रामायण असंख्य छोटी बड़ी अद्भुत कथाओं से भरा पड़ा है। ऐसी ही एक कथा है त्रिजट ऋषि की जिन्होंने अपनी सूझ बूझ से श्रीराम से सहस्त्रों गौवें दान में प्राप्त की। इनकी कथा वाल्मीकि रामायण के अयोध्या कांड में आती है। वैसे तो संसार में एक से एक दानी व्यक्ति हुए हैं रामायण के अयोध्या कांड में जैसा वर्णन श्रीराम द्वारा दान दिए जाने का है, वो उन्हें भी एक श्रेष्ठ दानी सिद्ध करता है। इसी सन्दर्भ में ऋषि त्रिजट की कथा आती है।
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पुनर्जन्म की सच्चाई
विश्व के सबसे प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद से लेकर वेद, दर्शनशास्त्र, पुराण, गीता, योग आदि ग्रंथों में पुनर्जन्म की मान्यता का प्रतिपादन किया गया है। इस सिद्धांत के अनुसार शरीर का मृत्यु ही जीवन का अंत नहीं है बल्कि जन्म जन्मांतर की श्रृंखला है। पुराण आदि में भी जन्म और पुनर्जन्मों का उल्लेख है। जीवात्मा पुनर्जन्म लेती है।
यक्षिणियाँ कौन होती हैं?
हिन्दू धर्म में कई जातियों का वर्णन है। ये तो हम सभी जानते हैं कि परमपिता ब्रह्मा ने ही पूरी सृष्टि का निर्माण किया। उसे सँभालने के लिए उन्होंने अपने मानस पुत्रों को प्रकट किया। उनमें से ही एक थे महर्षि मरीचि जो सप्तर्षियों में से एक थे। उनके पुत्र थे महर्षि कश्यप जिन्होंने प्रजापति दक्ष की १७ कन्याओं से विवाह किया और उनके ही संतानों से अनेकानेक जातियों का जन्म हुआ। महर्षि कश्यप से उत्पन्न जातियों के बारे में जानने के लिए यहाँ जाएँ।
विश्व का सबसे अमीर और रहस्य्मयी मंदिर - श्री पद्मनाभ स्वामी मंदिर
आठवीं सदी में एक महान विष्णु भक्त थे जो सदैव श्रीहरि की साधना में लीन रहते थे। उनकी बस एक ही इच्छा थी कि किसी भी प्रकार उन्हें श्रीहरि के महाविष्णु स्वरुप के दर्शन हो जाएँ। किन्तु हर दिन एक बालक उनकी तपस्या को भंग करने का प्रयास करता था। एक दिन जब वो बालक उन्हें परेशान करने आया तो उन्होंने उसे पकड़ लिया।
गणेश जी ने भी दिया था गीता ज्ञान - श्री गणेश गीता
हम सभी महाभारत में श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए अद्वितीय ज्ञान, अर्थात श्रीमद्भगवतगीता के विषय में तो जानते ही हैं। महाभारत के भीष्म पर्व के आरम्भ में ज्ञान का ये अथाह सागर वर्णित है जिसमें १८ अध्याय एवं कुल ७०० श्लोक है। किन्तु क्या आप ये जानते हैं कि श्रीगणेश ने भी गीता का ज्ञान दिया था जो गणेश गीता के नाम से प्रसिद्ध है।
वर्ष में दो बार नवरात्रि क्यों मनाई जाती है?
आपमें से कई लोगों को ये पता होगा कि नवरात्रि वर्ष में दो बार मनाई जाती है। हालाँकि बहुत ही कम लोगों को ये पता होगा कि वास्तव में वर्ष में चार बार नवरात्रि का पर्व आता है। अर्थात हर तिमाही में एक बार नवरात्रि मनाई जाती है। आइये पहले इन चारों नवरात्रियों के नाम और समय को जान लेते हैं:
कुबेर से भी कर लेने वाले श्रीराम के परदादा - महाराज रघु
महाराज खटांग के पुत्र थे महाराज दिलीप। एक बार ये अपने गुरु महर्षि वशिष्ठ के आश्रम में गए जहाँ इन्होने उनकी गाय कामधेनु पुत्री नंदिनी की रक्षा का प्रण कर लिया। वे नंदिनी को लेकर वन गए जहाँ पर नंदिनी ने उनकी परीक्षा लेने के लिए एक माया सिंह उत्पन्न किया। उस सिंह ने नंदिनी पर आक्रमण किया जिसकी रक्षा के लिए महाराज दिलीप ने उस सिंह पर अनेक बाण चलाये किन्तु सारे व्यर्थ हुए।
जब ब्रह्मदेव और देवर्षि नारद ने एक दूसरे को श्राप दे दिया
ये तो हम सभी जानते हैं कि देवर्षि नारद परमपिता ब्रह्मा के ही मानस पुत्र हैं। हम ये भी जानते हैं कि देवर्षि नारद भगवान श्रीहरि के अनन्य भक्त हैं। इनके जन्म के विषय में भी आपने कई कथाएं सुनी होगी। किन्तु पुराणों में एक कथा ऐसी आती है कि इन्होने अपने पिता भगवान ब्रह्मा को और ब्रह्मा जी ने इन्हे परस्पर श्राप दे दिया था।
कृपाचार्य
महर्षि गौतम और उनकी पत्नी अहिल्या के विषय में तो हम सभी जानते ही हैं। इनका वर्णन मुख्य रूप से रामायण में किया गया है। रामायण के साथ साथ महाभारत में भी इनका वर्णन आता है। हालाँकि इन दोनों ग्रंथों में इनके अलग-अलग पुत्रों का वर्णन है। रामायण के अनुसार महर्षि गौतम के पुत्र ऋषि शतानन्द थे जो महाराज जनक के कुलगुरु थे। जब महर्षि विश्वामित्र श्रीराम और लक्ष्मण के साथ जनकपुरी पहुंचे तो वहां शतानन्द जी का विस्तृत वर्णन है।
महर्षि दुर्वासा तक को विवश करने वाले - महाराज अम्बरीष
कुछ समय पहले हमने श्रीराम के पूर्वज महाराज युवनाश्व के विषय में लेख प्रकाशित किया था जिन्होंने गर्भ धारण किया था। उन्होंने ने ही मान्धाता नामक महान पुत्र को जन्म दिया। मान्धाता ने सौ राजसूय यज्ञ किये। साथ ही यही वो पहले सूर्यवंशी सम्राट थे जिन्होंने चंद्रवंशियों से सम्बन्ध बनाये। इनके विषय में हम किसी और लेख में विस्तार से जानेंगे।
हयग्रीव कौन हैं और हिन्दू धर्म में कितने हयग्रीवों का वर्णन है?
भगवान हयग्रीव श्रीहरि के २४ अवतारों में से एक हैं। हालाँकि हिन्दू धर्म में उनके अतिरिक्त हयग्रीव नाम के एक दानव, एक दैत्य और एक राक्षस भी हुए हैं, इसीलिए लोगों को ये शंका होती है कि वास्तव में हयग्रीव आखिरकार कितने थे? अलग-अलग पुराणों में भी हयग्रीव के विषय में अलग-अलग कथा दी गयी है जो इसे और भी जटिल बनाती है। तो चलिए इसे समझते हैं।
गरुड़ एवं नागों में शत्रुता क्यों थी?
कुछ समय पहले हमें महर्षि कश्यप और उनकी सभी पत्नियों से मुख्य जातियों की उत्पत्ति के विषय में एक वीडियो बनाया था जिसे आप यहाँ देख सकते हैं। संक्षेप में महर्षि कश्यप ने प्रजापति दक्ष की १७ कन्याओं से विवाह किया जिनसे १७ प्रमुख जातियों की उत्पति हुई। इसी कारण महर्षि कश्यप प्रजापति के नाम से भी जाने जाते हैं। इनकी दो-दो पत्नियों से जो पुत्र हुए उनके बीच की शत्रुता प्रसिद्ध है।
केवल सुख को ही अपना ध्येय मानने वाले - "चार्वाक"
अर्थात: काम (भोग विलास) ही एकमात्र पुरुषार्थ है।
इस एक वाक्य से आपको चावार्क दर्शन की मानसिकता समझ में आ जाएगी। हिन्दू धर्म में ९ मुख्य दर्शन बताये गए हैं। उनमें से छः दर्शन आस्तिकवादी हैं और ३ नास्तिकवादी। इन ३ नास्तिकवादी दर्शनों में भी जो चावार्क दर्शन है वो घोर भौतिकवादी है। अर्थात चावार्क दर्शन के अनुसार जीवन का एकमात्र उद्देश्य केवल भोग विलास में लिप्त रहना है। किन्तु इससे पहले हम इस दर्शन को समझें, हमें चावार्क क्या है, ये जानना होगा।
भोलेनाथ को मांस अर्पण करने वाला महान भक्त - कन्नप्पा नयनार
हिन्दू धर्म में महादेव के एक से बढ़कर एक भक्तों का वर्णन मिलता है। किन्तु उनमें से एक भक्त ऐसे भी थे जो किसी भी पूजा विधि को नहीं जानते थे। उन्होंने हर वो चीज की जो शास्त्र विरुद्ध है और जिसे पाप माना जाता है, किन्तु फिर भी महादेव ने उन्हें दर्शन दिए। वे इस बात को सिद्ध करते हैं कि महादेव केवल अपने भक्त के भाव देखते हैं, पद्धति नहीं। उनका नाम था कन्नप्पा।
समुद्र मंथन
समुद्र मंथन हिन्दू धर्म की सबसे रोचक कथाओं में से एक है। इसका विस्तृत वर्णन विष्णु पुराण में दिया गया है। समुद्र मंथन क्यों करना पड़ा इसके ऊपर हम पहले ही एक लेख लिख चुके हैं और वीडियो बना चुके हैं। उसे आप यहाँ देख सकते हैं। समुद्र मंथन कहाँ हुआ उसके विषय में भी एक वीडियो बनाया जा चुका है जिसे आप यहाँ देख सकते हैं।
क्या भगवान शंकर वास्तव में भस्म हो जाते यदि भस्मासुर उनके सर पर हाथ रख देता?
हम सब ने भस्मासुर की कथा सुनी या पढ़ी है। उस पर बने कई फिल्म और टीवी सीरियल भी देख चुके हैं। इन आधुनिक कृतियों द्वारा जनमानस में जो सबसे बड़ी भ्रान्ति फैलाई जाती है वो ये है कि त्रिलोक के स्वामी महादेव भी किसी के डर से मारे मारे फिर सकते हैं। ये महादेव का घोर अपमान है। इस बारे में चर्चा करने से पहले भस्मासुर के विषय में जान लेते हैं।
क्या आप भगवान शिव के दशावतार के विषय में जानते हैं?
हम सभी ने भगवान विष्णु के प्रसिद्ध दशावतारों के विषय में जानते हैं किन्तु क्या आपको महादेव के दशावतार के विषय में पता है? आम तौर पर जब भी महादेव के अवतरण की बात होती है तो उनके विषय में द्वादश ज्योतिर्लिंग, ११ रुद्रावतार एवं उनके १९ अवतारों के बारे में जानकारी मिलती है। किन्तु श्रीहरि की भांति ही महादेव के भी दशावतार हैं। महादेव के ये दस अवतार मूलतः तंत्र विद्या से सम्बंधित हैं और इन्हे ही तंत्र शास्त्र का जनक माना गया है।
श्रीकृष्ण पर आक्रमण के समय किन किन राजाओं ने जरासंध का साथ दिया?
हम सभी श्रीकृष्ण और जरासंध की प्रतिद्वंदिता के विषय में जानते हैं। श्रीकृष्ण द्वारा अपने जमाता कंस के वध के पश्चात उसने १७ बार मथुरा पर आक्रमण किया किन्तु उन सभी युद्ध में उसे मुँह की खानी पड़ी। श्रीकृष्ण और बलराम हर बार उसकी पूरी सेना का नाश कर उसे जीवित छोड़ देते थे। वास्तव में वे दोनों चाहते थे कि जरासंध बार बार संसार के सभी पापियों को लेकर आये ताकि वे उनका एक बार में ही संहार कर सकें।
एकलव्य - क्यों माँगा गुरु द्रोण ने अंगूठा? क्यों किया श्रीकृष्ण ने वध?
एकलव्य महाभारत का एक गौण पात्र है। यदि मूल महाभारत की बात की जाये तो एकलव्य के बारे में बहुत अधिक नहीं लिखा गया है। आज जो भी जानकारियां हमें एकलव्य के विषय में मिलती हैं वो अधिकतर लोक कथाओं के रूप में ही है लेकिन उन कथाओं और मान्यताओं में बहुत अधिक दुष्प्रचार किया गया है। तो आइये एकलव्य के बारे में थोड़ा विस्तार से जानते हैं और इन मिथ्या जानकारियों को भी समझते हैं।
"सेंगोल" वास्तव में क्या है?
आज कल सेंगोल की बहुत चर्चा हो रही है। इसके सम्बन्ध में कई भ्रांतियाँ भी फ़ैल रही है। अधिकतर लोग सेंगोल का ऐतिहासिक महत्त्व बता रहे हैं किन्तु आपको जानकर अच्छा लगेगा कि सेंगोल का पौराणिक महत्त्व भी बहुत अधिक है। सहस्त्रों वर्षों से सेंगोल का वर्णन हमारे पौराणिक ग्रंथों में है, विशेषकर इसका वर्णन महाभारत में किया गया है, पर किसी और नाम से। इसके विषय में लगभग हर व्यक्ति जनता होगा पर इस शब्द "सेंगोल" से बहुत कम लोग परिचित हैं। तो आइये हम सेंगोल के विषय में कुछ जानते हैं।
जब हनुमान जी ने बलराम जी, गरुड़, सुदर्शन एवं देवी सत्यभामा का अभिमान भंग किया
महाबली हनुमान अष्टचिरंजीवियों में से एक हैं। उन्हें कल्प के अंत तक जीवित रहने का वरदान प्राप्त है। यही कारण है कि रामायण के साथ साथ हनुमान जी का वर्णन महाभारत में भी आता है। महाभारत में उनके द्वारा भीम के अभिमान को भंग करने और अर्जुन के रथ की रक्षा करने के विषय में तो हम सभी जानते ही हैं किन्तु हरिवंश पुराण में एक वर्णन ऐसा भी आता है जब श्रीकृष्ण ने बजरंगबली के द्वारा बलराम जी, सुदर्शन चक्र, गरुड़ एवं देवी सत्यभामा का अभिमान भंग करवाया था।
एक ऐसा गाँव जहाँ हनुमान जी की पूजा करना मना है
महाबली हनुमान हिन्दू धर्म के सर्वाधिक पूज्य देवताओं में से एक हैं। शायद ही इस देश का एक भी ऐसा कोना हो जहाँ हनुमान जी का मंदिर ना हो या उनकी पूजा ना होती हो। लेकिन आज हम आपको भारत के एक ऐसे ही गांव के बारे में बताने वाले हैं जहाँ हनुमान जी की पूजा वर्जित है। ऐसा इसलिए क्यूंकि वहां के लोग सदैव हनुमान जी से नाराज रहते हैं।
बभ्रुवाहन - अर्जुन का वध करने वाला उसका अपना पुत्र
द्रौपदी का विवाह जब पांचों पांडवों से विवाह किया तब देवर्षि नारद के सुझाव पर पांडवों ने एक कड़ा नियम बनाया। उस नियम के अनुसार जब द्रौपदी किसी एक पांडव की पत्नी रहेगी, उस समय यदि कोई दूसरा पांडव उनके कक्ष में प्रवेश करेगा तो उसे १२ वर्षों का वनवास भोगना पड़ेगा। जब द्रौपदी युधिष्ठिर की पत्नी थी उस समय गायों के एक झुण्ड की रक्षा के लिए युधिष्ठिर के कक्ष में अपना गांडीव लेने चले गए जिस कारण उन्हें १२ वर्ष का वनवास भोगना पड़ा। द्रौपदी के अतिरिक्त अर्जुन के अन्य तीन विवाह इसी वनवास काल में हुए थे।
महाराज दशरथ के कितने मंत्री और पुरोहित थे?
हमारे धर्मग्रंथों में ऐसा लिखा गया है कि मंत्री ही किसी राजा के राज्य का आधार होते हैं। मंत्री वे कहलाते हैं जिससे "मंत्रणा", अर्थात सलाह लेकर कोई राजा अपनी प्रजा के हित में कोई निर्णय लेता है। किसी राजा के कई मंत्री हो सकते थे और उनमें से जो मुख्य होता था उन्हें "महामंत्री" के नाम से जाना जाता था। आगे चल कर आधुनिक काल में इन्ही मंत्रियों को "आमात्य" या "सचिव" कहा जाने लगा।
नल दमयन्ती - विश्व की प्रथम प्रेम कथा
हिंदु धर्म में प्रेम कथाओं का विशेष उल्लेख किया गया है। आज हम जो कथा आपको बताने जा रहे हैं वो संसार की पहली प्रेम कथा मानी जा सकती है। नल-दमयन्ती की कथा का वर्णन महाभारत में आता है। जब युधिष्ठिर द्रौपदी को जुए में हार जाते हैं और फिर पांडव द्रौपदी सहित वनवास को जाते हैं, तब युधिष्ठिर की आत्म-ग्लानि को मिटाने के लिए देवर्षि नारद ने उन्हें ये कथा सुनाई थी।
क्यों दूर्वा का हर पूजा में इतना महत्त्व है?
दूर्वा, जिसे हम हिंदी में दूब भी कहते हैं, का हिन्दू धर्म में बहुत महत्त्व है। शायद ही ऐसी कोई पूजा हो जो दूर्वा के बिना संपन्न होती हो। आम तौर पर लोग दूर्वा और घास को एक ही समझते हैं किन्तु ऐसा नहीं है। दूर्वा घास का ही एक प्रकार है जो हरे रंग की होती है और पृथ्वी पर फ़ैल कर बढ़ती है और कभी ऊपर नहीं उठती।
महाराज मोरध्वज - जिन्होंने दानवीरता की सारी सीमाओं को पार कर दिया
हमारे देश में एक से एक महादानी हुए हैं किन्तु आज हम जिस व्यक्ति की बात करने वाले हैं उसने दानवीरता की सारी सीमाओं को पार कर लिया। ये कथा है महाराज मोरध्वज की। कथा महाभारत की है किन्तु मूल महाभारत का भाग नहीं है। भारतीय दंतकथाओं में इसकी बड़ी प्रसिद्धि है। विशेषकर छत्तीसगढ़ में इसे बड़े चाव से सुना और सुनाया जाता है।
ऋषि कितने प्रकार के होते हैं?
कुछ समय पहले हमने ऋषि, मुनि, साधु, संन्यासी, तपस्वी, योगी, संत और महात्मा में क्या अंतर है, उसके बारे में बताया था। आज हम ऋषियों के प्रकार के बारे में जानेंगे। ऋषि वे ज्ञानी पुरुष थे जो शोध करते थे। अंग्रेजी का शब्द "रिसर्च" ऋषि शब्द से ही निकला है। ऋषि शब्द "ऋष" मूल से उत्पन्न हुआ है जिसका अर्थ देखना होता है। इन्हे श्रुति ग्रंथों का अध्ययन एवं स्मृति ग्रंथों की रचना और शोध करने के लिए जाना जाता है।
गरुड़ काष्ठ
गरुड़ काष्ठ वास्तव में गरुड़ नामक एक विशाल वृक्ष की फली होती है जो देखने में किसी सर्प के समान लगती है और १ मीटर तक हो सकती है। इसके ऊपर एक बहुत महीन पारदर्शी परत चढ़ी रहती है जो देखने में किसी सांप की केंचुली के समान लगती है। यह एक दुर्लभ वृक्ष है और बहुत ही कम स्थानों पर पाया जाता है। ये इस पृथ्वी पर उत्पन्न सबसे प्राचीन वृक्षों में से एक है जिसकी उत्पत्ति लगभग ३ अरब वर्ष पहले बताई गयी है।
उलूक
उलूक महाभारत का एक कम प्रसिद्ध पात्र है। वो गांधार राज शकुनि और रानी आर्शी का ज्येठ पुत्र था। शकुनि के तीनों पुत्रों में केवल वही था जिसने महाभारत के युद्ध में भाग लिया था। यही नहीं, वो महाभारत के उन गिने चुने योद्धाओं में था जो युद्ध के १८वें दिन तक जीवित रहे थे। महाभारत कथा में उलूक का वर्णन युद्ध से ठीक पहले आता है।
जब एक रात के लिए पुनर्जीवित हो गए महाभारत के मृत योद्धा
महाभारत से जुडी अनेकों कथा जनश्रुतियों के रूप में प्रसिद्ध हैं। उनमें कुछ का सन्दर्भ हमें मूल महाभारत में मिलता है किन्तु कुछ केवल लोककथाओं के रूप में ही जनमानस में प्रसिद्ध हैं। आज हम आपको ऐसी ही एक कथा के बारे में बताने वाले हैं जिसमें महाभारत में वीरगति को प्राप्त सभी योद्धा एक दिन के लिए जीवित हो गए थे।
माता दुर्गा को किस देवता ने कौन से अस्त्र दिया?
माता दुर्गा के विषय में एक लेख हमने पहले ही प्रकाशित किया है। उस लेख में हमने बताया कि माता दुर्गा का प्राकट्य त्रिदेवों से ही हुआ था। अन्य देवताओं के तेज से उनके सभी अंगों का निर्माण हुआ। उसके अतिरिक्त अनेकों देवताओं ने उन्हें अपने अस्त्र भी दिए जिसे माता अपने आठों हाथों में धारण करती है। आज इस लेख में हम जानेंगे कि माता दुर्गा को किस देवता से कौन सा अस्त्र प्राप्त हुआ।
श्रीगणेश का मस्तक कटने के बाद कहाँ गया?
श्रीगणेश की कथा तो हम सभी जानते हैं। उन्हें गजमुख क्यों और किस प्रकार प्राप्त हुआ उसके बारे में भी सभी लोगों को पता है। गणेश जी के सर के कटने के विषय में दो कथाएं मुख्य रूप से प्रसिद्ध हैं। सबसे प्रसिद्ध कथा तो महादेव के द्वारा उनके सर को काटने की है जो सर्वविदित है। किन्तु एक अन्य कथा भी आती है जिसमें शनिदेव की कुदृष्टि के कारण श्रीगणेश का मस्तक कट गया था।