कुछ समय पहले हमने रावण की आयु पर एक लेख और वीडियो प्रकाशित किया था। जैसा कि हमने उसमें देखा कि मूल वाल्मीकि रामायण में हमें रावण की आयु के विषय में कुछ स्पष्ट वर्णन नहीं मिलता। हालाँकि यदि बात श्रीराम और माता सीता की आयु की की जाये तो रामायण में हमें इस विषय में कई सन्दर्भ मिलते हैं।
हालाँकि बिलकुल स्पष्ट रूप से श्रीराम या माता सीता की आयु के विषय में तो नहीं बताया गया है और कुछ स्थानों पर हमें इनकी आयु में थोड़ी भिन्नता भी मिलती है, फिर भी रामायण के अनुसार श्रीराम की आयु का अनुमान लगाना रावण की आयु के अनुमान लगाने से अधिक सरल है। तो इस लेख में हम रामायण के उन सभी सन्दर्भों की बात करेंगे जिससे श्रीराम और माता सीता की आयु के विषय में पता चलता है।
तो सबसे पहले बात करें श्रीराम के जन्म की तो बालकाण्ड के सर्ग १८ के श्लोक ८ एवं ९ में इसका वर्णन आता है। इसके अनुसार चैत्र के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र एवं कर्क लग्न में श्रीराम का जन्म हुआ था।
बालकाण्ड, सर्ग १८, श्लोक ८ और ९
ततो यज्ञे समाप्ते तु ऋतूनां षट् समत्ययुः।
ततश्च द्वादशे मासे चैत्रे नावमिके तिथौ।।
नक्षत्रेऽदितिदैवत्ये स्वोच्चसंस्थेषु पञ्चसु।
ग्रहेषु कर्कटे लग्ने वाक्पताविन्दुना सह।।
अर्थात: यज्ञ-समाप्ति के पश्चात् जब छः ऋतुएँ बीत गयीं, तब बारहवें मास में चैत्र के शुक्लपक्ष की नवमी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र एवं कर्क लग्न में कौसल्यादेवी ने दिव्य लक्षणों से युक्त, सर्वलोकवन्दित जगदीश्वर श्रीराम को जन्म दिया।
वहीँ अगर माता सीता के जन्म की बात करें तो उसका वर्णन हमें अयोध्या कांड के सर्ग ११८ के श्लोक २८ में मिलता है जहाँ वे माता अनुसूया को अपने जन्म के विषय में बताती है।
अयोध्या कांड, सर्ग ११८, श्लोक २८
तस्य लाङ्गलहस्तस्य कृषतः क्षेत्रमण्डलम्।
अहं किलोत्थिता भित्त्वा जगतीं नृपतेः सुता।।
अर्थात: एक समय की बात है, वे (राजा जनक) यज्ञ के योग्य क्षेत्र को हाथ में हल लेकर जोत रहे थे, इसी समय मैं पृथ्वी को फाड़कर प्रकट हुई। इतने मात्र से ही मैं राजा जनक की पुत्री हुई।
श्रीराम की आयु के विषय में दूसरा वर्णन हमें बालकाण्ड के सर्ग २० के दूसरे श्लोक में मिलता है जब महर्षि विश्वामित्र महाराज दशरथ से श्रीराम को मांगने आते हैं तब दशरथ उन्हें बताते हैं कि श्रीराम तो अभी १६ वर्ष की आयु के भी नहीं हुए हैं।
बालकाण्ड, सर्ग २०, श्लोक २
ऊनषोडशवर्षो मे रामो राजीवलोचनः।
न युद्धयोग्यतामस्य पश्यामि सह राक्षसैः।।
अर्थात: महर्षे! मेरा कमलनयन राम अभी पूरे सोलह वर्ष का भी नहीं हुआ है। मैं इसमें राक्षसों के साथ युद्ध करने की योग्यता नहीं देखता।
अयोध्या कांड के सर्ग २० के श्लोक ४५ में जब माता कौशल्या को ये पता चलता है कि श्रीराम को वनवास हुआ है तब वे विलाप करते हुए कहती है कि अभी तो उनकी आयु केवल २७ वर्ष है।
अयोध्या कांड, सर्ग २०, श्लोक ४५
दश सप्त च वर्षाणि जातस्य तव राघव।
अतीतानि प्रकांक्षन्त्या मया दुःखपरिक्षयम्।।
अर्थात: रघुनन्दन ! तुम्हारे उपनयनरूप द्वितीय जन्म लिये सत्रह वर्ष बीत गये (अर्थात् तुम अब सत्ताईस वर्ष के हो गये)। अब तक मैं यही आशा लगाये चली आ रही थी कि अब मेरा दुःख दूर हो जायगा।
आगे अरण्य कांड के सर्ग ३८ के श्लोक ६ और ७ में जब रावण पहली बार मारीच की सहायता मांगने जाता है तब मारीच उसे विश्वामित्र द्वारा श्रीराम को महाराज दशरथ से मांगने का प्रसंग बताता है। हालाँकि उस समय श्रीराम की आयु महाराज दशरथ ने १६ वर्ष से कम बताई थी पर मारीच जान बूझ कर रावण के मन में भय उत्पन्न करने के लिए श्रीराम की आयु १२ वर्ष बताता है ताकि रावण को ऐसा लगे कि जब वो इतनी छोटी आयु में इतने दुष्कर कार्य कर सकते थे तो आज उनकी शक्ति कैसी होगी। हालाँकि यदि आप माता सीता द्वारा बताई गयी आयु को देखें जो हम आगे बताने वाले हैं, तो श्रीराम की १२ वर्ष की आयु उस हिसाब से बिलकुल सटीक बैठती है।
अरण्य कांड, सर्ग ३८, श्लोक ६ एवं ७
ऊनद्वादशवर्षोऽयमकृतास्त्रश्च राघवः।
कामं तु मम तत् सैन्यं मया सह गमिष्यति।।
बलेन चतुरङ्गेण स्वयमेत्य निशाचरम्।
वधिष्यामि मुनिश्रेष्ठ शत्रु तव यथेप्सितम्।।
अर्थात: मुनिश्रेष्ठ! रघुकुलनन्दन राम की अवस्था अभी बारह वर्ष से भी कम है। इन्हें अस्त्र-शस्त्रों के चलाने का पूरा अभ्यास भी नहीं है। आप चाहें तो मेरे साथ मेरी सारी सेना वहाँ चलेगी और मैं चतुरङ्गिणी सेना के साथ स्वयं ही चलकर आपकी इच्छा के अनुसार उस शत्रुरूप निशाचर का वध करूँगा।
इससे आगे अरण्य कांड के सर्ग ४७ के श्लोक ४ में जब रावण एक ब्राह्मण के रूप में माता सीता के हरण के लिए आता है, उस समय जब रावण माता सीता का परिचय पूछता है तब बताती है कि वे महाराज दशरथ की पुत्रवधु हैं और विवाह के बाद वे १२ वर्षों तक अयोध्या के राजभवन में रही।
अरण्य कांड, सर्ग ४७, श्लोक ४
उषित्वा द्वादश समा इक्ष्वाकूणां निवेशने।
भुजाना मानुषान् भोगान् सर्वकामसमृद्धिनी।।
अर्थात: विवाह के बाद बारह वर्षों तक इक्ष्वाकुवंशी महाराज दशरथ के महल में रहकर मैंने अपने पति के साथ सभी मानवोचित भोग भोगे हैं। मैं वहाँ सदा मनोवाञ्छित सुख-सुविधाओं से सम्पन्न रही हूँ।
यही बात माता सीता हनुमान जी को सुन्दर कांड के सर्ग ३३ के श्लोक १७ में बताती है।
सुन्दर कांड, सर्ग ३३, श्लोक १७
समा द्वादश तत्राहं राघवस्य निवेशने।
भुञ्जाना मानुषान् भोगान् सर्वकामसमृद्धिनी।।
अर्थात: अयोध्या में श्रीरघुनाथजी के अन्तःपुर में बारह वर्षों तक मैं सब प्रकार के मानवीय भोग भोगती रही और मेरी सारी अभिलाषाएँ सदैव पूर्ण होती रहीं।
अरण्य कांड के सर्ग ४७ के ही १०वें श्लोक में माता सीता ब्राह्मण रूपी रावण को ये स्पष्ट रूप से बताती है कि जब श्रीराम को वनवास हुआ तब वे २५ वर्ष के और वो १८ वर्ष की थी।
अरण्य कांड, सर्ग ४७, श्लोक १०
मम भर्ता महातेजा वयसा पञ्चविंशकः।
अष्टादश हि वर्षाणि मम जन्मनि गण्यते।।
अर्थात: उस समय मेरे महातेजस्वी पति की अवस्था पचीस साल से ऊपर की थी और मेरे जन्मकाल से लेकर वनगमन काल तक मेरी अवस्था वर्षगणना के अनुसार अठारह साल की हो गयी थी।
युद्ध कांड के अंतिम सर्ग १२८ के श्लोक ९५ में इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि राजा बनने के बाद श्रीराम ने ११००० वर्षों तक शासन किया था।
युद्ध कांड, सर्ग १२८, श्लोक ९५
राज्यं दशसहस्राणि प्राप्य वर्षाणि राघवः।
शताश्वमेधानाजह्रे सदश्वान् भूरिदक्षिणान्।।
अर्थात: श्रीराम ने राज्य पाकर ग्यारह सहस्त्र वर्षों तक उसका पालन और सौ अश्वमेघ यज्ञों का अनुष्ठान किया। उन यज्ञों में उत्तम अश्व छोड़े गए थे तथा ऋत्विजों को बहुत अधिक दक्षिणा बांटी गयी थी।
यही बात इसी सर्ग के श्लोक १०६ में फिर से कही गयी है जहाँ उनके साथ साथ उनके भाइयों की भी आयु लगभग ११००० वर्ष बताई गयी है।
युद्ध कांड, सर्ग १२८, श्लोक १०६
दशवर्षसहस्राणि दशवर्षशतानि च।
भ्रातृभिः सहितः श्रीमान् रामो राज्यमकारयत्।।
अर्थात: भाइयों सहित श्रीराम ने ग्यारह हजार वर्षों तक राज्य किया था।
उनकी आयु का कुछ वर्णन हमें उत्तरकाण्ड में भी मिलता है। हालाँकि उत्तरकाण्ड रामायण में प्रक्षिप्त माना जाता है किन्तु फिर भी उसका वर्णन मैं कर देता हूँ। उत्तर कांड के सर्ग ९९ के श्लोक ९ में ऐसा वर्णित है कि श्रीराम ने अपने शासन के दौरान १०००० वर्षों तक यज्ञ किये थे।
उत्तर कांड, सर्ग ९९, श्लोक ९
दशवर्षसहस्राणि वाजिमेघानथाकरोत्।
वाजपेयान्दशगुणांस्तथा बहुसुवर्णकान्।।
अर्थात: उन्होंने (श्रीराम ने) दस हजार वर्षों तक यज्ञ किये। कितने ही अष्वमेघ यज्ञों और उनसे दसगुने वाजपेय यज्ञों का अनुष्ठान किया, जिसमें असंख्य स्वर्णमुद्राओं की दक्षिणाएँ दी गयी थी।
उत्तर कांड के सर्ग १०२ के श्लोक १६ में ये वर्णित है कि श्रीराम के तीनों भाई भी अपने भ्राता की भांति ही लम्बी आयु तक जीवित रहे और प्रजा के कार्य में सदा संलग्न रहते हुए उनके १०००० वर्ष बीत गए।
उत्तर कांड, सर्ग १०२, श्लोक १६
एवं वर्षसहस्राणि दश तेषां ययुस्तदा।
धर्मे प्रयतमानानां पौरकार्येषु नित्यदा।।
अर्थात: वे तीनों भाई (भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न) पुरवासियों के कार्य में सदा संलग्न रहते और धर्मपालन के लिए प्रयत्नशील रहा करते थे। इस प्रकार उनके १०००० वर्ष बीत गए।
श्रीराम की आयु का अंतिम वर्णन उत्तर कांड के सर्ग १०४ के श्लोक १२ में आता है जब काल स्वयं उनसे मिलने आते हैं और उनसे कहते हैं कि श्रीराम ने स्वयं अवतार लेते समय अपनी आयु ११००० वर्ष निश्चित की थी। अतः अब यदि उनकी इच्छा हो तो वे अपने धाम पधार सकते हैं।
उत्तर कांड, सर्ग १०४, श्लोक १२
दश वर्षसहस्राणि दश वर्षशतानि च।
कृत्वा वासस्य नियतिं स्वयमेवात्मना पुरा।।
अर्थात: और स्वयं ही ग्यारह हजार वर्षों तक मृत्युलोक में निवास करने की अवधि निश्चित की थी।
तो यदि इन सभी श्लोकों का सार समझा जाये तो कुछ चीजें पता चलती हैं:
- महर्षि विश्वामित्र श्रीराम को लगभग १६ वर्ष की आयु में महाराज दशरथ से मांग कर ले गए थे।
- विवाह के पश्चात श्रीराम और माता सीता १२ वर्षों तक अयोध्या में रहे।
- जब श्रीराम को वनवास हुआ तो उनकी आयु लगभग २५ वर्ष और माता सीता की आयु लगभग १८ वर्ष की थी।
- इस हिसाब से देखें तो विवाह के समय श्रीराम की आयु लगभग १३ वर्ष और माता सीता की आयु ६ वर्ष की रही होगी। हालाँकि ये बात थोड़ी विरोधाभासी है क्यूंकि रामायण के ही अनुसार श्रीराम जब विश्वामित्र जी के साथ वन को गए तब वे १६ वर्ष की आयु के थे। तो इस अनुसार कम से कम १६ वर्ष की आयु तक तो श्रीराम अविवाहित थे। हालाँकि मारीच ने जो रावण को श्रीराम की आयु बताई थी (१२ वर्ष), उसके हिसाब से तो ये गणना बिलकुल ही सटीक बैठती है।
- श्रीराम का जब वनवास समाप्त हुआ तो उनकी आयु लगभग ३९ वर्ष और माता सीता की आयु लगभग ३२ वर्ष की थी।
- माता सीता का देहावसान श्रीराम से बहुत पहले हुआ। हालाँकि मूल रामायण (बालकाण्ड से युद्धकाण्ड तक) में ऐसा कोई वर्णन नहीं है पर प्रकशित खंड उत्तर कांड के अनुसार लव-कुश के जन्म के कुछ वर्ष बाद ही माता सीता धरती में समा गयी। देहावसान के समय उनकी आयु का कोई स्पष्ट वर्णन नहीं मिलता।
- श्रीराम और उनके तीनों भाइयों की आयु भी कम से कम ११००० वर्ष थी। हालाँकि चारो भाइयों में से लक्ष्मण ने सबसे पहले अपना शरीर त्यागा किन्तु उसके थोड़े समय बाद ही श्रीराम ने अपने चारो भाइयों के साथ निर्वाण ले लिया।
jai shree ram
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