चार धाम और सप्त पुरियों में से एक द्वारिका। जिस प्रकार अयोध्या को श्रीराम ने अपने चरणों से पावन किया ठीक उसी प्रकार द्वारिका श्रीकृष्ण की नगरी होने के कारण धन्य हुई। हालाँकि अयोध्या से उलट द्वारिका नगरी बहुत ही रहस्य्मयी मानी जाती है। कहा जाता है कि हर कल्प में जब भी कृष्णावतार होता है, समुद्र द्वारिका नगरी की भूमि प्रदान करने के लिए पीछे हटता है और उनके निर्वाण के साथ ही समुद्र वो भूमि वापस ले लेता है। यही कारण है कि आज भी द्वारिका जलमग्न है। आज इस लेख में हम श्रीकृष्ण की नगरी द्वारिका के विषय में जानेंगे।
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क्या वास्तव में देवराज इंद्र ने माता सीता को दिव्य खीर दी थी?
रामायण के विषय में हमें एक कथा ऐसी मिलती है जहाँ देवराज इंद्र द्वारा माता सीता को दिव्य खीर दी गयी थी जिसे खाने के बाद माता सीता कभी भूख नहीं लगे और उन्हें रावण के अन्न को खाने की आवश्यकता ना पड़े। हालाँकि सबसे पहले ये बताना आवश्यक है कि इस कथा को प्रक्षिप्त माना जाता है, अर्थात ये प्रसंग वाल्मीकि रामायण का भाग नहीं है बल्कि इसे बाद में जोड़ा गया।
माण्डकर्णि मुनि
माण्डकर्णि मुनि का वर्णन वाल्मीकि रामायण के अरण्यकाण्ड के ११ सर्ग में दिया गया है। अरण्यकाण्ड के ८वें सर्ग में श्रीराम सुतीक्ष्ण मुनि से विदा लेकर आगे बढ़ते हैं। मार्ग दिखाने के लिए सुतीक्ष्ण मुनि के एक शिष्य ऋषि धर्मभृत भी उनके साथ होते हैं। उसी मार्ग में ऋषि धर्मभृत श्रीराम, माता सीता और वीरवर लक्ष्मण को माण्डकर्णि मुनि की कथा सुनाते हैं।
जब देवर्षि नारद ने श्रीहरि को श्राप दिया
ये तो हम सभी जानते हैं कि ब्रह्मपुत्र देवर्षि नारद श्रीहरि के सबसे बड़े भक्तों में से एक हैं। किन्तु श्री रामचरितमानस के बालकाण्ड में हमें एक ऐसा प्रसंग मिलता है जब देवर्षि नारद ने श्रीहरि को श्राप दे दिया। मानस में ये कथा भगवान शंकर ने माता पार्वती को सुनाई थी और तब माता ने बड़े आश्चर्य से पूछा कि नारायण के सबसे बड़े भक्त नारद जी ने अपने ही स्वामी को किस प्रकार श्राप दे दिया।
जटायु के अनुसार समस्त प्रजापतियों और कश्यप ऋषि से उत्पन्न सभी जातियों का वर्णन
कुछ समय पहले हमने महर्षि कश्यप द्वारा समस्त जातियों के वर्णन के बारे में एक वीडियो प्रकाशित क्या था। उसमें हमें ज्ञात हुआ कि महर्षि कश्यप ने प्रजापति दक्ष की १३ (कहीं-कहीं १७) कन्याओं से विवाह किया जिससे समस्त जातियों की उत्पत्ति हुई। रामायण में भी हमें सभी प्रजापतियों और जातियों की उत्पत्ति के बारे में विस्तृत सन्दर्भ मिलता है, हालाँकि वहां वर्णन पुराणों से थोड़ा अलग है।