हम सभी ने भगवान विष्णु के प्रसिद्ध दशावतारों के विषय में जानते हैं किन्तु क्या आपको महादेव के दशावतार के विषय में पता है? आम तौर पर जब भी महादेव के अवतरण की बात होती है तो उनके विषय में द्वादश ज्योतिर्लिंग, ११ रुद्रावतार एवं उनके १९ अवतारों के बारे में जानकारी मिलती है। किन्तु श्रीहरि की भांति ही महादेव के भी दशावतार हैं। महादेव के ये दस अवतार मूलतः तंत्र विद्या से सम्बंधित हैं और इन्हे ही तंत्र शास्त्र का जनक माना गया है।
इससे पहले हमने माता सती के दस रूप, जिन्हे दस महाविद्या कहा जाता है, उनके विषय में एक लेख प्रकाशित किया था। यही दस महाविद्या महादेव के इन दस अवतारों की पत्नियां हैं। दस महाविद्या के विषय में आप विस्तार से यहाँ जान जान सकते हैं। तो आइये महादेव के दशावतारों के विषय में संक्षेप में जानते हैं।
- महाकाल: महादेव के दशावतारों में प्रथम स्थान भगवान महाकाल का है। ये महादेव के महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग से सम्बंधित हैं। इनकी पत्नी का नाम महाकाली है। एक कथा के अनुसार दूषण नामक एक राक्षस था जिसने घोर तप कर ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर अतुल बल का वरदान प्राप्त कर लिया। उस वरदान के मद में उसने ब्राह्मणों पर अत्याचार करना आरम्भ किया। उसके अत्याचारों से तंग आकर ऋषियों ने ब्रह्माजी से प्रार्थना की। ब्रह्मा जी ने स्वयं उसे वरदान दिया था इसीलिए उन्होंने महादेव से उस राक्षस का वध करने का अनुरोध किया। ब्रह्माजी के अनुरोध पर महादेव ने दूषण को चेतावनी दी किन्तु फिर भी उसका अत्याचार नहीं रुका। उसने उज्जैन जाकर ब्राह्मणों का वध करना आरम्भ किया। तब सभी ने एक स्वर में महादेव को पुकारा। तब महादेव महाकाल अवतार लेकर उज्जैन में प्रकट हुए और उन्होंने अपनी एक ही हुंकार में दूषण का वध कर दिया। बाद में भक्तों की प्रार्थना पर महादेव वहां महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में भी स्थित हुए।
- तारकेश्वर: भगवान शिव के दशावतार में दूसरा स्थान है तारकेश्वर महादेव का। उनके इस अवतार में उनकी शक्ति हैं माता तारा। ये अवतार तारकासुर से जुड़ा है। जब तारकासुर को ये वरदान मिला कि उसका वध केवल महादेव के पुत्र के हांथों ही हो सकता है तो स्वयं को अमर मान कर उसने अत्याचार की सारी सीमाओं को लाँघ दिया। अंततः कालांतर में शिवपुत्र कार्तिकेय के द्वारा उसका वध किया गया। जब वो मरणासन्न अवस्था में था और अपनी अंतिम सांसें ले रहा था तो उसे अपने कृत्यों पर बड़ा पश्चाताप हुआ। अपने अंत समय में उसे महादेव के दर्शनों की अभिलाषा जागी। तब भोलेनाथ ने तारकेश्वर अवतार के रूप में उसे दर्शन दिए और ये वरदान भी दिया कि कालांतर में उसके नाम से लोग उनकी पूजा करेंगे। आज तारकेश्वर महादेव का मंदिर उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल में है।
- बाल भुवनेश: दशावतार में तीसरा स्थान है भगवान भुवनेश का। इस अवतार में महादेव अपने बाल रूप में प्रकट हुए थे इसी कारण इन्हे बाल भुवनेश भी कहा जाता है। इनकी शक्ति है माता बाल भुवनेश्वरी। एक कथा के अनुसार अपने इस अवतार में महादेव ने भुवनेश नामक एक भील का उद्धार किया था। अपने इस अवतार में महादेव १४ भुवनों की रक्षा और पालन करते हैं। उत्तराखंड के कोटद्वार में भगवान भुवनेश्वर का मंदिर है। ऐसी मान्यता है कि उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर का नाम भी महादेव के इसी अवतार पर पड़ा है।
- षोडश विद्येश: शिव दशावतार में चौथा स्थान है भगवान षोडश विद्येश का। इनकी शक्ति षोडशा विद्येशा हैं जिन्हे त्रिपुरसुन्दरी के नाम से भी जाना जाता है। ये तो हम सभी जानते हैं कि कलाएं १६ प्रकार की होती हैं। इस अवतार में भगवान शिव अपनी सभी १६ कलाओं से युक्त होते हैं इसीलिए इन्हे षोडशा विद्येश कहा जाता है। अपने इस अवतार में महादेव मनुष्य को सुख, समृद्धि एवं मोक्ष प्रदान करते हैं।
- भैरवनाथ: दशावतार में पांचवां स्थान है भगवान भैरव का। ये महादेव का सर्वाधिक प्रसिद्ध अवतार है। इनकी शक्ति माता भैरवी हैं। ये अवतार देखने में बहुत ही भयानक हैं और इसीलिए इन्हे भैरव कहा जाता है। भैरव का अर्थ होता है जो देखने में बहुत भयानक हो और भक्तों की भय से रक्षा करें। वैसे तो भैरव कई हैं किन्तु अष्ट भैरव सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं। उनमें भी काल भैरव सबसे अधिक प्रसिद्ध हैं। इन्होने ही परमपिता ब्रह्मा के पांचवें सर, जो महादेव की निंदा करता था, उसे काट डाला था। भैरव को माता का गण भी माना जाता है। जब श्रीहरि ने अपने सुदर्शन से माता सती के पार्थिव शरीर के ५१ टुकड़े किये जो शक्तिपीठ कहलाये तब महादेव ने अपने शरीर से कई भैरवों को उत्पन्न किया और उन्हें उन सभी शक्तिपीठ का रक्षक बनाया। शक्तिपीठ और सभी भैरव के विषय में यहाँ पढ़ें।
- छिन्नमस्तक: महादेव के छठे दशावतार हैं श्री छिन्नमस्तक। इनकी शक्ति माता छिन्नमस्तिका हैं। महादेव का ये अति प्रचंड अवतार शीशहीन है और ऐसी ही इनकी पत्नी भी हैं। इनका कटा सर ये अपने ही हाथ में पकडे रहते हैं और अपने दूसरे हाथ में त्रिशूल को धारण करते हैं। ऐसी कथा है कि जब माता सती ने छिन्नमस्तिका अवतार में असुरों का संहार किया तो उनकी सेना रक्तपान से तृप्त नहीं हुई। इस पर उन्होंने स्वयं अपना मस्तक काट लिया जिससे उनकी सेना तृप्त हो गयी। तब महादेव ने भी छिन्नमस्तक अवतार लेकर अपना सर अपने ही त्रिशूल से काट लिया। इन दोनों की पूजा विशेष रूप से अघोरियों और तांत्रिकों के लिए अनिवार्य होती है।
- धूम्रवान: महादेव के सातवें दशावतार हैं श्री धूम्रवान। इन्हे द्यूमवान भी कहा जाता है। इनकी शक्ति माता धूमावती हैं जो मृत्यु एवं विधवाओं की अधिष्ठात्री हैं। ये माता लक्ष्मी की बहन हैं और इनका एक नाम अलक्ष्मी भी है। अपने इस स्वरुप में महादेव धुंए के समान माने गए हैं इसीलिए उनका ये नाम पड़ा है। भगवान धूम्रवान का रूप भी विकट बताया गया है, किन्तु इस रूप में भी वे कल्याणकारी हैं और अपने भक्तों के भय को दूर करने वाले हैं।
- बगलामुख: दशावतार में आठवां स्थान है भगवान बगलामुख का। इनकी शक्ति माता बगलामुखी हैं। ये महादेव का अति उग्र रूप माना जाता है किन्तु अपने भक्तों को ये आनंद प्रदान करने वाला है। इनका रूप पीला है और अपने इस अवतार में भगवान शिव अपने सभी भक्तों को उनके कर्मों के अनुसार उसका फल देते हैं। इनकी पत्नी माता बगलामुखी के तीन प्रमुख मंदिर हैं, जिनमें से कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) के मंदिर की सर्वाधिक मान्यता है। देव बगलाबमुख भी उन्ही मंदिरों में उनके साथ निवास करते हैं।
- मातंग: दशावतार में नवां स्थान है भगवान मातंग का। इनकी शक्ति है माता मातंगी। इनका रंग हरा है। मृत्यु को भी जीत लेने के कारण इनका एक नाम मृत्युंजय भी है। रामायण के अनुसार ऐसी मान्यता है कि महादेव ने अपना ये स्वरुप महर्षि मातंग की तपस्या से प्रसन्न होकर लिया था। मध्यप्रदेश के खुजराहों मंदिर में मतंगेश्वर महादेव का शिवलिंग स्थापित है। ये एकमात्र जीवित शिवलिंग माना जाता है जो हर वर्ष ऊपर और नीचे की ओर एक अंगुल बढ़ रहा है। ऐसी मान्यता है कि जब ये शिवलिंग पाताल तक पहुँच जाएगा, उसी समय कलियुग का अंत हो जाएगा।
- कमल: महादेव का दसवां और अंतिम अवतार कमल अवतार है। इनकी शक्ति माता कमला है जो माता लक्ष्मी के गुणों से युक्त हैं। अपने इस अवतार में महादेव सभी ६४ विद्याओं से युक्त होते हैं। कहा जाता है कि दिव्य और पूर्ण कमल के पुष्प में भी कुल ६४ पंखुड़ियां होती है इसलिए महादेव के इस अवतार को कमल के नाम से जाना जाता है। जिस प्रकार माता कमला में माता लक्ष्मी के गुण भी हैं, उसी प्रकार भगवान कमल भी नारायण के गुणों से युक्त होते हैं।
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