने उन्हें प्रणाम किया और बताया कि वो कुंती पुत्र है। ये सुनकर आर्यक को बड़ी प्रसन्नता हुई क्यूंकि वे भीम के नाना शूरसेन के नाना थे।
उन्होंने ये बात भीम को बताई और उसे अपने साथ नागलोक ले गए। भीम की वीरता से वासुकि इतने प्रसन्न हुए कि वे भीम को सोमरस के एक कुंड के पास ले गए। उन्होंने कहा कि इस एक कुंड में १००० हाथियों का बल है। तुम इसमें से जितना सोमरस पी सको पी लो। किन्तु नागराज वासुकि को वृकोदर भीम की क्षुदा के बारे में पता नहीं था। भीम बात ही बात में उस कुंड का सारा रस पी गए।
उस कुंड का रस पीने के बाद भीम ने उनसे और रस माँगा। तब वासुकि उन्हें एक-एक कर के वहां अन्य ७ कुंडों के पास ले गए और भीम ने उन सातों कुंडों का रस भी पी लिया। इस प्रकार आठ कुंडों का रस पीकर भीम सो गए और लगातार ८ दिनों तक सोते रहे। जब आठवें दिन वे उठे तो उन्हें अपनी माता और भाइयों की याद आयी और फिर वे नागराज वासुकि और अपने नाना के नाना आर्यक से आज्ञा और आशीर्वाद लेकर लौट आये।
भीम को वापस आया देख कर सभी बड़े प्रसन्न हुए। भीम ने कुंती और विदुर को सारी बात बताई किन्तु उस समय विदुर और युधिष्ठिर ने उन्हें ये बात किसी को ना बताने की सलाह दी ताकि परिवार में वैमनस्य और ना बढे। भीम ने दुर्योधन वाली बात तो किसी को नहीं बताई किन्तु उन्होंने ये बताया कि किस प्रकार नागलोक के दिव्य रस के ८ कुंड पीने से उनकी शक्ति कई गुणा बढ़ गयी है। दुर्योधन इससे बड़ा निराश हुआ क्यूंकि उसने जो किया उससे भीम का तो कोई अहित नहीं हुआ, उलटे वो कई गुणा शक्तिशाली बन कर लौटा।
ऐसा कहा जाता है कि दुर्योधन सदा से ये जानता था कि अब वो शक्ति में तो भीम के आगे नहीं टिक सकता। यही कारण था कि उसने बचपन से ही अपने गदायुद्ध के कौशल पर विशेष ध्यान दिया। यही नहीं, पांडवों के वनवास और अज्ञातवास के समय उसने भीम की लौह प्रतिमा बनवा कर उसपर १३ वर्ष गदायुद्ध का अभ्यास किया। इसके अतिरिक्त उसे बलराम जैसे गुरु भी मिले जिन्होंने उसे गदायुद्ध में पारंगत कर दिया। किन्तु फिर भी अधर्म के पक्ष में होने के कारण अंततः भीम के हाथों उसकी मृत्यु हुई।
Thanks
जवाब देंहटाएंऐसे ज्ञान साझा साझा करने के लिए साधुवाद।
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