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कैसे आया भीम में १०००० हाथियों का बल?
हम सभी ने सुना है और महाभारत में ये पढ़ा है कि भीम में १०००० हाथियों का बल था। बहुत कम लोगों को ये पता होगा कि आरम्भ में दुर्योधन और भीम समान रूप से शक्तिशाली थे। कहा जाता है कि दुर्योधन में १००० हाथियों का बल था और भीम भी उतने ही शक्तिशाली थे। फिर ऐसा क्या हुआ कि भीम की शक्ति दुर्योधन से कहीं अधिक हो गयी? वास्तव में भीम की शक्ति में जो अद्भुत विस्तार हुआ उसका श्रेय भी दुर्योधन को ही जाता है।
क्या अहिल्या वास्तव में निर्दोष थी?
आपमें से कई लोग सोच रहे होंगे कि आज मैं ये कौन सा विषय लेकर आ गया। हम सभी ने हमेशा यही पढ़ा है कि पंचकन्याओं में से एक अहिल्या सर्वथा निर्दोष थी और महर्षि गौतम ने उन्हें बिना सत्य जाने श्राप दे दिया था। बाद में श्रीराम ने उनका उद्धार किया था। बरसों से हम यही सुनते और देखते आ रहे हैं। किन्तु आज हम इस घटना के सत्य को जानने का प्रयत्न करेंगे।
अग्नि देव
हिन्दू धर्म में अग्नि की बड़ी महत्ता बताई गयी है। बिना अग्नि के मनुष्यों का जीवन संभव नहीं और इसीलिए हम अग्नि को देवता की भांति पूजते हैं। इसी अग्नि के अधिष्ठाता अग्निदेव बताये गए हैं जिनकी उत्पत्ति स्वयं परमपिता ब्रह्मा से हुई मानी गयी है। हिन्दू धर्म में पंचमहाभूतों की जो अवधारणा है उनमें से एक अग्नि हैं। अन्य चार पृथ्वी, जल (वरुण), वायु एवं आकाश हैं।
कौन हैं पंजुरली और गुलिगा देव और क्या है भूता कोला?
आज कल "कांतारा" नामक एक फिल्म की बहुत चर्चा है और उससे भी अधिक उत्सुकता उस फिल्म में दिखाए गए देवता "पंजुरली देव" के बारे में जानने में है। पंजुरली देव की उपासना दक्षिण भारत, विशेषकर कर्णाटक और केरल के कुछ हिस्सों में की जाती है। वहां इनकी दंतकथाएं बड़ी प्रचलित हैं किन्तु देश के अन्य हिस्सों में उसके बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं। तो आइये इस विषय में कुछ जानते हैं।
क्या है नौ प्रकार की भक्ति?
हिन्दू धर्म में भक्ति को सर्वोत्तम स्थान दिया गया है। भक्त की भक्ति के कारण तो भगवान भी दौड़े चले आते हैं। भक्ति की व्याख्या अलग-अलग ग्रंथों में अलग प्रकार से की गयी है। विभिन्न मत और समुदाय भक्ति को अपने तरीके से परिभाषित करते हैं किन्तु हमारे ग्रंथों में नौ प्रकार की भक्ति को बड़ा महत्त्व दिया गया है जिसे "नवधा भक्ति" कहा जाता है।
माँ दुर्गा की आठ मुख्य शक्तियां
वैसे तो माता दुर्गा की शक्ति की कोई सीमा नहीं है किन्तु देवी भागवत में उनकी मुख्य ८ शक्तियों के बारे में बताया गया है जो स्वयं परमपिता ब्रह्मा द्वारा वर्णित है। माता की आठ भुजाएं उनकी इन्ही आठ शक्तियों का प्रतीक हैं। भगवान विष्णु की भांति माँ दुर्गा भी सभी सोलह कलाओं से परिपूर्ण हैं।
महर्षि मांडव्य - वो ऋषि जिन्होंने यमराज को भी श्राप दिया
माण्डव्य पौराणिक काल के एक महान ऋषि थे जिनके श्राप के कारण यमराज को भी मनुष्य का जन्म लेना पड़ा। वैसे तो यमराज सारे प्राणियों के कर्मों के आधार पर न्याय करते हैं इसीलिए उन्हें धर्मराज कहा जाता है किन्तु उन्होंने अनजाने में माण्डव्य ऋषि के साथ अन्याय किया जिसका दंड उन्हें भोगना पड़ा।
श्रीगणेश के अवतार
हम सबने भगवान विष्णु के दशावतार और भगवान शंकर के १९ अवतारों के विषय में सुना है। किन्तु क्या आपको श्रीगणेश के अवतारों के विषय में पता है? वैसे तो श्रीगणेश के कई रूप और अवतार हैं किन्तु उनमें से आठ अवतार जिसे "अष्टरूप" कहते हैं, वो अधिक प्रसिद्ध हैं। इन आठ अवतारों की सबसे बड़ी विशेषता ये है कि इन्ही सभी अवतारों में श्रीगणेश ने अपने शत्रुओं का वध नहीं किया बल्कि उनके प्रताप से वे सभी स्वतः उनके भक्त हो गए। आइये उसके विषय में कुछ जानते हैं।
सापों की जीभ कटी हुई क्यों होती है?
हम सभी जानते हैं कि सर्पों की जीभ बीच से कटी हुई होती है। विज्ञान के तर्क के अनुसार सर्पों की सुनने की शक्ति बहुत कम होती है और अपनी जीभ की इस संरचना के कारण सर्प सरलता से सुन लेते हैं। हालाँकि इस विषय में महाभारत और कुछ पुराणों में भी एक कथा मिलती है।
पांडवों का पुनर्जन्म
महापुराणों के अतिरिक्त अन्य पुराणों की प्रमाणिकता पर यदा-कदा प्रश्न उठते ही रहे हैं। किन्तु उनमें भी जो पुराण सबसे अधिक शंशय का केंद्र रहा है वो है भविष्य पुराण। ऐसी मान्यता है कि समय के साथ इसी पुराण में सबसे अधिक मिलावट की गयी है। यही कारण है कि इस पुराण में लिखा हुआ कितना सत्य है और कितना असत्य, ये ठीक-ठीक किसी को नहीं पता है।
भगवान विष्णु के 24 अवतार
जब भी ईश्वर के अवतार की बात आती है तो भगवान विष्णु के अवतार सबसे प्रसिद्ध हैं। श्रीहरि के दशावतार तो खैर जगत विख्यात हैं किन्तु उनके कुल २४ अवतार माने जाते हैं। इन २४ अवतारों में से जो दशावतार हैं वे भगवान विष्णु के साक्षात् रूप ही हैं और अन्य १४ अवतार उनके लीलावतार माने जाते हैं। श्रीहरि के दशावतार का वर्णन विष्णु पुराण में विशेष रूप से दिया गया है। उनके २४ अवतारों का वर्णन श्रीमदभागवत और सुख सागर में दिया है। इस सूची में सभी दशावतार को रेखांकित किया गया है।
अष्ट चिरंजीवी - वे आठ महापुरुष जो अमर हैं
भारत में जब बड़े आशीर्वाद देते हैं तो सबसे आम आशीर्वाद होता है "चिरंजीवी भवः"। चिरंजीवी का अर्थ होता है चिरकाल तक जीवित रहना। इसे आम भाषा में अमर होना कहते हैं। वैसे तो लोग समझते हैं कि अमर का अर्थ होता है जो कभी ना मरे, किन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है। खैर अमर होने का वास्तविक अर्थ हम किसी और लेख में समझेंगे। आज इस लेख में हम चर्चा करेंगे उन ८ व्यक्तियों की जो अमर माने जाते हैं।
प्रसिद्ध "सूत जी" कौन थे?
यदि आपने हिन्दू धर्म के किसी भी धर्मग्रन्थ या व्रत कथाओं को पढ़ा है तो आपके सामने पौराणिक "सूत जी" का नाम अवश्य आया होगा। कारण ये है कि सूत जी कदाचित हिन्दू धर्म के सबसे प्रसिद्ध वक्ता हैं। कारण ये कि पुराणों की कथा का प्रसार जिस स्तर पर उन्होंने किया है वैसा किसी और ने नहीं किया। किन्तु ये "सूत जी" वास्तव में हैं कौन?
आत्मा का रहस्य
आत्मा सदैव से सभी के लिए एक रहस्य का विषय है। आधुनिक वैज्ञानिक भी लम्बे समय से आत्मा के रहस्य को समझने का प्रयास कर रहे हैं। हिन्दू धर्म में आत्मा, जिसे जीवात्मा भी कहते हैं, का अत्यधिक महत्त्व बताया गया है। कई ग्रंथों में इसके विषय में विस्तार से बताया गया है, विशेषकर नचिकेता और यमराज के संवाद में। आइये आत्मा के विषय में कुछ रोचक तथ्य जानते हैं।
रावण कुम्भकर्ण और विभीषण के पूर्वजन्म की एक अनसुनी कथा
भगवान विष्णु के पार्षद जय-विजय किस प्रकार श्राप के कारण रावण और कुम्भकर्ण के रूप में जन्मे ये हम सभी जानते हैं। इस विषय में हमने एक विस्तृत लेख पहले ही प्रकाशित किया है जिसे आप यहाँ पढ़ सकते हैं। आज हम रावण के उस पूर्वजन्म की कथा जानेंगे जिसे बहुत ही कम लोग जानते हैं। ये कथा श्री रामचरितमानस में दी गयी है। ये कथा मानस के बालकाण्ड में १५२वें दोहे से आरम्भ होकर १७५वें दोहे पर समाप्त होती है।
अक्रूर
महाराज ययाति के ज्येष्ठ पुत्र यदु से यदुकुल चला। इसी से आगे चलकर हैहय वंश पृथक हुआ जिसमें महान सम्राट कर्त्यवीर्य अर्जुन ने जन्म लिया। दूसरी शाखा में दो प्रमुख वंश चले - वृष्णि एवं अंधक। इन्ही में से वृष्णि वंश में श्रीकृष्ण ने जन्म लिया और इसी वंश में उनसे एक पीढ़ी पहले यादव वीर अक्रूर का जन्म हुआ। वे श्रीकृष्ण के पिता वासुदेव के चचेरे भाई थे। यदुवंश के विषय में आप विस्तार से यहाँ पढ़ सकते हैं।
देवगुरु बृहस्पति
परमपिता ब्रह्मा के १६ मानस पुत्रों और सप्तर्षियों में से एक थे महर्षि अंगिरस। इन्होने महर्षि मरीचि की पुत्री सुरूपा से विवाह किया किन्तु बहुत काल तक उन्हें कोई संतान नहीं हुई। तब महर्षि अंगिरस ने अपने पिता ब्रह्मा से प्रार्थना की जिससे प्रसन्न होकर ब्रह्मदेव ने उन्हें पुंसवन नामक व्रत को करने का निर्देश दिया। सुरूपा ने सनत्कुमारों से इस व्रत की जानकारी ली जिससे उन्हें तीन पुत्र प्राप्त हुए - संवर्त, उतथ्य एवं जीव।
वट वृक्ष - वो पेड़ जिसे अमर माना जाता है
वट वृक्ष हिन्दू धर्म के सर्वाधिक महत्वपूर्ण और पवित्र वनस्पतियों में से एक है। अश्वत्थ (पीपल) एवं तुलसी के साथ वट वृक्ष, अर्थात बरगद के पेड़ की हिन्दू धर्म में अत्यधिक महत्ता है। हिन्दू धर्म के लगभग हर ग्रन्थ में वट वृक्ष के महत्त्व के विषय में लिखा गया है। केवल हिन्दू धर्म में ही नहीं अपितु जैन और बौद्ध धर्म में भी वट वृक्ष की अद्भुत महत्ता बताई गयी है।
ऋषियों के कितने समुदाय हैं?
कुछ समय पहले हमने ऋषि, मुनि, साधु, संन्यासी के अंतर पर एक लेख प्रकाशित किया था। आज हम पुराणों में वर्णित ऋषि-मुनियों के विभिन्न समुदायों के विषय में बात करेंगे। इनमें से कई समुदाय आपको आज भी अपने आस पास मिल जायेंगे। वैसे तो पुराणों में अनेकों समुदायों का वर्णन है किन्तु इस लेख में हम मुख्य समुदायों के विषय में चर्चा करेंगे।
हिरण्यकशिपु
परमपिता ब्रह्मा से सर्वप्रथम सात महान ऋषियों ने जन्म लिया जिन्होंने सप्तर्षि और प्रजापति का पद ग्रहण किया। इन्ही में से एक थे महर्षि मरीचि। उनकी पत्नी कला से उन्हें एक पुत्र प्राप्त हुए महर्षि कश्यप। महर्षि कश्यप ने प्रजापति दक्ष की १७ कन्याओं से विवाह किया और उन्ही की संतानों से समस्त जातियों की उत्पत्ति हुई। इनकी ज्येष्ठ पत्नी अदिति से आदित्य और दूसरी पत्नी दिति से दैत्यों का जन्म हुआ।
जय और विजय - जिन्होंने श्रीहरि के भक्त बनने के स्थान पर उनका शत्रु बनना पसंद किया
वैसे तो भगवान विष्णु के कई पार्षद हैं किन्तु जय-विजय उनमें से प्रमुख हैं। ये दोनों वैकुण्ठ के मुख्य द्वार के रक्षक हैं और श्रीहरि को सर्वाधिक प्रिय हैं। ये दोनों उप-देवता की श्रेणी में आते हैं और इन्हे गुण एवं रूप में श्रीहरि के समान ही बताया गया है। श्रीहरि की भांति ही ये भी अपने तीन हाथों में शंख, चक्र एवं गदा धारण करते हैं, पर इनके चौथे हाथ में तलवार होती है, वहीँ श्रीहरि अपने चौथे हाथ में कमल धारण करते हैं।
शिव परिवार में विरोधाभास
हम सभी भगवान शंकर के परिवार के विषय में जानते हैं। महादेव इस परिवार के प्रमुख हैं। उनकी पत्नी माता पार्वती हैं। इन दोनों की एक पुत्री और दो पुत्र हैं। हालाँकि कई और लोगों को महादेव के पुत्र एवं पुत्री होने का गौरव प्राप्त है किन्तु मुख्य रूप से उनकी तीन संताने ही है - पुत्री अशोकसुन्दरी एवं पुत्र कार्तिकेय एवं गणेश। भगवान शंकर के अन्य पुत्र-पुत्रियों के बारे में विस्तार से इस लेख में पढ़ें।
ऋषि, मुनि, साधु, संन्यासी, तपस्वी, योगी, संत और महात्मा में क्या अंतर है?
हिन्दू धर्म में ऋषि-मुनियों का क्या महत्त्व रहा है वो बताने की आवश्यकता नहीं है। शास्त्रों में इन्हे समाज का मार्गदर्शन करने वाला कहा गया है। अपने ज्ञान और साधना से ये सदैव समाज का कल्याण करते आये हैं। आम तौर पर हम इन्हे एक दूसरे के पर्यायवाची मानते हैं, किन्तु इनमे भी अंतर होता है। आइये इनके विषय में जानते हैं।
नवनाथ - नाथ संप्रदाय के नौ सर्वोच्च सिद्ध
हिन्दू धर्म में नाथ संप्रदाय का बड़ा महत्त्व है। ऐसी मान्यता है कि ये संप्रदाय स्वयं भगवान शंकर के भैरव रूप से आरम्भ हुआ और इसके पहले गुरु श्रीहरि के अवतार भगवान दत्तात्रेय हुए। इसी कारण नाथ संप्रदाय में महादेव अथवा भैरव को "आदिनाथ" एवं दत्तात्रेय को "आदिगुरु" कहा जाता है। ऐसी भी मान्यता है कि सभी नौ सिद्धों का जन्म परमपिता ब्रह्मा के वीर्य से ही हुआ था।
माता सरस्वती के रूप एवं अवतार
पिछले लेख में हमने ईश्वर के अवतार और रूप में अंतर के विषय में जाना था। हमनें माता लक्ष्मी के ८ रूप जिन्हे अष्टलक्ष्मी कहा जाता है, उनके बारे में भी देखा। इस लेख में हम माता सरस्वती के रूपों एवं अवतारों के विषय में बात करेंगे। माता पार्वती एवं माता लक्ष्मी की भांति माता सरस्वती के भी अनेक रूप हैं, हालांकि उनके अवतारों की संख्या उतनी नही है।
अजामिल - वो पापी जिसने स्वर्ग प्राप्त किया
प्राचीन काल में अजामिल नामक एक कान्यकुब्ज ब्राह्मण था। उसके पिता ने उसे बहुत अच्छी शिक्षा और संस्कार दिए थे और वो भी सदैव अपने पिता की सेवा एवं ईश्वर की साधना में लगा रहता था। उसके पिता ऐसे आदर्श पुत्र को प्राप्त कर अपने आप को धन्य समझते थे। समय आने पर उन्होंने अजामिल का विवाह एक सुन्दर एवं सुशील ब्राह्मण कन्या से कर दिया। एक आदर्श पुत्र की भांति ही अजामिल एक आदर्श पति भी साबित हुआ और दोनों सुख पूर्वक रहने लगे।
शिवलिंग में "लिंग" शब्द का वास्तव में क्या अर्थ है?
विगत कुछ समय से बहुत ही सुनियोजित ढंग से हमारे धर्मग्रंथों में लिखे तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर कलुषित करने का प्रयास चल रहा है। कुछ चीजें ऐसी भी होती है जिसे लोग ढंग से समझ नहीं पाते और अर्थ का अनर्थ हो जाता है। आज के समय में शिवलिंग की जो एक अवधारणा है वो भी बहुत ही भ्रामक है। तो आइये इस लेख में हम शिवलिंग का वास्तविक अर्थ समझने का प्रयास करते हैं।
वेदों के रोचक तथ्य
हिन्दू धर्म में वेदों को भगवान ब्रह्मा की वाणी एवं सृष्टि का आधार कहा गया है। कहते हैं वेद उतने ही प्राचीन हैं जितनी ये सृष्टि है। हिन्दू धर्म ग्रन्थ श्रुति एवं स्मृति में वर्गीकृत है और श्रुतियों में केवल वेदों की ही गणना होती है। आइये वेदों के विषय में कुछ रोचक चीजें जानते हैं।
अष्टलक्ष्मी - माता लक्ष्मी के आठ सर्वोच्च रूप
हमें कुछ समय पहले देवताओं के अवतार और रूप के विषय में जाना था। माता लक्ष्मी के वैसे तो कई रूप हैं किन्तु उनमें से ८ सबसे प्रमुख माने जाते हैं जिन्हे हम अष्टलक्ष्मी कहते हैं। इन आठ रूपों में वे सृष्टि के विभिन्न भागों का प्रतिनिधित्व करती हैं। आइये इनके विषय में कुछ जानते हैं।
श्रीराम १२ एवं श्रीकृष्ण १६ कलाओं के साथ क्यों अवतरित हुए?
ये तो हम सभी जानते हैं कि किसी भी मनुष्य अथवा देवता की कुल १६ कलाएं होती हैं। १६ कलाओं पर एक लेख हमने पहले ही प्रकाशित कर दिया है जिसे आप यहाँ पढ़ सकते हैं। भगवान विष्णु भी इन सभी १६ कलाओं के धारक हैं। इसके अतिरिक्त चन्द्रमा को भी महादेव की कृपा से १६ कलाएं प्राप्त हैं और माता दुर्गा के पास भी कुल १६ कलाएं हैं। हालाँकि चंद्र एवं माँ दुर्गा की कलाएं श्रीहरि की कलाओं से भिन्न हैं।
सुदर्शन चक्र
पुराणों में विभिन्न देवताओं के अनेक अस्त्र-शस्त्र का वर्णन दिया गया है। किन्तु जब भी बात दिव्यास्त्रों की आती है तो उसमें सुदर्शन चक्र का वर्णन प्रमुखता से किया जाता है। ये मूल रूप से भगवान विष्णु का अस्त्र है। उनके अतिरिक्त दशावतारों में भी कइयों ने इसे धारण किया, किन्तु उनमें से भी विशेष रूप से ये श्रीकृष्ण के साथ जुड़ा है।
प्रमुख हिंदू धर्म ग्रंथों की सूची
कुछ समय पूर्व हमनें श्रुति एवं स्मृति के रूप में हमारे धार्मिक ग्रंथों के विभाजन के बारे में एक लेख लिखा था। आज हम उसे एक स्तर आगे ले जाने वाले हैं। सनातन हिंदू धर्म सृष्टि के आदि से प्रचलित भूमंडल में विख्यात धर्म है। इसके आधारभूत शास्त्रों को जानना आवश्यक है। इस लेख में संक्षेप मे इस पर कुछ निरूपण किया गया है।
अवतार कितने प्रकार के होते हैं?
हम सभी ईश्वर के अवतारों के विषय में जानते हैं। ईश्वर के अवतार और विस्तार के विषय में एक लेख हमने पहले ही प्रकाशित कर दिया है जिसे आप यहाँ पढ़ सकते हैं। अवतार के विषय में कहा गया है - अवतरति इति अवतारः। अर्थात जो अवतरण करे, अर्थ है कि जो ऊपर (दिव्य लोक) से नीचे (पृथ्वी लोक) पर आये, वही अवतार है। पुराणों में अवतारों के प्रकारों के विषय में भी विस्तृत वर्णन दिया गया है।
प्राणी मनुष्य के रूप में क्यों जन्म लेता है?
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हिन्दू धर्म में कुल चौरासी लाख योनियों का वर्णन है। अर्थात किसी प्राणी की आत्मा इन में से किसी भी योनि में जन्म ले सकती है। वो किस योनि में जन्म लेगी और किसमें नहीं, ये उस प्राणी के पूर्व जन्में में किये गए कर्मों के आधार पर निश्चित होता है। इन सभी योनियों में मनुष्य योनि सर्वोत्तम मानी गयी है। तो आइये जानते हैं कि हम मनुष्य योनि में कब और क्यों जन्म लेते हैं।