महाभारत में स्त्री चरित्रों को बहुत प्रमुखता से दिखाया गया है। चाहे वो द्रौपदी हो, कुंती हो अथवा गांधारी, महाभारत स्त्री सशक्तिकरण का एक जीवंत उदाहरण है। हालाँकि कुछ स्त्री चरित्र ऐसे भी हैं जो गौण हैं किन्तु उससे उनका महत्त्व कम नहीं होता। ऐसा ही एक चरित्र है भानुमति का।
किन्तु इससे पहले मैं ये लेख आरम्भ करूँ, ये बताना आवश्यक है कि आज इंटरनेट पर जो आपको भानुमति के बारे में जानकारी उपलब्ध है उसमें से अधिकतर बिलकुल गलत है। ना केवल गलत है बल्कि कुछ बातें तो अपमानजनक भी हैं। ऐसा मैं इसीलिए कह रहा हूँ क्यूंकि महाभारत में कहीं भी "भानुमति", इस नाम का कोई उल्लेख ही नहीं है। इसका अर्थ ये है कि दुर्योधन की पत्नी का नाम और आज कल की प्रचलित कथाएं बाद में गढ़ी गयी हैं।
महाभारत में केवल तीन स्थानों पर दुर्योधन की पत्नी का वर्णन है। पहली बार शल्य पर्व में दुर्योधन अपनी पत्नी का वर्णन लक्षमण की माता के रूप में करता है और उसके दुर्भाग्य के विषय में बात करता है। दूसरी बार स्त्री पर्व में गांधारी श्रीकृष्ण से अपनी बहु के दुःख के विषय में कहती है और तीसरी बार शांति पर्व में देवर्षि नारद दुर्योधन के विवाह का प्रसंग बताते हुए उसकी पत्नी का वर्णन करते हैं। इसमें ध्यान देने वाली बात ये है कि कहीं पर भी दुर्योधन की पत्नी के नाम का उल्लेख नहीं है।
तो यहाँ पर सुविधा के लिए दुर्योधन की पत्नी का नाम भानुमति ही मानते हैं। शांति पर्व में देवर्षि नारद की कथा के अनुसार भानुमति कलिंग के महाराज चित्रांगद की पुत्री थी। महाराज चित्रांगद ने अपनी पुत्री का स्वयंवर आयोजित किया जिसमें समस्त आर्यावर्त के राजा एवं राजकमार आये। दुर्योधन भी अपने मित्र कर्ण के साथ वहां पहुंचा। जब भानुमति वरमाला लेकर सभा में आयी तो उसकी सुंदरता देख कर सभी अवाक् रह गए।
भानुमति उस सभा में उपस्थित सभी राजाओं का परिचय प्राप्त कर रही थी। जब वो दुर्योधन के समक्ष आयी तो उसका परिचय लेने के बाद वो बिना उसका वरण किये ही आगे बढ़ गयी। दुर्योधन को ये अपना अपमान लगा और उसने जबरन स्वयंवर की माला अपने गले में डाल ली और ये घोषणा कर दी कि वो भानुमति का हरण कर रहा है और यदि किसी में साहस है तो वो उसे चुनौती दे सकता है।
दुर्योधन की चुनौती सुन कर वहां उपस्थित राजाओं ने दुर्योधन पर आक्रमण किया किन्तु अंगराज महारथी कर्ण ने अपने मित्र की ओर से युद्ध करते हुए समस्त राजाओं को परास्त कर दिया। तब मगध नरेश जरासंध युद्ध करने आये और उनमें और कर्ण में घोर युद्ध हुआ। अंततः कर्ण ने जरासंध को परास्त कर दिया। किवदंती है कि दोनों के बीच ये युद्ध २१ दिनों तक चला था। कर्ण की वीरता से प्रसन्न होकर जरासंध ने उन्हें मालिनी नामक एक नगर उपहार स्वरुप दिया।
अपने मित्र कर्ण की सहायता से स्वयंवर जीत कर दुर्योधन वापस हस्तिनापुर लौट गया। वहां भीष्म पितामह द्वारा इस प्रकार कन्या का हरण करने पर आपत्ति जताने पर दुर्योधन ने उन्ही का उदाहरण देकर, जब उन्होंने काशी की राजकीमारियों अम्बा, अम्बिका एवं अम्बालिका का हरण किया था, उन्हें मना लिया और फिर दुर्योधन का विवाह भानुमति से हुआ।
शल्य पर्व में दुर्योधन भानुमति के दुर्भाग्य के बारे में बात करते हुए कहता है कि लक्षमण (दुर्योधन और भानुमति का पुत्र) की माता के भाग्य में दुर्भाग्य के अतिरिक्त और कुछ नहीं है।
स्त्री पर्व में गांधारी श्रीकृष्ण से कहती है - "मेरे पुत्र की मृत्यु से भी अधिक दुखद इन स्त्रियों का विलाप है। लक्ष्मण की माता (भानुमति), वह विशाल कूल्हों वाली महिला, जिसके बाल बिखरे हुए हैं, वह दुर्योधन की प्रिय पत्नी है, जो सोने की यज्ञ वेदी के समान है। नि:संदेह यह महाबुद्धि कन्या अपने महाबाहु स्वामी के जीवित रहते हुए अपने स्वामी की सुन्दर भुजाओं के आलिंगन में क्रीड़ा करती थी। यह निर्दोष कन्या अब अपने पुत्र के रक्त से सने सर को सूंघ रही है। अब वह अपने सुनहरे हाथ से दुर्योधन के शरीर को सहला रही है। एक समय वह अपने स्वामी के लिए दु:खी होती है और दूसरी बार अपने पुत्र के लिए। एक समय वह अपने स्वामी को देखती है, दूसरे समय अपने पुत्र को। देखो, हे माधव, अपने हाथों से उसके सिर पर प्रहार करते हुए, वह कौरवों के राजा, अपने वीर पति की छाती पर गिरती है। कमल के तंतुओं के समान वर्ण वाली, वह अभी भी कमल के समान सुंदर दिखती है।"
तो महाभारत में केवल इन तीन स्थानों पर ही भानुमति का वर्णन आया है, वो भी बिना किसी नाम के। एक बात और भी है कि दुर्योधन भी एकपत्नीव्रती ही था। उसने भानुमति के अतिरिक्त किसी और कन्या से विवाह नहीं किया। महाभारत में वर्णित है कि दुर्योधन अपनी पत्नी और संतानों से अत्यधिक प्रेम करता था। भानुमति का विवाह भी भले ही हरण कर हुआ किन्तु वो अपने पति से अत्यधिक प्रेम करती थी और उसके प्रति पूर्णतः समर्पित थी।
उन दोनों के एक पुत्र लक्ष्मण एवं एक पुत्री लक्ष्मणा का वर्णन महभारत में मिलता है। लक्ष्मण अपने पिता के समान ही वीर था। उसने युद्ध में अनेकों योद्धाओं का वध किया किन्तु युद्ध के १३वें दिन अभिमन्यु से युद्ध करता हुआ वीरगतिको को प्राप्त हुआ।
लक्ष्मणा के बारे में बहुत स्पष्ट वर्णन महाभारत में नहीं मिलता। भागवत के अनुसार लक्ष्मणा का विवाह श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब से हुआ था। साम्ब और लक्ष्मणा एक दूसरे से प्रेम करते थे इसीलिए सब ने लक्ष्मणा के हरण का प्रयास किया। तब दुर्योधन ने उसे बंदी बना लिया। ये जानकर बलराम हस्तिनापुर आये और दुर्योधन से साम्ब और लक्ष्मणा को मुक्त करने को कहा। जब दुर्योधन नहीं माना तो बलराम ने अपने हल से हस्तिनापुर को गंगा की ओर मोड़ दिया जिससे हस्तिनापुर में जलप्रलय आने की नौबत आ गयी। ये देख कर भीष्म ने बीच बचाव कर साम्ब को मुक्त करवाया और उसका विवाह लक्ष्मणा से करवा दिया।
इसके अतिरिक्त भी भानुमति के बारे में कई ऐसी जानकारियां है जो लोक कथाओं के रूप में प्रचलित हैं जिसका महाभारत से कोई लेना देना नहीं है। पहला तो भानुमति, ये नाम ही काल्पनिक है और बाद में प्रचलित हुआ। कहा जाता है कि भानुमति मल्ल्युद्ध में प्रवीण थी और दुर्योधन के साथ ही मल्ल्युद्ध का अभ्यास करती थी। कई बार वो खेल खेल में दुर्योधन को भी पछाड़ दिया करती थी। कुछ दक्षिण भारतीय संस्कारों में भानुमति को कम्बोज के राजा चन्द्रवर्मन की पुत्री बताया गया है।
एक ऐसी ही कथा का वर्णन भानुमति और कर्ण के विषय में आता है जब दोनों चौसर खेल रहे थे और गलती से कर्ण ने भानुमति की साड़ी का पल्लू पकड़ लिया जिससे सारे मोती भूमि पर आ गिरे। उसी समय दुर्योधन वहां आ गया और दोनों शंकित हो गए कि पता नहीं दुर्योधन अब क्या सोचेगा। किन्तु दुर्योधन को अपनी पत्नी और मित्र पर पूर्ण विश्वास था। उसने हँसते हुए भानुमति से कहा कि - "ये मोती तुम उठा लोगी या मुझे स्वयं उठाना पड़ेगा।" इस विषय में एक विस्तृत लेख हमने पहले ही लिखा है जिसे आप यहाँ पढ़ सकते हैं।
इंडोनेशिया के महाभारत संस्करण के अनुसार भानुमति मद्रराज शल्य की पुत्री और नकुल और सहदेव की बहन थी। उसका विवाह दुर्योधन से हुआ था और इसी कारण शल्य ने युद्ध में कौरवों का साथ दिया।
जैसा कि मैंने बताया कि भानुमति के विषय में अधिकतर भ्रामक जानकारियां ही फैली हैं। इसमें से ही एक प्रसिद्ध मराठी लेखक शिवाजी सावंत के उपन्यास मृत्युंजय की कथा है जहाँ भानुमति की दासी सुप्रिया के विषय में बताया गया है। उसमें लिखा है कि विवाह के बाद सुप्रिया भानुमति के साथ हस्तिनापुर आ गयी और बाद में कर्ण के साथ उसका विवाह हुआ।
भानुमति के विषय में एक कहावत बड़ी प्रसिद्ध है - "कहीं की ईट कही का रोड़ा, भानुमति ने कुनबा जोड़ा।" दरअसल इसका अर्थ ये है कि परिस्थिति को सँभालने के लिए बेमेल चीजों का उपयोग करना। भानुमति दुर्योधन से विवाह नहीं करना चाहती थी फिर भी उससे विवाह हुआ, वो भी कर्ण की सहायता से। वो नहीं चाहती थी कि उसकी पुत्री यदुवंशियों से ब्याही जाये फिर भी लक्ष्मणा का विवाह साम्ब से हुआ। वो चाहती थी कि उसके पति और पांडवों में मेल रहे किन्तु युद्ध हुआ। मतलब भानुमति ने जो भी चाहा वो उसे नहीं मिला फिर भी उनसे अपने कुटुंब को संभाले रखा। इसीलिए उसके विषय में ये कहावत बन गयी।
उसके विषय में एक और कहावत है - "भानुमति का पिटारा।" दरअसल इसका अर्थ ये है कि वो गृहकला में इतनी प्रवीण थी कि उसके पास हर समस्या का हल था। आज भी तंत्र शास्त्र में भानुमति के पिटारे का बड़ा महत्त्व है जिसमें अनेक समस्याओं के तांत्रिक उपाय बताये गए हैं।
अब जाते जाते आते हैं उन कुछ बातों पर जो ना केवल पूर्णतः गलत हैं बल्कि अपमानजनक भी हैं। उनमें से पहली बात है भानुमति का कर्ण के प्रति आकर्षित होना। कई लोग कहते हैं कि भानुमति स्वयंवर में कर्ण का ही वरण करना चाहती थी क्यूंकि वो उससे प्रेम करती थी। ये बिलकुल ही गलत और निराधार बात है। कर्ण और भानुमति का व्यहवार मित्रवत था। मूल महभारत में तो खैर उन दोनों के सम्बन्ध का कोई वर्णन ही नहीं है।
एक और बात जिसके बारे में लोग बताते हैं वो ये है कि दुर्योधन की मृत्यु के बाद भानुमति ने अर्जुन से विवाह कर लिया। कुछ महानुभाव तो यहाँ तक लिखते हैं कि भानुमति सदा से अर्जुन से ही विवाह करना चाहती थी। ये बिलकुल अनर्गल बात है। ऐसा कुछ भी नहीं था। दुर्योधन की मृत्यु के बाद भानुमति का कोई वर्णन ही नहीं मिलता तो अर्जुन से विवाह का प्रसंग कैसे आ सकता है। ऐसी मनगढंत चीजों से बचने की आवश्यकता है।
बहुत ही रोचक जानकारी प्राप्त हुई। सादर अभिवादन
जवाब देंहटाएंbhanumati ka pitara/to kya vo ek tantrik thi/it meas pribar ko ikath rakhne ki koshish
जवाब देंहटाएंitni sari jankari ikathi kar likhne ke liye dhanaybad