स्वयं को खा जाने वाला शिवगण - कीर्तिमुख

कीर्तिमुख
आप सबने भारत, विशेष कर दक्षिण भारत में घरों और मंदिरों के ऊपर स्थापित इस भयानक आकृति को अवश्य देखा होगा। हालाँकि पहली बार इसे देख कर ऐसा लगता है जैसे ये कोई असुर हो किन्तु वास्तव में ये भगवान शंकर का एक गण है जिसका नाम है "कीर्तिमुख"। इसे देवताओं के भी ऊपर स्थान दिया जाता है।

पुराणों में कई स्थानों पर कीर्तिमुख की कथा आती है किन्तु कीर्तिमुख के विषय में जो सबसे प्रसिद्ध कथा है वो जालंधर से जुडी हुई है। जालंधर की उत्पत्ति महादेव से ही हुई थी इसीलिए वो उनका ही पुत्र कहलाया। हालाँकि जालंधर इस बात को नहीं जानता था इसीलिए अज्ञानतावश उसने माता पार्वती पर कुदृष्टि डाली। उसने अपना एक दूत, जिसका नाम रोनू था, उसे महादेव के पास भेजा। कुछ स्थानों पर ऐसा वर्णन है कि जालंधर ने राहु को महादेव के पास दूत बना कर भेजा था ताकि वो महादेव के मस्तक पर स्थित चंद्र को खा जाये।

वो दूत महादेव के पास पहुंचा और उसने महादेव से कहा कि वो अपनी पत्नी को उसके स्वामी जालंधर के हवाले कर दें। इससे क्रोधित महादेव ने अपना तीसरा नेत्र खोला और उससे रक्त की एक धारा निकली। उसी धारा से एक विचित्र जीव की उत्पत्ति हुई जिसका मुख सिंह का और हाथ पैर सर्प की भांति था। वो जन्म लेते ही भूख से रोने लगा। तब महादेव ने उसे जालंधर के दूत को खा लेने की आज्ञा दी। अब तो वो रोनू के पीछे भागा। उससे डर कर रोनू तीनो लोक भागता रहा किन्तु उस प्राणी ने उसका पीछा नहीं छोड़ा।

तब थक हार कर वो वापस महादेव के पास ही आया और उनसे अपनी धृष्टता की क्षमा मांगी। इससे द्रवित हो कर महादेव ने उसे क्षमा कर दिया। किन्तु उस प्राणी की भूख तो जस की तस थी। उसने महादेव से पूछा कि अब मैं किसे खाऊं? तब भोलेनाथ ने परिहास में ही कह दिया कि स्वयं को खा लो। उनकी आज्ञा मान कर वो स्वयं को ही खाने लगा।

भगवान शिव ने ये सोचा नहीं था और जब वे थोड़ी देर बाद लौटे तो उन्होंने देखा कि उस प्राणी ने अपने आप को खा लिया है और अब केवल उसका मुख ही शेष है। तब महादेव ने उसे तुरंत रोका और वे उसके आज्ञा पालन से बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने उसका नाम कीर्तिमुख रखा, अर्थात यशस्वी चेहरा। उन्होंने उसे अपने भवन की सुरक्षा के लिए द्वार पर नियुक्त कर दिया।

किन्तु ये समस्या जस की तस थी कि अब उसे खाने को क्या दिया जाये क्यूंकि उसकी भूख तो असीमित थी। तब महादेव ने उसे समस्त संसार के पाप, लोभ और बुरी नीयत को खाने को कहा। वे जानते थे कि जैसे कीर्तिमुख की भूख असीमित है उसी प्रकार संसार में पाप, लोभ और बुरी नीयत भी असीमित है। उसी दिन से कीर्तिमुख को लोग मंदिरों और अपने घर पर लगाने लगे ताकि वो उस ओर आने वाली सभी बुरी शक्तियों का भक्षण कर ले।

इस विषय में हमें एक कथा मत्स्य पुराण के अध्याय २५१ में भी मिलती है जिसके अनुसार जब महादेव ने युद्ध कर अंधकासुर का वध किया तो उनके स्वेद की एक बून्द पृथ्वी पर गिरी जिससे भयानक मुख वाले एक गण का जन्म हुआ। उसे जोरों की भूख लगी थी तो उसने महादेव से पूछा कि वो किसे खाये। तब महादेव ने उसे अंधकासुर की बची हुई सेना का भक्षण करने को कहा। उसने ऐसा ही किया किन्तु उससे उसकी भूख नहीं मिटी।

जब उसकी भूख नहीं मिटी तो अज्ञानतावश वो महादेव को ही खाने दौड़ा। तब भोलेनाथ ने उसे पृथ्वी पर लिटा दिया और सभी देवताओं को उस पर बैठने को कहा। चूँकि उसके शरीर में देवताओं का वास हुआ इसीलिए उसे पवित्र माना गया। इसे ही वास्तुदेवता कहा गया और आज हम गृह निर्माण में जिस वास्तुदेवता की पूजा करते हैं वो यही कीर्तिमुख है।

तो इस प्रकार महादेव के प्रति अपनी आज्ञाकारिता ने कीर्तिमुख को देवताओं से भी ऊपर उठा दिया। कीर्तिमुख हमें एक और सन्देश भी देता है कि यदि हम ईश्वर से साक्षात्कार करना चाहते हैं तो हमें निश्चित रूप से अपने पाप, लोभ और बुरी नीयत का त्याग करना होगा।

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