कुछ समय पहले हमने यक्षिणियों एवं पद्मनाभ स्वामी मंदिर के रहस्य पर एक लेख प्रकाशित किया था। इन दोनों में हमने कांजीरोट्टू नामक एक यक्षिणी के विषय में बताया था। इस यक्षिणी की मान्यता दक्षिण भारत, विशेषकर केरल और तमिलनाडु में बहुत है और वहाँ इसकी कई लोक कथाएं भी प्रचलित हैं।
कथा के अनुसार इसका वास्तविक नाम चिरुथेवि था। इसे श्रीदेवी के नाम से भी जाना जाता था। वो त्रावणकोर की सर्वोत्तम नगरवधू थी। नगरवधू होने के कारण उसके सम्बन्ध बहुत प्रतिष्ठित और प्रभावशाली व्यक्तियों के साथ थे। उनमें से एक राजा राम वर्मा का पुत्र भी था। इतनी पहुँच होने के कारण वो भी नगर की सबसे प्रभवशाली और धनी व्यक्तियों में से एक बन गयी।
उसका एक भाई था जिसका नाम गोविंदन था। चिरुथेवि जहाँ भी जाती थी अपने भाई गोवंदन को साथ ले जाती थी। उन दोनों की पालकी को उठाने वालों में से एक था कांजूरमन जो गोवंदन का घनिष्ट मित्र था। कुछ ग्रंथों में ये भी लिखा है कि दोनों एक दूसरे से प्रेम करते थे। चिरुथेवि को कांजूरमन और अपने भाई के संबंधों के विषय में कुछ पता नहीं था।
समय के साथ साथ चिरुथेवि कांजूरमन से प्रेम करने लगी। उसे पता चला कि कांजूरमन पहले से ही विवाहित है किन्तु फिर भी उसके प्रति उसका प्रेम बढ़ता ही गया। चिरुथेवि ने कई बार कांजूरमन पर अपना प्रेम प्रदर्शित किया किन्तु वो चिरुथेवि के प्रति उदासीन ही रहा। उसने भी चिरुथेवि को बताया कि वो विवाहित है किन्तु उससे चिरुथेवि पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। इससे कांजूरमन ने उससे और दूरी बढ़ा ली।
इसके इस व्यहवार से चिरुथेवि बहुत क्रोधित हो गयी और उसने कांजूरमन की इस उदासीनता का कारण उसकी पत्नी को माना। उसने सोचा कि यदि उसकी पत्नी ना रहे तो कांजूरमन उसे प्राप्त हो जाएगा। उसकी पहुँच तो बहुत ऊपर तक थी ही, इसी के बल पर चिरुथेवि ने कांजूरमन की पत्नी की हत्या करवा दी।
जब उसके भाई गोविंदन को इस बात का पता चला तो उसने सारी बातें कांजूरमन को बताई। तब चिरुथेवि से प्रतिशोध लेने के लिए कांजूरमन ने उससे प्रेम का नाटक किया और एक रात जब दोनों एकांत में थे, कांजूरमन ने चिरुथेवि का गला घोंट कर उसकी हत्या कर दी।
इस प्रकार अकाल मृत्यु के कारण चिरुथेवि ने कांजीरोट्टु नामक यक्षिणी के रूप में पुनर्जन्म लिया। यक्षिणी के रूप में उसका रूप असाधारण रूप से आकर्षक था और वो पुरुषों को अपनी ओर आकर्षित कर उनका रक्तपान करने लगी। उसे अपने पिछले जन्म की बातें याद थी इसीलिए उसने कांजूरमन को भी आतंकित करना आरम्भ किया। वास्तव में एक यक्षिणी के रूप में भी वो उससे प्रेम करती थी और उसे प्राप्त करना चाहती थी।
तब कांजूरमन ने गोविंदन से सहायता मांगी। गोविंदन भगवान बलराम का बहुत बड़ा भक्त था। इसके अतिरिक्त वो कांजीरोट्टु के रूप में अपनी बहन चिरुथेवि को भी पहचान गया। उसने यक्षिणी रुपी अपनी बहन से बात की और उसके साथ कांजूरमन के लिए एक समझौता किया। गोविंदन ने यक्षिणी से कहा कि वो कांजूरमन के साथ उसकी प्रेमिका के रूप में १ वर्ष तक रह सकती है किन्तु उसकी तीन शर्ते हैं:
- १ वर्ष की समाप्ति पर उसे भगवान नृसिंह की भक्ति स्वीकार करनी होगी।
- उसे सदा के लिए एक मंदिर में रहना होगा जहाँ से वो कभी बाहर नहीं जा सकती।
- उसे इस जन्म में और आने वाले सभी जन्मों में कांजूरमन और गोविंदन के लिए प्रार्थना करनी होगी ताकि दोनों का साथ सदा बना रहे।
कांजूरमन के सहवास को लालायित कांजीरोट्टु ने गिविंदन की तीनो शर्तों को मान लिया और उसे पूरा करने की शपथ ली। उसके बाद कांजूरमन और कांजीरोट्टु १ वर्ष तक पति पत्नी की भांति साथ रहे। एक वर्ष पूरा होने पर शर्त के अनुसार कांजीरोट्टु यक्षिणी वलियावीडू मंदिर में चली गयी और वहीँ रह गयी जो उसके नाम से कांजीरोट्टु वलियावीडू मंदिर के रूप में जाना जाने लगा।
कइयों का मानना है कि ये मंदिर वर्तमान में केरल की राजधानी थिरुअनंतपुरम में स्थित है जबकि कई कहते हैं कि ये मंदिर बहुत पहले नष्ट हो चुका है। मान्यताओं के अनुसार जब कांजीरोट्टु यक्षिणी वहां निवास करने लगी तो वहां के लोग वहां के कुलदेवता भगवान रामानुजम (श्रीकृष्ण और रुक्मिणी) और भगवान बलराम के साथ साथ उसकी भी पूजा करने लगे। वे उसे पोंगल (खिचड़ी) का भोग लगाते थे।
ऐसी भी मान्यता है कि भगवान नृसिंह की भक्त बनने के बाद कांजीरोट्टु यक्षिणी अब श्री पद्मनाभ स्वामी मंदिर के उसी शापित द्वार के पीछे रहती है जिसे सरकार ने वॉल्ट B नाम दिया है और जिसे अभी तक खोला नहीं जा सका है। इसी यक्षिणी का एक रूप इस मंदिर के दक्षिण पश्चिम भाग में भी उकेरा गया है। इस शापित दरवाजे के बारे में बहुत सारी मान्यताएं हैं और उनमे से एक है कि यदि ये द्वार खोला गया तो कांजीरोट्टु यक्षिणी स्वतंत्र हो जाएगी और सबका रक्तपान करेगी।
श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर के रहस्यों के विषय में विस्तार से आप यहाँ जान सकते हैं।
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