माता दुर्गा के विषय में एक लेख हमने पहले ही प्रकाशित किया है। उस लेख में हमने बताया कि माता दुर्गा का प्राकट्य त्रिदेवों से ही हुआ था। अन्य देवताओं के तेज से उनके सभी अंगों का निर्माण हुआ। उसके अतिरिक्त अनेकों देवताओं ने उन्हें अपने अस्त्र भी दिए जिसे माता अपने आठों हाथों में धारण करती है। आज इस लेख में हम जानेंगे कि माता दुर्गा को किस देवता से कौन सा अस्त्र प्राप्त हुआ।
- भगवान शंकर: महादेव ने माता को अपना त्रिशूल भेंट दिया। महिषासुर पर अंतिम प्रहार माता ने इसी त्रिशूल से किया था। इसके अतिरिक्त उन्होंने एक नाग भी माता को प्रदान किया।
- भगवान विष्णु: नारायण ने अपना सुदर्शन चक्र माता को भेंट किया।
- भगवान ब्रह्मा: परमपिता ने माता को अपना कमंडल भेंट किया।
- इंद्रदेव: देवराज ने माता को अपना वज्र प्रदान किया। इसके अतिरिक्त उन्होंने ऐरावत के गले से उतार कर एक दिव्य घंटा भी माता को भेंट किया।
- सूर्य देव: सूर्यनारायण ने माता को अपना तेज प्रदान किया।
- वरुण देव: इन्होने अपना शंख माता को दिया जिससे भीषण शंखनाद से शत्रु का बल आधा हो जाता था।
- अग्निदेव: अग्निदेव ने माता को शक्ति नामक भाला प्रदान किया।
- पवनदेव: इन्होने माता को अपना अमोघ धनुष और अक्षय तूणीर में भरे हुए बाण दिए।
- विश्वकर्मा: देवशिल्पी विश्वकर्मा ने माता को एक अमोघ परशु प्रदान किया।
- यमराज: धर्मराज ने माता को अपना काल दंड प्रदान किया जो मृत्यु को भी वश में रखता था।
- कुबेर: यक्षराज कुबेर ने मधुपात्र माता को दिया।
- प्रजापति दक्ष: ब्रह्मा पुत्र दक्ष ने माता को स्फटिक माला दी।
- गणेश: श्रीगणेश ने माता दुर्गा को खड्ग प्रदान किया।
- समुद्र: समुद्र तो रत्नों और शक्तियों का भंडार ही माना जाता है। समुद्र देव ने माता को उज्जवल हार, दो दिव्य वस्त्र, दिव्य चूड़ामणि, दो कुंडल, कड़े, अर्धचंद्र, सुंदर हंसली और अंगुलियों में पहनने के लिए रत्नों की अंगूठियां भेंट कीं।
- हिमालय: पर्वतराज ने मां दुर्गा को सवारी करने के लिए शक्तिशाली सिंह भेंट किया।
- सरोवर: सरोवरों ने उन्हें कभी न मुरझाने वाली कमल की माला अर्पित की।
इसके अतिरिक्त दुर्गा शप्तशती में भी माता के अस्त्र-शस्त्रों के बारे में एक श्लोक मिलता है। इस श्लोक में उनके महालक्ष्मी रूप और कुल १८ हाथों में जो आयुध होते हैं उनके बारे में बताया गया है।
ॐ अक्षस्त्रक्परशुं गदेशुकुलिशं पद्मं धनुषकुण्डिकां
दण्डं शक्तिमसिं च चर्म जलजं घण्टां सुराभाजनम्।
शूलं पाशसुदर्शने च दधतीं हस्तै: प्रसन्नाननां
सेवे सैरिभमर्दिनीमिह महालक्ष्मीं सरोजस्थितां।।
अर्थात: ''मैं कमल के आसन पर बैठी हुई प्रसन्न मुख वाली महिषासुरमर्दिनी भगवती महा लक्ष्मी का भजन करता हूं, जो अपने हाथों में (१) अक्षमाला (२) फरसा (३) गदा (४) बाण (५) वज्र (६) पद्म (७) धनुष (८) कुण्डिका (९) दण्ड (१०) शक्ति (११) खड्ग (१२) ढाल (१३) शंख (१४) घंटा (१५) मधुपात्र (१६) शूल (१७) पाश एवं (१८) चक्र धारण करती है।''
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