जब रावण माता सीता का अपहरण किये बिना ही लौट गया

जब रावण माता सीता का अपहरण किये बिना ही लौट गया
रामायण में सीता हरण के विषय में जनमानस में एक धारणा प्रचलित है कि रावण ने शूर्पणखा के कहने पर मारीच की सहायता से माता सीता का हरण किया था। किन्तु वास्तव में खर-दूषण और जनस्थान के १४००० राक्षसों के नाश का समाचार सबसे पहले शूर्पणखा ने रावण को नहीं दिया था। ना ही सबसे पहले शूर्पणखा ने रावण को सीता हरण की सलाह दी थी। साथ ही साथ पहली बार रावण मारीच की बात मान कर माता सीता का हरण किये बिना ही लौट गया था, ये बात बहुत ही कम लोगों को पता है।

इस बात का वर्णन वाल्मीकि रामायण के अरण्यकाण्ड के ३१वें सर्ग में दिया गया है। इसके अनुसार जब श्रीराम ने खर-दूषण का वध किया तब शूर्पणखा नहीं बल्कि अकम्पन्न नाम एक राक्षस सबसे पहले लंका पहुंचा। उसी ने रावण को ये सूचना दी कि जनस्थान में खर अपनी सेना के साथ मारा गया है और वो किसी प्रकार अपने प्राण बचा कर वहां से आ पाया है।

ये सुनकर रावण क्रोध से पागल हो गया। उसने अकम्पन्न से पूछा कि ऐसा करने का दुःसाहस किसने किया? किसकी मृत्यु निकट आ पहुंची है? उसे अब तीनों लोकों में कहीं आश्रय नहीं मिलने वाला है। रावण को इतने क्रोध में देख कर अकम्पन्न के प्राण सूख गए। उसने सोचा कि अवश्य ही श्रीराम के हाथों जनस्थान के विनाश की बात सुनकर रावण उसे जीता नहीं छोड़ेगा। इसीलिए उसने सबसे पहले रावण से अभयदान माँगा।

जब रावण ने उसे अभयदान दिया तब अपने प्राणों की रक्षा का विश्वास होने पर अकम्पन्न ने सारी घटना उसे बताई। उसने रावण को बताया कि महाराज दशरथ के युवा पुत्र श्रीराम, जो पंचवटी में रहते हैं और जिनके तेज की कोई सीमा नहीं है, उन्होंने ही जनस्थान में खर, दूषण, त्रिशिरा का उनकी १४००० राक्षसों की सेना सहित वध कर दिया है।

ये सुनकर कर रावण को बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने अकम्पन्न से पूछा कि क्या श्रीराम की रक्षा के लिए इंद्र सहित सारे देवता भी आये थे? इस पर अकम्पन्न ने श्रीराम के पराक्रम का विस्तार से वर्णन किया। उसने कहा - "हे राक्षसराज! वो योद्धा जिसका नाम राम है, संसार के समस्त धनुर्धरों में सर्वश्रेष्ठ है। युद्धकला में तो वे पराकाष्ठा को पहुंचे हुए हैं। उनके साथ उनके छोटे भाई लक्ष्मण हैं जो बल और पराक्रम में उन्ही के समान हैं।"

अकम्पन्न ने आगे कहा - "उन्ही राम ने समस्त जनस्थान को उजाड़ डाला है। उनके साथ ना कोई देवता है और ना ही कोई महात्मा या मुनि। उन्होंने अकेले ही इस विकट कार्य को किया है। जब उनके बाण चलते हैं तो किसी सर्प की भांति शत्रुओं को खा जाते हैं। उनसे बचने के लिए राक्षसों ने जिन-जिन मार्गों का आश्रय लिया, उनके बाणों ने वही उनका नाश कर दिया।"

तब रावण ने क्रोध में आकर कहा कि मैं अभी जनस्थान जाकर स्वयं राम और उसके छोटे भाई लक्ष्मण का वध करूँगा। उसके ऐसा कहने पर अकम्पन्न ने कहा - "राजन! राम यदि कुपित हो जाये तो तीनों लोकों में कोई भी अपने पराक्रम से उन्हें वश में नहीं कर सकता। वे अपने बाणों से भरी हुई नदी के वेग को भी पलट सकते हैं तथा तारा, ग्रह और नक्षत्रों सहित सम्पूर्ण आकाश को भी उलट सकते हैं।"

"वे श्रीराम समुद्र में डूबती हुई पृथ्वी को अपने बल से ऊपर उठा सकते हैं, महासागर को भेद कर समस्त सृष्टि को जल से आप्लावित कर सकते हैं और अपने बाणों से वायु तक को नष्ट कर सकते हैं। अयोध्या के वो राजकुमार रूद्र की भांति सम्पूर्ण लोकों का संहार कर ब्रह्मा की भांति उसकी पुनः सृष्टि करने में समर्थ हैं। महाराज, आप अपनी पूरी सेना के साथ भी श्रीराम को परास्त नहीं कर सकते।"

अकम्पन्न ने आगे कहा - "किन्तु उनके वध का एक उपाय मुझे दीखता है। श्रीराम की पत्नी सीता संसार की सर्वोत्तम सुंदरी है। उसने यौवन के मध्य में पदार्पण किया है। उसके अंग-प्रत्यंग सुडौल और अद्वितीय हैं और वो रत्नमय आभूषणों से सजी रहती है। देवकन्या, गन्धर्वकन्या, अप्सरा या नागकन्या, कोई भी रूप में उसकी समानता नहीं कर सकती। वो नारियों में एक रत्न के समान है। यदि आप किसी प्रकार राम को धोखे में डाल कर उसकी पत्नी सीता का हरण कर लें तो उससे बिछुड़ जाने पर राम कदापि जीवित नहीं रहेंगे।"

रावण को अकम्पन्न का ये सुझाव पसंद आया। अगले दिन वो अकेला ही गधों से जुते एक रथ पर चढ़ कर आकाश मार्ग से ताड़कापुत्र मारीच के आश्रम पर पहुँचा। मारीच ने रावण का बहुत आदर सत्कार किया और उसके आने का कारण पूछा। तब रावण ने कहा - "तात! राम ने मेरे राज्य की सीमा के रक्षक खर-दूषण को सेना सहित मार डाला है। अतः इसका प्रतिशोध लेने के लिए मैं उसकी पत्नी का अपहरण करना चाहता हूँ। इस कार्य में तुम मेरी सहायता करो।"

जब मारीच ने ये सुना तो भय से कांपते हुए उसने रावण से कहा - "राजन! मित्र के रूप में तुम्हारा वो कौन शत्रु है जिसने तुम्हे सीता को हर लेने की सलाह दी है? वो कौन है जो तुम्हारा अहित करना चाहता है? कौन कहता है कि तुम सीता का हरण कर ले आओ, मुझे उसका नाम बताओ। वो निश्चय ही समूचे राक्षस कुल का नाश करवाना चाहता है। वो तुम्हारे हाथों विषधर नाग के मुख से उअके दांत उखड़वाना चाहता है। जिसने भी तुम्हे इस कार्य का प्रोत्साहन दिया है वो निश्चय ही तुम्हारा शत्रु है।"

मारीच ने आगे कहा - "रावण! श्रीराम वो गजराज हैं जिसकी गंध सूंघ कर ही गजरूपी योद्धा दूर भाग जाते हैं। युद्धस्थल में उनकी ओर देखना भी तुम्हारे लिए उचित नहीं है, फिर जूझने की तो बात ही क्या है। श्रीराम मनुष्यों में पुरुषसिंह हैं, तुम उन्हें उठाने की चेष्टा ना करो। इसिलए लंकेश्वर, तुम लंका में ही प्रसन्न रहो और अपनी अनेक पत्नियों के साथ रमण करो। तुम लंका में अपनी स्त्रियों के साथ सुख पूर्वक रहो और श्रीराम यहाँ वन में अपनी पत्नी के साथ सुख पूर्वक रहें, यही तुम्हारे लिए उचित है।"

मारीच के इतना समझाने पर रावण वापस लंका लौट गया। इसके बाद शूर्पणखा ने भी लंका पहुँच कर उसे माता सीता के हरण की सलाह दी और तब दूसरी बार रावण ने मारीच की सहायता से उनका हरण किया। तो यहाँ हमें कुछ बातें जानने को मिलती है जो बहुत कम लोगों को पता है:
  • वो शूर्पणखा नहीं बल्कि अकम्पन्न था जिसने रावण को खर-दूषण की मृत्यु का समाचार दिया।
  • वो अकम्पन्न ही था जिसने सबसे पहले रावण को माता सीता के हरण की सलाह दी।
  • रावण समुद्र के पार पुष्पक विमान से नहीं बल्कि गधों से जुते एक दिव्य रथ पर गया था।
  • मारीच के बहुत समझाने के बाद रावण माता सीता के हरण का विचार छोड़ वापस लंका लौट गया था।

3 टिप्‍पणियां:

  1. प्रिय नीलाभ जी.... सप्रेम राम राम। आपको लंबे समय से पढ़ता आ रहा हूँ और पूरे विश्वास से कह सकता हूँ कि अपने ज्ञान और कौशल का जैसा सुंदर और लोकोपकारी उपयोग आप कर रहे हैं, वैसा करने वाले विरले ही हैं।
    प्रभु की यह कथा भी बहुत आनंदपूर्ण थी। सोने पर सुहागा यह कि आपने कथा का संदर्भ भी साथ में ही प्रस्तुत किया है।
    आपके इन प्रयासों में कैसे हम भी भागीदार हो सकते हैं , यह अवश्य बताइएगा , साथ ही हमारे ब्लॉग के विषय अगर अपने अनमोल सुझाव देना चाहें तो अवश्य दीजिएगा। आप जैसे योग्य व्यक्ति का मार्गदर्शन हमें अभीष्ट भी है । अपना संपर्क अवश्य साझा कीजिएगा , ऐसा निवेदन है।
    पुनः , सप्रेम राम राम।
    आपका
    अनुराग
    www.storykars.com

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    1. बहुत आभार अनुराग जी। आपसे बात करके बहुत अच्छा लगा।

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  2. जय श्री कृष्णा भाईसाहब

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