हमारे पौराणिक ग्रंथों में शनिदेव को तेल चढाने के बारे में कहा गया है। शताब्दियों से लोग हर शनिवार को शनिदेव पर तेल चढ़ाते आ रहे हैं। मान्यता है कि ऐसा करने पर शनि की साढ़ेसाती और ढैया से मुक्ति मिलती है। किन्तु शनिदेव को तेल चढाने के पीछे एक पौराणिक कथा भी है जो रामायण से सम्बंधित है।
एक कथा के अनुसार शनिदेव को महादेव ने सभी के कर्मों के हिसाब से उन्हें फल देने का दायित्व सौंपा। इससे शनिदेव का महत्त्व तीनों लोकों में बढ़ गया। उनका बल तो अथाह था ही, उनकी वक्र दृष्टि से तो देवता भी घबराते थे। अपने इसी अतुल सामर्थ्य के कारण शनिदेव के मन में अहंकार आ गया कि इस त्रिलोक में उनसे शक्तिशाली कोई और नहीं है।
उसी अहंकार में शनिदेव अपने लिए कोई योग्य प्रतिद्वंदी खोजने लगे। किन्तु शनिदेव से बैर भला कौन ले? बहुत खोजने पर भी उन्हें कोई प्रतिद्वंदी नहीं मिला। इसी विषय में शनिदेव ने देवर्षि नारद से पूछा तो उन्होंने बताया कि आपके योग्य प्रतिद्वंदी तो केवल केसरी नन्दन हनुमान ही हैं। यह सुनकर शनिदेव तत्काल मृत्युलोक पहुंचे और हनुमान जी को ढूंढने लगे। बहुत खोजने के बाद उन्हें पवनपुत्र हनुमान एक निर्जन स्थान पर श्रीराम का जाप करते हुए दिखाई दिए।
हनुमान जी को अपने समक्ष देख कर शनिदेव ने उन्हें युद्ध के लिए ललकारा। इस पर हनुमान जी ने उन्हें प्रणाम करते हुए कहा कि "हे शनिदेव! आप तो मेरे लिए पूज्य हैं। आप मेरे गुरु भगवान सूर्यनारायण के पुत्र भी हैं इस कारण से भी आप मेरे लिए आदरणीय हैं। इसके अतिरिक्त मुझे ध्यान नहीं आता कि मैंने आपका कभी कोई अहित किया हो। फिर आप क्यों मुझसे युद्ध करना चाहते हैं?"
यह सुनकर अभिमान से भरे शनिदेव ने कहा "हे मारुति! मैंने सुना है कि इस संसार में आपसे अधिक बलशाली कोई और नहीं है। आपकी शक्ति के बारे में कई किवदंतियां प्रसिद्ध हैं। जरा मैं भी तो देखूं कि वो किवदंतियां सत्य है अथवा असत्य। मैंने तो सुना है कि आप युद्ध की ललकार कभी अस्वीकार नहीं कर सकते, फिर क्या कारण है कि मेरे युद्ध के आमंत्रण के बाद भी आप युद्ध को तैयार नहीं हो रहे?"
उनकी बात सुनकर हनुमान जी समझ गए कि दैवयोग से इस समय शनिदेव अहंकार के वश में हैं। उन्होंने उन्हें टालने के लिए कह दिया कि वे उनसे युद्ध अवश्य करेंगे किन्तु उनकी पूजा समाप्त होने तक वे प्रतीक्षा करें। शनिदेव धैर्यपूर्वक हनुमान जी की पूजा समाप्त होने की प्रतीक्षा करने लगे। किन्तु बजरंगबली तो एक बार यदि राम नाम का जाप आरम्भ करते थे तो सब कुछ भूल जाते थे। वही हुआ और वे श्रीराम के जाप में ही मग्न हो गए।
उधर बहुत देर प्रतीक्षा करने के बाद शनिदेव का धैर्य चूक गया। वे बार बार हनुमान जी को युद्ध के लिए ललकारने लगे। इससे हनुमान जी की पूजा में विघ्न पड़ने लगा और इसी से बचने के लिए उन्होंने पूजा करते-करते ही शनिदेव को अपनी पूंछ में लपेट लिया। वो पकड़ इतनी शक्तिशाली थी कि स्वयं देवता होते हुए भी शनिदेव पीड़ा से कराह उठे। उन्होंने अपनी पूरी शक्ति लगा दी किन्तु वे हनुमान जी की पूछ से मुक्त नहीं हो सके। इसी के साथ शनिदेव का अपने बल के प्रति अभिमान भी समाप्त हो गया।
अब तो वे विनयपूर्वक हनुमानजी से स्वयं को मुक्त करने की प्रार्थना करने लगे किन्तु हनुमान जी तो श्रीराम की भक्ति में रमें थे, उन्हें और किसी चीज का ध्यान कैसे रहता? बहुत समय बीत गया और शनिदेव उसी प्रकार हनुमानजी की पूंछ में जकड़े हुए असहनीय पीड़ा भोगते रहे। बहुत काल बाद जब हनुमान जी का ध्यान भंग हुआ तब उन्होंने देखा कि शनिदेव तो अभी तक मेरी पूंछ में जकड़े हैं। उन्होंने तत्काल शनिदेव को मुक्त किया और उनसे इस विलम्ब के लिए क्षमा मांगी।
इस असाधारण शक्ति के स्वामी होने के बाद भी हनुमान जी की विनम्रता देख कर शनिदेव बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने हनुमान जी को धन्यवाद कहा क्यूंकि उनके ही कारण शनिदेव के अभिमान का दलन हुआ। इतनी देर तक उनकी पूंछ में जकड़े होने के कारण शनिदेव के शरीर में असहनीय पीड़ा हो रही थी। उनकी पीड़ा हनुमान जी समझ गए और उन्होंने शनिदेव को तेल दिया जिसके मर्दन से शनिदेव की पीड़ा समाप्त हो गयी।
तब शनिदेव ने हनुमान जी को कहा - "हे महाबली! आज आपने ना केवल मेरे अभिमान को भंग किया है बल्कि मुझे इस असहनीय पीड़ा से मुक्ति भी दिलवाई है। मैं आपको वरदान देता हूँ कि आपका जो कोई भी भक्त यदि मुझे तेल अर्पण करेगा, मैं उसपर अपनी कुदृष्टि नहीं डालूंगा। यदि कोई मेरी कुदृष्टि से पीड़ित हो तो आपकी पूजा करने से वो उस पीड़ा से उसी प्रकार मुक्त हो जाएगा जिस प्रकार आज आपने मुझे पीड़ा से मुक्त किया है।"
तभी से शनिदेव को तेल चढाने की प्रथा आरम्भ हुई। कहते हैं कि शनिवार के दिन शनि देव को तेल चढाने से उनकी कुदृष्टि हम पर नहीं पड़ती। यही नहीं, शनिदेव को तेल चढाने से हम स्वतः ही महाबली हनुमान की कृपा के पात्र बन जाते हैं। शनिदेव को तेल चढ़ाते समय उस तेल में अपना चेहरा देखने से हम पर जितनी बुरी शक्तियों का असर होता है, वो समाप्त हो जाता है।
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