आप सभी लोग सोच रहे होंगे कि मैं ये कैसी बातें कर रहा हूँ? सदियों से हम लक्ष्मण रेखा के विषय में सुनते आ रहे हैं। सभी लोग ये जानते हैं कि जब श्रीराम स्वर्णमृग रूपी मारीच के पीछे चले गए और उसका वध किया तब उसने श्रीराम के स्वर में माता सीता और लक्ष्मण को पुकारा। तब माता सीता के बहुत कहने पर लक्ष्मण जी श्रीराम की सहायता के लिए गए लेकिन जाने से पहले माता सीता की रक्षा के लिए एक ऐसी रेखा खींच गए जिसे कोई पार ना कर सके। वही रेखा "लक्ष्मण रेखा" के रूप में प्रसिद्ध है।
आप सब का सोचना बिलकुल सही है कि ये कथा हम सदियों से सुनते आ रहे हैं किन्तु सत्य ये है कि वाल्मीकि रामायण में किसी लक्ष्मण रेखा का उल्लेख नहीं है। यही नहीं, जब माता सीता लक्ष्मण को अत्यंत कटु वचन बोलती है तो लक्ष्मण उन्हें भी धिक्कारते हैं। इस घटना का उल्लेख हमें वाल्मीकि रामायण के अरण्यकांड के सर्ग ४५ में मिलता है।
संक्षेप में कथा ये है कि जब माता सीता मारीच द्वारा श्रीराम के स्वर में उनका चीत्कार सुनती है तो व्याकुल होकर लक्ष्मण से कहती हैं कि वे तुरंत अपने भैया की सहायता के लिए जाएँ। किन्तु उनके ऐसा कहने पर भी अपने भैया की आज्ञा से बंधे लक्ष्मण, जो कि माता सीता की रक्षा करना था, वे उन्हें छोड़ कर नहीं जाते। तब माता सीता क्षुब्द होकर लक्ष्मण को अत्यंत कटु वचन बोलती है।
वे कहती हैं कि "तुम तो मित्ररूप में अपने भाई के शत्रु हो इसीलिए संकट में उनकी सहयता को नहीं जा रहे। मैं जानती हूँ कि तुम मुझपर अधिकार करने के लिए अपने भाई का विनाश चाहते हो। मेरे लिए तुम्हारे मन में लोभ आ गया है इसी कारण तुम श्रीराम की रक्षा के लिए नहीं जा रहे। जब वही नहीं रहेंगे तो मेरी रक्षा करके क्या करोगे?"
उनकी ऐसी बात सुनकर लक्ष्मण उनसे कहते हैं कि "माता! आप विश्वास करें, नाग, असुर, गन्धर्व, देवता, दानव तथा राक्षस, ये सब मिलकर भी आपके पति को परास्त नहीं कर सकते। देवताओं, मनुष्यों, गंधर्वों, पक्षियों, राक्षसों, पिशाचों, किन्नरों, मृगों तथा घोर दानवों में भी ऐसा कोई वीर नहीं जो समरांगण में इंद्र के समान पराक्रमी आपके पति का सामना कर सके। वे युद्ध में अवध्य हैं, इसी कारण आप ऐसी कटु बात ना कहें।"
आगे लक्ष्मण कहते हैं - "श्रीराम की अनुपस्थिति में इस गहन वन के भीतर मैं आपको अकेली नहीं छोड़ सकता। कोई अपनी पूरी सेना के साथ भी श्रीराम का कुछ नहीं बिगाड़ सकता। देवताओं और इंद्र के साथ यदि तीनों लोक आक्रमण करें तब भी वे श्रीराम के वेग को रोक नहीं सकते। इसीलिए आप संताप छोड़ कर शांत हों। आपके पति उस सुन्दर मृग को मार कर शीघ्र ही लौट आएंगे। वह जो शब्द आपने सुना वो उनका नहीं था, वो अवश्य ही किसी की माया थी।"
लक्ष्मण आगे कहते हैं - "माता! भैया ने मुझे आपकी रक्षा का भार सौंपा है इसीलिए इस समय आप मेरे पास उनकी धरोहर के रूप में हैं, अतः मैं आपको अकेली नहीं छोड़ सकता। देवी! जिस समय खर का वध किया गए था उस समय जनस्थान के और भी कई राक्षस मारे गए थे। इसी कारण लगता है उन्होंने ही हमसे वैर बांध लिया है। वे राक्षस इस प्रकार की मायावी बोली बोलने में निपुण हैं इसीलिए आपको ऐसी चिंता नहीं करनी चाहिए।"
हालाँकि लक्ष्मण ने माता सीता के भले की ही बात की थी पर इससे उन्हें बड़ा क्रोध आया। उन्होंने क्रोध पूर्वक लक्ष्मण से कहा - "अनार्य! निर्दयी! क्रूरकर्मा! कुलांगार! मैं तुझे खूब समझती हूँ। श्रीराम किसी संकट में पड़ जाएँ यही तुझे प्रिय है इसीलिए उनपर संकट आया देख कर भी तू ऐसी बातें बना रहा है। तुझ जैसे क्रूर और छिपे हुए शत्रु के मन में ऐसी बातें आना कोई आश्चर्य नहीं है।"
वे इससे आगे कहती हैं - "तू बड़ा दुष्ट है, श्रीराम को अकेले वन में आता देख कर मुझे प्राप्त करने के लिए ही तू भी अकेला उनके पीछे-पीछे चला आया है। ऐसा भी हो सकता है कि भरत ने तुझे भेजा हो। किन्तु लक्ष्मण! तेरा या भरत का वह मनोरथ पूरा नहीं हो सकता। श्रीराम को पति के रूप में पाकर मैं दूसरे किसी क्षुद्र पुरुष की कामना कैसे कर सकती हूँ? मैं तेरे सामने निःसंदेह अपने प्राण त्याग दूंगी किन्तु अपने पति के बिना एक क्षण भी जीवित नहीं रहूंगी।"
जब माता सीता ने लक्ष्मण को ऐसे कठोर वचन बोले तब उन्होंने माता सीता से कहा - "देवी! मैं आपकी बात का उत्तर नहीं दे सकता क्यूंकि आप मेरे लिए आदरणीय हैं देवी के समान हैं। ऐसी अनुचित और प्रतिकूल बातें कहना स्त्रियों के लिए आश्चर्य की बात नहीं है। किन्तु आपकी ये बात मेरे दोनों कानों में तपाये हुए लोहे के समान लगी है जिसे मैं सहन नहीं कर सकता।"
वे आगे कहते हैं - "इस वन के सभी प्राणी साक्षी होकर सुनें। मैंने न्याययुक्त बात कही है तो भी आपने मेरे प्रति ऐसी कठोर बात अपने मुख से निकाली है। निश्चय ही आज आपकी मति मारी गयी है। धिक्कार है आपको जो आप मुझ पर ऐसा संदेह करती हैं। मैं अपने बड़े भाई की आज्ञा पालन में तत्पर हूँ और आप केवल नारी होने के कारण मेरे प्रति ऐसी आशंका करती हैं। अच्छा, अब मैं भी वही जाता हूँ जहाँ मेरे भैया गए हैं। देवी! आपका कल्याण हो।"
फिर आश्रम से निकलने से पहले लक्ष्मण ने फिर आर्त स्वर में कहा - "माता! वन के सम्पूर्ण देवता आपकी रक्षा करें, क्यूंकि इसी समय मेरे सामने जैसे अपशकुन उत्पन्न हो रहे हैं उसने मुझे संशय में डाल दिया है कि क्या मैं श्रीराम के साथ लौटकर पुनः आपको सकुशल देख सकूंगा?"
लक्ष्मण के ऐसा कहने पर माता सीता रोने लगी और कहा - "लक्ष्मण! श्रीराम से बिछुड़ जाने पर मैं गोदावरी नदी में समा जाउंगी, गले में फ़ांस लगा लूंगी, पर्वत शिखर से कूद जाउंगी, विषपान कर लूंगी अथवा अग्नि प्रवेश कर लूंगी किन्तु श्रीराम के अतिरिक्त किसी दूसरे पुरुष का स्पर्श कदापि नहीं करुँगी।" ऐसा कह कर वे दुःख के कारण अपने दोनों हाथों से अपने उदर पर आघात करने लगी और छाती पीटने लगी।
उन्हें ऐसे रोती देख कर लक्ष्मण ने उन्हें सांत्वना दी पर माता सीता उनसे कुछ नहीं बोली। तब लक्ष्मण ने विनयपूर्वक झुककर माता सीता को प्रणाम किया और बार-बार उनकी ओर देखते हुए वे श्रीराम के पास चल दिए। उनके जाने के बाद, जैसा कि हम सभी जानते हैं, रावण को मौका मिला और उसने माता सीता का हरण कर लिया।
तो यहाँ पर हम देखते हैं कि वाल्मीकि रामायण में कहीं पर भी किसी लक्ष्मण रेखा का उल्लेख नहीं है। तो फिर ये लक्ष्मण रेखा की कथा आयी कहाँ से? इस बारे में अधिकतर लोगों का मानना ये है कि लक्ष्मण रेखा की बात गोस्वामी तुलसीदास ने श्रीरामचरितमानस में लिखा है किन्तु लक्ष्मण रेखा का कोई वर्णन रामचरितमानस में भी नहीं है।
हालाँकि मानस के ही लंकाकाण्ड के ३५वें दोहे में मंदोदरी रावण को समझाते हुए लक्ष्मण द्वारा खींची गयी रेखा का वर्णन है -
रामानुज लघु रेख खचाई।
सोउ नहिं नाघेहु असि मनुसाई।।
तो यहाँ आप देख सकते हैं कि मंदोदरी रावण से कहती है कि वो श्रीराम के छोटे भाई द्वारा खींची गयी एक रेखा को भी पार नहीं कर सका। या बात एक अलग ही संदेह उत्पन्न करती है कि जब रामचरितमानस के सीता हरण के प्रकरण में तुलसीदास जी ने किसी लक्ष्मण रेखा का वर्णन नहीं किया है फिर उसी ग्रन्थ के लंका कांड में मंदोदरी लक्ष्मण द्वारा खींची गयी किस रेखा की बात कर रही है?
इसका उत्तर आपको रामचरितमानस के काकभुशंडि के प्रसंग में मिलेगा। हमारे काकभुशंडि वाले लेख और वीडियो में हमने आपको बताया था कि काकभुशंडि जी ने रामायण को ११ बार और महाभारत को १६ बार होते देखा था जिसमें घटनाएं और परिणाम अलग-अलग थे।
कहा जाता है कि गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में काकभुशंडि द्वारा देखी गयी ४ कल्पों की रामायण कथा को समाहित किया है। तो यहाँ ऐसा माना जा सकता है कि मानस में जो सीता हरण का प्रसंग है वो किसी और कल्प के राम अवतार का है और मंदोदरी जो रावण को बता रही है, वो किसी और कल्प के रामायण का। ये तथ्य बहुत ही तार्किक है लेकिन फिर भी इस बात की कोई पुष्टि नहीं की जा सकती है कि आधुनिक काल में लक्ष्मण रेखा का प्रसंग कहा से आया।
आधुनिक काल के कुछ विद्वानों का ये भी तर्क है कि लक्ष्मण रेखा की बात रामायण के सन्दर्भ में बहुत बाद में जोड़ी गयी। ये बस उस चीज का एक संकेत मात्र है व्यक्ति को कभी अपनी सीमा नहीं लांघनी चाहिए। यदि आप सीता हरण का प्रकरण देखें तो आपको पता चलेगा कि यहाँ पर माता सीता ने दुःख और क्षोभ में लक्ष्मण के प्रति बहुत अनुचित वचन कहे जो उचित नहीं था। तो रामायण के सन्दर्भ में लक्ष्मण रेखा को केवल एक प्रतीक ही समझना चाहिए।
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