श्रीगणेश की कथा तो हम सभी जानते हैं। उन्हें गजमुख क्यों और किस प्रकार प्राप्त हुआ उसके बारे में भी सभी लोगों को पता है। गणेश जी के सर के कटने के विषय में दो कथाएं मुख्य रूप से प्रसिद्ध हैं। सबसे प्रसिद्ध कथा तो महादेव के द्वारा उनके सर को काटने की है जो सर्वविदित है। किन्तु एक अन्य कथा भी आती है जिसमें शनिदेव की कुदृष्टि के कारण श्रीगणेश का मस्तक कट गया था।
अब एक प्रश्न आता है कि चाहे वो महादेव द्वारा हो अथवा शनिदेव के द्वारा, कटने के बाद उनका मस्तक आखिर गया कहाँ? इस विषय में भी कई ग्रंथों में अलग-अलग कथाएं मिलती हैं। इस विषय में मूल कथा हमें शिव महापुराण, स्कन्द पुराण और गणेश उप-पुराण में मिलता है। इसके अतिरिक्त भी कई ग्रन्थ हैं जिसमें हमें इस घटना का उल्लेख मिलता है।
इस विषय में एक और प्रश्न भी आता है कि महादेव तो त्रिभुवनपति हैं फिर क्या कारण था कि उन्होंने श्रीगणेश का मस्तक पुनः क्यों नहीं जोड़ दिया? इस प्रश्न के उत्तर में ही श्रीगणेश के मस्तक का रहस्य छिपा हुआ है। मूल कथा के अनुसार जब महादेव ने श्रीगणेश पर प्रहार किया तो उनके प्रचंड प्रहार से उनका मस्तक भस्म हो गया। चूँकि वो मस्तक स्वयं महादेव के प्रहार से भस्म हुआ था इसी कारण उनके धड़ पर गज का मस्तक जोड़ना पड़ा।
इस विषय में शनिदेव की जो कथा है उसके अनुसार जब श्रीगणेश का जन्म हुआ तो उन्हें देखने सभी देवता आये। शनिदेव भी उनके दर्शनों को आये पर वे उनकी ओर देख नहीं रहे थे। जब माता पार्वती ने उनसे इसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि वे नहीं चाहते कि उनकी कुदृष्टि उनके पुत्र पर पड़े और कोई अनिष्ट हो जाये। इस पर माता को विश्वास नहीं हुआ और उन्होंने शनिदेव को श्रीगणेश को देखने को कहा। जैसे ही शनिदेव ने श्रीगणेश पर अपनी कुदृष्टि डाली तो उनका मस्तक कट कर चंद्रलोक में चला गया और वही स्थित हो गया। ये देख कर माता पार्वती मूर्छित हो गयी और तब नारायण ने एक गज का मस्तक श्रीगणेश के सर पर जोड़ कर उन्हें पुनर्जीवित किया।
ऐसी ही मान्यता शिव जी द्वारा श्रीगणेश के मस्तक को काटे जाने के विषय में भी है। कथा अनुसार त्रिशूल द्वारा काटे जाने पर श्रीगणेश का मस्तक चंद्र लोक में जाकर स्थित हो गया। उनका मस्तक वहां स्थित होने के कारण चंद्र लोक की महिमा और भी अधिक हो गयी। कुछ लोग ऐसा भी मानते हैं कि चूँकि चंद्रदेव महादेव के प्रिय हैं और चंद्र सदैव उन्ही के आश्रय में रहते हैं इसी कारण महादेव ने श्रीगणेश का सर चंद्र लोक में ही स्थित किया।
इस विषय में स्कन्द पुराण में एक कथा और आती है कि श्रीगणेश का कटा हुआ मस्तक मृत्युलोक अर्थात पृथ्वी पर आ गिरा। वर्तमान में उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में गंगोलीहाट से लगभग १५ किलोमीटर दूर एक गुफा है जिसे "पाताल भुवनेश्वर" के नाम से जाना जाता है। ये गुफा भी बहुत रहस्य्मयी है जो लगभग १६० मीटर लम्बी और ९० मीटर गहरी है। ऐसी मान्यता है कि इसी गुफा के अंदर श्रीगणेश का वो कटा हुआ मस्तक रखा गया था।
कुछ लोग ऐसा भी मानते हैं कि मानव कल्याण के लिए स्वयं भगवान शंकर ने श्रीगणेश के कटे हुए मस्तक को यहाँ स्थापित किया था। यहाँ श्रीगणेश का मस्तक एक शिला में उकेरा गया है जिसके चारो ओर एक ब्रह्मकमल भी उकेरा गया है। ऐसी मान्यता है कि वो कमल स्वयं महादेव ने बनाया था। उस मस्तक पर जल की बूंदें सदा गिरती रहती है जिसे अमृत माना जाता है। इस गुफा की खोज आदि शंकराचार्य ने की थी। शताब्दियों से यहाँ दूर-दूर से लोग उस मस्तक के दर्शन करने को आते हैं।
सर्वथा नवीन और उत्तम शोध
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