अयोमुखी - एक और राक्षसी जिसके नाक-कान लक्ष्मण ने काट डाले

अयोमुखी - एक और राक्षसी जिसके नाक-कान लक्ष्मण ने काट डाले
शूर्पणखा की कथा तो हम सभी जानते ही हैं। रामायण के अरण्य कांड के १८वें सर्ग में इसका वर्णन है कि जब शूर्पणखा श्रीराम के समझाने पर भी नहीं मानी और माता सीता पर आक्रमण किया, तब लक्ष्मण ने श्रीराम की आज्ञा से उसके नाक और कान काट डाले। किन्तु क्या आपको पता है कि रामायण में ही एक और ऐसी राक्षसी का वर्णन आता है जिसके नाक कान लक्ष्मण ने काट डाले थे?

उस राक्षसी का नाम था अयोमुखी। इस अद्भुत कथा का वर्णन रामायण के अरण्यकाण्ड के ६९वें सर्ग में आता है। उस समय माता सीता का हरण हो चुका था और श्रीराम और लक्ष्मण उन्हें ढूंढते हुए वन-वन भटक रहे थे। मार्ग में उन्होंने जटायु को देखा जो अपनी अंतिम सांसें ले रहा था। उसने श्रीराम को सारी बातों से अवगत कराया और फिर मृत्यु को प्राप्त हुआ। तब श्रीराम और लक्ष्मण ने उनका अंतिम संस्कार किया।

इसके बाद वे माता सीता की खोज में पश्चिम दिशा की और गए। वे दोनों चलते-चलते गहन वन में चले गए जहाँ किसी प्राणी का आना जाना नहीं होता था। वो वन जनस्थान (जहाँ श्रीराम रहा करते थे) से ३ कोस दूर था और उस वन का नाम था क्रौंचारयण। वो वन देखने में बड़ा सुन्दर था और उसमें कई पशु पक्षी निवास करते थे किन्तु कोई मनुष्य वहां नहीं आता था। उन दोनों ने माता सीता को उस वन में खोजा पर वे उन्हें वहां नहीं मिली। तब वे उस वन से निकल कर मतंग मुनि के आश्रम के पास पहुंचे।

वहां दोनों भाइयों ने एक विचित्र गुफा देखी जो पाताल के समान गहरी थी और उसमें पूर्ण अंधकार फैला हुआ था। उन्होंने सोचा कि माता सीता कदाचित वहां हो इसीलिए वे उस गुफा के निकट गए। वाहन उन्होंने एक विशालकाय राक्षसी देखी जो विकट रूप वाली और डरावनी थी। उस राक्षसी का मुख बड़ा विशाल था जिसे देख कर घृणा आती थी। कोई भी जीव जंतु उसके भय से उसके निकट नहीं आता था क्यूंकि वो उन्हें पकड़ कर खा जाती थी।

जब उस राक्षसी ने उन दोनों भाइयों को निकट आते देखा तो लक्ष्मण के रूप को देख कर वो उसपर मोहित हो गयी। इसने लक्ष्मण से कहा कि "आओ हम दोनों रमण करें।" ऐसा सुन कर लक्ष्मण ने अपना मुख फेर लिया और दूसरी ओर जाने लगे किन्तु उस राक्षसी ने लक्ष्मण का हाथ पकड़ लिया।

फिर उसने लक्ष्मण को अपनी भुजाओं में कस लिया और बोली - "मेरा नाम अयोमुखी है। मेरा मन तुम्हारे प्रति आसक्त है। यदि मैं तुम्हे भार्या के रूप में मिल गयी तो समझ लो तुम्हे बहुत लाभ होगा। तुम मेरे प्यारे पति बनकर मेरे साथ ही निवास करो। हम लोग दीर्घकाल तक पर्वतों और कंदराओं में सदा रमण करेंगे।"

लक्ष्मण माता सीता के हरण से दुखी तो थे हीं, अब इस प्रकार एक और राक्षसी द्वारा बलात पकड़ लिए जाने पर वे अत्यंत क्रोधित हो उठे। उन्होंने तलवार निकाली और अयोमुखी के नाक, कान और स्तन काट दिए। इस पर वो राक्षसी जोर-जोर से चिल्लाने लगी और वापस उसी गुफा में भाग गयी। इसके बाद दोनों भाई माता सीता की खोज में आगे बढ़ गए।

रामायण में अयोमुखी नामक इस राक्षसी के विषय में केवल इतना ही वर्णन दिया गया है। इसके पहले या इसके बाद उसके विषय में कोई और वर्णन हमें नहीं मिलता।

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