ये तो हम सभी जानते हैं कि रामायण में श्रीराम के राज्याभिषेक से पहले ही भरत और शत्रुघ्न अपने ननिहाल कैकेय देश चले गए थे। बाद में जब महाराज दशरथ की मृत्यु हुई तो गुरु वशिष्ठ ने दूतों को कैकेय देश भेजा ताकि वे भरत और शत्रुघ्न को वापस ले कर आ सकें। जिस मार्ग से दूत कैकेय पहुंचे और जिस मार्ग से भरत और शत्रुघ्न सेना सहित वापस आये, उसका विस्तृत वर्णन रामायण में दिया गया है।
वालमीकि रामायण के अयोध्या कांड के ६८वें सर्ग में ऐसा वर्णन है कि महर्षि वशिष्ठ ने पांच दूतों - सिद्धार्थ, विजय, जयंत, अशोक और नंदन, इन्हे कैकेय भेजा। तब वे पांचों कैकेय राज के लिए बहुमूल्य उपहार और राहखर्च लेकर पहले अपने घर गए और फिर तुरंत ही वे यात्रा के लिए निकले।
वे पहले अपरताल नामक पर्वत के नीचे बहने वाली मालिनी नदी के तट पर आगे बढे। फिर वे हस्तिनापुर पहुंचे और गंगा को पार कर वे पांचाल और फिर कुरुजङ्गल प्रदेश से होकर आगे बढे। इसके बाद उन्होंने शरदण्डा नदी को पार किया जिसके पार सत्योपयाचन नाम का एक दिव्य वृक्ष था जिसपर देवता वास करते थे। वे पांचों उसकी परिक्रमा कर आगे बढे और कुलिङ्गा नामक नगर में पहुंचे।
वहां से उन्होंने तेजोभिभवन और अभिकाल नामक गावों को पार किया। फिर वे इक्षुमती नाम की नदी को पार कर बाह्लीक देश के मध्य में स्थित सुदामा नाम के पर्वत तक पहुंचे। उस पर्वत पर श्रीहरि के चरणों के चिह्न थे जिसके दर्शन कर वे विपाशा नदी के तट से आगे बढे और अंततः गिरिव्रज में पहुंचे। फिर वहां से वे सीधे राजभवन पहुंचे और भरत को गुरु वशिष्ठ का सन्देश सुनाया। गुरुदेव की आज्ञा अनुसार उन्होंने दोनों को ये नहीं बताया कि महाराज दशरथ की मृत्यु हो चुकी है।
फिर उन दूतों ने अपने साथ लाये गए उपहार को दिखाते हुए भरत से कहा कि इन उपहारों में से २० करोड़ की लागत का सामान आपके नाना कैकेयनरेश के लिए और १० करोड़ की लागत का सामान आपके मामा के लिए है। तब वे उपहार लेकर भरत और शत्रुघ्न अपने नाना के पास गए और उनसे अयोध्या वापस लौटने की आज्ञा मांगी। तब उनके नाना महाराज अश्वपति ने बहुत से हाथी, विचित्र कुत्ते, कालीन, मृगचर्म, १६०० घोड़े, २००० स्वर्ण मुद्राएं और बहुत सा धन देकर उन्हें वापस जाने की आज्ञा दी।
भरत और शत्रुघ्न की रक्षा के लिए इतने सारे उपहारों के लिए उन्होंने बहुत बड़ी सेना भी उनके साथ भेजी। इसी सेना के कारण वे दूत पहले वाले मार्ग से ना जाकर दूसरे मार्ग से वापस अयोध्या के लिए सेना सहित निकले। भरत ने वापसी के लिए पूर्व की दिशा ली और सुदामा नदी को पार किया। इसके बाद उन्होंने ह्रदिनी और शतद्रु (आज की सतलज) नदी को भी पार किया और ऐलाधन नाम के गांव पहुंचे।
वहां से वे अपरपर्वत नाम के जनपद पहुंचे जहाँ शिला नाम की नदी बहती थी। उस नदी को पार कर वे शल्यकर्षण नाम के देश में पहुंचे। वहां उन्होंने विश्राम किया और फिर शिलवाहा नाम की नदी को पार करके वे चैत्ररथ वन पहुंचे। वहां से उन्होंने सरस्वती और गंगा के संगम को पर किया और वीरमत्स्य देश को पार कर वे भरुण्ड वन पहुंचे।
उस वन को पार कर वे कुलिङ्गा नदी को पार किया और यमुना तट पर पहुँच कर उनकी सेना ने विश्राम किया। फिर आगे बढ़ते हुए उन्होंने अंशुधान नाम के गांव में प्रवेश किया और गंगा तट से होते हुए वे प्राग्वट नाम के नगर पहुंचे। वहां से गंगा को पार कर वे कुटिकोष्टिका नाम की नदी के तट पर पहुंचे और उसे पार कर वे धर्मवर्धन नाम के गांव में जा पहुंचे।
वहां से तोरण गांव से होते हुए वे जाम्बुप्रस्थ पहुँच गए। वहां से आगे बढ़ कर उन्होंने वरूथ नाम के गांव में प्रवेश किया। वहां उन्होंने रात्रि में विश्राम किया और प्रातः वे उज्जीहाना नाम के नगर में पहुंच कर भरत ने अपनी सेना को धीरे धीरे आने की आज्ञा दी और स्वयं एक तीव्रगामी रथ लेकर अयोध्या की ओर चल पड़े।
फिर वे सर्वतीर्थ पहुंचे जहाँ उन्होंने उत्तानिका नदी के तट पर रात्रि में विश्राम किया। फिर प्रातः वे हस्तिपृष्ठक गांव में पहुंचे जहाँ उन्होंने कुटिका नदी को पार किया। आगे वे लौहित्य नाम के गांव में पहुंचे और कपीवती नदी को पार किया। आगे चल कर एकसाल नगर के पास स्थाणुमती और विनत गांव के पास उन्होंने प्रसिद्ध गोमती नदी को पार किया।
उससे आगे चल कर वे कलिंग देश के सालवन में पहुंचे जहाँ उन्होंने थोड़ा विश्राम किया। फिर रात्रि में ही सालवन को पार कर प्रातःकाल तड़के वे अंततः महाराज मनु द्वारा बसाई गयी अयोध्या नगरी की सीमा पर पहुंचे। इस प्रकार सात रातें बिता कर आठवें दिन सुबह वे कैकेय से अयोध्या पहुंचे।
aap ne itni nadian gaon pahar ka barnan kiya/ achha laga
जवाब देंहटाएंachha hota in ka aap aaj ka naam barnan karte
itne bare paryas ke liye dhanaybad