भगवान श्रीराम और खर-दूषण के युद्ध के विषय में तो हम सभी जानते हैं। आम तौर पर इस युद्ध के विषय में विस्तार से बहुत कम लोगों को पता है और ऐसी मान्यता है कि ये युद्ध श्रीराम ने बड़ी आसानी से बहुत कम समय में जीत लिया। किन्तु जब हम वाल्मीकि रामायण पढ़ते हैं तो इस युद्ध के विषय में बहुत विस्तार से लिखा गया है। इसका वर्णन हमें अरण्य कांड के २५वें सर्ग से लेकर ३०वें सर्ग तक दिया गया है। जब आप इसे पढ़ेंगे तो आपको श्रीराम के शौर्य के विषय में पता चलेगा।
इस वर्णन के अनुसार जब जनस्थान का राजा खर अपनी १४००० राक्षसों की सेना सहित पंचवटी पहुंचा तो उसने सबसे पहले श्रीराम पर प्रहार किया और फिर उसकी सारी सेना श्रीराम पर टूट पड़ी। उस विशाल सेना ने श्रीराम पर अनेको अस्त्रों से प्रहार किया और उन्हें बाणों से ढक दिया। उन अस्त्रों के प्रहार से श्रीराम का शरीर क्षत-विक्षत हो लहूलुहान हो गया किन्तु फिर भी वे एक अडिग पर्वत की भांति खड़े रहे। उनकी ये दशा देख कर देवता, सिद्ध, गन्धर्व, महर्षि अदि शोक में डूब गए।
तब श्रीराम ने क्रोध में आकर अपने धनुष को इतना खींचा कि वो गोलाकार हो गया और फिर उस धनुष से उन्होंने सहस्त्रों बाण छोड़े जिन्हे रोकना असंभव था। वे सारे बाण राक्षसों के शरीर को छेदते हुए आकाश में जाने लगे। उनके इस प्रहार से सहस्त्रों राक्षसों के अंग कट-कट कर गिरने लगे। राक्षसों के आर्तनाद से पूरा वन गूंज उठा। कुछ बलशाली राक्षसों ने पुनः श्रीराम पर प्रहार किया किन्तु श्रीराम ने उनके प्रहारों को रोक कर उनके गलों को काट डाला। ये देख कर बांकी बची हुई सेना वापस खर के पास भाग गयी।
अब खर के सेनापति दूषण ने उन्हें आश्वासन दिया और वो स्वयं श्रीराम की ओर दौड़ा। उसे देख कर राक्षस सेना निर्भय हो वापस श्रीराम पर टूट पड़ी। ये देख कर श्रीराम ने उस राक्षस सेना पर गंधर्व अस्त्र से प्रहार किया जिससे सहस्त्रों बाणों ने आकाश को ढक लिया। राक्षस ये देख ही नहीं पाते थे कि श्रीराम कब बाण हाथ में लेते थे और कब उसे छोड़ देते थे। इस प्रकार श्रीराम के हाथों मरे हुए असंख्य राक्षसों के शवों से वो भूमि पट गयी।
तब अपनी सेना की ये दशा देख कर दूषण ने ५००० राक्षसों को, जिन्हे जीतना कठिन था, आगे बढ़ने की आज्ञा दी। उन्होंने चारो ओर से श्रीराम पर एक साथ आक्रमण किया किन्तु श्रीराम ने उन सभी अस्त्रों, वृक्षों और शिलाओं को अपने बाणों से रोक दिया। फिर उन्होंने अपने बाणों से उन राक्षसों को मारना आरम्भ किया। ये देख कर अब खुद दूषण ने श्रीराम को अपने वज्र के समान बाणों से रोका।
इससे कुपित होकर श्रीराम ने क्षुर नामक बाण से दूषण के विशाल धनुष को काट डाला, चार बाण से उसके रथ के चारो अश्वों को मार डाला, अर्धचन्द्राकार बाण चला कर उसके सारथि का भी वध कर दिया और तीन बाण दूषण के वक्ष पर मारे। उनके प्रहारों से व्यथित होकर दूषण ने एक परिघ हाथ में लिया जो देवताओं को भी कुचल सकता था। उस भीषण परिघ को लेकर दूषण ने श्रीराम पर आक्रमण कर दिया।
तब श्रीराम ने दो बाणों से दूषण की दोनों भुजाएं काट डाली जिससे दूषण पृथ्वी पर गिर पड़ा। दूषण के मरने पर उसके तीन सेनापति - महाकपाल, स्थूलाक्ष और प्रमाथी ने एक साथ श्रीराम पर आक्रमण किया। महाकपाल ने शूल से, स्थूलाक्ष ने पट्टिश से और प्रमाथी ने फरसे से श्रीराम पर वार किया। तब श्रीराम ने अपने बाणों से महाकपाल का सर उड़ा दिया, प्रमाथी को असंख्य बाणों से मथ दिया और स्थूलाक्ष की आँखों को बाणों से भर दिया। इससे तीनों राक्षस एक साथ मृत्यु को प्राप्त हुए। फिर श्रीराम ने दूषण के ५००० राक्षसों को उतने ही बाण चला कर यमलोक पहुंचा दिया।
जब खर ने सुना कि दूषण और उसकी सेना का वध हो चुका है तो उसने अपनी बची हुए सेना को श्रीराम का वध करने की आज्ञा दी। तब खर के १२ सेनापति, जिनके नाम थे - श्येनगामी, पृथुग्रीव, शत्रुयज्ञ, विहङ्गम, दुर्जय, करवीराक्ष, पुरुष, कालकार्मुक, हेममाली, महामाली, सर्पास्य और रुधिराशन, उन्होंने एक साथ अपनी-अपनी सेना के साथ श्रीराम पर आक्रमण किया। किन्तु श्रीराम ने कर्णी नाम के १०० बाणों से सौ राक्षसों का और १००० बाणों से सहस्त्र राक्षसों का संहार कर दिया। इस प्रकार श्रीराम ने अकेले और पैदल ही १४००० राक्षसों का नाश कर दिया।
अब उस सेना में केवल खर और त्रिशिरा, ये दो राक्षस ही बचे थे। तब त्रिशिरा ने खर से श्रीराम से युद्ध करने की आज्ञा मांगी। खर ने उसे आज्ञा दी और फिर वो श्रीराम से युद्ध करने आया। उसने तीन बाणों से श्रीराम के ललाट पर प्रहार किया। इससे क्रोधित होकर श्रीराम ने त्रिशिरा की छाती में १४ बाण मारे, चार बाणों से उसके रथ के घोड़ों को मार दिया, आठ बाणों से उसके सारथि का भी वध कर दिया और एक बाण से उसके रथ की ध्वजा भी काट डाली। फिर अंततः तीन बाणों से उन्होंने त्रिशिरा के तीनों मस्तक काट गिराए।
त्रिशिरा के इस प्रकार मारे जाने से अब खर को भी श्रीराम से भय हुआ। उसने अद्भुत पराक्रम दिखाते हुए अपने रथ को चारो ओर घुमाते हुए श्रीराम पर कई बाण मारे। तब श्रीराम ने अपने असंख्य बाणों से आकाश को ऐसा ढक दिया कि भगवान सूर्यनारायण भी दिखाई नहीं देते थे।
खर उस समय रथ पर बैठे हुए यमराज की भांति लग रहा था। उसने श्रीराम के पास जाकर उनके धनुष को काट दिया। फिर उसने सहस्त्रों बाणों से श्रीराम पर प्रहार किया जिससे श्रीराम का कवच भूमि पर गिर पड़ा। उनके सभी अंगों में खर के छोड़े हुए बाण धंस गए और वे उसी प्रकार रणभूमि में खड़े रहे।
अब उन्होंने एक दूसरे धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाई। ये वही वैष्णव धनुष था जो महर्षि अगस्त्य ने श्रीराम को दिया था। फिर उन्होंने खर के रथ की ध्वजा काट दी। तब खर ने श्रीराम के वक्ष में ४ बाण मारे जिससे श्रीराम का सारा शरीर लहूलुहान हो गया। उत्तर में श्रीराम ने खर को ६ बाण मारे। उन्होंने एक बाण खर के मस्तक में, दो बाण उसकी भुजाओं में, और तीन बाण उसकी छाती में मारे। उसके बाद उन्होंने फिर १३ बाण खर पर चलाये। एक बाण से रथ का जुआ काट दिया, चार बाण से चारो अश्वों को मारा, एक बाण से सारथि का मस्तक काटा, तीन बाणों से रथ का आधारदंड तोडा, एक बाण से खर का रथ तोडा और १३वें बाण से उन्होंने खर को घायल कर दिया।
तब खर एक भीषण गदा लेकर श्रीराम के समक्ष आया। उसे देख कर श्रीराम ने कहा कि "खर! आज तुझे जितने प्रहार करने है कर ले, किन्तु मैं तेरा मस्तक अवश्य काट गिराऊंगा।" ये सुनकर खर ने भी श्रीराम से कहा कि "हे राम! मैं अकेला ही यमराज की भांति तुम्हारा वध करने में समर्थ हूँ। किन्तु मैं अधिक नहीं कहूंगा क्यूंकि सूर्यदेव अस्ताचल को जा रहे हैं जिससे युद्ध में विघ्न पड़ जाएगा।"
ये कहकर खर ने श्रीराम पर गदा से प्रहार किया जिसके श्रीराम ने अपने बाणों से टुकड़े कर दिए। तब खर को प्रहार करने को कुछ और नहीं दिखा तो उसने पास के एक साखू के एक विशाल वृक्ष को उखाड़ लिया। उस महान वृक्ष को उसने श्रीराम की ओर पूरी शक्ति से फेंका और कहा कि "लो, अब तुम मारे गए।" तब श्रीराम ने उस विशाल वृक्ष को अपने बाणों से काट डाला और अत्यंत क्रोधित हो खर के वध का निश्चय किया।
श्रीराम का सारा शरीर पसीने से भर गया और ऑंखें क्रोध से रक्तिम हो गयीं। उन्होंने सहस्त्रों बाणों से खर के शरीर को क्षत-विक्षत कर दिया। खर के सारे शरीर से रक्त की धारा बहने लगी किन्तु फिर भी वो बड़े वेग से श्रीराम की ओर दौड़ा। ये देख कर श्रीराम दो-तीन डग पीछे हटे और ब्रह्मदण्ड के समान एक बाण हाथ में लिया। वो बाण उन्हें देवराज इंद्र ने दिया था। उन्होंने कान एक खींच कर उस बाण को खर पर छोड़ा जो उसके वक्ष में जाकर लगा।
जैसे भगवान रूद्र ने अंधकासुर को जलाकर भस्म किया था, उसी प्रकार उस बाण के लगने से खर भूमि पर आ गिरा और मृत्यु को प्राप्त हुआ। इस प्रकार श्रीराम ने केवल डेढ़ मुहूर्त (तीन घडी) में ही खर, दूषण, त्रिशिरा और उनकी सेना के १४००० राक्षसों का नाश कर दिया। देवताओं के शत्रु उस राक्षस सेना का विध्वंस होने पर देवता और सिद्ध दुदुम्भी बजाते हुए वहां आये और उन्होंने श्रीराम की भूरि-भूरि प्रशंसा की।
तो आप देख सकते हैं कि महर्षि वाल्मीकि ने कितने विस्तार से श्रीराम के शौर्य का वर्णन किया है। गोस्वामी तुलसीदास ने मानस में इस युद्ध को थोड़ा चमत्कारी बनाया है। उन्होंने लिखा है कि श्रीराम ने उन १४००० राक्षसों पर सम्मोहनास्त्र का प्रयोग किया जिससे वे सभी आपस में ही लड़ कर मर गए। इससे श्रीराम ने बड़ी आसानी से पूरी सेना का विध्वंस कर दिया। किन्तु मूल वाल्मीकि रामायण में महर्षि वाल्मीकि ने ये बताया है कि किस प्रकार श्रीराम ने अपने श्रम और प्रकाराम से सभी राक्षसों का नाश किया। यही नहीं, इसमें हमें खर के भी अद्भुत पराक्रम के बारे में पता चलता है।
खर-दूषण के बारे में एक लेख हमने पहले ही लिख रखा है जिसे आप यहाँ पढ़ सकते हैं।
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