महर्षि विश्वामित्र ने श्रीराम और लक्ष्मण को कौन-कौन से अस्त्र दिए थे?

महर्षि विश्वामित्र ने श्रीराम और लक्ष्मण को कौन-कौन से अस्त्र दिए थे?
रामायण में जब महर्षि विश्वामित्र महाराज दशरथ से श्रीराम और लक्ष्मण को मांग कर ले जाते हैं तो ताड़का वध से पहले और उसके बाद वे दोनों भाइयों कई प्रकार के अस्त्र-शस्त्र और विद्याएं प्रदान करते हैं। इसका वर्णन वाल्मीकि रामायण के बालकाण्ड के २२वें और २७वें सर्ग में दिया गया है। आइये उन सभी के बारे में जानते हैं:

जब श्रीराम और लक्ष्मण महर्षि विश्वामित्र के साथ वन की ओर निकलते हैं तो मार्ग में सबसे पहले विश्वामित्र श्रीराम को बला और अतिबला नाम की विद्याएं प्रदान करते हैं। विश्वामित्र कहते हैं कि इन विद्याओं के कारण तुम्हे कभी कष्ट या थकान का अनुभव नहीं होगा, तुम पर कोई सोते हुए भी प्रहार नहीं कर पायेगा, बल में तुम्हारी समता करने वाला इस पृथ्वी पर और कोई ना होगा, तुम्हारे ज्ञान का प्रकाश सर्वत्र फ़ैल जाएगा, तुम्हे कभी भूख-प्यास नहीं लगेगी क्यूंकि ये दोनों विद्याएं स्वयं परमपिता ब्रह्मा की पुत्रियां हैं।

श्रीराम और लक्ष्मण द्वारा ताड़का के वध के पश्चात महर्षि विश्वामित्र उन्हें कई अस्त्र-शस्त्र प्रदान करते हैं। वो सभी अस्त्र-शस्त्र थे -
  • पांच दिव्य चक्र - दण्डचक्र, धर्मचक्र, कालचक्र, विष्णुचक्र तथा ऐन्द्रचक्र।
  • देवराज इंद्र का वज्रास्त्र।
  • महादेव का श्रेष्ठ त्रिशूल।
  • ब्रह्मदेव के दोनों महास्त्र - ब्रह्मास्त्र और ब्रह्मशिरा अस्त्र।
  • ऐषिकास्त्र नामक महान अस्त्र।
  • दो दिव्य गदाएँ - मोदकी और शिखरी।
  • तीन दिव्य पाश - धर्मपाश, कालपाश और वरुणपाश।
  • सूखी और गीली, दो प्रकार की अशनि।
  • महान पिनाक अस्त्र (या धनुष)।
  • भगवान विष्णु का महान अस्त्र नारायणास्त्र।
  • अग्निदेव का प्रिय अस्त्र - आग्नेयास्त्र, जिसका एक नाम शिखरास्त्र भी था।
  • दिव्यास्त्रों में श्रेष्ठ वायव्यास्त्र।
  • हयशिरा नाम का एक महान अस्त्र।
  • दो महान शक्तियों के साथ क्रौंच अस्त्र।
  • राक्षसों के वध के लिए कई शस्त्र - कंकाल, घोर मूसल, कपल तथा किंकणी नामक शस्त्र।
  • नंदन नाम का महान खड्ग जिनके अधिपति विद्याधर थे।
  • गंधर्वों के चार प्रिय अस्त्र - सम्मोहनास्त्र, प्रस्वापन, प्रशमन एवं सौम्य अस्त्र।
  • चार अतुलनीय दिव्यास्त्र - वर्षण, शोषण, सन्तापन एवं विलापन।
  • कामदेव का दुर्जय अस्त्र मादन।
  • गंधर्वों का एक और अस्त्र मानवास्त्र।
  • पिशाचों का प्रिय अस्त्र मोहनास्त्र।
  • सात माया अस्त्र - तामस, सौमन, संवर्त, दुर्जय, मौसल, सत्य और मायामय।
  • शत्रुओं के तेज का नाश करने वाला सूर्यदेव का अस्त्र तेजःप्रभ।
  • सोम देवता का अस्त्र - शिशिर।
  • त्वष्टा (विश्वकर्मा) का महान अस्त्र - दारुण।
  • भगदेवता का भयंकर अस्त्र।
  • प्रजापति मनु का शीतेषु नामक अस्त्र।
इसके बाद महर्षि विश्वामित्र ने श्रीराम को ५० गुप्त दिव्यास्त्र और दिए। वे सभी दिव्यास्त्र प्रजापति कृशाश्व के पुत्र माने जाते हैं जो इच्छानुसार रूप भी धारण कर सकते थे। वे ५० दिव्यास्त्र थे - सत्यवान, सत्यकीर्ति, धृष्ट, रभस, प्रतिहारतर, प्राङ्गमुख, अवांग्मुख, लक्ष्य, अलक्ष्य, ढृढ़नाभ, सुनाभ, दशाक्ष, शतवक्र, दशशीर्ष, शतोदर, पद्मनाभ, महानाभ, दुंदुनाभ, स्वनाभ, ज्योतिष, शकुन, नैरास्त्र, विमल, यौगन्धर, विनिद्र, शुचिबाहु, महाबाहु, निष्कलि, विरूच, सार्चिमाली, धृतिर्माली, वृत्तिमान, रुचिर, पित्र्य, सौमनस, विधूत, मकर, परवीर, रति, धन, धान्य, कामरूप, कामरुचि, मोह, आवरण, जृम्भक, सर्पनाथ, पन्थान एवं वरुण।

अब यहाँ एक प्रश्न आता है कि क्या महर्षि विश्वामित्र ने सभी अस्त्र श्रीराम को दिए, लक्ष्मण को कुछ नहीं दिया? ये इस विषय में जो संदेह है वो श्लोकों को पढ़ने से दूर हो जाता है। यदि आप इन श्लोकों का हिंदी अनुवाद देखेंगे तो वहां पर केवल श्रीराम का ही वर्णन आता है किन्तु संस्कृत श्लोकों में महर्षि विश्वामित्र ने राघव, रघुनन्दन, काकुत्स्थ इत्यादि शब्दों का प्रयोग किया है। बहुत कम श्लोकों में श्रीराम का नाम स्पष्ट रूप से आया है।

ये तो हम जानते ही हैं कि ये सभी शब्द श्रीराम और लक्ष्मण दोनों के लिए प्रयोग होते हैं क्यूंकि दोनों रघुकुल से ही थे। तो इससे हमें समझना चाहिए कि वो सभी या अधिकतर दिव्यास्त्र श्रीराम के साथ साथ लक्ष्मण को भी प्राप्त हुए। इसकी पुष्टि इस बात से भी होती है कि श्रीराम को ब्रह्मास्त्र देने का वर्णन हमें केवल यहीं मिलता है किन्तु युद्ध कांड में ये स्पष्ट वर्णन है कि लक्ष्मण ने अतिकाय का वध ब्रह्मास्त्र से किया था। अर्थात श्रीराम के साथ-साथ उनके पास भी ब्रह्मास्त्र का ज्ञान था।

इसके अतिरिक्त ऐसा वर्णित है कि लक्ष्मण ने भी निद्रा, भूख-प्यास और थकान को जीत लिया था। ऐसी शक्ति बला-अतिबला विद्याओं से प्राप्त होती है जो महर्षि ने श्रीराम को दी थी। इससे ये सिद्ध होता है कि इन सभी दिव्यास्त्रों को श्रीराम के साथ साथ लक्ष्मण ने भी ग्रहण किया था।

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