वानरराज वाली के विषय में तो हम सभी जानते ही हैं। उनका बल सम्पूर्ण विश्व में प्रसिद्ध था। रामायण के किष्किन्धा काण्ड सर्ग ११ में महर्षि वाल्मीकि ने वाली के बल का विस्तार से वर्णन किया है। इस सर्ग में श्रीराम के पूछने पर सुग्रीव वाली के बल के बारे में बताते हैं।
इससे पहले वो श्रीराम को वाली और मायावी के युद्ध के बारे में बता चुके थे जिसके कारण उन दोनों भाइयों के बीच वैर उत्पन्न हुआ। जब मायावी वाली और सुग्रीव से डर कर कंदरा में छिप गया तब वाली अकेले ही उस कंदरा में गए और १ वर्ष तक उसे खोजते रहे। फिर जब वो उन्हें मिला तब उन्होंने उससे घोर युद्ध कर उसका वध कर दिया। वाली ने केवल मायावी का ही वध नहीं किया बल्कि अकेले ही उसकी सेना के समस्त असुरों का वध कर दिया।
जब श्रीराम वाली के वध का संकल्प करते हैं तब सुग्रीव उनसे कहता है कि 'हे प्रभु! आप निःसंदेह तीनों लोकों का नाश करने में समर्थ हैं किन्तु फिर भी वाली का जैसा पुरुषार्थ और बल है वो मैं सुनाता हूँ, उसके बाद जैसा उचित हो, आप वैसा ही कीजियेगा।'
वाली सूर्योदय के पहले ही पश्चिम समुद्र से पूर्व समुद्र तक और दक्षिण सागर से उत्तर सागर तक घूम आता है और फिर भी वो थकता नहीं है। वो पर्वतों की चोटियों पर छाड़कर बड़े-बड़े शिखरों को बल पूर्वक उठा लेता है और फिर उन्हें ऊपर उछाल कर किसी गेंद की भांति उन्हें फिर से अपने हाथों में थाम लेता है। वन में जो सुदृढ़ और विशाल वृक्ष हैं, उन्हें वाली वेगपूर्वक तोड़ डालता है।
कुछ काल पहले यहाँ दुदुंभि नाम का असुर रहता था जो भैंसे के रूप में दिखाई देता था। ऊंचाई में वो कैलास पर्वत की भांति जान पड़ता था और उस पराक्रमी असुर में १००० हाथियों का बल था। अपने बल के घमंड में वो विशाल दानव पहले समुद्र और फिर हिमालय के पास गया किन्तु दोनों ने उन्हें वाली के पास भेज दिया। तब वो किष्किन्धापुरी में आकर वाली को ललकारने लगा।
तब वाली उसकी ललकार सुनकर महल से बाहर आया और दोनों में घोर युद्ध होने लगा। कपिश्रेष्ठ वाली ने दुदुंभि के दोनों सींगों को पकड़ उसे जोर जोर से घुमाया और भूमि पर पटक दिया जिससे उसके कानों से रक्त बहने लगा। फिर वाली ने उस असुर पर अपने मुक्कों, लातों और घुटनों से प्रहार करने लगा और उसे उठा कर भूमि पर पटक दिया और अपने शरीर से उसे दबा दिया। इससे दुदुंभि पिस गया और रक्तवमन करता हुआ मर गया।
फिर वाली ने उसके विशालकाय मृत शरीर को अपने हाथों से उठा कर साधारण वेग से ही एक योजन दूर फेंक दिया। उसी समय उस असुर के शरीर से रक्त की बूंदें महर्षि मातंग के आश्रम में गिरी जिससे क्रुद्ध होकर उन्होंने वाली को श्राप दिया कि यदि वो उनके आश्रम के १ योजन की दूरी के अंदर आएगा तो अपने प्राणों से हाथ धो बैठेगा। इसी से वाली यहाँ नहीं आता और मैं निर्भय होकर यहाँ निवास करता हूँ।
सामने जो दुदुंभि की हड्डियों का ढेर दिख रहा है जो एक पर्वत शिखर के समान प्रतीत हो रहा है उसी को वाली ने किष्किंधा से इतनी दूर फेंका था। सामने जो सात साल के वृक्ष दिख रहे हैं जो बड़े मोठे और अनेकों उत्तम शाखाओं से सुशोभित हो रहे हैं, वाली इनमें से एक-एक को बलपूर्वक हिलाकर पत्तों से रहित कर सकता है। श्रीराम, यह मैंने वाली के अनुपम पराक्रम को प्रकाशित किया है। अब आप मुझे बताइये कि आप वाली को कैसे मार पाएंगे?
वाली शूर है और स्वयं भी उसे अपने शौर्य पर अभिमान है। उसका बल और पुरुषार्थ तीनों लोकों में विख्यात है। वो महाबली अब तक किये गए किसी भी युद्ध में परास्त नहीं हुआ है। उसने ऐसे-ऐसे अद्भुत कर्म किये हैं जो देवताओं के लिए भी दुष्कर हैं। वाली को जीतना दूसरों के लिए संभव नहीं। उस पर आक्रमण या उसका तिरस्कार भी नहीं किया जा सकता। वह शत्रु की ललकार को सह नहीं सकता।
मुझे उसके बल का तो पता है किन्तु मैंने समर में आपके बल और पराक्रम को प्रत्यक्ष नहीं देखा। प्रभु! मैं वाली से आपकी तुलना नहीं करता हूँ और ना ही आपको डराता हूँ और ना ही आपका अपमान करता हूँ। वाली के भयानक कर्मों ने ही मेरे मन में कातरता उत्पन्न कर दी है।
तब लक्ष्मण के कहने पर श्रीराम सुग्रीव का संदेह दूर करने के लिए ने दुदुंभि की उन विशालकाय अस्थियों को अपने पैर के अंगूठे से उठा कर १० योजन दूर फेंक दिया। इसके बाद उन्होंने अपने एक ही बाण से उन सात साल के वृक्षों को एक साथ भेद दिया जो उन्हें भेदता हुए पृथ्वी के नीचे सात लोकों को भी भेद गया और पाताल तक पहुंच गया। ये अद्भुत कर्म देख कर सुग्रीव को श्रीराम के बल का अनुमान हुआ।
इसके बाद सुग्रीव दो बार वाली से युद्ध करने गए। सुग्रीव स्वयं ही महाबलशाली थे और उनमें १०००० हाथियों का बल था किन्तु फिर भी दोनों बार वाली ने उन्हें बहुत बुरी तरह परास्त किया। सुग्रीव जैसे महाबली को इतनी सहजता से परास्त कर देने से ही वाली की शक्ति का पता चलता है।
जब वाली मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं तो सभी वानर वीर रोते हुए उनके और एक अतिशक्तिशाली गन्धर्व, जिनका नाम "गोलभ" था, उनके युद्ध का वर्णन करते हैं। वाली और गोलभ के बीच वो युद्ध लगातार १५ वर्षों तक चला था जो ना दिन में रुका और ना ही रात में। सोलहवें वर्ष के आरम्भ में अंततः वाली ने अपने अमित पराक्रम से गोलभ का वध कर दिया।
वाली के वध पर विलाप करती हुई तारा कहती है कि पूर्वकाल में वाली ने अपने पिता इंद्र से भी युद्ध किया था। उस युद्ध में वाली के अतुल पराक्रम से देवराज युद्ध में संतुष्ट हुए और उन्होंने वाली को एक स्वर्ण माला दी जो धनलक्ष्मी से संपन्न थी। उसे पहनने वाले को कभी भी धन की कमी नहीं होती थी।
वाली की असाधारण शक्ति का पता एक और बात से चलता है। जिस बाण से श्रीराम ने सातों साल के वृक्षों को भेदा था, उस बाण का वेग ऐसा था जो उन वृक्षों को भेदने के बाद पृथ्वी के नीचे सात लोकों को भेद कर पाताल तक चला गया था। बाद में वो बाण पाताल को भेद कर पुनः श्रीराम के पास लौट आया था। किन्तु जब श्रीराम ने उस बाण को वाली पर चलाया तो वो बाण उनके वक्ष को भेद तो गया किन्तु उसके वज्रतुल्य वक्ष को पार नहीं कर सका। बाद में नील ने उस बाण को वाली के वक्ष से निकाला था। इसी से वाली की अद्भुत शक्ति का पता चलता है।
यहाँ एक बात बताना आवश्यक है कि आज कल इंटरनेट और टीवी सीरियलों में वाली के बारे में बहुत भ्रामक बातें बताई जाती है। इसमें से सबसे प्रमुख ये है कि वाली के सामने पड़ने वाले योद्धा का आधा बल उसमें आ जाता था। हालाँकि ये बिलकुल मिथ्या बात है। रामायण या रामचरितमानस में कहीं भी इस बात का उल्लेख नहीं है। साथ ही वाली और हनुमान जी के बीच युद्ध की बात भी झूठ है। ऐसा कभी भी नहीं हुआ था। अतः इस प्रकार की भ्रामक बातों से बचना चाहिए।
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