वैसे तो वाल्मीकि रामायण के कई संस्करण हैं जिनमें से सबसे प्रमुख है गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्री रामचरितमानस। इसके अतिरिक्त भी आनंद रामायण, कम्ब रामायण, अध्यात्म रामायण आदि अनेक संस्करण हैं। इन्ही संस्करणों में से जो सबसे अलग संस्करण है वो है अद्भुत रामायण। जैसा कि इसका नाम है, इस रामायण में ऐसी ऐसी अद्भुत घटनाएं हैं जिसपर विश्वास करना बहुत कठिन है।
सबसे अजीब बात जो इस रामायण के साथ है वो ये कि इसे स्वयं महर्षि वाल्मीकि की रचना के रूप में प्रचारित किया गया है। हालाँकि सत्य ये है कि ये ग्रन्थ निकट भूतकाल में ही कभी लिखा गया है और महर्षि वाल्मीकि से इसका कोई लेना देना नहीं है। यदि आप इस ग्रन्थ को पढ़ेंगे तो आपको महर्षि वाल्मीकि और इस ग्रन्थ की लेखनी में जो अंतर है, वो साफ़ समझ में आ जाएगा।
ये ग्रन्थ महर्षि वाल्मीकि ने नहीं लिखा इसका सबसे बड़ा कारण इसके प्रथम पृष्ठ में ही समझ आ जाता है क्यूंकि ये ग्रन्थ एक दोहे से प्रारम्भ होता है। और ये तो हम सभी जानते हैं कि महर्षि वाल्मीकि की सभी रचना संस्कृत भाषा में है। साथ ही इसके पहले श्लोक में ही महर्षि व्यास को प्रणाम कहा गया है। ये भी हम सभी जानते हैं कि महर्षि व्यास महर्षि वाल्मीकि के बहुत काल के बाद जन्में थे, तो ये संभव ही नहीं कि इसकी रचना महर्षि वाल्मीकि ने की हो।
इस ग्रन्थ में ऐसे कई प्रसंग हैं जो बहुत अद्भुत हैं। यदि मुख्य चीजों के बारे में बताऊँ तो राजा अम्बरीष का इसमें वर्णन है, देवर्षि नारद को वानर मुख मिलने का वर्णन भी इसी में है। साथ ही देवर्षि नारद द्वारा ना केवल श्रीहरि को बल्कि माता लक्ष्मी को भी श्राप देने का इसमें वर्णन है। अर्थात इस ग्रन्थ के अनुसार नारद जी के श्राप के कारण ही भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को श्रीराम और माता सीता के रूप में पृथ्वी पर जन्म लेना पड़ा।
सबसे अजीब बात इसमें जो है वो ये कि इस ग्रन्थ के अनुसार माता सीता रावण की ही पुत्री थी। इसमें वर्णित है कि रावण ने परमपिता ब्रह्मा से ये वरदान माँगा कि जब अज्ञानता वश उसकी इच्छा अपनी ही पुत्री से विवाह करने की हो तभी उसकी मृत्यु हो। आपने भी कई स्थानों पर ये सुना होगा कि रावण ही माता सीता का पिता था, ये मिथ्या धारणा भी इसी ग्रन्थ के कारण है।
माता सीता के जन्म की घटना भी बड़ी अजीब है। इस ग्रन्थ के अनुसार रावण एक बार बहुत सारे ब्राह्मणों को मार कर उनका रक्त ले आया। उसे उसने मंदोदरी को दिया और कहा कि ये विष से भी तीक्ष्ण है इसीलिए इसे किसी को ना देना। मंदोदरी रावण से बहुत दुखी थी इसीलिए उसने वो रक्त पी लिया ताकि उसकी मृत्यु हो जाये, किन्तु उसी रक्त के पान से मंदोदरी का गर्भ ठहर गया। चूँकि बहुत काल से उसका संसर्ग रावण से नहीं था इसीलिए घबराकर उसने अपना गर्भ कुरुक्षेत्र में गाड़ दिया। बाद में वही से राजा जनक को माता सीता की प्राप्ति हुई।
इस ग्रन्थ में श्रीराम और परशुराम जी का भी साक्षात्कार का वर्णन है। इस ग्रन्थ के अनुसार जब परशुराम जी ने श्रीराम को धनुष पर बाण चढाने को कहा तब श्रीराम ने क्रोध में आकर उन्हें धिक्कारा और फिर उन्होंने उन्हें अपना विराट स्वरुप दिखाया। इस विराट स्वरुप का जो वर्णन दिया गया है वो बहुत हद तक महाभारत में श्रीकृष्ण के विराट स्वरुप से मेल खाता है।
सबसे अजीब बात जो इस ग्रन्थ में है वो ये कि इसमें श्रीराम के वनवास का कोई वर्णन ही नहीं है। इस ग्रन्थ के अनुसार श्रीराम श्रीराम माता सीता और लक्ष्मण के साथ भ्रमण करने वन में गए और वहां रावण ने माता सीता का हरण कर लिया। इसी कारण जब श्रीराम रोये तो उसी से वैतरणी नदी की उत्पत्ति हुई। फिर वे ऋष्यमूक पर्वत पर सुग्रीव से मिले और उसी समय श्रीराम ने पुनः हनुमान जी को अपना विराट स्वरुप दिखाया।
उसी समय श्रीराम द्वारा हनुमान जी को सांख्य योग, उपनिषद, भक्तियोग, विभूतियोग आदि का ज्ञान दिया गया जो बहुत हद तक भगवद्गीता से मिलता है। ये संवाद बिलकुल वैसा ही है जैसा गीता में श्रीकृष्ण और अर्जुन का संवाद है। हालाँकि ये बहुत संक्षेप हैं पर है बिलकुल भगवद्गीता की भांति ही।
इसके बाद वे सीधा समुद्र की ओर जाते हैं और लक्ष्मण समुद्र से मार्ग मांगते हैं। जब समुद्र नहीं सुनता तो लक्ष्मण समुद्र में कूद जाते हैं और अपने तेज से समुद्र का जल सुखा देते हैं। तब श्रीराम लक्ष्मण जी के कृत्य को गलत बताते हैं और फिर माता सीता की याद में अपने अश्रु बहाते हैं जिससे समुद्र फिर से जल से परिपूर्ण हो जाता है। तब श्रीराम लंका जाकर रावण का वध करते हैं और माता सीता को पुनः प्राप्त करते हैं।
इसके बाद सभी सिद्ध ऋषि श्रीराम की जय जयकार करते हैं तो माता सीता हंसने लगती है और कहती है कि श्रीराम ने रावण का वध कर कोई बड़ी वीरता का काम नहीं किया। वास्तव में कैकसी के दो पुत्र थे - एक दशरावण और दूसरा सहस्त्र रावण। दशरावण के देश मुख थे और सहस्त्र रावण के १००० मुख थे। सहस्त्र रावण अपने भाई रावण से १००० गुणा अधिक शक्तिशाली था। जहाँ रावण लंका में रहता था, सहस्त्र रावण पुष्कर द्वीप पर रहता था।
तब श्रीराम तत्काल अपने तीनों भाइयों, हनुमानजी और अन्य वीरों को लेकर पुष्पक विमान से पुष्कर द्वीप पहुंचे। वहां १००० मुख और २००० भुजाओं वाला सहस्त्र रावण अपने अनेकों पुत्रों और योद्धाओं के साथ रणभूमि में आया। उसने अपने बाएं हाथ से ही वायव्य अस्त्र चलाया जिससे श्रीराम और माता सीता को छोड़ कर श्रीराम के बांकी सभी योद्धा जहाँ जहाँ से आये थे वहां वहां उड़ कर पहुँच गए। अर्थात, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न अयोध्या, हनुमान जी और और बांकी वानर बियर किष्किंधा और विभीषण और उनकी सेना लंका पहुँच गए।
फिर श्रीराम और सहस्त्र रावण का युद्ध हुआ। जिस बाण से श्रीराम ने रावण का वध किया था वही बाद उन्होंने सहस्त्र रावण पर छोड़ा जिसे उसने पकड़ कर तोड़ दिया। तब सहस्त्र रावण ने एक बाण श्रीराम पर चलाया जो श्रीराम की छाती को विदीर्ण करता हुआ पाताल में प्रवेश कर गया। उस प्रहार से श्रीराम अचेत होकर पुष्पक विमान पर गिर पड़े।
ये देख कर माता सीता मुस्कुराने लगी। तब सभी ऋषियों ने माता सीता से कहा कि आपने क्यों श्रीराम को सहस्त्र रावण के विषय में बताया? उसी से श्रीराम की ये गति हुई है। तब उन्होंने भयानक अट्टहास किया और अत्यंत कराल रूप धर लिया। उस रूप में माता सीता ने तत्काल ही सहस्त्र रावण के सभी सरों को अपने खड्ग से काट डाला और सम्पूर्ण राक्षस सेना का संहार कर दिया। उनके शरीर से और भी कई विकृत रूप वाली माताएं निकली और राक्षस सेना का संहार करने लगी। तब पृथ्वी माता सीता के महाकाली रूप का भार सहन नहीं कर सकी और पाताल में धंसने लगी।
तब देवता सहित ब्रह्माजी ने माता से प्रार्थना की कि वे ऐसा ना करें। इस पर माता सीता ने कहा कि जब उनके पति ही मृत हो कर पड़े हैं तो वो और क्या करें? तब ब्रह्माजी ने श्रीराम को स्पर्श कर उनके प्राण लौटा दिए। जब श्रीराम चेत हुए तो उन्होंने माता सीता का भयानक रूप देखा। उस रूप को देख कर मारे भय के श्रीराम के हाथों से धनुष छूट कर गिर पड़ा और उन्होंने दोनों हाथों से अपने नेत्र बंद कर लिए।
तब ब्रह्माजी ने श्रीराम को सांत्वना दी और माता सीता के वास्तविक स्वरुप को बताया। फिर श्रीराम ने १००८ नामों द्वारा माता सीता की स्तुति की। उन्होंने माता से कहा कि आपका ये रूप देख कर मुझे भय लग रहा है इसी कारण आप पहले वाले रूप को धारण करें। तब माता सीता ने प्रसन्न होकर श्रीराम से वर मांगने को कहा। इसपर श्रीराम ने कहा कि आपका जो ये रूप मैंने देखा है वो मेरे मन से कभी ना जाये। साथ ही मेरे सारे भाई और मित्र मुझे पुनः प्राप्त हो जाएँ। माता सीता ने तथास्तु कहा और फिर श्रीराम उनके साथ अयोध्या वापस लौटे।
तो इस प्रकार आप देख सकते हैं कि ये रामायण बड़ी अजीबोगरीब घटनाओं से भरी पड़ी है। निःसंदेह इसके लेखक महर्षि वाल्मीकि नहीं हैं किन्तु इसे वास्तव में किसने लिखा है इसका कोई प्रामाणिक वर्णन नहीं मिलता है। शायद इसीलिए इसे महर्षि वाल्मीकि की रचना के रूप में प्रचारित किया गया।
जिन्होंने भी रामायण पढ़ी है वो ये अच्छी तरह जानते हैं कि भले ही रामायण के नायक श्रीराम हों किन्तु फिर भी माँ सीता का जो चरित्र है वो कहीं से उनसे कमतर नहीं बताया गया है। पर यदि अद्भुत रामायण की बात करें तो यहाँ स्पष्ट रूप से माता सीता को सर्वशक्तिशाली आदिशक्ति के रूप में दिखाया गया है।
आम लोगों के मन में रामायण के प्रति जो कुछ मिथ्या धारणा है उनमें से कई इस ग्रन्थ की ही देन है। अच्छी बात ये है कि ये रामायण छोटी है। इसमें कुल २७ अध्याय हैं जिनमें छोटे-बड़े श्लोकों की कुल संख्या १३५३ है।
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