वैसे तो हिन्दू धर्म में असंख्य मिथ्या धारणाएं प्रचलित हैं किन्तु जो मिथ्या बात सबसे अधिक प्रचलित है वो है भगवान शंकर द्वारा भांग और नशे का सेवन करना। आज भी आपको इंटरनेट पर ऐसे अनेकों चित्र मिल जाएंगे जिसमें भोलेनाथ को भांग या गांजे का सेवन करता हुआ दिखाया गया है। जो स्वयं को शिव भक्त कहते हैं उन्हें इसपर को आपत्ति नहीं होती किन्तु सत्य यह है कि महादेव को इस रूप में दिखा कर आप उनका घोर अपमान करते हैं।
तो क्या महादेव का भांग, गांजा या नशा करना निराधार है? बिलकुल, ये निश्चित रूप से निराधार है। ४ वेद, ४ उप-वेद, १८ महापुराण, १८ उप-पुराण, रामायण. महाभारत या किसी भी प्रामाणिक हिन्दू ग्रन्थ में एक स्थान पर भी महादेव द्वारा नशा करने का कोई वर्णन नहीं है। मैं फिर से दोहराता हूँ कि किसी भी प्रामाणिक हिन्दू धर्मग्रन्थ में भोलेनाथ द्वारा नशा करने का कोई वर्णन नहीं है। ये पूर्ण रूप से काल्पनिक एवं मिथ्या धारणा है।
पुराणों में भगवान शंकर द्वारा केवल एक ही चीज पीने का वर्णन है और वो है हलाहल। इसका वर्णन कई पुराणों में है किन्तु भागवत पुराण में इसका विस्तृत वर्णन दिया गया है कि जब समुद्र मंथन किया गया तो सबसे पहले ब्रह्माण्ड को नाश कर देने की तीव्रता वाला हलाहल विष निकला। उस विष से सृष्टि की रक्षा के लिए महादेव ने उसे पी लिया और अपने कंठ में धारण कर लिया। तभी से वे नीलकंठ कहलाये। जब वे विष पी रहे थे तो उसका एक छोटा भाग उनके हाथ से छलक गया जिसे नाग, बिच्छू और अन्य जानवरों ने पी लिया जिससे वे विषैले हो गए।
अब यहाँ एक प्रश्न आता है कि यदि हमारे किसी धर्मग्रन्थ में महादेव द्वारा नशे के सेवन का वर्णन नहीं है तो फिर आखिर ये कपोल-काल्पनिक बात प्रचलित कहाँ से हुई। तो उत्तर है समुद्र मंथन के इस प्रसंग से ही। हिन्दू धर्म में एक समस्या आगे चल कर ये आयी कि लोगों ने अपने ग्रंथों को पढ़ना ही नहीं चाहा पर अपने मन से कई बातें घढ़ दी। यही कारण है कि अधिकतर लोककथाओं का कोई सन्दर्भ हमें कही नहीं मिलता। ये बस बाद में प्रचारित की गयी मनगढंत धारणा होती है। इनमें से कुछ मनगढंत होने के बाद भी प्रेरक होती है किन्तु अधिकतर अपमानजनक ही होती है।
महादेव द्वारा नशा करने की जो झूठी अवधारणा समुद्र मंथन में भोलेनाथ द्वारा हलाहल पीने की इस कथा से ही लोक कथाओं के रूप में फैली। कुछ लोगों ने ये कहना आरम्भ किया कि विष से भी तो नशा ही होता है? भाई, वो कोई बाजार में बिकने वाला विष नहीं था। हम यहाँ हलाहल की बात कर रहे हैं जो कालकूट से भी सैकड़ों गुणा अधिक घातक था।
जरा सोचिये कि जिस विष के आगे स्वयं शेषनाग का विष भी कुछ नहीं, जिस विष में ब्रह्माण्ड को नष्ट कर देने की क्षमता बताई गयी हो, उस हलाहल की तुलना नशे के पदार्थ से करना कितनी बड़ी मूर्खता है। इस बेसिरपैर के तर्क देने वाले से मेरा एक प्रश्न है कि यदि वे ऐसा ही समझते हैं तो भांग और गांजे के स्थान पर विष का ही सेवन क्यों नहीं कर लेते जैसे महादेव ने किया था? इसलिए इस प्रकार के हास्यप्रद तर्क देने से बचना चाहिए।
इसी सन्दर्भ में एक और कथा चली कि जब महादेव ने विष पिया तो उनका शरीर जलने लगा और उसे ठंडा करने के लिए उनके शरीर पर भांग का लेप लगाया गया। कुछ लोग इसे आगे बढ़ाते हुए ये भी बोलते हैं कि उन्हें भांग भी पिलाया गया ताकि उनके शरीर का ताप कम हो सके। ये पहले वाले तर्क से भी अधिक हास्यप्रद है। पहली बात तो ऐसी कोई कथा किसी पुराण में दी ही नहीं गयी है। दूसरी बात ये कि आप महादेव को हलाहल से पीड़ित दिखा कर उनके बल को सीमित क्यों करना चाहते हैं? तीसरी बात ये कि यदि उनका शरीर जलने भी लगा था तो एक तुच्छ भांग को पी कर हलाहल जैसे विष की जलन कैसे समाप्त हो सकती है? कोई मूर्ख ही भांग और हलाहल की तुलना करेगा।
जैसा कि मैंने पहले बताया कि कुछ लोक कथाएं काल्पनिक होने के बाद भी बहुत शिक्षाप्रद होती है। अब इसी सन्दर्भ में इस कथा को देखिये। मान्यता है कि हलाहल के ताप से महादेव को शांति प्रदान करने के लिए ही उनका गंगाजल, दुग्ध, दही, शक्कर, घी इत्यादि से अभिषेक किया जाता है। इनमें से सबसे प्रसिद्ध गंगाजल से अभिषेक की कथा है। अब ये भी एक लोक कथा ही है किन्तु फिर भी इससे समाज में किसी प्रकार का नकारात्मक सन्देश नहीं जाता इसीलिए लोग इस कर्म को श्रद्धा से करते हैं। किन्तु भांग वाली कथा से समाज के सामने एक गलत उदाहरण प्रस्तुत होता है।
शिव जी द्वारा भांग के सेवन की कुछेक मनगढंत कथाएं और भी है जैसे एक बार वे सो रहे थे और जब वे उठे तो उन्हें भूख लगी। जब उन्हें खाने को कुछ नहीं मिला तो उन्होंने पास में उगे भांग के पत्ते खा लिए। वो उन्हें इतने अच्छे लगे कि फिर वे प्रतिदिन भांग का सेवन करने लगे। ऐसी कथाओं पर सर पीटने के अतिरिक्त और क्या किया जा सकता है?
जो सारे सृष्टि का पोषण करते हैं, जो भूतनाथ, अर्थात समस्त प्रकार के योनियों के स्वामी हैं, जो पशुपतिनाथ हैं उन्हें भोजन नहीं मिला? आदियोगी शंकर भूख से त्रस्त हो गए? और भूख से बचने के लिए समस्त सृष्टि में उन्हें भांग के पत्ते ही मिले? इस प्रकार की बेसिरपैर की कथाओं से केवल हिन्दू धर्म का अपमान ही होता है इसीलिए ऐसी कपोल काल्पनिक कथा से बचना ही चाहिए।
कुछ लोगों का ये भी तर्क होता है कि शंकर तो औघड़ हैं। जो मिलता है वो खा लेते हैं। कभी किसी चीज को ग्रहण करने से मना नहीं करते। ये तो सत्य है कि महादेव औघड़दानी हैं पर आप उन्हें सदैव हानिकारक पदार्थों से ही क्यों जोड़ते हैं? क्या उन्हें भांग, गांजा और नशे की सामग्रियां ही अर्पित की जाती है?
कुछ लोगों का ये भी कहना है कि चूँकि भगवान शंकर तमोगुण के प्रतीक हैं इसीलिए मांसाहार, नशा इत्यादि करना तर्कसम्मत है। वास्तव में ये सोचना ही मूर्खता है। तमोगुण का प्रतीक होने का अर्थ ये नहीं कि दुनिया भर की बुरी चीजों को स्वीकार करने की स्वतंत्रता आपको प्राप्त हो गयी। आप महादेव को इतना सीमित भी मत कीजिये कि तमोगुण के आगे कुछ दिखे ही नहीं।
भगवान शंकर का विषपान करना नकारात्मकता का पान करने का प्रतीक भी है। किन्तु अधिकतर लोग ये बात भूल जाते हैं कि महादेव ने केवल नकारात्मकता का पान ही नहीं किया बल्कि उससे भी अधिक आवश्यक बात ये है कि वे उस नकारात्मकता से जरा भी प्रभावित नहीं हुए। ये इस बात को सत्यापित करता है कि केवल नकारात्मकता को ग्रहण करना आवश्यक नहीं है, बल्कि उससे प्रभावित ना होना भी उतना ही अधिक आवश्यक है।
वास्तव में सत्य ये है कि आधुनिक समाज में लोग केवल अपनी वासना की पूर्ति के लिए ईश्वर का उदाहरण देने लगते हैं। उससे भी बुरा ये कि वे ऐसी नशीली और खतरनाक चीजों को महादेव का प्रसाद बोलने लगे है। यदि आपको नशा करना है तो कीजिये आपको रोका किसने है? किन्तु उसे सही साबित करने के चक्कर में आप अपने ही देवी देवताओं को क्यों घसीटते हैं? इससे केवल आपका अपराधबोध ही कम हो सकता है किन्तु अपराध और अधिक बढ़ जाता है।
तो इस बात का सदैव ध्यान रखें कि महादेव के विषय में जो ये मिथ्या जानकारी समाज में फैली है उसे दूर करने का हम सब को प्रयास करना चाहिए। दुखद बात ये है कि स्वयं उनके तथाकथित भक्त ही बिना जाने समझे अपने ही आराध्य का ऐसा घोर अपमान कर रहे हैं। इसीलिए यथासंभव ऐसे लोगों की मिथ्या धारणा का खंडन करें और अपने आने वाली पीढ़ियों को भी इस सत्य के विषय में बताएं।
ॐ नमः शिवाय।
Bahot khoob bhai Man ko Santosh mila
जवाब देंहटाएंBahot khoob bhai Man ko Santosh mila
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जवाब देंहटाएंआभार अभिषेक जी
हटाएंapne bure kaam/adaton ko sahi sabit karne ke liye devi devtaon ki example dete ho
जवाब देंहटाएंpuran Ayr ved ki tippadi to sath to jyada achcha rhata phir bhi achha hai
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